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सॉरी बाबू भाग नब्बे

सॉरी बाबू

“मैं आप लोगों के लिए शिमला समझौते की एक नायाब सौगात लेकर लौटी हूँ!” श्रीमति इंदिरा गांधी ने पार्लियामेंट में उद्घोष किया था। “अब एशिया में लोग शांति से रहेंगे!” उन्होंने मुसकुराते हुए कहा था। “नो वॉर्स! नो कनफ्लिक्ट्स!” उनका ऐलान था। “भूल जाएं पुरानी दुश्मनी। भूल जाएं सारे गिले शिकवे और नए रिश्ते कायम करें।” एक नया शांति संदेश दिया था उन्होंने।

देश के अंदर खुशी की लहर दौड़ गई थी। लगा था – अब दुर्गा भवानी देश को ही नहीं सारे संसार को शांति का वरदान दे रही थीं।

“ये क्या है शिखा?” सशंक निगाहों से शिखा को घूरते हुए शिखर ने प्रश्न पूछा था।

शिखा का दिमाग शिमला समझौते की पूरी प्रक्रिया में जा अटका था। एक के बाद एक किरदार उसकी आंख के सामने आते जाते रहे थे और जैसे ही जुल्फिकार अली भुट्टो का चतुर चेहरा सामने आया था उसने चोर पकड़ लिया था।

“जुल्फिकार अली भुट्टो!” शिखा ने शिखर के प्रश्न का उत्तर दिया था। “इस आदमी का रचा खेल है।” शिखा बताने लगी थी। “पैंसठ की लड़ाई के पीछे यही था। कश्मीर लेना चाहता था तब। लेकिन अब भारत ले लेगा!” शिखा ने बेहिचक अपने दिमाग की बात उगली थी। “तीन घंटे तक इसके साथ इंदु की बातें हुई थीं। मैंने भी इसकी आंखों में समा गए हिंद के सपने को डोलते फिरते देख लिया था शिखर!”

“अब ..?” शिखर ने अगला प्रश्न भी पूछ लिया था।

“महंगाई!” शिखा तनिक उखड़ आई थी। “दस मिलियन बंग्लादेशी रिफ्यूजी खा उड़ा कर घर लौट गए हैं। पाकिस्तानी सैनिक भी महफूज हैं अपने घरों में! और भारत भूखा मर रहा है। ऊपर से अकाल पड़ा है। वर्षा हुई नहीं है!” ठहर कर शिखा ने शिखर की प्रतिक्रिया पढ़ी थी। “ऊपर से संजय बाबू की कार? भ्रष्टाचार का जीता जागता उदाहरण सीधा अब इंदु की नाक पर टोला मारेगा! हाहाहा! लैट्स स्टार्ट दि गेम एंड सेव अवर पूअर कंट्री।” शिखा ने ली शपथ को जैसे दोहरा दिया था।

उत्तर प्रदेश में पी ए सी में हुई बगावत ने देश की नींद खोल दी थी। लेकिन सेना ने इसे बेरहमी से कुचल दिया था। उसके बाद बाईस दिन तक चली रेलवे स्ट्राइक ने जब देश में त्राहि त्राहि मचा दी थी तो पुलिस ने सफलता पूर्वक हड़ताल तोड़ दी थी और जॉर्ज को मुंह की खानी पड़ी थी।

“हम विफल क्यों हो रहे हैं शिखा?” शिखर बौखलाया हुआ था। “दोनों चले दाव खाली गए! लेकिन क्यों?”

“संजय गांधी!” शिखा का सीधा उत्तर था। “लेकिन .. लेकिन अब शादी कर रहा है।” शिखा हंसी थी। “पावर सेंटर एक सफदरजंग में अब अकालियों की एंट्री भी हो जाएगी!” शिखा ने सीधे सीधे कहा था।

“हमें क्या फायदा होगा?”

“एक म्यान में दो तलवारें कैसे समाएंगी शिखर?” शिखा खूब हंसी थी। “अभी तो रंग आएगा!” उसका कहना था। “हिंदूओं को तो भगवान ही बचाते हैं!” वह फिर से हंसी थी।

बार बार किए प्रयास विफल हो रहे थे।

“नया और डायनेमिक लड़का है!” शिखर अपने आप को कोस रहा था। “अब क्या करें इस संजय गांधी का, शिखा?” उसने पूछा था।

“पुराने और अनुभवी नेताओं से भिड़ा देते हैं – इस नए लड़के को!” शिखा ने कुछ सोचते हुए कहा था। “अपने मुरारजी भाई खाली बैठे बैठे धूप सेंक रहे हैं और बिहार में नामी-गिरामी जय प्रकाश नारायण जी भूदान यज्ञ में अपने आप को बेकार में खर्च कर रहे हैं! क्यों नहीं इन्हें लड़ा देते?”

“गुड!” शिखर प्रसन्न हो गया था। “वॉट एन आईडिया शिखा!” वह जोरों से हंसा था। “फौरन ही मोर्चा खोल देते हैं! मैं मना लूंगा दोनों को! मेरी इन दोनों के साथ रैट-पैट है!”

देखते देखते बिहार और गुजरात का जनमानस इंदिरा गांधी की सरकार के सामने सीना ठोक कर आ खड़ा हुआ था। संसद में हाहाकार मचा था और एसेंब्लियों का राज काज रोक दिया गया था। जब 12 जून 1975 में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने इंदिरा गांधी के खिलाफ ऑडर किए थे और राज नारायण ने केस जीत लिया था तो देश में बाए-बेला उठ खड़ा हुआ था।

मुरारजी देसाई आमरण अनशन पर बैठे थे तो जय प्रकाश नारायण ने संपूर्ण क्रांति का ऐलान कर दिया था।

25 जून 1975 को तय हुआ था कि 29 जून 1975 से पूरे भारत में संपूर्ण क्रांति का बिगुल बजेगा और ..

लेकिन संजय गांधी ने 26 जून 1975 को ही एमरजैंसी घोषित कर दी थी और क्रांतिकारियों के सारे मंसूबों पर पानी फेर दिया था।

“गई भेंस पानी में!” शिखा रोने रोने को थी। “बनी बनाई दाल बिगाड़ दी इस छोकरे ने!” वह संजय गांधी को कोस रही थी। “इंदु को भी हाथ में ले लिया इसने तो!” टीसते हुए शिखा ने कहा था।

“हुआ क्या? यों एमरजैंसी लगा देना और सबको जेल में डाल देना – कुछ समझ में नहीं आया।” शिखर परेशान था। “तुम तो ..?”

“मैंने तो खुली आंखों देखा है सब!” शिखा ने निगाहें समेटते हुए कहा था। “घरघराती आवाज में गरजा था संजय – मां तुम किसी भी कीमत पर इस्तीफा नहीं दोगी – उसने ऐलान किया था। मैं देखता हूँ इन चांडालों को।” वह क्रोध से कांप रहा था। “अब आप घर बैठिए और देखिए कि मैं ..”

“अब क्या करेगा?” शिखर ने बात काटी थी।

“कुछ भी करेगा!” शिखा बताने लगी थी। “हो सकता है .. हो सकता है कि ..” शिखा कुछ कह न पा रही थी। उसे रह रह कर पुरानी चंद घटनाएं याद आ रही थीं। “हो सकता है शिखर कि गजवाए हिंद की गाज हम पर गिर जाए!” कठोर सत्य को उगल दिया था शिखा ने।

“क्यों ..? लेकिन कैसे ..?” बमक पड़ा था शिखर। “ये तुम क्या कह रही हो ..?”

“संजय की शादी यूनुस के घर संपन्न हुई थी, शिखर!” शिखा बताने लगी थी। “मुझे लगा था – संजय हिन्दू नहीं मुसलमान है। यूनुस का आचार-व्यवहार भी इस तरह का था मानो ..” शिखा रुकी थी। “संजय अब इंदु को सत्ता नहीं सोंपेगा और हो सकता है कि एमरजैंसी 35 सालों तक चले! और फिर अंत में हो सकता है कि हिन्दुओं को ..”

“जज सिन्हा का अता पता नहीं है।” शिखर भी बोल पड़ा था। “और जो फिल्म किस्सा कुर्सी का उसे खोज लिया और जला दिया। ये संजय और उसका ब्रिगेड कहर ढा रहा है। बेचारे बूढ़े बड़े नेता और जो नए नए नौजवान पकड़े हैं उन सब को ..” चुप हो गया था शिखर।

एक सन्नाटा घिर आया था और उस सन्नाटे के आर पार एमरजैंसी के तार पूरे देश के आर पार आ जा रहे थे। इंदिरा गांधी का 20 सूत्रीय कार्यक्रम चल रहा था तो संजय का पांच सूत्रीय कार्यक्रम उससे आगे चल रहा था। संजय गांधी के यंग टर्क्स ने समूची ब्यूरोक्रेसी, पुलिस ओर प्रशासन को हाथ में ले लिया था। मजाल थी जो देश में कोई चिड़िया भी चूं कर जाती!

“एक बार .. बस एक बार किसी तरह से चुनाव हो जाएं तो कैसा रहे शिखा?” हैरान परेशान शिखर को और कोई भी विकल्प नजर न आ रहा था। “कोशिश तो करो!” आग्रह था शिखर का।

शिखा ने कहीं दूर देखा था – बहुत दूर! उसे लगा था कि इंदु भी अब संजय को मना न पाएगी। कहीं उसे विवश लगी थी इंदु! संजय का भूत हर किसी के सर पर सवार था!

“लोग तो अब तुम्हारी पूजा करने लगे हैं, इंदु!” शिखा ने सही वक्त पाकर कहा था। “मंदिर भी बनने लगे हैं तुम्हारे नाम के!” सूचना दी थी शिखा ने।

“ये तू क्या कह रही है?” तनिक चौंकते हुए पूछा था इंदिरा गांधी ने।

“आज शाम को चलते हैं!” शिखा ने प्रस्ताव रक्खा था। “तुम्हें आरती दिखा कर लाती हूँ।” हंसी थी शिखा। “तब तो तुम मान जाओगी कि पूरा देश तुम्हें दुर्गा कह कर पूजता है।” शिखा ने बताया था।

ओर जब इंदिरा ने सचमुच ही मंदिर में अपने नाम की आरती सुनी थी तो वह दंग रह गई थी।

“जानती हो कौन है ये जिसने मंदिर बनवाया है?”

“नहीं तो!”

“याद करो – वो जो राहुल के जन्म दिन पर उसके लिए तीखड़ बनवा कर लाया था।” शिखा ने याद दिलाया था। “ये वही बदरी प्रसाद है!” शिखा ने सूचना दी थी। “और .. और भी कितने ही ऐसे बदरी प्रसाद हैं जिन्होंने ..” हंस गई थी शिखा। “अब एमरजैंसी खोल दो इंदु! अति सर्वत्र वर्जयेत!” शिखा ने सुझाया था। “चुनावों की घोषणा करा दो! तुम्हारी जीत होगी! और मैं तो कहती हूँ इंदु कि इससे अच्छा अवसर फिर न लौटेगा।” शिखा ने अंतिम तार जोड़ दिया था।

संजय के साथ गरमा-गरम बहस हुई थी जिसमें शिखा भी शामिल थी।

“मैं चुनावों की घोषणा करूंगी!” इंदिरा ने दृढ़ स्वर में कहा था। “तुम जानते नहीं कि इस देश की जनता ..” इंदु का गला भर आया था। “ज्यादा जादती भी ..” इंदिरा ने हिदायत दी थी संजय को।

और जब चुनावों में कांग्रेस की करारी हार हुई थी और मां बेटे दोनों ही चुनाव हार गए थे, तो इंदिरा गांधी ने शिखा को शकिया निगाहों से घूरा था। जेल जाने की नौबत आ गई थी। इकट्ठा हुआ पूरा विपक्ष नंगी तलवारें लेकर उनके सर कलम करने पर आमादा था। संजय के पीछे भी केस लगे थे और उसे भी जेल भेजने की तैयारियां थीं। इंदिरा गांधी की समझ में कुछ भी न आ रहा था।

“होने दो जो होता है!” संजय कह रहा था। “पर मैं तुम्हें जेल नहीं जाने दूंगा चाहे मेरी जान चली जाए!” संजय कह रहा था। “लेकिन .. लेकिन फॉर गॉड सेक मां अब आगे आप मेरा रास्ता मत काटना!” संजय ने विनती की थी। “सत्ता तो मैं ले ही लूंगा! लेकिन इस बार मैं ..”

न जाने कैसे हवा में ही सारे विकल्प संजय के पक्ष में होते ही चले गए थे।

मेजर कृपाल वर्मा
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