समाधिस्थ हुए रमेश दत्त नेहा के चित्र को टकटकी लगा कर देख रहे हैं!
आज तो उनका मन विरह गाने को कर रहा है। मुद्दतें गुजरीं नेहा का दीदार हुए। कितना कितना मन होता है कभी कि सब छोड़ छाड़ कर नेहा के पास जा पहुंचें। पहुंच भी गये थे तो नेहा ने ..
लेकिन मन का क्या करें? मन है कि मानता नहीं! नेहा का सीधी पल्ले की शिफोन की साड़ी में खिंचा चित्र, उसके गेसुओं का विचित्र विन्यास और सादा सोलापुरी चप्पलें दहका रही हैं नेहा के रूप लावण्य को। किसने की ये खोज? इस बार अगर एक बार और उन्हें मौका मिला तो वो नेहा को पठानी सूट सलवार में पेश करेंगे और मन्नतें मांगेंगे कि ..
“धो दिया बॉलीवुड को!” सुंदर की आवाज फोन पर आई है। “अब तो हॉलीवुड ही चलेगा दत्त साहब!” वह कह रहा है। “हम लोगों के पास तो अब नकल मारने के सिवा कुछ और बचा ही नहीं है!”
“अरे नहीं भाई!” आहिस्ता से बोले हैं रमेश दत्त। “हम जैसा तो कोई पैदा ही नहीं हुआ।” उन्होंने उम्मीद जगाई है। “तनिक सा सब्र करो भाई जान! इस बार देखना मैं क्या चीज पेश करता हूँ!”
“सनातन से कुछ लाइये अबकी बार!” सुंदर कह रहा है। “सनातन की हवा चल पड़ी है दत्त साहब! देखते नहीं हर कोई जय श्री राम या फिर राधे कृष्ण के पीछे हो लिया है! आप भी जीने की राह जैसा ही कुछ पेश करें!”
अब रमेश दत्त गालियां देना चाहता है। वह चाहता है कि सुंदर लाल को असुंदर बता कर इसकी औकात गिना दें! कहें – “क्या धरा है तुम्हारे इस सनातन अनातन मैं? बैठकर भजन करते रहो! अरे खिबला खुदा ने ये जन्नत जीने के लिए तैयार की है। एक से एक सुघड़, सुंदर, सलोनी और कमसिन हमारे आस पास भिनभिनाती फिरती हैं! ये सब अल्लाह ने हमें इसलिए दिया है कि हम ऐश करें, भोगें इन्हें और ..”
“देश भक्ति पर बनाइये न कुछ?” सुंदर लाल ने सुझाव दिया है।
“जरूर जरूर!” कहकर रमेश दत्त ने फोन काट दिया है।
रमेश दत्त ने भी महसूसा है कि हॉलीवुड ने बॉलीवुड को नीचा दिखाने की कसम खा ली है। अब उन्होंने हमारे थीम अपना लिए हैं जबकि हमने उनकी सड़ान्ध को समेट लिया है। बचने का कोई उपाय तो करना ही होगा – वह सोच रहे हैं!
अचानक आज रमेश दत्त को विक्रांत याद आ जाता है। किस तरह महका देता है स्क्रीन को। मजाल है कि दर्शक हिल भी जाएं। कितनी पावर फुल अभिव्यक्ति है – विक्रांत की। और नेहा ..? दोनों ही उसके स्टार थे लेकिन उसने खो दिये। क्यों ..?
“मन की बहक में आकर तुम बर्बाद हुए कासिम! तुम समझ नहीं पाए हो – अपने आप को ..”
“नेहा मिलेगी तो ही मानूंगा!” कासिम बेग मानता ही नहीं है। “विक्रांत .. हां हां विक्रांत के मुंह का निवाला निकाल कर ही दम लूंगा!” एक गहरे सोच में पड़ जाता है कासिम। “लेकिन कैसे? कैसे निपटाये विक्रांत को?” यही जटिल प्रश्न है।
“सनातन के सामने कोई अनातन खड़ा कर दो कासिम!” रमेश दत्त का उपजाऊ अंतर बोला है। “कुछ ऐसा अनोखा, विचित्र, नया, ग्राह्य और मादक सामने लाओ जहां दर्शक थैंक यू कह कर लौटें और लौट लौट कर फिर पधारें और रस्सों के बांधे से भी न रुकें! बड़ी सामर्थ्य है रे इस सिनेमा की विधा में! इटस ए .. ए मार्वेलस वर्लड .. माय डियर!”
“सच कहते हैं आप!” रमेश दत्त ने हामी भरी है। “सोचता हूँ कुछ!” उसने वायदा किया है।
पोंटू का फोन आ रहा है। कहीं छुपा बैठा है। पुलिस पता ही नहीं कर पा रही है। लेकिन .. लेकिन ये पागल उसे फिर फोन क्यों कर रहा है? जानता तो है कि उसका फोन भी टेप हो रहा है। पकड़ा जाएगा साला ..
“कोरा मंडी से बोल रहा हूं गुरु जी!” पोंटू बता रहा है। “यहां पुलिस नहीं आ सकती। कोरा मंडी किसी भी देश के नीचे नहीं है। फोन भी नहीं पकड़ा जाएगा!” वह हंस रहा है। “एक बार आ कर मिल लो गुरु जी!” पोंटू का आग्रह है।
“न जाने कौन से जहन्नुम में बुला रहा है, साला!” रमेश दत्त ने गाली दी है पोंटू को।
दुबई के बुर्ज खलीफा में बैठा रमेश दत्त आज अपने आप को विश्व सिनेमा का चैम्पियन बताने जा रहा था!
“मेरी खोज – या कहें फिल्म कोरा मंडी दुनिया के सारे कीर्तिमान तोड़ेगी – ये मैं लिख कर दे सकता हूँ!” रमेश दत्त पूरे आत्म विश्वास के साथ कह रहे थे। गोष्ठी में बैठे साहबजादा सलीम, भाई और अमीर अमानुल्ला बड़े गौर से रमेश दत्त को सुन रहे थे। उन सब का भी मन था कि कोई ऐसी फिल्म बनाएं जो छा जाए पूरी कायनात पर! “पैसा तो बेशुमार लगेगा ..” कह कर रमेश दत्त ने अमीर अमानुल्ला को देखा था।
“पैसे की चिंता नहीं दत्त साहब!” अमीर अमानुल्ला ने विहंस कर कहा था। “आप फिल्म की स्टोरी तो सुनाइये!” उनका आग्रह था।
रमेश दत्त ने चंद पलों में अपने आप को कहानी कहने के लिए तैयार किया था। वह जानते थे कि कहानी में दम होना ही फिल्म की सफलता का मुकाम होता है। और कहानी कहना भी एक कला है – वह जानते थे।
“लड़की है – निशा!” रमेश दत्त कहानी बताने लगते हैं। “हिन्दू है और बला की खूब सूरत है। एक ऊंचे हिन्दू घराने में ब्याही जाती है। उसका पति – परम प्रतापी नवयुवक अपनी पत्नी निशा से सुहाग रात पर मिलता है तो पूछता है क्या वो युवक प्रताप तुम्हारा प्रेमी है? निशा सकते में आ जाती है। वह झूठ नहीं बोल पाती और जब नवयुवक कहता है कि उसने प्रताप का वध कर दिया है तो निशा बिलख उठती है। पतिता हो तुम निशा – नवयुवक कहता है! हम तुम्हें अस्वीकार करते हैं!” रमेश दत्त ने आंख उठा कर अपने आगंतुकों को देखा है।
“भाई वाह!” अमीर अमानुल्ला कह उठे हैं। “बात जमेगी!” उनका विचार है। “इन हिन्दुओं का ये पतिता और पवित्रता का खेल ही विचित्र है! खूब मजा आयेगा दत्त साहब!”
“अब आगे बोलिए!” साहबजादे ने मांग की है।
“अब कहां जाए निशा – यह प्रश्न है?” रमेश दत्त फिर से बताने लगे हैं।
“कोरा मंडी ..?” अमानुल्ला बोल पड़े हैं।
“बिलकुल ठीक कहा आपने!” रमेश दत्त चहके हैं। “कोरा मंडी ले जाकर दलाल निशा को बेच आते हैं! अब क्या करे निशा? ढल जाती है – कोरा मंडी के कल्चर में! और जब निशा गजल गाती है तो कोरा मंडी ही झूम उठती है! निशा इतनी चर्चित हो जाती है कि धनी मानी, ऊंचे नीचे और अरब पति खरब पति निशा के जादू में जड़े चले आते हैं!”
“और तब ..?” साहबजादे सलीम ने हंस कर पूछा है।
“और तब निशा से मिलते हैं इमाम आबिद मोहम्मद!”
“बहुत खूब!” अमीर अमानुल्ला साहबजादे सलीम की ओर देखते हैं। “इश्क में इस कदर पागल हो जाते हैं कि निशा से निकाह कर लेते हैं और उसका धर्म परिवर्तन कर उसे घर ले आते हैं! लेकिन लोग .. लोग उन्हें जब जीने नहीं देते तो निशा को लेकर लौट जाते हैं कोरा मंडी!”
“कोरा मंडी ..?” साहबजादे सलीम बोल पड़ते हैं।
“हां! कोरा मंडी एक ऐसी पॉश बस्ती का नाम होता है जहां किसी देश का भी दखल नहीं होता, पुलिस नहीं होती, कोई बंदिश नहीं होती, कोई धर्म जाति का पाखंड नहीं होता और सर्व सुख और सर्व आनंद मोहिया होते हैं! वहां हर मांग पूरी होती है। किसी की कोई कैफियत नहीं पूछी जाती। आने जाने पर कोई रोक टोक नहीं होती। अपने अपने आनंद उठाए जिसके साथ मन करे जीएं, रहें और सोए बैठें! जो चाहे खाएं और जब मन करे तब गाएं!”
“ये हुआ सनातन का तोड़!” अमीर अमानुल्ला उछल पड़े हैं। “लूट लेगी दुनिया को ये फिल्म .. हर कौम पर छा जाएगी – मैं शर्त लगा कर कह सकता हूँ कि!”
रमेश दत्त की बात बन जाती है। प्रसन्न मन नेहा को पुकारता है तो उसे टेलीग्राम भेज देते हैं – विरह में व्याकुल तुम्हारा रमेश!
“टेलीग्राम! मेरा टेलीग्राम! नेहा ने चौंक कर पूछा है। “खैरियत तो है?” नेहा ने सांस साध कर कहा है। “देखती हूँ!” नेहा ने टेलीग्राम को उलट पलट कर देखा है। “कहीं पूर्वी विश्वास तो नहीं चल बसी?” उसका मन कांप उठा है। “बाबा तो ..” उसका सुझाव है। “ओ हैल!” चौंकी है नेहा। “खुड़ैल ने दिया है।” वह बताती है। विरह में पागल तुम्हारा रमेश – वह जोरों से पढ़ती है! “माय फुट!” कह कर वह टेलीग्राम फाड़ देती है।
सच कहती हूँ बाबू उस दिन भी अपने गुण ज्ञान से आगे ऊपर उठा मेरा अकेला प्रेमी खुड़ैल मुझे अच्छा लगा था।
“यही तो मानव मन की कमजोरी है नेहा!” विक्रांत भी मान गया था।
“और इसी कमजोरी ने हमें बर्बाद किया बाबू!” टीस आई थी नेहा। “मैंने खुड़ैल का अच्छा बुरा सब खुलकर जिया। और अब महसूसती हूँ कि बुराई के साथ आई अच्छाई भी बुराई में बदल जाती है! और मैंने अपने संस्कारों को भूल तुम्हें ही डंस लिया बाबू!
रोती है नेहा ..
मेजर कृपाल वर्मा