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साॅरी बाबू भाग तेरह

सॉरी बाबू

धारावाहिक – 13

बड़ा शोरगुल मचा था – तुम्हारी ‘वन मानुष’ को ले कर ।

मैं पस्त हो गई थी । जैसे मैं परास्त हो गई थी । जैसे मेरे जीवन से सारा रस जाता रहा था और मैं निष्प्रांण थी । गम मुझे ये नहीं था कि तुम सोपान चढ़ रहे थे । न मुझे ये गिला था कि मैं पीछे पड़ रही थी । डर था मुझे तो जूही से था । हॉं । हॉं । मैं झूठ नहीं बोलूंगी, बाबू । तुम्हारे साथ लीड रोल में आई जूही – न जाने क्यों मुझे अपनी दुश्मन लगी थी । न जाने क्यों मैं क्रोध और घृणा में अंधी हो गई थी । और न जाने क्यों …….

‘सौतिया डाह ….?’ मेरा अंतर बोला था । और मैंने भी मान लिया था , बाबू कि ये मेरा सौतिया डाह ही था – जो मुझे मरने पर मजबूर कर रहा था ।

मुझे लग रहा था कि जूही ने आ कर मुझ से मेरे बाबू को छीन लिया है । मुझे लग रहा था कि अब विक्रांत पराया हो गया है । अब मैं किसी बियाबान में अकेली छूट गई हूँ और विरह के गीत गा-गाकर अपने बिछुड़े प्रेमी को पुकार रही हूँ । और …और वो मेरा मन-मीत ….जूही के साथ मिल कर प्रेम-गीत गा रहा है ….। खुशियों में डूबा-डूबा ….मुझे भूला-भूला ….मुझ से दूर होता जा रहा है ।

‘क्या धरा है , इस जूही में …?’ खुड़ैल को भनक लगते ही वह बोला था । ‘सींक-सी बारीक लड़की है । है क्या , उस में ?’ उस का प्रश्न था । ‘अरे, मैडम । तुम्हारे सामने तो वह घास बेचती है ।’ हँसा था , रमेश दत्त । ‘तुम्हारे अंग-सौष्ठव का तो कोई जबाव ही नहीं ।’ उसने मुझे भरपूर निगाहों में भर कर देखा था । ‘बाई गॉड । ‘धोबन’ के पाेस्टर देख कर लोग खड़े -के-खड़े रह जाते हैं । वो जो तुम्हारा आंख मारता फोटो है , न …? कत्ल कर देता है , मेरी जान।’ वह मुझ से लिपट गया था । ‘सब्र करो , नेहा । ‘उस ने मुझे दिलासा दिया था । ‘ये ‘वन मानुष’ तो डूबेगी । इस का प्रोड्यूसर तो पागल है । बाप का माल हाथ लग गया है । सो उड़ा रहा है – पब्लिसिटी में …..’

लेकिन हुआ था – उलटा । जहॉं तुम्हारी ‘वन मानुष’ ने सारे सोपान चढ़े वहीं मेरी ‘धोबन’ औंधे मुंह गिरी थी । और मैं – उस की हिरोइन भी धोबी तलाव में उसी दिन डूब मरी थी । सच ,बाबू । लगा था मुझे जैसे तुम उस सींक-सी पतली जूही को अपनी कमर पर लाद कर ….एवरेस्ट पर चढ़ गये हो और मैं अब हमेशा -हमेशा के लिये किसी बदनामी के गहरे गर्त में जा गिरी हूँ । ‘धोबन’ बेकार की फिल्म सिद्ध हुई थी ….और ये खुड़ैल ……?

‘नाराज हो ….?’ रमेश दत्त मेरे सूजे हुए चेहरे को देख डर गया था । ‘ये फिल्मों में उपर-नीचे तो चलता ही रहता है , यार ।’ वह हल्के पन में बोल रहा था । ‘आज नहीं तो कल …..तुम्हें तो सुपर स्टार बनना ही है , नेहा ।’ उस ने मेरा डूबता मन साधा था। ‘कभी-कभी तुक्का भी लग जाता है ,फिल्मों में ….। और फिर दर्शकों का मूड़ होता है, भाई । कहो तो किसी को भी ले डूबें ?’ वह बताता रहा था । ‘बेचारा पंछी फिल्म फ्लॉप होते ही मर गया ।’ तनिक हँसा था ,रमेश दत्त । ‘लेकिन बाद में यही फिल्म ‘पागल’ सुपर हिट हुई और इतना धन कमाया कि …..’

‘पागल बना रहे हो ….?’ मैंने कुढ़ कर प्रश्न पूछा था । मेरे दिमाग में सुई की तरह गढ़ी और टीसती जूही जहॉं की तहां बैठी थी । ‘तुम्हें नहीं आती फिल्म बनानी ।’ मैंने जैसे उस के मुंह पर तमाचा दे मारा था । ‘मैं …..मैं …..’ आंसू थे मेरी आंखों में ।

‘मैं ….ओटता हूँ , तुम्हारा ये चैलेन्ज ।’ तपाक से बोला था , रमेश दत्त । ‘चलो । दुबई चलते हैं । वहीं अगली फिल्म का ऐलान करेंगे । मेरे पास कहानी है , नेहा । तुम देखना …कि ….’

‘मैं नहीं मानती ।’ मैं बिगड़ गई थी । ‘मैं नहीं जाती दुबई । मैं अब फिल्मों से सन्यास ले लूंगी । मुझे ….तो …’ मैं रुक गई थी । लेकिन मैं कहना चाहती थी कि मुझे तो विक्रांत ही चाहिये ।

दुबई की दुनिया तो थी ही निराली , बाबू ।

सच । मैंने जीवन में पहली बार उस तरह का सम्पूर्ण वैभव उन रेतीले विस्तारों में बिखरा पड़ा पाया था – जहां पंछी तक के लिये छाया न थी । जैसे समूचा संसार ही वहां आ बैठा था । और हर कोई एक दुकान लगा कर चीख रहा था – मानवता बेचो …। ईमान बेचो …। खरीदो ….जो भी खरीदना हो । सब बिकता है ….सब चलता है, लोगों। शर्माते क्यों हो ….?

हॉं। हॉं । मैं मानती हॅू , बाबू कि मैं भी उस हवा को पचा नहीं पाई थी । मैं भी बह गई थी । रमेश दत्त ने मेरी मुलाकात उन लोगों से कराई थी जो लोग संसार के जाने-माने सौदाई थे । उस ने मुझे बेचा था ….उस ने मुझे बहकाया था ….उस ने मुझे …..उस ने ….’ शब्द चुक गये थे ,नेहा के पास । वह सुबकने लगी थी ।

‘मुझे लगा तो था ,नेहा कि रमेश दत्त तुम्हें बहका रहा था । लेकिन …जब …तुम …?’

‘हॉं । मैं मुंह न खोल पाई थी , बाबू ।’ नेहा स्वीकारती है । ‘मैं न जाने क्यों जूही से मुकाबला जीत लेना चाहती थी । हर कीमत चुका कर मैं …अपना बाबू वापस ले लेना चाहती थी । और फिर ….’ नेहा आंसू न रोक पा रही थी । उस का हिया उमंग आया था । ‘हमेशा के लिये गंवा बैठी , तुम्हें ?’ नेहा का स्वर रुलाई में टूट गया था । ‘सॉरी, बाबू …….मैं …..’

क्रमशः –

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