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सॉरी बाबू भाग उनासी

सॉरी बाबू

“कोई तो सच कहेगा .. कभी तो सच बोलेगा!” माधवी कांत तनिक उद्विग्न थी। “और हमें उस सच को सुनना तो पड़ेगा ही – आज नहीं तो कल।” उन्होंने मुड़ कर नेहा की आंखों को पढ़ा था।

नेहा सहमी और डरी डरी सी माधवी कांत की दलीलों को सुन रही थी। उसने तो पहली बार इतिहास को सुना था और उसे समझने का प्रयास किया था। उसे तो बड़ा ही नया नया लगा था भारत की स्वतंत्रता का संग्राम।

“लेकिन .. लेकिन मां!” नेहा ने डरते डरते कहा था। “ये शिखा का किरदार तो मुझसे .. शायद ही ..”

“हां!” तनिक मुसकुराई थीं माधवी कांत। “इसमें वो नाच कूद तो होगा नहीं!” उन्होंने भी माना था। “और जो होगा – वो बड़ा ही संगीन होगा, नेहा!” उन्होंने स्वीकार किया था।

“फिर हम क्यों बनाएं ऐसी फिल्म, मां?” नेहा का प्रश्न था। “लोग बजाए आनंद लेने के रोने ही लगेंगे। और अगर कांग्रेस पार्टी ने बलवा खड़ा कर दिया तो? और अगर केस कोर्ट में चला गया तो?” नेहा अपने डर गिनाने लगी थी। “फिल्म बनाते हैं कि लोग ..”

“मुश्किल तो यही है नेहा कि हम हिन्दू आज भी अपनी बात नहीं कह पाते।” माधवी कांत कहने लगी थीं। “हमने तो इतिहास में भी वो नहीं लिखा है जो घटा है और वो लिखा है जो मनगढ़ंत है। हमारे लोगों ने ही हमारे खिलाफ लिख कर हमें उसे पढ़ने को कहा है और ..”

“लेकिन मां ..”

“मैंने तो इतिहास पढ़ा है बेटी!” माधवी कांत ने मुसकुराते हुए कहा था। “हम हिन्दुओं को हमेशा हमेशा गुलाम बना कर रखने का एक यंत्र है – हमारा इतिहास। हमारी शिक्षा की तरह ही हमारा इतिहास भी हमें सच्चाई से कोसों दूर रखता है।”

“लेकिन मां ..”

“तुमने अगर अपनी आंखों से वो देखा होता जो मैंने देखा है नेहा तो तुम गश खाकर गिर जातीं।” माधवी कांत का हिया भर आया था। “उफ वाॅट ए ट्रेजेडी!” उन्होंने लंबी सांस छोड़ी थी। “आदमी, औरत, बच्चे – बूढ़े और ..” आवाज डूबने लगी थी माधवी कांत की। “ऐसा नर संहार तो कभी कल्पना में भी नहीं आया था, नेहा।” उन्होंने पलट कर नेहा को निहारा था। “इन .. इन .. मुसलमानों ने ही किया! इन कसाइयों ने बकरों की तरह काटा था हिन्दुओं को।” वो रोने रोने को थीं। “और भगवान न करे बेटी कि वो वक्त फिर लौटे जब ..”

“नहीं नहीं मां! अब तो हमारा देश ..”

“कश्मीर में क्या हुआ है जानती हो?” तड़क कर पूछा था माधवी कांत ने। “सरे शाम वही हुआ है .. जो ..! आश्चर्य की ही बात है कि देश में कोई नहीं बोला।”

एक चुप्पी लौट आई थी। माधवी कांत फूलों में पानी दे रही थीं तो नेहा खाद लगा रही थी। मॉली उनके आस पास डोल रहा था। सूरज सर पर चढ़ आया था। पूरनमल चाय लेकर पहुंच गया था।

ऊपर लाइब्रेरी में नेकीराम शर्मा के साथ सुधीर और विक्रांत जूझ रहे थे। नेकीराम शर्मा बताने लग रहे थे –

“नेहरू ही क्यों हमारे तो हिन्दू गांधी भी हमारे हिन्दू राष्ट्र के निर्माण का रास्ता रोक कर खड़े हो गये थे।” नेकीराम शर्मा की आवाज कड़क थी। “चीख चीख कर चिल्लाते श्यामा प्रसाद मुखर्जी को कम्यूनल करार देकर खारिज कर दिया था। हिन्दू राष्ट्र के निर्माण को एक छोटा और संकुचित विचार बता कर कूड़ेदान में फेंक दिया गया था।”

“तो क्या .. तो क्या और कोई समर्थन में ही न आया था? इतने कद्दावर नेता थे, तो क्या किसी ने भी गांधी नेहरू का विरोध नहीं किया था?” सुधीर ने पूछा था।

“थे, कद्दावर नेता थे।” नेकीराम शर्मा ने हामी भरी थी। “स्वतंत्र पार्टी के संचालक – राजगोपालाचारी थे लेकिन उनका राग अलग ही था। जयप्रकाश नारायण थे लेकिन वो कहीं समाजवाद में उलझे हुए थे। कृपलानी थे, अंबेडकर थे, आचार्य नरेंद्र देव भी थे ओर कम्यूनिस्ट पार्टी के जोशी थे, घोष थे और नामुद्रीपाद भी थे। सब थे – लेकिन सब के सब माओ, स्टालिन ओर रूजवेल्ट के उपासक थे। इन सब को राम राज्य याद तो था – पर वो क्या था इनमें से किसी को पता न था। लेकिन ब्रिटिश शासकों ने अपने पाठ पहले से ही पढ़ रक्खे थे। उन्हें तो पता था कि उन्हें क्या करना था!” मुसकुरा गये थे पंडित नेकीराम शर्मा।

“क्या किया था ब्रिटिश शासकों ने?” विक्रांत ने पूछा था।

“रेडीमेड सॉल्यूशन पकड़ा दिया था नेहरू और जिन्ना को! दोनों से हस्ताक्षर ले लिए थे। बता दिया था कि उन्होंने क्या करना था और क्या नहीं करना था।”

अब सुधीर और विक्रांत भी ठगे से नेकी राम शर्मा को देख रहे थे।

“लेकिन मुस्लिम लीग का काम अभी पूरा न हुआ था। उन्हें अभी और इसी वक्त वो ओर भी हासिल करना था जो दारुल इस्लाम के लिए दरकार था। और वो केवल और केवल गांधी जी ही दे सकते थे।” नेकीराम ने नया मोड़ ला दिया था कहानी में।

“आप अगर हमारे साथ होंगे तो गांधी बात मान लेगा!” जकारिया सिद्दिकी अब्दुल कलाम आजाद से आग्रह कर रहा था। “हमारे पास ज्यादा वक्त नहीं है। लोहा गरम है अभी पीट लेते हैं।” वह हंसा था। “हमें दोनों पाकिस्तान जोड़ने के लिए रास्ता तो चाहिये कि नहीं?” सिद्दिकी ने जोर दे कर कहा था। “लोग कैसे आएंगे जाएंगे पूर्वी और पश्चिमी पाकिस्तान से? समुंदर के रास्ते तो महीनों का रासा होगा सर!” रोने रोने को था सिद्दिकी। “बीचो बीच भारत के हमें रास्ता नहीं मिला तो हम ..” उसने निगाह उठा कर अपने सभी साथियों को देखा था।

“रास्ता मिलने पर हमारी मंजिल आसान हो जाएगी सर!” किदवई का तर्क था। उसने भी अब अब्दुल कलाम आजाद को साथ आने के लिए उत्साहित किया था। “रास्ता मिलने पर ज्यादा वक्त न लगेगा हमें – दारुल इस्लाम लाने में। और फिर तो हिन्दुस्तान ही हमारा होगा।”

“जिसे हम तेग से न ले पाए उसे हम संयोग से ले लेते हैं। ऐसा मुफीद वक्त कब लौटे – कौन जाने!” नसीम ने अब्दुल कलाम आजाद को सीधा आंखों में घूरा था। “इन हिन्दुओं को ..”

“फाड़ करने के लिए गांधी जैसा ही खंजर चाहिए! यह बहुत काट करता है। गांधी के कहे को तो अब इनका ब्रह्मा भी नहीं टाल सकता! हाहाहा!” जोरों से हंसा था हमीद।

“देर न करें सर! अगर कहीं बिगड़ गये हिन्दू तो ..” रहमान ने चेतावनी दी थी।

“चल पड़िये साथ जनाब!” विनम्र आग्रह किया था सिद्दिकी ने। “कल ही सुलटा लेते हैं इस मसले को!” उसका निर्णय था।

इस मंत्रणा को परम गुप्त रक्खा गया था। लीग के लोग जानते थे कि कट्टर हिन्दू ग्रुप गांधी के घोर विरोधी हो गये थे। दिल्ली में गांधी तू मर जा के नारे लग रहे थे। पाकिस्तान से बर्बाद होकर लौटे लोग सरेआम गांधी को गालियां दे रहे थे। बिरला भवन में जा जा कर लोग गांधी के मुंह पर थूक रहे थे और बता रहे थे कि मुसलमानों ने उनपर कितने कितने जुल्म ढाए थे। मुसलमानों को भाई बताना किसी गुनाह से कम नहीं था और उन्हें गले लगाना तो ..

“कल सूर्यास्त हो जाएगा हमारे हिन्दू राष्ट्र का!” शिखर की आवाज में दर्प था। “कल के बाद तो इस्लाम का उदय हुआ मानो! हमेशा हमेशा के लिए हिन्दू, हिन्दुस्तान, हमारी संस्कृति, हमारा स्वाभिमान और हमारा अभिमान सब धरे के धरे रह जाएंगे!”

“हुआ क्या है शिखर?” माधव जी ने तुरंत पूछा था।

“अब्दुल कलाम आजाद के साथ कल लीग के लोग गांधी जी के पास मध्य मार्ग मांगने के लिए पहुंच रहे हैं।” शिखर बताने लगा था। “और मैं तो मानता हूँ कि गांधी जी किसी भी कीमत पर अब्दुल कलाम आजाद की मांग को नहीं ठुकराएंगे!”

“सो तो है!” सुधीर जी ने मान लिया था।

“ये नेहरू और गांधी हैं क्या चीज?” बलबीर जी ने कठोर स्वर में पूछा था। “ये है क्या माजरा कि जो आजादी के लिए शहीद हुए उन्हें तो कोई कौड़ी के भाव नहीं पूछ रहा और जो कांग्रेसी अंग्रेजों की दलाली करते रहे वही आज देश के मालिक हैं?”

“हां हैं!” माधव जी ने हामी भरी थी। “और हम चाह कर भी कुछ नहीं कर सकते।”

“क्यों?”

“क्योंकि गांधी जी ने नेहरू जी को प्रधान मंत्री बना दिया जबकि उनके पक्ष में तो एक भी वोट नहीं था। और नेहरू जी ने गांधी जी को महात्मा और राष्ट्र पिता बना दिया जबकि नेता जी सुभाष चंद्र बोस ने और ..”

“ये सब ब्रिटिश साम्राज्य का धरा गोधन है!” अधीर रंजन बोले थे। “किसी भी कीमत पर ये लोग भारत को हाथ में रक्खेंगे। गांधी और नेहरू तो इनकी गोटें हैं। ये हमें आजादी नहीं दे रहे, बहका रहे हैं!” तनिक मुसकुराए थे अधीर रंजन। “देर सबेर फिर भारत इन्हीं का होगा – देख लेना!”

एक नया सोच तारी हो गया था। अंग्रेजी राज के षड्यंत्रों को खोज लेना आसान काम न था। आज पूरे विश्व में उन जैसा राजनीतिज्ञ कोई न था।

“लगता मुझे भी है रंजन जी कि इन्होंने अंधों को रेवड़ियां बांटीं हैं और हर माल अपने ही यारों-प्यारों को पकड़ा दिया है। ये यहां से जा नहीं रहे, ये तो यहां फिर से लौट रहे हैं – इन ए डिजगाइज्ड वे!” बलबीर जी ने हामी भरी थी।

“इन्हें भगाने के लिए तो बोस ही उत्तर था। लेकिन अब तो हमारे हाथ में गांधी जी की थमाई अहिंसा तो ..”

“गुलाम ही बनाएगी! फिर से गुलाम हो जाएंगे हम!” माधव जी भी मान गये थे।

एक चुनौती की तरह गांधी जी हर हिन्दू राष्ट्र की कामना करते भारतीय के रास्ते के रोड़े बन कर सामने आ खड़े हुए थे।

मेजर कृपाल वर्मा
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