गतांक से आगे “-
भाग – ७१
“के डी सिंह एंड कंपनी तो …नीलाम हो गई, सर !” गप्पा ने चन्दन को बताया था . आज चन्दन खुश था . लम्बे अरसे के बाद ऑफिस में बैठ रहा था . लेकिन गप्पा की दी खबर ने ..तो उसे बिच्छू की तरह डस लिया था ! वह सनाका खा गया था …!!
“कोई .. रास प्रतिमा है. कहते हैं .. दखल रखती है राजनीति में .. आ भी चुकी है ! सब समेट लेगी !” गप्पा ने अगली खबर भी दी थी.
“आने दो ..! दुनिया है !! सब आते-जाते हैं, गप्पा.” तनिक स्वर साधकर चन्दन बोस ने कहा था और वह काम में उलझ गए थे.
लेकिन उनका दिमाग .. ऑफिस से बाहर भाग गया था ..!!
‘क्यों बिकी कंपनी’ वह बार-बार स्वयं से प्रश्न पूछ रहे थे. ‘नालायक हैं दोनों’ वह अपने बेटों को कोस रहे थे. ‘कविता ?’ चन्दन बोस बोल ही पड़े थे. ‘क्या कर लेगी कविता..? उसे आता ही क्या है ? कितना कितना जोड़ा था .. रात दिन एक किया था .. ऑफिस में सोया बैठा था और फिर के डी सिंह ने उसे कविता के साथ .. ! दो बेटे .. दोनों माँ के बेटे ! बिगाड़ा तो कविता ने ही था. अब .. अब ..!’ कांपने लगे थे चन्दन बोस. उनका तन मन छटपटाने लगा था ……!
चन्दन बोस ने मन बदलने के लिए अखबार उठा लिया था ! यूँ ही के मूड में वो फ़िल्मी पेज पलट रहे थे. अचानक उनकी निगाह ठहर गई थी. लिखा था – कविता फिल्म्स इंटरनेशनल का जोरदार धमाका – टक्कर ! एक ऐसी टक्कर जिसे आप देख कर हैरान रह जायेंगे ! चन्दन ने आगे के पेज भी पढ़े थे. लिखा था – फिल्म की कहानी सुमन गोस्वामी लिख रहे थे, मधुर मुद्गल का संगीत था – तथा – संवाद मंजुल के थे. फिल्म की शूटिंग किन्नर कोल में होनी थी. समुन्दर के आर-पार के दृश्य थे ! बड़ी ही लुभावनी खबर थी.
“डूब गए ..!” चन्दन बोस ने आह छोड़ी थी.
“समुन्दर के भीतर हम दोनों की फाइट है, माँ !” छोटा बलि कविता को समझा रहा था. “पहली बार .. टक्कर में लोग देख पाएंगे कि .. ‘गज और ग्राह’ कैसे लड़ते हैं .. जल के भीतर !” हंसा था बलि. “मै और शब्बो .. दो शूरमाओं की तरह .. जल के भीतर .. खली की खाल खींचते नजर आयेंगे ..! और ..”
“पर .. बेटे .. पैसा ..?” कविता ने सांस रोक कर पूछा था. “दो महीने – किन्नर कोल में ..?”
“माँ ..!!” गरजा था खली. “अब फिल्म बनेगी तो पैसे तो खर्च होंगे ही !” उसने जोर देकर कहा था. “जो पैसा आया है .. इसी में काम हो जाना चाहिए….!”
“एक बार फिल्म हिट होने की देर है, माँ !” बलि ने कविता के गले में बाहें डाल दी थीं. “फिर तो .. आपका नाम .. आपका काम .. जग जाहिर होगा .. माँ !”
भीतर से हिल गई कविता – बहार से हंस रही थी !!
“बड़े दिन में आप आये ..?” संभव ने राजन से हाथ मिलाते ही उलाहना दिया था.
“हां, भाई ! प्यासा ही कुएं के पास आता है !” राजन सीधे मुद्दे पर उतर आया था. “कोई ओट ही नहीं पा रहा, यार .. ‘प्यार -घर आबे’ को …!” उसने शिकायत की थी.
“अरे, हाँ …! प्यार-घर आबे ..? सुना है. चलो बताओ. बाई दी वे, ये है, क्या बला ?” संभव ने सवाल किया था.
“ये लो ! पूरी प्रोजेक्ट है. प्रोजेक्ट रिपोर्ट भी है .. और बजट भी !” राजन ने कागजों का एक पुलंदा संभव को पकड़ा दिया था. “देख लो ! मै चाहता हूँ कि .. तुम मेरी मदद कर दो ! वह रुका था. “घर के खीर खाएं .. और ..”
“भोग लगे .. देवों का ..?” संभव जोरों से हंसा था. “मै देख लेता हूँ !” उसने राजन को आश्वासन दिया था. “पर .. थोडा आइडिया दे देते तो ..?”
“सीधी बात है, भाई ! काम-कोटि तो फ्लॉप है. कोई आता-जाता ही नहीं ! वही दाल-रोटी का जुगाड़ रहा. लेकिन मेरा मन है कि इस बार .. प्यार घर आबे को वेगस से भी आगे ले उडू ..! फन अंड फ्रोलिक…. जुआ और तमाम अइयाशियों का अड्डा होगा – प्यार घर आबे ! भीतर समुद्र के तीन सौ मीटर भीतर .. तैरते आइलैंड के आसपास हम ये स्वर्ग रचेंगे .. ! यहाँ मनचला आदमी आएगा .. खूब मौज मनायेगा ! अ सेंटर ऑफ़ आल काइंडस ऑफ़ अइयाशी ..”
“ग्रेट ..!!” संभव चहका था. “रियली ग्रेट!!” उसने गरम जोशी से राजन से हाथ मिलाया था. “बजट की तो तुम परवाह ही मत करो …!” संभव कह रहा था. “मनी इस नो बोदर !” उसने स्पष्ट कहा था.
पहली बार राजन का चेहरा खिल उठा था. संभव उसे अपना परम मित्र लगा था ! और लगा था कि चन्दन महल प्यार घर आबे के पेट में समां जायेगा ……!!
होश लौटते ही चन्दन को लगा था – कि आती चोट बचाने के लिए उसे फ़ौरन शादी कर लेनी चाहिए थी. कविता का क्या भरोसा था – कि कौन सी चाल कब चल देगी ..!!
“गप्पा ! मेने तुम्हें वर्ल्ड टूर के लिए .. ?”
“ओह, सॉरी सर ! हुआ पड़ा है !! मै बताना भूल गई थी. उसकी तो डेट भी आने वाली है. तीन देशों में सेमीनार और गोष्टियाँ हैं !” गप्पा बता रही थी. “इंटीमेशन देनी है कि आप आ रहे हैं और ..” गप्पा ने चन्दन बोस को आँखों में घूरा था.
“एक की नहीं .. इंटीमेशन दो की देना !” चन्दन बोस ने प्रसन्नता पूर्वक कहा था. “मै और पारुल .. दोनों ही जायेंगे !” वह कह रहा था. “तुम संभालना .. अपना ये स्वराज !” हंसा था चन्दन.
पारुल बेहद प्रसन्न थी. चंदन के साथ जाना उसे अच्छा लगता था. और अब तो वर्ल्ड टूर के बाद वो लन्दन में शादी भी कर रहे थे. पूरे एक माह का प्रोग्राम था.
“मेने तो बहुत व्यस्त रहना है, पारुल !” चन्दन बोस बता रहे थे. “शादी का पूरा दायित्व तुम्हारा है. लिस्ट तो तैयार है. देख लो कोई छूट तो नहीं गया. बाकी तुम जानो. मै तो बस यही चाहूँगा कि हमारी शादी ..”
“एक यादगार बनकर रह जाय !” पारुल ने चन्दन के मुहं की बात छीन ली थी. “सच ! चन्दन, मै भी यही चाहती हूँ कि .. हमारी ये शादी .. एक ऐसी शादी हो – जिसे लोग याद करें. और जो एक लीक से हटकर हो ! .. ऐसा हो कुछ .. एक जश्न .. जो ..”
“पहले कभी न किसी ने देखा हो .. न मनाया हो ..!!” चन्दन हंसा था. “बहुत खूब !” उसने पारुल को प्रशंशक निगाहों से देखा था. “पहला हमारा गंतव्य ऑस्ट्रेलिया है, पारुल !” वह बताने लगा था. “यहाँ हम विश्व वार्ता करेंगे .. सोचेंगे कि हम सारे देशों को एक सूत्र में बांध कर .. कैसे एक विश्व-व्यापी संस्था और सरकार बनायें जो ..”
“सम्भावना ..?”
“तुम सोचो ..! मै चाहूँगा कि तुम भी इस बार हिस्सा लो. वो .. अपना नारी निकेतन वाला मुद्दा उठाओ ! बताओ कि किस तरह स्त्रियों की समाज में दुर्गति होती है .. और ..”
“मै – उठाऊंगी ये मुद्दा …!” पारुल मान गई थी.
ऑस्ट्रेलिया की उनकी सेमीनार चर्चित रही थी. पारुल को सफलता मिली थी और चन्दन बोस का विचार विश्व के लिए मानवता की भेंट माना गया था. फ़्रांस में भी जोर शोर से प्रश्न उठे थे और तै हुआ था कि विश्व शांति के लिए प्रयत्न करना आज के मानव का कर्तव्य था ! फिर जर्मनी में जाकर चन्दन बोस ने विश्व व्यापी सरकार की चर्चा पूरे जोर-शोर से की थी. और कहा था – हमे झूंठी राष्ट्रीयता से मुक्ति चाहिए ! हमारे युद्ध लड़ने का मुद्दा अब देश, प्रान्त, प्रदेश .. या कोई जाती धर्म का मुद्दा नहीं होना चाहिए ! मानवता को एक मानकर हमे अब आगे बढ़ना चाहिए और शांति पूर्वक रहना चाहिए ….!
लन्दन में आकर अब चन्दन का काम समाप्त था. पारुल अपनी दौडभाग में लगी थी. बाहर जाते-जाते चन्दन बोस होटल के मुख्य हाल में टंगी एक तस्वीर को एकटक निहारते जा रहे थे. ये तस्वीर उन्हें बेजोड़ लगी थी .. मोहक .. सुन्दर और कुछ इस तरह की थी कि अलोकिक-सा कुछ हो – जिसे वो पहली बार देख रहे थे ! चन्दन ने उस तस्वीर को सलाम किया था !
“कौन है, ये ..?” पास खड़ी पारुल ने प्रश्न पूछा था.
“मै नहीं जानता !” चन्दन का स्पष्ट उत्तर था. “पर जो भी है .. है बे-जोड़ .. ला-जवाब ..!”
“मुझसे भी ज्यादा ..?” पूछ लेना चाहती थी पारुल, पर रुक गई थी.
चित्र सावित्री का था. पारुल ने निगाहें दौडाइ थीं. पर राजन का कोई भी चित्र दिखाई नहीं दिया था. पर ये निश्चित था कि उनकी शादी भी इसी होटल में हुई थी. कैसा विचित्र संयोग था और कैसा विचित्र था वो सावित्री का चित्र – जो आज तक यहाँ टंगा था और हर आने जाने वाला उस अनुपम सौन्दर्य के दर्शन कर मोक्ष -सा पा जाता था ! सावित्री दीदी में .. कुछ देवीय जरुर था .. पारुल ने सोचा था लेकिन चन्दन को इसके बारे कुछ न बताया था.
और न ही उसने संभव के बारे चन्दन को कोई सूचना दी थी. वह नहीं चाहती थी कि अपने विगत को उन दोनों के बीच आने दे. चन्दन के साथ अपने प्रेम-संबंधों को पारुल एक दीपक की लौ के समान हमेशा प्रज्वलित करते रहना चाहती थी .. और चाहती थी कि उसका ये स्वप्न .. ये अमर गीत .. हमेशा-हमेशा .. हरा बना रहे .. चलता ही चले और .. अनंत तक वो दोनों ..
“चलें ..?” चन्दन ने पारुल की बांह पकड़ी थी.
“अ .. हाँ .. वो…! चलते हैं !!” पारुल ने हामी भरी थी.
लेकिन उसने सावित्री के चित्र को मुड कर नहीं देखा था …..!!
क्रमशः-
मेजर कृपाल वर्मा साहित्य !

