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सॉरी बाबू भाग तिहत्तर

सॉरी बाबू

“हैज ए मुस्लिम किल्ड गांधी?” लॉर्ड माऊंटबेटन ने अपने अरदली से पूछा था।

“नो सर!” अरदली का उत्तर आया था। “गोडसे ए हिन्दू किल्ड हिम!”

“थैंक्स गॉड!” लॉर्ड माऊंटबेटन हीव्ड ए साइ ऑफ रिलीफ।

लॉर्ड माऊंटबेटन का डर सही था। अगर किसी मुसलमान ने गांधी को गोली मारी होती तो अंजाम अलग ही होते। संभव था कि बंटवारे का रूप स्वरूप ही बदल जाता। लेकिन अब तो हिन्दू ने ही हिन्दू को मारा था। मुसलमान तो मुफ्त में ही जंग जीत गये थे। उनका तो मनचाहा हुआ था और अंग्रेज आक्रांताओं को भी उनके मनसूबे पूरे हुए लगे थे।

हिन्दू ही थे – जिन्होंने अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी दे मारी थी।

पुनीत पंडित भावुक हो आये थे। एक अनाम से पीड़ा थी जो उनके चेहरे पर पर लक्षित हो रही थी। हिन्दुओं की यों अचानक हुई हार का जैसे उन्हें आज भी गम था। वो आज भी इतिहास की इस अभूतपूर्व घटना को समझ नहीं पा रहे थे।

“लेकिन पंडित जी!” माधवी कांत बोल पड़ी थीं। “गोडसे का गांधी जी को गोली मारना तो ..?”

“अपराध था – यही कहना चाहती हो ना?” पंडित जी की आवाज तल्ख थी। “नहीं माधवी नहीं!” उन्होंने हाथ के इशारे से बात काटी थी। “गोडसे कोई पागल नहीं था। और न ही वो गांधी जी का दुश्मन था। वो तो उनका भक्त था। फिर सोचो कि कोई भक्त अपने भगवान को पत्थर उठा कर कब और क्यों मारेगा?”

“जब कोई अतिरेक घटेगा!” उत्तर विक्रांत ने दिया था।

“बिल्कुल ठीक है!” पंडित पुनीत पुलकित हो आये थे। “ये पीढ़ी समझेगी इस घटना को, माधवी!” वो तनिक हंसे थे। “अगर गोडसे तब गांधी को नहीं मार देता माधवी तो शायद तभी यह देश मुसलमानों के हाथ लग जाता। तभी दारुल इस्लाम और गजवा-ए-हिन्द कायम हो गया होता।” एक कठोर सत्य को सामने रख दिया था पंडित पुनीत ने!

“लेकिन मेरी समझ में तो कुछ भी नहीं आ रहा है।” नेहा ने अपने दोनों हाथ झाड़े थे। “पंडित जी गांधी जी के मरने से मुसलमानों को क्या मिला?” नेहा का प्रश्न था।

“गांधी के मरने के बाद नेहा बेटी नेहरू बिकेम दी मैन – लार्जर दैन हिज लाइफ!” पंडित पुनीत बता रहे थे। “एंड लॉर्ड माऊंटबेटन एंड हिज वाइफ एडवीना – दी स्वीट हार्ट ऑफ नेहरू, वर कॉलिंग दी शॉट्स!” उन्होंने एक और आश्चर्य को उजागर किया था। “एंड नेहरू वॉज दी शॉर्ट ऑफ डीप कॉन्सपिरेसी इन डिसगाइज ऑफ ए पंडित – ए कश्मीरी पंडित टू फूल दि हिन्दूज!” हंस गये थे पंडित पुनीत।

“लेकिन हिन्दुओं को कहां बेवकूफ बनाया पंडित नेहरू ने?” माधवी ने पूछ लिया था।

पूछा प्रश्न अन्य सभी को भी वाजिब लगा था। नेहरू तो देश के सर्वमान्य सृजन हार थे – जिन्होंने अब देश को दिशा देनी थी और राष्ट्र निर्माण का बीड़ा उठाया था!

“बंटवारा धर्म के आधार पर हुआ था?” पंडित पुनीत ने सीधा माधवी से पूछा था। “और अगर धर्म के आधार पर मुसलमानों ने देश ले ही लिया था तो फिर वो भारत में क्यों रहना चाहते थे? क्यों नेहरू और गांधी ने मिल कर उन्हें भारत में रहने का निमंत्रण दिया था? भारत को भी हिन्दू राष्ट्र क्यों नहीं बन जाना चाहिये था?” पंडित पुनीत के प्रश्न थे।

“गांधी जी का दर्शन तो प्रेम और अहिंसा का था। वो तो विश्व शांति के हक में थे। वो तो चाहते थे कि छोटी मोटी बुनियादों पर मनुष्य का लड़ना ठीक नहीं था। विश्व युद्ध जैसी विभीषिका उन्हें पसंद नहीं थीं। वो तो चाहते थे कि भारत एक ऐसा आदर्श उपस्थित करें जहां सभी धर्म, सभी जातियां और सभी समुदाय आपस में प्रेम पूर्वक हिल मिल कर रहें! एक ऐसा भाई चारा कायम हो जहां ..” माधवी बताती रही थी।

“अल्लाह ईश्वर तेरे ही नाम!” पंडित पुनीत ने माधवी की बात काटी थी। “यही तो भ्रम पैदा किया था गांधी-नेहरू ने!” वो फिर से कठोर हो आये थे। “यहीं तो हिन्दुओं को बेवकूफ बनाया गया!” वो बता रहे थे। “क्यों कहा था सरदार पटेल ने – जिन मुसलमानों ने मांगा था पाकिस्तान वो तो जा नहीं रहे हैं लेकिन जिन्होंने मांगा नहीं था उन्हें वहां भेजा जा रहा है! जिन्ना के सात भाई बहनों में से वो अकेले ही पाकिस्तान गये! उनकी तो बेटी भी पाकिस्तान नहीं गई! जानती हो क्यों?”

अब एक चुप्पी छा गई थी। पंडित पुनीत के इस तरह के रहस्योद्घाटन ने उन सब को दंग कर दिया था।

“इसलिए माधवी कि वो जानते थे कि उन्हें जाने की जरूरत नहीं पड़ेगी। हिंदुस्तान तो अब उनका ही होने वाला था। अब दारुल इस्लाम बहुत दूर नहीं था। गजवा-ए-हिन्द के तो नारे भी लगने लगे थे।”

विक्रांत चकित था। उसकी दृष्टि के सामने अजीब दृश्य उठ खड़े हुए थे। काल खंड का मानचित्र जैसे सामने आ खड़ा हुआ था – उसने महसूस किया था।

“हिन्दू मुस्लिम सिक्ख ईसाई के समीकरण में अब मुस्लिम ईसाई और सिक्खों ने हिन्दू गांधी की हुई हत्या को हिन्दुओं के ही चेहरों पर एक अपराध की तरह मढ़ दिया था।” पुनीत पंडित बताने लगे थे। “नाथू राम विनायक पापी सच बतला हत्यारे – महान आत्मा राष्ट्र पिता गांधी गोली से मारे?” का गीत हर गोष्ठियों में गाया जाने लगा था और हर स्कूल, विद्यालय और महा विद्यालयों में इसी की चर्चा थी। हिन्दुओं का ये अक्षम्य अपराध ही उन्हें ले बैठा था। हिन्दू इसी पल के बाद से कम्यूनल हो गया था। सांप्रदायिक था हिन्दू, संकुचित मानसिकता का प्रतीक था हिन्दू, हिन्दू देश हित में चिंतन नहीं करता था और हिन्दू गांधी जी के दर्शन का प्रतिनिधित्व नहीं करता था और हिन्दू ही देश में सारी हत्याओं की जड़ था।” पुनीत पंडित अपने उद्गार उगलते जा रहे थे। “बड़ी ही चतुराई से हिन्दुओं को नेहरू ने सत्ता से अलग कर दिया।”

“वो कैसे ..?” विक्रांत ने प्रश्न पूछा था।

“अब कांग्रेस का खेल आरम्भ हो चुका था बेटे!” हंस गये थे पुनीत पंडित। “नेहरू जी ने गांधी जी के कहने के बाद भी कांग्रेस को नहीं तोड़ा! जानती हो क्यों?” उनका प्रश्न था।

“लेकिन कांग्रेस ने तो कोई बुरा नहीं किया?” माधवी कांत ने कांग्रेस का पक्ष लिया था।

“यही तो हम समझ नहीं पाए, माधवी!” पंडित जी फिर से टीस आये थे। “कांग्रेस हमारी नहीं उनकी – ईसाइयों की पार्टी थी। उन्हीं के हित साधन के लिए बनी थी और आज तक ये पार्टी उन्हीं का हित साध रही है!” पंडित पुनीत ने आंख उठा कर उन सब को खोजा निगाहों से घूरा था।

“लेकिन कैसे गुरु जी?” नेहा का प्रश्न आया था। “कांग्रेस तो ..?”

“हां हां बेटी! कांग्रेस तो काम धेनु है! यह तो पवित्र और स्वच्छ गंगा है जिसमें हर भारतीय डूब डूब कर नहाता है! हमारे तो घर घर में कांग्रेस घुस गई थी और हम माने के हम भारतीय इन कांग्रेसियों को देव तुल्य मानने लगे थे। इनका समाज बहुत आदर करता था और कांग्रेस ..” रुके थे पंडित जी। वो तनिक मुसकुराए भी थे। लगा था कि उनका अगला आने वाला तीर भी असरदार था और कुछ अनूठा ही उजागर करने वाला था।

“लॉर्ड माऊंटबेटन और एडवीना माऊंटबेटन के इशारों पर पंडित नेहरू के द्वारा पूरे देश को इस तरह संचालित किया गया कि वह अंग्रेजों का ही भारत रहा और हम भारतीय उनके गुलाम ही बने रहे आज तक!”

“मैं नहीं मानती पंडित जी! मैं तो महसूसती हूँ कि ..”

“तनिक ठंडे दिमाग से सोचो माधवी!” पंडित जी शांत भाव से बोले थे। “आज भी हमारे पास अपना क्या है?” उनका प्रश्न था। “भाषा भी हमारी नहीं उन्हीं की है। हमें अपनी भाषा से लगाव भी नहीं है लेकिन उनकी भाषा से है! अंग्रेजी भाषा आज भी ..” पंडित जी ने रुक कर माधवी को देखा था। “और भाषा ही क्यों हमारा पहनावा, हमारा रहन सहन, हमारा खान पान और यहां तक कि हमारे दवा दारू तक उन्हीं की देन तो है। हमारा कानून और हमारी व्यवस्था भी उन्हीं की देन तो है माधवी! अब बताओ .. तुम्हीं बताओ .. है हमारा कुछ?”

जैसे एक गाज गिरी थी माधवी के सर पर! यह एक नया आत्म बोध था जो आज उनके सामने आया था। इतने वर्षों के बाद भी हम गुलाम ही थे। हमने तो अपना कोई सोच भी लोगों के सामने न रक्खा था!

“और माधवी नेहरू जी की चली शतरंज की चालें भी हम समझें!” पंडित जी ने फिर से अपनी बात बताना आरम्भ किया था। “ईसाइयों के साथ वो थे, मुस्लिम वो स्वयं थे, हिन्दुओं के निम्न वर्गों को आरक्षण देकर उन्होंने मुट्ठी में ले लिया था और चूंकि उन्होंने अपना टाईटल पंडित रख लिया था अत: देश का पूरा पंडित समाज उनके साथ जुड़ गया था। और ये स्वाभाविक ही था! अब रह गये बेचारे हिन्दू!” हंसे थे पंडित जी। “अखंड भारत के खंड खंड होने के बाद उन्हें अब जाकर तमाम जगें हार कर एक छोटा सा भारत मोहिया हुआ था। लेकिन उसे भी ग्रहण लग गया था। क्योंकि वो भी उनका नहीं सब का था! अब यह हिन्दू, मुस्लिम, सिक्ख और ईसाइयों का भारत था ओर उनके अपने इस भारत में उन्हें ही कोई पूछता तक न था।”

आश्चर्य की ही बात थी! पंडित जी का बयान तो सच था। लेकिन किसी ने इसे समझा क्यों नहीं? भेड़ बकरियों की तरह हिन्दू नेहरू और गांधी को अवतार मानकर उन्हीं के बताए रास्ते पर चलता रहा! आपस में लड़ता रहा हिन्दू और अन्य सभी निम्न वर्गों के उद्धार के लिए वह संघर्ष रत रहा! मुसलमानों ने चालाकी से सब सुविधाएं बटोरीं और अपना विस्तार, उद्धार और जन संख्या से लेकर वोट बैंक तक तैयार किया।

“हिन्दुओं को छोड़ कर आज भी ईसाई, मुसलमान और सिक्ख अपना अपना हक मांगते आ रहे हैं!” पंडित जी फिर से बताने लगे थे। “फिर विभाजित होगा भारत!” उन्होंने दोनों हाथ झाड़ दिये थे।

एक सन्नाटा सन्नाने लगा था। देश का दुर्भाग्य उन सब के सामने खड़ा खड़ा हंस रहा था।

मेजर कृपाल वर्मा
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