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सॉरी बाबू भाग तैंतीस

सॉरी बाबू

“झूठ बोला है, पाप लगेगा!” मेरा अंतर बोल पड़ा है!

चुपचाप हवाई जहाज में बैठी मैं अचानक आंदोलित हो उठी हूँ। न जाने क्यों आज इतने दिनों के बाद – मेरा अंतर मुझपर खुल कर बोला है! मैं तो भूल ही गई थी कि झूठ बोलने से पाप लगता है! और आज के जमाने में झूठ बोलता कौन नहीं है? पूरे विश्व में झूठ का व्यापार ही तो चल रहा है! और सलीम जैसे लोग तो खाते ही झूठ बोलने का हैं! तितलियां फसाते हैं .. ऐश फरमाते हैं और जागीरें बनाते हैं सेनफ्रांसिस्को में .. इस एकांत में ताकि किसी का कानों कान खबर न लगे और ये दूध के धुले बने रहें!

“लेकिन आज तो मैंने भी झूठ बोला था बाबू!” अचानक मुझे विक्रांत का ध्यान हो आया था। मुझे अपने बाबू की डूबती आवाज सुनाई देने लगी थी। “मैं जानती हूँ बाबू कि तुम झूठ नहीं बोलते हो! और मैं ये भी जानती हूँ कि तुम मेरी कोरी देह के ग्राहक भी नहीं हो! तुम तो सच्चे प्रेमी हो – पवित्र प्रेमी! हा हा हा – मेरे सौभाग्य देवता .. तुम मेरे विक्रांत – मेरे बाबू महान हो!”

“झूठ बोला है .. और अगर पूर्वी को कुछ हुआ तो ..?” लो फिर से प्रश्न आया है!

सच में ही बाबू, मैं पूर्वी अपनी मॉं – इस देवी, इस लक्ष्मी और रानी दुर्गा का बहुत मान करती हूँ! मात्र इस विचार से कि पूर्वी को कुछ हो जाएगा – मैं विचलित हूँ। ये पूर्वी – मेरी मॉं बाबू बड़ी ही विचित्र है। जीती है – पर हमारे लिए, परिवार के लिए, बाबा के लिए अपने लिए नहीं! मुझे याद है कि कई मौकों पर जब खाना समाप्त हो जाता था तो पूर्वी भूखी सो जाती थी, बाबू! न जाने वो कौन सी शक्ति थी जो इन्हें प्राण दान देती थी? न जाने वो कौन सी हिम्मत थी जो इन्हें कभी हारने ही न देती थी!

“ले! बांध ले नेहा!” अभी अभी तो मेरे लिए गंडा बनवा कर लाई थीं। अभी-अभी तो मुझे बिस्तर में गरम-गरम खाना खिलाया था। अभी-अभी तो मेरे घावों को चुपचाप सेकती रही थीं और .. और ..

“हे, भगवान! मेरी पूर्वी को कुछ न हो! बेशक मुझे उठा लो .. पर पूर्वी ..” मैं प्रार्थना करने लगती हूँ पूर्वी के लिए!

लो, बाबा आ गए! मुझे प्यार कर रहे हैं! मुझे समझा रहे हैं कि मैं चिंता न करूं। कह रहे हैं कि वो पूर्वी को संभाल लेंगे! परिवार की धुरी हैं बाबा। एक सत्य का नाम हैं मेरे बाबा! एक गहरी आस्था का प्रतीक हैं वो!

और मैं ..? सच बाबू – बचपन में मैं समीर और सीमा की उंगली पकड़ बीच में चलती उनकी – ‘दी’ .. ‘बड़की’ .. या कहो नेहा दीदी उनके लिए एक शक्ति का प्रतीक होती थी! उन्हें कोई कष्ट छूए – मुझे गवारा न होता था। एक कमरे में रहते हम तीनों बहन भाई एक जान थे – एक प्राण थे! हमारे बीच तैरता सौहार्द, प्रेम और वो अपनत्व – मुझे आज भी याद है बाबू!

और हॉं, बरांडे सोते बाबा और पूर्वी हम तीनों के लिए पूर्णतः समर्पित थे!

और ये .. न जाने कितने एकड़ की जागीर में रहता सहता अकेला – गैरी द ग्रेट – बिना बच्चों के और बिना परिवार के क्या करता होगा?

“हम अकेले अकेले नहीं रहेंगे बाबू!” मैं अपने इस एकांत में अपना घर बसाने लगी हूँ। “हमारे बच्चे होंगे। हम उनके नाम धरेंगे – अपने मन सुहाते नाम! हम उनके लिए जीएंगे, बाबू! उनके दुख सुख बांटेंगे और उनकी मनोकामनाओं में साझेदारी करेंगे! उन्हें वही सब देंगे – जो हमें मिला है, बाबू!”

अपनों के बीच में रहने का अलग ही सुख होता है बाबू! मैं तुम्हें बता ही रही थी कि न जाने इतनी लम्बी हवाई यात्रा का लम्हों में कैसे अंत आ गया था!

सुबह के चार बजे थे। बम्बई ने मेरा हंस कर स्वागत किया था। और मैं नयन विस्फरित उस सुबह के धुंधलके में तुम्हें तलाश रही थी बाबू! मेरा मन बहुत प्रफुल्लित था। हिया उमगा आ रहा था। आंखों में तुम्हारे किये उपकार उग आये थे। तुम्हारे शरीर की महक तक मुझे आने लगी थी। मैं तनिक उदास होने लगी थी – और तभी .. हॉं-हॉं तभी तुम मुझे दिखाई दे गये थे।

तुम्हारे भव्य व्यक्तित्व को यूं अपने इंतजार में खड़ा पा – मैं तो धन्य हो गई थी बाबू! उस काले कलूटे सलीम को देखते देखते मुझे उबकायीं आने लगी थीं। और आज जब मुझे तुम्हारे दर्शन हुए थे तो लगा था – मुझे मेरा इष्ट लेने आया है .. मुझे प्राप्त करने मेरा प्रेमी पधारा है और अब मैं .. मैं उसमें विलीन हो जाऊंगी .. मैं अब आज फिर से जी जाऊंगी!

“आओ नेहा!” मैंने तुम्हारी मोह भरती आवाज सुनी थी। मैं गदगद हो उठी थी बाबू! कितने दिनों के बाद आज मैंने इस पुकारती आवाज को सुना था। “वैलकम माई लव!” तुमने बड़े ही लाढ़ के साथ कहा था। कैसा-कैसा स्नेह उमड़ आया था मेरे भीतर – मैं बयान तक न कर सकी थी।

“ओह बाबू!” मैं रो पड़ी थी। “ओ माई लव!” मैं सुबकती रही थी। “मैं .. मैं ..!” क्या कहती – कुछ समझ ही न आ रहा था!

“बेसहारा हो गया हूँ मैं – बिना तुम्हारे नेहा!” तुम ने तड़प कर कहा था तो मैं आहत हो गई थी। “मुझे दुश्मनों ने घेर लिया है!” तुम बता रहे थे। “न जाने क्यों – इतने सारे मेरे दुश्मन?” तुम हैरान थे।

“शायद मैं .. मैं ही इसका कारण हो सकती हूँ, बाबू!” मैंने स्थिति को भांपते हुए कहा था। “खुड़ैल ने रचा होगा ये चक्रव्यूह!” मैंने अपना अनुमान लगा था। “डोंट वरी डार्लिंग!” मैं बोली थी। “अब हम न हारेंगे!” मैंने तुम्हें विश्वास दिलाया था। “हम दो हैं – हम दो सौ से लड़ेंगे!” मेरी घोषणा थी। “मैं सब संभाल लूंगी!” मैंने तुम्हें आश्वस्त किया था।

“नवाबजादे ने तो हंगामा मचा दिया है, नेहा!” तुमने प्रसन्नता पूर्वक कहा था। मुझे अच्छा लगा था बाबू। मुझे तुम से यही उम्मीद थी। “जवाब नहीं तुम्हारी एक्टिंग का नेहा!” तुम्हारी आंखों में मेरे लिए स्नेह था। “आई एम प्राउड ऑफ यू डार्लिंग!” तुमने कहा था तो मैं गदगद हो गई थी बाबू!

तुम जैसा दरियादिल पुरुष आज तो देखने भर के लिए नहीं मिलेगा बाबू! न जाने क्यों और कैसे मैं ये क्या कर बैठी? एक हस्ती को मिटा दिया मैंने! एक युग को लील गई मैं! एक परंपरा को मिटा दिया मैंने! और .. और मैंने वो अपराध किया जो जघन्य है .. हेय है .. अमानवीय है .. और ..

प्रेमियों की जात को लजाया है – मैंने बाबू! प्रेम में धोखा? प्रेम में फरेब? सब से बड़ा पाप है ये मैं अब आ कर समझी हूँ बाबू!

“ये पाप तो तुम्हें लगेगा नेहा!” मेरा अंतर आज फिर बोला है!

अब क्या करूं – बाबू? कैसे .. कैसे फिर से पा लूँ तुम्हें? कैसे .. कैसे मिटा दूँ इस लगे कलंक को – कौन बताएगा बिन तुम्हारे बाबू?

सॉरी बाबू ..!

रो रही है नेहा ..

क्रमशः

मेजर कृपाल वर्मा

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