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सारी बाबू भाग तिरेपन

सॉरी बाबू

“ऐसा भी क्या आदमी यार – जो निरा ही गंवार हो!” बड़बड़ा रही है – शिरोमणि।

वह बहुत नाराज है। सब से ज्यादा क्रोध तो उसे अपने ऊपर ही आ रहा है। न जाने क्या मान कर उसने उस मिलन की तैयारी की थी। कितना पैसा खर्च कर डाला कपड़ों पर। क्या जरूरत थी डिजाइनर कपड़े तैयार कराने की? क्यों खर्च दिया पैसा ब्यूटी पार्लर में मेकअप के ऊपर? और हाई हील की सैंडिल खरीदना ..

“अगले ने एक शब्द नहीं बोला – तुम्हारे हुस्न की एवज शिरोमणि जी!” वह फिर से अपने को कोस रही है। “कोरा गंवार है! बंदर क्या जाने अदरक का स्वाद!” उसने एक ठेठ देसी फिकरा श्री कांत के लिए कहा है और अब प्रसन्न है!

“मैं हारता नहीं हूँ शिरोमणि!” अचानक श्री कांत की धारदार आवाज को सुना है उसने।

“कौन से किले जीते हैं – हम भी जो सुनें?” शिरोमणि अब लड़ पड़ना चाहती है श्री कांत से।

लेकिन श्री कांत की वही अजेय मुस्कान उसे मोहित करने लगती है। उसका उन साधारण कपड़ों के पार से झांकता असाधारण पुरुष सौष्ठव शिरोमणि को एक बारगी मूर्छित करने लगता है। श्री कांत की देव तुल्य पिंडी उसकी आंखों में समाती ही चली जाती है।

“शादी ही क्यों बच्चे भी ..!” श्री कांत के बोल हैं।

हाहाहा! कितना पागल है! शादी बाद में बच्चे पहले? बच्चू को अभी आटे दाल का भाव पता नहीं न। एक बच्चा होने का मतलब होता है कि बजट आउट!

“खाने उड़ाने को खूब मिलता है!” श्री कांत का संवाद फिर चला आता है।

“तो खूब खाओ और खूब उड़ाओ – उम्र भर! एंड गो टू हैल!” शिरोमणि ने डांट दिया है।

लेकिन कितना ढीठ है ये श्री कांत! दिमाग में .. विचारों में और यहां तक कि मन से मजाल है जो गायब हो जाये!

“इतना आकर्षक पुरुष तो पहली बार देखा है!” शिरोमणि का मन अब उसे बता रहा है। “सच! कैसा घरघराता कंठ है! क्या डायलॉग बोलता है! कोई फकीर फक्कड़ हो और शहंशाह के सिंहासन पर आ बैठा हो! फोन करो – चलो सुनते हैं क्या कहता है?”

अचानक ही शिरोमणि फोन मिलाती है। घंटी जाती है। जैसे ही श्री कांत फोन उठाता है शिरोमणि फोन काट देती है!

“मैं क्यों हार जाऊं?” वह स्वयं को बताती है। “रहे अपने घर, मुझे क्या?” उसने स्वयं से समझौता कर लिया है।

फिर अचानक ही शिरोमणि को श्री कांत की टाई की उलटी गांठ और बिन पॉलिश के जूते दिख जाते हैं! खूब हंसती है वह – हंसती ही रहती है! फिर कुछ सोच कर कहती है – नजर बट्टू पहन कर आया था बच्चू ताकि उसे नजर न लग जाए!

“नजर तो लग गई!” शिरोमणि ने स्वयं को जैसे शाबाशी दी है। “अब तुम नहीं बचोगे बच्चू!” उसने प्रसन्न होकर प्रत्यक्ष में कहा है।

न जाने कैसे शिरोमणि महसूसती है कि श्री कांत से मिलने के बाद ही एक अजब गजब तूफान उसके मन प्राण में उठ बैठा है और अब शांत होने का नाम नहीं ले रहा है!

“क्या श्री कांत उसे फोन करेगा?” एक प्रश्न पैदा हुआ है। “जरूर करेगा!” उसका उत्तर भी आ गया है।

लेकिन शिरोमणि ने इस उत्तर को माना नहीं है। उसे तो आज असमंजस घेरे खड़ा है कि उसने श्री कांत में खोट ही खोट क्यों देखा? क्यों नहीं उसने कोशिश की उसके अंतर्मन में झांकने की और यह जानने की कि .. वो .. क्या वो किसी भी तरह से प्रभावित हुआ था? उसने क्यों नहीं बताया श्री कांत को कि एक स्पेस साइंटिफिक कंपनी में कितनी हैसियत रखती थी और उसका इरादा था कि ..

“वह सब जानता है, पगली!” किसी ने शिरोमणि के मन को गुदगुदा दिया है। “और वह तुम्हें भी पहचान गया है! मर्द है श्री कांत .. और एक ऐसा पुरुष है जिसकी तुम्हें तलाश थी!”

क्या करे शिरोमणि समझ नहीं आ रहा है! अगर उसे श्री कांत चाहता है तो फिर पुकार भी तो सकता है?

और तभी फोन की घंटी बज उठी थी। ठीक चार दिन के बाद फोन बजा था। श्री कांत का ही था। उसके हाथ कांपने लगे थे। भीतर एक तूफान उठ खड़ा हुआ था। अब करे तो क्या करे?

“हैलो शिरोमणि – मैं श्री कांत!” फोन पर श्री कांत की आवाज गूंजी थी।

“हॉं हॉं – हैलो!” शिरोमणि कठिनाई से बोल पा रही थी। “जस्ट ए मिनिट!” उसने सांस साध कर कहा था। “म .. मैं .. फोन करती हूँ!” उसने फोन काट दिया था।

अब क्या करे शिरोमणि? उसका अभीष्ट तो उसके सामने आ खड़ा हुआ था। अब कौन से प्रश्न पूछेगी श्री कांत से? क्या क्या शिकायतें करेगी और कैसे बताएगी उसे कि उसकी टाई की उलटी गांठ ने उसके मन में गांठ लगा दी है ओर बिना पॉलिश के जूते उसे दिन रात सताते रहते हैं!

“फोन किया था! किस लिए?” शिरोमणि ने हिम्मत के साथ फोन मिलाया है और पूछा है।

“अरे भाई! उस दिन की चाय उधार है तुम पर!” श्री कांत हंस रहा है। “तुम्हारी तरफ से निमंत्रण था!” उसने याद दिलाया है। “ओर तुमने बिना चाय पानी पिलाए ही टरका दिया!” वह फिर से हंसा है। “इट्स नॉट ऑन माई डियर!” श्री कांत ने सोचा समझा तीर छोड़ दिया है।

क्या उत्तर दे शिरोमणि? वह तो फिर से कांपने लगी है। लग रहा है कि श्री कांत उसे जाल में फंसाने लग रहा है। उसके यों चाय पीने की बेबाक मांग उसे डरा रही है। लेकिन .. लेकिन आज वह चाह कर भी श्री कांत के आग्रह को मोड़ना नहीं चाहती। आज तो वह चाहती है कि ओट ले श्री कांत के ऑफर को और मिल ले उससे एक बार फिर!

“तो फिर ..?” एक अति संक्षिप्त प्रश्न दागा है शिरोमणि ने। वह इस बार कोई गलती नहीं करना चाहती।

“फिर क्या? चाय पर बुलाओ भाई!” तपाक से उत्तर आया है श्री कांत का। “अरे यार! यों ही चाय के बहाने गप शप हो जाएगी!” वह बता रहा है। “और मेरा भी उलाहना उतर जाएगा!” वह हंस पड़ा है।

“लेकिन .. लेकिन हम ..?” शिरोमणि कुछ निर्णय नहीं कर पा रही है।

“दुश्मन तो हैं ही नहीं?” श्री कांत ने उस को जैसे याद दिलाया है।

“लेकिन काम ..?” शिरोमणि अब जान मान कर बहाने बना रही है। वह चाहती है कि श्री कांत अब उसकी खुशामद करे।

“काम तो काम होता है!” श्री कांत ने मान लिया है। “और पाबंदियां भी होती हैं!” उसने शिरोमणि को उसी का संवाद कह सुनाया है। “मैं तो फक्कड़ हूँ भाई! मुंह उठा कर चाहे जिधर चल देता हूँ! मेरी तो आदत है शिरोमणि कि मैं व्यस्त रहता हूँ, स्वस्थ रहता हूँ और मस्त रहता हूँ!” वह हंस रहा है।

अब शिरोमणि क्या करे?

“बट वन हैज टू प्लान .. द ..” शिरोमणि अपने पुराने पैंतरे पर लौट आई है।

“हॉं हॉं! वो तो है!” हामी भरी है श्री कांत ने। “लेकिन यार! जब तक इस प्लान में हंसी का तड़का न लगे मुझे आनंद नहीं आता!” श्री कांत बता रहा है। “मैं तो मान कर चलता हूँ शिरोमणि कि – वन हैज टू लाफ ऑलसो – एट लिस्ट दिन में दो बार!” श्री कांत ने अपने सुख पूर्वक जीने का नुस्खा बताया है।

“ठीक है! ठीक है!” शिरोमणि कह रही है।

“हंस भी रही हो कि नहीं?” श्री कांत पूछ लेता है।

“हॉं हॉं भाई हंस रही हूँ!” शिरोमणि मान जाती है।

“तो फिर कब मिल रहे हैं चाय पर?” श्री कांत तुरंत पूछ लेता है।

“शनिवार को?”

“नहीं! इतवार को रख लो शिरोमणि! खुल्ला वक्त मिलेगा यार!” वह आग्रह कर रहा है। “कब से नहीं मिले हैं यार?” हंसा है श्री कांत।

शिरोमणि के मन में मनों लड्डू फूटे हैं! वह प्रसन्न है। वह बेहद प्रफुल्लित है। श्री कांत ने उसे जैसे जीत लिया है। उसने मानो पूर्ण समर्पण कर दिया है – श्री कांत के सामने! अब उसका मन हंसने को है, गाने को है और ..

“उठो इस डाली से बुलबुल!” कोई कहता लग रहा है। “उड़ो ..! चल पड़ो अपनी मंजिल की ओर! देखो! तुम्हें कोई पुकार रहा है .. बुला रहा है .. और .. और ..”

“मान कर चलूं कि हम इतवार को मिल रहे हैं?” श्री कांत पूछ रहा है।

“हॉं हॉं!”

“कहॉं?” श्री कांत मान नहीं रहा है।

“वहीं! उसी जगह पर .. उसी वक्त!”

“हंस तो रही हो न शिरोमणि?” श्री कांत पूछ रहा है।

शिरोमणि ने फोन काट दिया है!

मेजर कृपाल वर्मा

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