गतांक से आगे :-
भाग – ५६
तीन जुआरी थे – जो आज अपना सब कुछ दाव पर लगा कर ‘ब्लाइंड’ खेलने पर उतारू थे …!!
आँखें बंद कर दाव पर दाव लगाना और लगाते ही जाना .. परिणाम की बिना परवाह किये आगे बढ़ते ही जाना .. बड़ी जीवट वालों का काम होता है ! अपना मरना जीना तो हर कोई देखता है. हार जीत का हिसाब भी हर आदमी लगाता है. लेकिन – ब्लाइंड ..
“शो ..!” राजन ने मांग पर गौर किया था. उसे खेल का आदि-अंत पता था. बड़ा माल दाव पर लग चुका था. और राजन जानता था कि ‘शो’ की मांग करने वाला खिलाडी हारेगा – अवश्य हारेगा !
लेकिन राजन उसे हराना नहीं चाहता था. आज राजन चाहता था कि हर कोई विचित्र-लोक से जीत कर जाये .. कुछ न कुछ लेकर जाये ! यह उसकी सोची समझी चाल थी. वह काम-कोटि और विचित्र-लोक को – लोगों के लिए एक अमर आकर्षण बना देना चाहता था.
राजन ने हाथ बदल दिया था ! चालाकी से पत्ते खोल कर – मांग करने वाले को विजयी घोषित कर दिया था !
हंसी……. ख़ुशी .. उन्माद .. और आल्हाद से विचित्र लोक दहला सा गया था !!
अभी रात बाकी थी. अभी तो खेल आरम्भ हुआ था ! अभी तो लोगों के मन खुले थे. और अब जो दाव लगने थे .. उनकी उंचाई राजन ने नाप ली थी.
“काम-कोटि की उंचाई .. शायद शिलोंग के बराबर तो होगी ..?” चन्दन बोस ने पारुल से प्रश्न पूछा था.
उसे काम -कोटि की उंचाई से कुछ लेना देना न था – वह तो पारुल के मन की उड़ान को पकड़ लेना चाहता था. पारुल खुल नहीं रही थी .. दाव लगाने के लिए अभी राजी नहीं थी .. और अभी तक वह चन्दन बोंस को ऊपर से निचे तक देखे जा रही थी.
“मै नहीं जानती !” पारुल का मासूम उत्तर था. “पर .. शायद ..!” वह चन्दन बोस की आँखों में झाँकने लगी थी. “काम-कोटि ..”
“की .. आप महारानी हैं ! उससे भी ऊँची हैं !!” चन्दन बोस ने संवाद को पकड़ कर आगे बढाया था. “आप .. सबसे ऊँची हैं !!” चन्दन बोंस ने भी ‘ब्लाइंड’ चाल चल दी थी.
पारुल का चेहरा आरक्त हो आया था. उसके शारीर में एक प्रेम तरंग ने अभी -अभी प्रवेश किया था. वह जान गई थी कि चन्दन बोस उसे स्वीकारने के लिए तैयार खड़ा था. बाहें पसरे उसका अपेक्षित पुरुष-प्रियतम उसे बुला रहा था .. टेर रहा था !
“नहीं ..!” बड़े ही धीमे स्वर में बोली थी पारुल. “कद तो आपका सबसे बड़ा बनता है !” पारुल ने चाहा था कि चन्दन बोस को छू ले. ‘अभी नहीं !’ की आवाज उसके मन से आई थी. “आप तो .. महान .. महान चन्दन बोस हैं !” तनिक मुस्कुराई थी पारुल. “गप्पा कहती है ……..”
“पागल है, गप्पा !” हँसे थे चन्दन बोस और उन्होंने पारुल को जांघ पर छू दिया था.
बेहोश होने को थी – पारुल ! ऐसा स्पर्श ..? इतना असरदार स्पर्श उसने पहली बार ही बर्दाश्त किया था. चन्दन बोस की घूरती आँखों के सामने से वह भाग निकली थी. लेकिन जाती तो जाती कहाँ ? उसने अब चन्दन बोस का मुकाबला करने का मन बना लिया था.
“वह तो कहती है कि आप मिडिया मुग़ल हैं !” पारुल सहज होकर बोली थी.
चन्दन बोस द्रवित हुआ खड़ा था. उसका मन हुआ था कि पारुल को अपनी बाँहों में समेट ले. वह आमतौर पर ऐसा ही करता आया था. जहाँ दिल आया वहीँ हाथ डाल दिया – उसकी आदत थी. लेकिन आज चन्दन बोस बहुत संभल कर कदम उठाना चाहता था. आज .. वह जैसे पारुल को ताउम्र के लिए प्राप्त करना चाहता था .. वह चाहता था कि .. पूरे विगत पर मिटटी फेंक .. वह पारुल को ले उड़े .. कहीं किसी अज्ञात लोक में…… और ..
“आप क्या कहती हैं ..?” पारुल के बहुत निकट आकर – चन्दन बोस ने प्रश्न पूछा था.
पारुल ने कोई उत्तर नहीं दिया था. वह खामोश खड़ी रही थी. उसे चन्दन बोस के फिर से स्पर्श करने का इन्तजार था. वह चाह तो रही थी कि .. इस ‘चन्दन’ से वह .. ‘भुझंग’ की तरह लिपट जाये .. लिपटी जाये…. और फिर .. ताउम्र .. नहीं ! नहीं ! .. जन्म जन्मान्तरों तक – इसे न छोड़े ..
“मै तो आपकी कला की कायल हूँ !” पारुल का कंठ भर आया था. उसने चन्दन बोस को अपांग घूरा था. “आपकी वाणी में जादू है .. शब्दों में उन्माद है .. और आपकी अभिव्यक्ति ..”
“बस भी करें !” चन्दन बोस ने सच में ही पारुल को अपनी बाँहों में समेट लिया था. “मै .. पागल हो जाऊंगा .. अगर आपने ..” जोरों से हंसा था चन्दन बोस.
और पारुल चन्दन बोस के आगोश में आ मंद मंद मुस्कुराती रही थी.
एक प्रेम गुफा जैसा लगा था चन्दन बोस का शारीर जहाँ पारुल ज़माने की आँख से परे जा छुपी थी. यह उसका गुप्त निवास था. वह इसका जिक्र कही नहीं करना चाहती थी. और चन्दन बोस ने जिन्दगी के दिए इस नए उपहार- पारुल को तनमन से स्वीकार लिया था. वह भी नहीं चाहता था कि अपनी इस उपलब्धि का कहीं जिक्र भी करे !
दोनों .. एक दुसरे के आलिंगन में समाये समाये .. चुपचाप अपने अपने जीवन को दाव पर लगाने के लिए .. तत्पर थे .. तैयार थे और बिना ‘शो’ मांगे ब्लाइंड ही खेलते जाना चाहते थे……..!
“आज का आख़िरी खेल ..!” राजन की आवाज गूंजी थी. “मेने इसे ‘किस्मत का खेल’ नाम दिया है !” वह बता रहा था. “छोटी-मोटी रकम नहीं- खजाना है, खजाना ! खुल कर खेलें .. दिल खोल कर दाव लगायें .. किस्मत आजमायें और देखें किसके हाथ क्या लगता है ….?” उसने खेल का शुभारम्भ कर दिया था.
जुआरी भूखे बंदरों की तरह बिफर-बिफर कर दाव लगाने लगे थे. खेल ‘ब्लाइंड’ चल रहा था. जुआरी हार जीत से ऊपर उठ कर खेल खेल रहे थे. विचित्र-लोक एक अजीब प्रकार के नशे में डूबा लगा था. कामना का परी प्लाटून व्यवस्था बनाये रखने में व्यस्त था. कामना के परी प्लाटून में चार युवक और चौदह युवतियां शामिल थीं. काम-रूप की कथित सुन्दरता इन चौदह सुंदरियों द्वारा पूर्ण रूप से परिलक्षित होती थी. एक से सुन्दर एक ये परियां .. अपने आगंतुकों के आसपास मंडराती रहती थीं .. उनका मन बहलाती थीं और मनोबल बढाती थी.
“सबसे आगे .. सबसे आगे हैं .. आगरा से आये मिस्टर खजांची !” राजन ने घोषणा की थी. “और ये लो ! बुल्गेरिया के अरबपति अखाड़े में कूद पड़े हैं ! ये मिस्टर स्टीम – कारो .. बुलंद हौंसला लेकर खेलते हैं ! लास वेगस में इनके चर्चे हैं !! हमारा सौभाग्य है कि मेरे खास निमंत्रण पर ये काम-कोटि पधारे हैं ! लेट्स गिवे हिम अ बिग हैण्ड !”
विचित्र-लोक तालियों की गडगडाहट से भर गया था ……!!
“बम्बई कब आ रही हैं – आप ..?” चन्दन बोस पूछ रहे थे.
“आप कब बुला रहे हैं…..?” पारुल ने भी प्रश्न ही पूछा था.
अब वो दोनों चुप थे. एक दूसरे के बारे में अनुमान लगा रहे थे. अपने-अपने गुप्त राज छुपा रहे थे .. और लुका-छुपी का खेल बड़ी ही होश्यारी से खेल रहे थे. न जाने कैसे अचानक ही चन्दन बोस को गायत्री याद हो आई थी. लाख कोशिशों के बाद भी गायत्री उन्हें परेशां करने लगी थी . हाँ ! सावित्री उन के लिए एक गुप्त रहस्य था .. गुप्त रहस्य रहा पर न जाने कैसे उसकी सुगंध कविता के डी सिंह तक पहुँच ही गई थी. सारा का सारा खेल ख़राब हो गया था. और कविता के डी सिंह ने उन्हें ‘कुत्ता’ तक कह दिया था !
“गप्पा कहती है .. बम्बई चल कर हमारी शाख बढ़ जाएगी – और अगर आपने सहारा दिया तो ..?”
पारुल ने अपनी इच्छा का इज़हार सही वक्त पर किया था. वह जानती थी कि आज .. इन पलों में .. चन्दन झूंठ नहीं बोलेगा. और वह चाहती भी थी कि .. किसी तरह से उसे कलकत्ता से निजात मिले ! बम्बई के बारे उसने बहुत सुना था – पर देखा कुछ न था !
“सच कहती है, गप्पा !” चन्दन बोस ने पारुल को अपने आगोश में और भी समेटा था. आनंद की उमंग ने उन दोनों को अभिभूत किया था. “जहाँ तक मेरे सहारे का प्रश्न है ..” रुक गए थे चन्दन बोस. उन्होंने ठहर कर पारुल की आँखों को पढ़ा था. उन आँखों में एक अमिट चाह ठहरी हुई थी. एक अनूठा आग्रह था – जो चन्दन बोस को ही बुला रहा था. “मै तो .. आपका गुलाम हुआ .. योर हाइनेस !” वह कह बैठा था.
जैसे चन्दन बोस ने कोई बम फेंका हो- पारुल को ऐसा लगा था. उसके पूरे विगत को ध्वस्त करता ये बम एक अलग से अर्राटे के साथ पारुल के आसपास को नष्ट करके धर गया था ! एक नई-नूतन पारुल का जन्म हुआ था – इस बम के धमाके के पेट से. और इस नव-जातक पारुल के हाथों में लड्डू लगे थे .. और मुह में घी शक्कर घुला था !
“आप बहुत अच्छे हैं !” पारुल ने धीमे से कहा था.
“अगर तुम .. ‘तुम’ पर आ जाओ .. तो मै भी ‘पारुल’ कह लूँ ..?” चन्दन बोस ने अपने मंजे लहजे में पूछा था. “तरस गया हूँ .. पारुल ..”
“ओह, चन्दन ….!” पारुल के संतोष का बांध पहले टूटा था. “ओह ! माय डार्लिंग .. चन्दन .. माय लार्ड चन्दन ..” वह लिपट गई थी, चन्दन से.
“शो” राजन के सामने प्रश्न आ खड़ा हुआ था. भारी रकम का जोखिम था. सब सतर्क हो गए थे. सबके काम विजेता का नाम सुनने को तरस रहे थे. “आई डोंट बिलीव इट …..!!” राजन ने आश्चर्य किया था. “बट ही हप्पेंस टू बी ..” वह रुका था. लोगों की साँसें रुक गई थी. “मिस्टर .. स्टीम-कारो …..!!! ही इज दी विनर दोस्तों ..” राजन ने अंतिम घोषणा की थी.
एक अजीब हवा बह गई थी – विचित्र लोक में. एक सन्नाटा लौट आया था. केवल स्टीम कारो ही हिला था. उसने संदिग्ध निगाहों से जमा भीड़ को देखा था. कामना की परी प्लाटून मुस्तैदी से तैनात थी. जुए की रकम गिन कर मिस्टर स्टीम कारो के हवाले की थी.
सारा का सारा खेल बखूबी संपन्न हुआ था !!
“किसको भेजूं आज रात ..?” परी प्लाटून की मालिकिन कामना राजन से आहिस्ता से पूछ रही थी.
राजन ने कामना की आँखों में ठहरे प्रश्न को परखा था. अचानक उसे दिखाई दिया था कि पारुल चन्दन बोस की बाँहों में झूल रही थी …….!
“उसे .. उस चिक को ..” लड्खाती जुबान पर काबू पा राजन बोल रहा था.
ये भी तो एक खेल था – किस्मत का खेल…..? राजन सोचता ही रह गया था ….!!
क्रमशः
मेजर कृपाल वर्मा साहित्य

