गुप्त रास्तों से रात के अंधेरे उजालों में सांस साधे गाड़ी चलाने के बाद आखिर पोंटू ने गुलिस्तां को खोज ही लिया था।
अंधेरी रात की नीरवता को बर्दाश्त करता पोंटू बेहद घबराया हुआ था। उसने अपनी भूली याददाश्त की तरह गुलिस्तां को पा तो लिया था लेकिन अब घंटी बजाने में उसके हाथ कांप रहे थे! कैसा मूड़ हो रमेश दत्त का – या कि उसे बुरा ही लग जाए – लेकिन .. लेकिन उसकी जान तो सांसत में फंसी थी!
सौ मुसीबतों की एक मुसीबत – उसे नेहा ही नजर आई थी!
“छोकरी क्या है?” पोंटू ने सांस संभाल कर स्वयं से कहा था। “तनिक छू लो तो चिंगारी की तरह चाट जाती है!” पोंटू तनिक सा हंसा था। मात्र नेहा के स्मरण से ही उसका डर भाग गया था। “किस कदर इस गुलिस्तां में नए प्राण फूंक देती थी नेहा?” पोंटू को याद आ रहा था। “बहुत दिन हुए अब तो ..!” वह टीसने लगा था।
पार्टियां ऑरगेनाइज करने में तो आज भी नेहा का जोड़ नहीं है!
गुलिस्तां का हर कमरा, हर कोना और यहां तक कि स्विमिंग पूल भी सुन्दर और सजा वजा आपसे बातें करने लगता था! डेकोरेशन भी नेहा लोगों के मन पसंद का करती थी! स्विमिंग पूल में रोशनी की पड़ती परछाइयों में हर कोई अपना भविष्य देख लेता था!
मुरादें जैसी बांटती थी नेहा! जो चाहो वही मिलता था और फिर जो संगीत मन को नाचने के लिए पुकारता तो अपने वश में ही न रहते हम! दीवानों की तरह .. मस्तानों की तरह .. नाचते कूदते, खाते गाते इस तरह आत्म विभोर हो जाते कि दीन दुनिया की सुध बुध ही भूल जाते!
और हॉं! नेहा के सजाए बजाए वो कोजी कॉरनर याद हैं मुझे! हैवन ऑन कॉल जैसे लगते थे! गरमाया शरीर जब पार्टनर के साथ सट कर सामीप्य का सुख लेता तो गजब हो जाता! फिर उंगलियों के स्पर्श और फिर चंचल नयनाभिराम और फिर गरम नरम चलती सांसें और हॉं कोमल पंखुरियों से होंठों के वो स्पर्श! मद मस्त हुए प्रेमी द्वय चंद्र लोक में होते!
और नेहा? हर पार्टी में हर बार नेहा का नया अवतार होता था! लेकिन .. लेकिन .. कासिम बेग .. माने कि रमेश दत्त ..
“ओ हो!” अचानक ही पोंटू का दिमाग मुड़ा था। उसे उंगलियों में पकड़ा नोटिस याद दिला रहा था कि उसने तो कासिम बेग से पूछना था कि अब वो करे तो क्या करे?
“घर्र ..!” घंटी बजा दी थी पोंटू ने!
बड़ी देर के बाद कासिम बेग गुलिस्तां से बाहर निकला था!
“त ..त .. तुम! पोंटू तुम?” गड़बड़ा गया था रमेश दत्त। रात के इस अवसान में यों पोंटू का आना किसी भी अशुभ संदेश से कम न था। जरूर कुछ अजब गजब घट गया था। वरना तो पोंटू ..। “खैरियत तो है?” धीमे से पूछा था रमेश दत्त ने।
पोंटू कई पलों तक गरम गाउन में लिपटे रमेश दत्त के पुष्ट शरीर को नापता तोलता रहा था। बहुत आकर्षक लगता था रमेश दत्त!
“इसीलिए तो मरती हैं इसपर छोकरियां!” पोंटू ने मन में कहा था। “शान से रहता है! पैसे को पानी की तरह बहाता है! हम जैसे उल्लू कमाते हैं और इस जैसे नवाबजादे ऐश करते हैं! फंसा दिया .. इस साले ने ..” कोसा था पोंटू ने रमेश दत्त को।
“खैरियत ही तो नहीं है!” पोंटू कठिनाई से कह पाया था। “नहीं है – खैरियत!” वह रोने रोने को था। “कयामत का पैगाम पहुँच गया है!” पोंटू ने बताया था।
“नोटिस ..?”
“हॉं! नोटिस! कल ही बुलाया है!” पोंटू ने रमेश दत्त को नोटिस थमा दिया था। “मैं म..म मैं डरा हुआ हूँ कि ..”
“अरे यार! मैं भी तो मिल कर आया हूँ!” रमेश दत्त ने दिलासा दिया था पोंटू को। “आओ अंदर आओ! नथिंग इज टू वरी!” उसने पोंटू की कमर थपथपाई थी!
गुलिस्तां एक नीम अंधेरे में शांत बैठा जैसे मीठी मीठी नींद का आनंद ले रहा था! शांत था सब कुछ। लेकिन सोफे पर बैठे पोंटू और रमेश दत्त गहरी चिंता में डूबे थे। “नीम हकीम खतरे जान!” रमेश दत्त ने पोंटू को देख कर स्वयं से कहा था। “कच्चा खिलाड़ी है!” उसने सोचा था। “ये मुकाबला न कर पाएगा .. पुनीत कौशिक और ..”
“मैं तो सब उगल दूंगा गुरु!” पोंटू बोल पड़ा था। “म..मैं तो पुलिस को देखते ही नर्वस हो जाता हूँ!” दो टूक बयान था पोंटू का।
“फिर कहां जाओगे?” रमेश दत्त ने पूछ लिया था।
“विदेश भाग जाऊं?” पोंटू का प्रस्ताव था।
“बुरे पड़ोगे! पकड़े जाओगे और फिर तो ऐसा केस खराब होगा जैसा कि ..”
“तो ..?” पोंटू अधीर हो उठा था।
“अस्पताल में जाकर भर्ती हो जाओ!” रमेश दत्त ने सुझाया था। “मैं डॉ नीरव को फोन कर दूंगा! पुलिस से भी बचा लेगा और कुछ ऐसा केस बना देगा जो तुम्हें आगे तक काम आयेगा!” तनिक मुसकुराया था रमेश दत्त। “आन पड़ी है मुश्किल तो ..”
“सब ताहिर की वजह से हुआ है!” बिगड़ा था पोंटू। “मैंने मना किया था कि गुरु इस साले गंवार को मूंह मत लगाओ! लेकिन आप ने ..”
“क्या बुरा किया था? केस तो इतना पुख्ता है कि पुलिस का बाप भी नहीं खोल सकता!”
“फिर खुला कैसे? ये देखो पूरे अखबार में कहानी छपी है। तुम्हारा नाम भी बीच में है!” पोंटू परेशान था। “ये साला ताहिर ..”
“अरे नहीं पोंटू! ताहिर नहीं केस इसके साले चचा ने खराब किया है। पैसे आते ही साले यतीम स्कोडा लग्जरी गाड़ी खरीद लाए! सारा घर लद कर करीम में खाना खाने पहुंचा! सोचो ..? पुलिस को शक होगा कि नहीं? बस बुला लिया थाने में। और इस साले ने सारी बीन्स बखेर दीं!” तनिक रुक कर रमेश दत्त ने पोंटू को देखा था। “फैक्टरी वगैरा सब पर ताला डाल दो! सब को बोलो लम्बे निकल जाएंगे! ओर मैं भी थोड़े दिन के लिए आजमगढ़ चला जाता हूँ!”
“आजमगढ़ नहीं – दिल्ली जाओ गुरु!” पोंटू ने कोसा था रमेश दत्त को। “अभी भी आपकी आंखें नहीं खुली हैं! दबाव दिल्ली से आ रहा है! अब ये तुम्हारे चट्टे बट्टे कुछ न कर पाएंगे! प्रेस तो पहले ही बैरी बना हुआ है! हर रोज – विक्रांत विक्रांत के गीत गाता चला जा रहा है! दिल्ली की कोई ढाल तलाशो गुरु! वरना तो ..”
रमेश दत्त की दिल्ली में तनी ढाल – मफत लाल ने लाल गुलाबों का झक्क गुलदस्ता नेहा के लिए भिजवाया था। नेहा जानती थी कि दिल्ली की शतरंज का वो खिलाड़ी था और पिटी गोट को बचा ले जाना उसका शौक था! काला कलूटा मूर्ख लगता मफत लाल बड़ा ही शातिर था! किसे कब उसी की चाल पर पीट दे – ये मफत लाल का बाएं हाथ का खेल था। पी एम तक पहुंच थी – मफत लाल की!
“जन्म दिन की शुभ कामनाएं नेहा जी!” कार्ड पर लिखा था। नेहा पढ़ कर दंग रह गई थी। उसे तो अब स्वयं भी अपना जन्म दिन याद न था! लेकिन ..
“लेकिन क्यों बाबू! तुम्हीं थे जो कभी भी मेरा जन्म दिन नहीं भूलते थे!” नेहा को याद आने लगा था। “तुम्हीं थे जो हमेशा मेरे साथ मेरा जन्म दिन मेरा होकर गुजारते थे! तुम थे भी मेरे .. बहुत बहुत मेरे .. मेरे मन प्राण से तुम मुझे रिझा लेते थे और फिर हम दोनों एकाकार हो कर मेरा जन्म दिन मनाते थे! और .. और तुम्हारी मुझसे एक गीत सुनने की फरमाइश? मैं कहां भूली हूँ बाबू!”
“वो वाला ही गाओ ना – पल्लू लटके – गोरी को पल्लू लटके! जरा ठाडो रह जा बालमा मेरो पल्लू .., तुम हंसते ही रहते थे – मुझे याद है बाबू!
“बाबू!” मैंने एक बार अपने जन्म दिन पर रूठ कर कहा था। “मैं .. मैं शादी के बाद ये गीत कभी नहीं गाऊंगी!”
“फिर कौन सा गाओगी?”
“पहले बताओ कि हमारी शादी कब होगी?”
“ये तो मॉं से पूछना पड़ेगा नेहा!”
“बहाना है! तुम ने मुझसे शादी करनी ही नहीं है!”
“शादी तो तुम्हीं से करूंगा नेहा! वरना तो मैं कुंवारा ही मर जाऊंगा!”
“शुभ शुभ बोलो बाबू!” मैंने तुम्हारे होंठों पर उंगली धर दी थी। मुझे बहुत डर लगा था। मैं तुम्हें किसी भी कीमत पर खोना न चाहती थी बाबू लेकिन .. देखो तो ..? ये कैसा अशुभ घटा है बाबू! तुम्हारी जान गई और मेरी जिंदगी गई!
सॉरी बाबू! माई मिस्टेक!
रोने लगती है नेहा!
मेजर कृपाल वर्मा