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सॉरी बाबू भाग तिरासी

सॉरी बाबू

मिली खुशखबरी खैरातों जैसी थी और शिखर के दिमाग में उझल कूद कर रही थी।

शिखा कई दिनों से नहीं मिली थी। बहुत उदास निराश रहती थी आजकल। शिखर का मन था कि अभी इसी पल शिखा से मिले और उसके साथ खबर को बांटे।

“रहा न गया तो चला आया।” शिखर ने शिखा को सबब बताया था। “बात ही कुछ ऐसी है शिखा कि ..” उसने उदास निराश शिखा के चेहरे को पढ़ा था। “तुम खुश हो जाओगी – सुन कर!”

“कहो तो!” शिखा का स्वर संयत था।

“बंबई में छगन भाई ने 9 जुलाई 1949 के दिन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद का गठन किया है।” शिखर ने सूचना दी थी। “यही एक रास्ता बचा है शिखा जिसपर चलकर हम कहीं पहुंच सकते हैं।” शिखर ने शिखा के चुप बैठे मन में आशा दीप जलाए थे।

शिखा का चेहरा चमक उठा था। उसे भी महसूस हुआ था कि वीरानों में बहार चली आई थी। घोर निराशा के बाद एक आशा किरण का जन्म हुआ था। अंधकार के बीचो बीच उन्हें एक रास्ता सूझ गया था।

“मेरा भी मन है शिखा कि हम भी यहां अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद का गठन कर लें और अगला कार्यक्रम आरंभ करें।”

“लेकिन आर एस एस पर तो बैन लगा है। अगर पुलिस को ..” शिखा सहम गई थी।

“बैन भी उठने वाला है शिखा।” दूसरी खुशखबरी भी दी थी शिखर ने। “खबर आई है कि शायद जुलाई में ही बैन उठ जाए।”

“लेकिन .. लेकिन क्यों? नेहरू जी ने तो ..”

“चुनाव जो आ रहे हैं।” शिखर ने बताया था। “प्रजातंत्र है भाई। अगर हमारे हाथ पैर ही बांध दिए जाएंगे तो हम अपना पक्ष जनता के सामने कैसे रक्खेंगे? अपनी बात कहने का हमारा भी तो हक है।”

“वो तो है!” शिखा तनिक चहकी थी। “फिर तो शायद .. हम भी ..”

“हम भी शुरू हो जाते हैं, शिखा।” अनुग्रह था शिखर का। “मैंने कुछ दोस्त बना लिए हैं।”

“और मैंने भी कुछ सहेलियां बनाई हैं।” शिखा ने तुरंत कहा था। “लेकिन शिखर! गांधी जी की हत्या को लेकर अभी भी समाज सहज नहीं है।”

“वो तो कभी भी नहीं होगा!” शिखर का मत था। “गांधी जी की मौत का मुद्दा तो हर बार और बार बार सामने आएगा, शिखा।”

“फिर हम कैसे जीतेंगे?”

“अरे भाई! लोग अपने झूठ को बार बार बोल कर सच साबित कर देते हैं तो क्या हम अपने सच को भी सच साबित न कर पाएंगे?” शिखर की दलील थी। “वक्त तो लगेगा, मैं मानता हूँ। लेकिन जब तक हम लोगों के पास जाकर उन्हें अपने सच नहीं बताएंगे तब तक तो ..?”

शिखा को अच्छा लगा था कि एक नई राह खुलने वाली थी।

शिखर अपने साथी प्रतीक को समझा रहा था। प्रतीक उसका मित्र था। डॉन बास्को में दोनों जॉब करते थे। प्रतीक बंगाल से था। इकोनॉमिक्स में उसने पी एच की की थी। एक दिलफेंक आदमी था प्रतीक। वह अपने मन का मालिक था।

“क्यों न जिंदगी को एक उद्देश्य दे दिया जाए, प्रतीक?” शिखर ने एक शाम प्रतीक को अंदर से छू कर देखा था।

“कैसा उद्देश्य भाई?” प्रतीक चौंका था। “मैं तो मानता ही नहीं प्रतिबंधों को। आई हैव डिसाइडिड टू लिव जस्ट एलोन।” वह हंस पड़ा था।

“लेकिन कुछ देश समाज की भलाई ..?”

“माने ..?”

“माने कि – आज हम मिल कर यहां शिलोंग में एक अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद बना दें और अपनी छोटी मोटी मांगें मनवाने के लिए ..?”

“मेरी तो कोई मांग है ही नहीं!”

“हमारी मांगें तो हैं?” तनिक मुसकुराया था शिखर। “जिस देश का नमक खाते हैं क्या उस देश के लिए हम ..?”

“आर एस एस के आदमी हो क्या?” प्रतीक बमक पड़ा था। “रे .. रे ..! बाप रे!” वह कह रहा था। “तुम तो गांधी के हत्यारे हो!” उसने सीधा कह दिया था।

शिखर का दिमाग उड़ गया था। आर एस एस जैसे कोई कदीमी कसाई था – उसे ऐसा महसूस हुआ था। उसने मान लिया था कि अपने सच बताने का मौका भी शायद ही उन्हें मिले?

“तुम्हारे साथ अन्याय हुआ है सुमि!” शिखा अपनी सहेली को दिलासा दे रही थी। “में देखती हूँ कि कैसे तुम्हें स्कॉलरशिप नहीं मिलती।” शिखा दहाड़ रही थी। “और .. और मेरा तो विचार है कि हम मिल कर एक छात्र संघ की स्थापना करें। अपने हितों के लिए लड़ने की हमें जरूरत तो हमेशा ही पड़ेगी।” शिखा का सुझाव था।

सुमिति गुहा का चेहरा खिल उठा था। उसे लगा था कि शिखा उसकी सच्ची सहेली थी। उसे उम्मीद थी कि अब उसका काम बन जाएगा।

“कल शाम को सब को बुलाओ मेरे कमरे पर!” शिखा ने ऐलान किया था। “मीटिंग करते हैं। तय करते हैं कि विद्यार्थी परिषद कैसे बनाएं।” शिखा ने सुमिति गुहा को समझाया था।

मीटिंग हुई थी और तय हो गया था कि विद्यार्थी परिषद की स्थापना की जाएगी और उसे ऑल इंडिया विद्यार्थी परिषद के नाम से जाना जाएगा। आज का युग जाग्रत लोगों का था। अपने अधिकार मांगने के लिए अब हर कोई लालायित था।

“हम एक दूसरे की मदद नहीं करेंगे तो हमारी मदद कौन करेगा?” शिखा अपनी सहेलियों को समझा रही थी। “देश हमारा है तो हमें हक-हकूक भी तो मिलें कि नहीं! मैं तो देखती हूँ कि हमारे समाज में सबसे ज्यादा शोषण नारी का होता है।” शिखा ने बात सामने रख दी थी।

“मेरी मां को ही देख लो शिखा!” सुमिति गुहा बोली थी। “एक बंगाली से प्रेम विवाह किया था सो वह छोड़कर कलकत्ता भाग गया। अब बोलो कि हम दो मां बेटियां ..?” गला भर आया था सुमिति का। “कैसे कैसे मां ने दिन काटे हैं शिखा, मैं .. मैं बता नहीं सकती।”

“तो क्या हम परिषद में लड़कों को नहीं शामिल करेंगे?” रीता ने पूछा था।

“क्यों नहीं यार!” शिखा ने तुरंत उत्तर दिया था। “अभियान ही अधूरा रह जाएगा बिना लड़कों के!” उसने बताया था। “अरे भाई! फिर हमारे लिए लड़ेगा कौन?” वह हंस पड़ी थी।

हारा थका शिखर आज शिखा से मिलने आया था।

“हुआ कुछ?” उसने यूं ही के स्वर में शिखा से पूछा था। उसे तो विश्वास था कि शिखा को भी वही सुनने को मिला होगा जो प्रतीक ने कहा था। “गांधी की मौत ..?”

“जिक्र ही क्यों करें हम गांधी की हत्या का?” शिखा ने पूछा था। “मैंने तो ..” बताने लगी थी शिखा। उसने बुझे बुझे शिखर के चेहरे को पढ़ा था। “मैंने तो खेल खेल दिया है, शिखर! हम विद्यार्थी परिषद बना रहे हैं और विद्यार्थियों की समस्याओं को लेकर लड़ेंगे!” वह बताने लगी थी। “एक बार जुड़ जाए सभा, फिर तो हम ..”

शिखर को बात समझते देर न लगी थी। विचार तो सही था और कारगर भी था। पूरे देश के विद्यार्थियों को एकत्रित किया जाए – उनकी समस्याओं से लड़ने के लिए। और फिर लड़ी जाएगी दूसरी आजादी की जंग। गांधी जी की मौत के सच झूठ से क्यों लड़ें? सीधा समस्याओं के सामने आकर ही क्यों न खड़े हो जाएं?

शिलोंग में एक नई हलचल उठ खड़ी हुई थी।

अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद का प्रचार प्रसार होने लगा था। विद्यार्थी परिषद के लिए चुनाव होना था। नामांकन भरे जा रहे थे। झंडे डंडे लेकर विद्यार्थियों के झुंड के झुंड सड़कों पर उतर आए थे। एक नए युग का आरंभ जैसा हुआ था।

“अपने नेताओं का चुनाव सोच समझ कर करें।” शिखर जी विद्यार्थियों को समझा रहे थे। “भारत का भविष्य अब आप लोगों के हाथ में होगा। कल के प्राइमिनिस्टर आप होंगे। अब देश काल आप के मुंह की ओर देखेगा! ओर अगर आप लोगों ने अपने नेताओं का सही चुनाव नहीं किया तो .. देश ..”

“शिखर जी जिंदाबाद!” नारे लगने लगे थे। “आप अमर रहें!” एक जयघोष हुआ था।

शिखा ने भी अपनी बात कही थी।

नारी का उत्थान नारी ही करेगी।” शिखा बता रही थी। “पुरुष तो अब छोड़ कर भाग जाता है। वह सुख बांटता है – दुख नहीं। और अब हम अपने सुख दुख दोनों बांटेंगे और एक दूसरी का सहारा बनेंगे। परिषद के माध्यम से हम एक दूसरे से जुड़ेंगे और देश को जोड़ेंगे।”

“शिखा जी आप अमर रहें!” नारे लगने लगे थे। “शिखा जी जिंदाबाद!”

शिलोंग में हुआ यह जयघोष रुका नहीं था और पूरे देश के आरपार जा पहुंचा था। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद की स्थापना एक खबर थी, एक चेतावनी थी और कांग्रेस के लिए एक चुनौती थी।

पहली बार एक बड़े और विशाल विचार का प्रादुर्भाव हुआ था!

मेजर कृपाल वर्मा
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