आमों का सीजन शुरू हो गया है। घर में भी आमों को लेकर डिमांड शुरू हो गईं हैं। कहीं से mango-shake बनवाने की आवाज़ आती है, तो कोई mango ice-क्रीम को लेकर बात कर रहा होता है.. और खाने के संग कटे हुए आम तो रोज़ के हैं, ही!
युहीं आमों को काटते -छीलते और चखते मेरे ये हाथ मेरे मन को उन आँसुओं की तरफ़ उड़ा ले गए थे, जो रोज़ आम खाते वक्त हमारी आँखों से अक्सर आया करते थे।
पिताजी के फौज में होने के कारण फील्ड एरिया में हमारा खाना मेस से आया करता था, और लंच के साथ फ्रूट्स भी आते थे।
गर्मियों में और आमों की शुरआत के साथ ही, लंच में खाने के hotcase के साथ.. आम आया करते थे।
देखने में बहुत ही सुंदर, हरे और पीले रंग के मिक्स हुआ करते थे.. और नाम भी प्यारा ही था.. तोता-परी!
खाने के बाद, हमें आम के दो-दो चार-चार piece serve हुआ करते थे, जिन्हें हाथ में ले.. हमारे आँसू निकलने लगते थे। पर माँ-बापू के डर से कभी खुल कह नहीं पाते थे.. कि,”नहीं खाए जा रहे.. ये आम बहुत ही खट्टे हैं!”।
जैसे-तैसे ख़त्म करते, आर्डर जो था, लंच के बाद फ्रूट्स खाने का।
खैर! तोता-परी आमों के संग बड़े हो गए थे हम! और अब तो हिम्मत भी जुटा ही ली थी.. कहने लगे थे, ” आम खट्टे हैं.. नहीं खाए जाते”।
तोता-परी आमों संग हम देखते ही देखते बड़े हो गए। पर मेस में लंच के साथ अब भी वही तोता-परी आम ही थे।
आम तो बहुत से देखे और चखे, पर आमों को देखते ही आज भी तोता-परी आम और उससे जुड़ी बचपन की हर प्यारी याद ताज़ा हो जाती है।