Site icon Praneta Publications Pvt. Ltd.

सॉरी बाबू भाग पैंसठ

सॉरी बाबू

अन्यमनस्क बैठी मैं अनगढ़ आकाश को देख रही थी। मेरा मन बहुत अशांत था।

“अपने छोटू को बिलकुल ही भूल गईं दीदी!” अचानक नमस्कार कर मेरे पैरों को छूते समीर को देख मैं दंग रह गई थी।

“अरे तू!” मैं उछल पड़ी थी। सामने खड़े समीर को मैंने उठ कर बांहों में सहेज लिया था। “कैसे ..? आज कैसे दीदी याद आई?” मैं उसे पूछ रही थी।

“क्यों?” समीर भी गर्जा था। “रिश्ते थोड़ि मरते हैं दीदी!” वह कह रहा था। “आप भूलें .. तो भी कहॉं भूलेंगी? भाई बहन का संबंध तो ..”

“हॉं रे!” मैं गदगद हो आई थी। मैंने समीर को आंखों में भर कर देखा था। बहुत ही बड़ा बड़ा लगा था मुझे। “बहुत दिन बीते बीते भइया कोई खबर सुध ही न थी।” मैंने उलाहना दिया है। “पूर्वी कैसी है?” मैं अब खैरियत पूछने लगी थी। “बाबा तो बहुत याद आते हैं समीर .. लेकिन”

“मिलने नहीं आ सकतीं क्योंकि अब आप बड़ी स्टार हैं!” पाजी समीर मान नहीं रहा था। वही शरारती छोटू था। हम दोनों बहनों का दुलारा भी तो था। “बीच में बाबा बहुत बीमार हो गये थे।” समीर बताने लगा था। “नानक अंकल से ही इलाज कराया।”

“क्यों?” मैं अब नाराज हूँ। “मुझे क्यों नहीं बताया?” मैंने उसे पूछा है। “बोन कैंडी में मेरा रसूख है।” मैंने अपनी शेखी बघारी थी।

“बाबा को आप जानती तो हैं!” समीर हंसा है। “जान प्यारी नहीं है उन्हें – जहान प्यारा है।”

मैं भी हंस पड़ी हूँ। अचानक ही मुझे पूर्वी और बाबा एक साथ ही दिखाई दिये हैं। दोनों आपस में मिले जुले, गुपचुप सी जिंदगी जीते और दुनियादारी से बिल्कुल बेखबर! अनछुए से दोनों असंपृक्त मेरे सामने मुलाहजा के लिए आ खड़े हुए हैं। और अब कैसे आरती उतारूं अपने इन जन्मदाताओं की? इस जमाने के तो लगते ही नहीं दोनों!

“तेरा कैसा चल रहा है?” मैंने अब समीर से पूछा है। वह अपनी फिल्म बना रहा था – मुझे याद है। मुझे याद है कि वो ..

“दत्त साहब ने मुझे कोरा मंडी में असिस्टेंट डायरेक्टर बतौर ले लिया है।” समीर ने बताया है। “इट्स अ चांस इन मिलियंस दीदी।” समीर ने प्रसन्न होकर बताया है।

“क्यों?” मैंने प्रतिवाद किया है। “तुम तो अपनी फिल्म बना रहे थे?” मैंने फिर से पूछा है।

“कहां दीदी!” तनिक उदास निराश होकर बोला है समीर। “आप जानती तो हैं कि फिल्म बनाना मीन्स – फांसी खाना।” वह तनिक खिसिया गया है। “हम जैसों से कहां बनेंगी फिल्में?” उसका स्वर बारीक है। “आप ने पैसे दिये थे लेकिन ऊंट के मुंह में जीरा!” समीर ने मेरी आंखों में देखा है। “इट नीड्स कॉलोसल मनी दीदी!” समीर अब सफाई दे रहा है। “पैसा – पैसा नहीं – पैसे के अंबार चाहिये।”

मुझे अच्छा नहीं लगा है। मुझे पता है कि अब काल खंड के बनाने में न जाने क्या क्या लगेगा, कितना लगेगा और उसके बाद भी तो ..

“खंड खंड हो कर सड़कों पर बिखर जाएगी काल खंड!” खुड़ैल की आवाजें आती हैं। “देश भक्ति का गधा तो कब का लद गया माई डियर।”

न जाने क्यों एक घोर निराशा ने आ कर मुझे घेर लिया है।

“मॉं ने पंजेडी बना कर भेजी है आप के लिए!” समीर ने मुझे पूर्वी का भेजा पैकेट पकड़ाया है। “आप को पंजेड़ी पसंद भी बहुत है न ..?” समीर हंस रहा है। “मॉं अभी भी अपनी लाड़ली नन्ही सी नेहा को गोद में लिए लिए लोरियां गाती सी लगती हैं। वह भूल ही नहीं पाती दीदी कि अब आप ..”

“बचपन को गंवा बैठी हूँ?” मैंने समीर के संवाद को पूरा किया है। “अब आप खोने पाने की जंग में जुटी हो!”

एक आदर उमड़ पड़ा है मेरी आंखों में! पूर्वी के लिए ये एक आदर है जो बेटी के मन में हमेशा हमेशा बना ही रहता है। कांटा चुभने के बाद फौरन मॉं ही तो याद आती है! सुख में न सही पर दुख में तो मॉं को भुलाया ही नहीं जा सकता! मॉं ही तो एक धरती पर ऐसा प्राणी है जो अपनी संतान के दुख बांटती है और अपने सुखों में साझा करती है। वरना तो ..

पूर्वी की यादें आते ही मेरी आंखें सजल हो आई हैं। मैंने पंजेडी के भेजे पैकेट को संभाल कर रख लिया है। अब एकांत में खोलूंगी इसे और अकेले में खाऊंगी। इस में मैं विक्रांत का भी साझा नहीं करूंगी।

“सीमा कैसी है?” मैंने डर कर प्रश्न पूछा है।

“मजे में गुजर रही है।” समीर बताने लगा है। “मोटी हो गई हैं।” उसने शिकायत की है। “सारी फिगर चौपट कर ली है।” वह हंस पड़ा है।

“आशीर्वाद नहीं दोगी दीदी?” समीर पूछ रहा है। “कोरा मंडी में असिस्टेंट डायरेक्टर बना दिया है दत्त साहब ने!” समीर ने हंसते हुए पूछा है।

मैं हूँ कि सुलग गई हूँ, जल उठी हूँ और चिनगारियों की तरह चहुं ओर भाग चली हूँ। अब मैं सब कुछ जला डालना चाहती हूँ और भस्म कर देना चाहती हूँ इस पाजी खुड़ैल को जिसने मेरे भोले भाई को ठग लिया है और अब न जाने उसे किस किस मर्ज के लिये इस्तेमाल करेगा। मैं तो जानती हूँ .. इस खुड़ैल को .. कि

“शाख है .. शोहरत है दत्त साहब की!” समीर बताने लगा है। “जमाना जानता है इन्हें! विक्रांत भाई के पास क्या है? क्या है इनकी औकात? जमाना कहीं का कहीं जा रहा है दीदी!” समीर ने मुझे आंखों में घुरा है। “प्रेम प्रीत .. शादी ब्याह और घर गृहस्थ हैज नो मीनिंग नाउ!” समीर कहता ही जा रहा है। “लिव ए लाइफ – किंग साइज़!” वह हंसा है। “इट्स अ स्लोगन ऑफ द डे!” वह बता रहा है। “यॉर आइडेंटिटी मैटर्स दीदी! यॉर लाइफ इज – नो लाइफ!” उसने जैसे मेरी जिंदगी का तोड़ कर दिया है।

“तुम्हारे ये दत्त साहब फेक हैं समीर और ये कोरा मंडी जरूर जरूर डूबेगी – तुम देख लेना!” मैंने भी बदला जैसा उतारा है। “तुम अभी भी बच्चे हो! दत्त को जितना मैं जानती हूँ – उतना शायद ..”

“कैसी बात करती हो दीदी!” गर्जा है समीर। “कोरा मंडी के रिव्यू देखें हैं?” उसने पूछा है। “लीजिए! मैं आपके लिए लेकर आया हूँ।” उसने मुझे कई अखबारों की कटिंग और दो तीन पत्रिकाएं पकड़ा दी हैं। “ग्यारह गाने हैं – फिल्म में!” समीर बता रहा है। “और ये गीत – हुर्रा हुर्रा हू हू! कुर्रा कुर्रा कू कू! मैं तेरा तू मेरी .. तू तू .. मैं मैं .. हूहू हो हो – कुर्रा कुर्रा कू कू – हुर्रा हुर्रा हू हू जानती हो किसने लिखा है?” समीर ने ठहरकर मुझे अपांग देखा है। “ये नदीम नोला का चमत्कार है! बज रहा है .. खूब चल रहा है।” समीर प्रसन्न है। “रस्पॉन्स देखकर दुनिया दंग है दीदी!” उसने सूचना दी है।

“आज का जमाना कंटेंट का है समीर! कहानी प्रमुख है। गीत तो लोग गाते ही रहते हैं!” मैंने भी हंसने का प्रयत्न किया है। “काल खंड की कहानी ..”

“आप अभी जानती नहीं!” समीर ने मेरी बात काटी है। “कोरा मंडी के तीन गानों में आप हैं! एक गजल है, एक गीत है और एक है ..” रुका है समीर। वह हंस रहा है। “सच दीदी! आप का पारदर्शी परिधानों में जो फैसीनेटिंग नृत्य है न .. आज तक के सारे रेकॉर्ड तोड़ देगा – मैं शर्त लगाता हूँ!”

खुड़ैल का चेहरा अचानक ही मेरी आंखों के सामने जलने बुझने लगा था। उसकी आंखों से टपकता वो सेक्सी अंदाज मुझे पगलाने लगा था।

“इंटरनेशनल संगीत सभा कह सकते हैं हम कोरा मंडी को!” समीर फिर से बताने लगा था। “अलग अलग देशों के, उनके समाजों के और उनकी भाषाओं के नाच और नजारे कोरा मंडी का एक नया प्रयोग माना जाएगा दीदी! दुनिया जो आज बारूद के ढेर पर बैठी है – उठकर ..”

“जहन्नुम में चली जाएगी!” मैंने रूठ कर कहा है। “और तुम .. और तुम ..!” मेरा गला रुंध गया है और क्रोध के वशीभूत हुई मैं बोल नहीं पा रही हूँ!

“मैं चलता हूँ दीदी!” समीर ने अब मुझे अकेला छोड़ना ही उचित समझा है।

“तनिक ठहर!” मैं भी संभली हूँ, उठी हूँ और पूर्वी के लिए वही साड़ी पकड़ लाई हूँ जो मैं पोपट लाल से ठग कर ले आई थी। “पूर्वी के लिए है!” मैंने हंसने का प्रयत्न किया है।

समीर के जाने के बाद मैं बहुत अकेली छूट गई थी।

समीर का कहा एक एक शब्द मेरे कानों में बजता रहा था। लगता रहा था कि मैं गलती पर थी। लगता रहा था कि मुझे रमेश दत्त को फोन करना चाहिये और उसे धन्यवाद देना चाहिये कि वो मुझे तीन गानों में फ़िलमाएगा ओर कोरा मंडी में मुझे ..

“काल खंड का क्या है?” कोई मुझे चुपके से बता रहा था। “खंड खंड हो कर ..”

मैंने अपने कान बंद कर लिए थे! सच बाबू .. मैं .. मैं तुम्हारे पैर पकड़ कर अपने प्यार की भीख मांगने लगी थी! मैं बहुत डर गई थी बाबू और मैंने तुम्हें समीर के आने तक की सूचना भी नहीं दी थी!

यहां तक कि मैंने पूर्वी की भेजी पंजेडी तक कहां खाई थी?

फिर तुम ही ने तो आकर मुझे उबारा था – बाबू! मुझे आज भी याद है जब तुम मुझे माधवी कांत – मेरी अगली मंजिल से मिलाने ले उड़े थे।

माधवी कांत से मिलने के बाद अपने हुए काया कल्प को तो मैं आज तक नहीं भूली हूँ बाबू!

काश बाबू! हमारा वो सपना टूटा न होता!

ओ बाबू! आई एम सो सॉरी ..

मेजर कृपाल वर्मा
Exit mobile version