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सॉरी बाबू भाग साठ

सॉरी बाबू

“गुरु तो गुड़ रह गये और चेला हो गये शक्कर।” सुधीर हंसा था। “मान गये दत्त साहब आपके चेले को।” उसने विक्रांत की प्रशंसा की थी। “क्या किरदार निकाला है – जीने की राह में?” सुधीर की आंखों में आश्चर्य था।

रमेश दत्त को हुलिया बिगड़ गया लगा था। उन्हें सुधीर आज अपना जानी दुश्मन नजर आया था। काफिर – अचानक ही और चुपचाप उनके होंठों से निकला था ओर उन्होंने उसी पल सुधीर को तिलांजलि दे दी थी।

“तुम्हारी जगह जग्गा को ले लिया है सुधीर!” रमेश दत्त हंस कर बोले थे। “वो क्या है कि .. जग्गा निरा जंगल का राजा लगता है जबकि तुम्हारी प्रोफाईल ..”

“मैं चलूंगा गुरु जी!” सुधीर अपने आप को संभाल नहीं पा रहा था और उठ कर चला आया था।

खूब हंसे थे रमेश दत्त। अपने विरोधियों को पछाड़ना उन्हें आता था और उन्होंने सीख लिया था कि किसी को भी बराबरी पर मत आने दो .. वरना तो ..? विक्रांत का चेहरा एकाएक उजागर हुआ था। विक्रांत को अब रोकना था, बरबाद करना था वरना तो बहुत देर हो जानी थी। कोरा मंडी ही अब उनका अमोघ अस्त्र थी – जो विक्रांत को ढा सकती थी।

“काल खंड को इस तरह समझिए, पंत साहब!” विक्रांत बड़े ही मनोयोग से शाही सुरेश सिंह पंत को काल खंड का मूल विचार समझाने लगा था। “हमारा इतिहास है – हमारी सालों की गुलामी का इतिहास!” विक्रांत की आवाज में दर्द था। “और हमारा इतिहास है – आजादी को लाने का इतिहास – जो आज भी नया नूतन और नवेला है।” तनिक भावुक हो आया था विक्रांत। “लेकिन अब हम बेफिक्र हैं। अब हम बेपरवाह हैं। हमें किसी का डर नहीं है। हम एक समर्थ राष्ट्र हैं। लेकिन ..” रुका था विक्रांत।

“कहना क्या चाहते हो भाई?” बिगड़ने लगे थे पंत साहब। “सीधी सीधी कह कर बताओ।” उनका आग्रह था।

“क्या आप हमारी हासिल की आजादी के लिए कोई खतरा देखते हैं?” विक्रांत ने पूछा था।

“नहीं तो!” तपाक से बोले थे पंत साहब। “अरे भाई! हमारी सेनाएं बॉडर पर खड़ी हैं और हम अब संपन्न हैं – समर्थ हैं!”

“वो तो हम गुलाम होने से पहले भी थे?”

“हॉं थे – हम समर्थ थे और सोने की चिड़िया थे।” गर्व के साथ कहा था पंत साहब ने।

“और फिर हम गुलाम हो गये! क्यों कि हम उन बाजों को न देख पाए थे जो सोने की चिड़िया की फिराक में चुपचाप बैठे थे। और हम उन्हें रोक भी नहीं पाए क्योंकि हम बंटे हुए थे।”

“कहना क्या चाहते हो विक्रांत?”

“यही कि हम खतरनाक बाजों के बीच में बैठे हैं पंत साहब! हम बेखबर हैं और हम बेवकूफ हैं।” भावुक हो आया था विक्रांत। “और ये जब हमारी गर्दन पर छुरी रख देंगे – ये सो कॉल्ड बाज ..”

“तुम्हारा मतलब मुसलमानों से है?”

“जी हॉं!” विक्रांत ने स्पष्ट कह दिया था।

शाही सुरेश सिंह पंत के मुंह का जैसे जायका ही बदल गया था। उन्हें तो विक्रांत से उम्मीद थी कि काल खंड में वह कोई मॉर्डन थीम लेकर आयेगा – जैसा कि जीने की राह में था ओर वो उसे सस्ते में लपक लेंगे! लेकिन विक्रांत तो अभी बच्चा ही था। उसने अभी देखा ही क्या था? फिल्मी दुनिया के नजारे जितने ज्यादा देखो उतने ही ज्यादा समझ आते हैं।

“भाई मैं तो इस हिन्दू मुसलमान डिवाइड से दूर ही रहता हूँ!” पंत साहब ने बड़े ही धीमे स्वर में कहा था। “कहीं और बेच लो इस कहानी को।” उनकी राय थी। “देख लो – अगर समीर तुम्हें कोई सहारा दे दे तो!”

विक्रांत को लगा था कि उसके शरीर को ठंडे पसीने ने तर कर दिया है।

घोर निराशा घिर आई थी विक्रांत की आंखों में! उसे अफसोस हुआ था कि हिन्दू ही हिन्दू का सहारा बनने के विरुद्ध थे। हिन्दुओं को आज भी अपना मरना जीना दिखाई न दे रहा था। और रमेश दत्त जो भेड़ की खाल में छुपा भेड़िया था – उन्हें एक जीनियस दिखाई देता था।

“कोरा मंडी एक थीम है – जीने की राह से भी बड़ा एक विचार है!” रमेश दत्त भूषण माली को कोरा मंडी का फलसफा समझा रहे थे। “अरे भाई! हम आखिर जीते क्यों हैं?” उन्होंने भूषण माली से प्रश्न पूछ लिया था।

“जीते हैं .. जीते हैं .. हम ..” भूषण माली उत्तर में अटक गया था। उसकी समझ में ही नहीं आ रहा था कि क्या कहे। “इसलिए .. दत्त साहब कि .. हम ..”

“मौज मस्ती के लिए नहीं ..?” रमेश दत्त हंसे थे। “एक सुंदर – बेहद खूबसूरत औरत आकर तुम्हारे गले में गलबहिंया डाल दे .. और .. और ..?”

“मैं तो .. मैं तो मर मर जाऊंगा दत्त साहब!” भूषण माली किलक कर बोला था। “अरे दत्त साहब कब से मैं नेहा की फिल्म डायरेक्ट करने का ख्वाब देख रहा हूँ।”

“कोरा मंडी में पूरा हो जाएगा!” दत्त साहब जोरों से हंस गये थे।

“सच्च कहते हो दत्त साहब?” भूषण माली ने रमेश दत्त के पैर छू लिए थे।

रमेश दत्त ने अपनी मुहिम का पहला मोर्चा फतह कर लिया था।

“मौका मिला तो मैं विक्रांत भाई इस साले दत्त में जूते मारूंगा।”सुधीर का चेहरा क्रोध में तमतमाया हुआ था। “मुसलमान है। नाम रक्खा है हिन्दू – दत्त माने कि ब्राह्मण। पूरे देश को पागल बनाता है ये कासिम। इसका मतलब मैं समझता हूँ भाई।” सुधीर की आवाज कड़क थी।

“हुआ क्या?” विक्रांत ने हंस कर सुधीर से पूछा था।

सुधीर पटना का था। विक्रांत से स्वाभाविक प्रेम था। दोनों युवा थे और दोनों की महत्वाकांक्षाएं भी महान थीं। लेकिन थे दोनों नए और आदर्शवादी। बॉलीवुड का और उनका तापमान मिलता न था। जो बॉलीवुड में जी रहा था वह श्लाघनीय न था।

“कहता है मेरी प्रोफाईल और जग्गी की प्रोफाईल ..”

“अरे वो जग्गी ..?” हंसा था विक्रांत। “वह तो निरा कार्टून है। दत्त अगर उसे कुत्ता बनने को भी कहेगा .. तो भी ..”

“माहौल ही खराब कर दिया है ऐसे लोगों ने!” सुधीर ने जग्गी को कोसा था। “मैं तो भाई भाग जाऊंगा बंबई से!” सुधीर अभी भी बौखलाया हुआ था। “काम देगा – तो पहले इज्जत लेगा – दस्तूर ही बन गया है बॉलीवुड का।”

“बदल देते हैं दस्तूर को!” विक्रांत अभी भी हंस रहा था। “बदल देते हैं जमाने को?” विक्रांत ने अपने आदर्श वाक्य कहे थे। “आते हो साथ तो बोला?” विक्रांत ने पूछा था।

“आ गया आपके साथ भाई जी!” सुधीर ने हाथ मिलाया था। “जान हाजिर है। जो भी आप ..”

“क्रांतिकारी सुधीर!” विक्रांत संभल कर बोला था। “काल खंड का अमर शहीद ओर क्रांतिकारी – सुधीर! भारत मॉं का लाल और ..”

“करूंगा भाई! ये रोल मैं करूंगा।” सुधीर गदगद हो आया था।

“लेकिन सुधीर ये मान कर चलो मेरे भाई कि मंजिल आसान नहीं है।”

अब सुधीर ने लम्बे पलों तक विक्रांत को देखा था। वह भी जानता था कि फिल्म बनाना आसान काम नहीं था। वह भी हर रोज देखता था और सुनता था कि कौन पैक हो गया, कौन घर गया और किसकी फिल्म फ्लॉप हो गई। उसने भी करोड़ों की लागत लगा कर लोगों को बाबाजी होते देखा था और उजड़ते देखे थे वो चमन और गिरते देखे थे वो आशियाने ..

“चल पड़ते हैं भाई जी!” सुधीर कुछ सोच कर बोला था। “ज्यादा से ज्यादा ..”

“नहीं! मैं फिल्म फ्लॉप होने की कभी नहीं सोचता सुधीर! कामयाबी हमें मिलेगी जरूर। लेकिन ..”

“फिकर नॉट भाई जी।” सुधीर ने फिर से हाथ मिलाया था। “नेहा तो हमारे साथ होगी न?” उसने पूछ लिया था। “मैंने सुना है कि दत्त उसे कोरा मंडी में साइन कर चुका है?” सुधीर पूछ रहा था।

हैरान था विक्रांत। उसकी समझ में आ रहा था कि इस बार मुकाबला आसान न था। और टोटल गेम प्लान नेहा पर ही आ कर रुक जाता था। और .. खुड़ैल .. और .. नेहा ..!

“इस दत्त के साथ पूरा अंडरवर्ल्ड है भाई जी!” सुधीर ने चेतावनी दी थी। “ये हिन्दू लड़कियों को फंसाता है और ..” ठहर गया था सुधीर।

“मैं सब जानता हूँ सुधीर!” हामी भरी थी विक्रांत ने। “बट वी हैव टू बीट हिम ऑन हिज ओन गेम।” तनिक हंसा था विक्रांत। “एंड दैट इज अवर ऐम!” उसने सुधीर को आंखों में देखा था। “हमें हिन्दुस्तान को बचाना है सुधीर!” विक्रांत अब गंभीर था। “तुमने भी तो देख लिया है खतरे को!” विक्रांत ने फिर से सचेत किया था सुधीर को। “अगर हम – मेरा मतलब है कि हम युवा इस बार चूक गये ओर ये बाज जीत गये तो गई मानो सोने की चिड़िया को! हमें फिर तो गुलाम होना ही होगा और फिर न जाने कितनी सदियां लगेंगी ..?”

“और शायद है भाई जी कि इस बार बचें भी या कि ..?” सुधीर भी विक्रांत की तरह सजग था।

सुधीर के जाने के बाद विक्रांत आल्हादित हो उठा था।

एक से दो हो जाने का जो सौभाग्य आज विक्रांत को प्राप्त हुआ था उसका कोई जोड़ न था। वह सुधीर को वर्षों से जानता था। वह जानता था कि सुधीर भी उसी की तरह देश प्रेमी था। और .. और

एक से हुए दो और दो से होंगे चार! चार से चार सौ होंगे ओर फिर बनेगा देश भक्तों का एक काफिला!

विक्रांत ने अचानक ही नमक सत्याग्रह पर जाते गांधी जी के काफिले को देख लिया था।

मेजर कृपाल वर्मा
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