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सॉरी बाबू भाग इक्यासी

सॉरी बाबू

नाथूराम विनायक पापी सच बतला हत्यारे महान आत्मा राष्ट्रपिता गांधी गोली से मारे – पूरे हिन्दुस्तान के आर-पार गीत बज उठे थे।

प्रश्न ही प्रश्न थे। क्यों मारा गांधी को? गांधी ने क्या बिगाड़ा था इनका? गांधी ने तो सारे संसार के लिए सबक दिए थे। गांधी की अहिंसा, गांधी का दरिद्र नारायण, गांधी का अंत्योदय और गांधी का सत्याग्रह – सब की भलाई के लिए था। गांधी की सर्व धर्म सभाएं तो पूरे मानव समाज को एक सूत्र में बांधने का प्रयास था। क्या बुरा था अगर गांधी सब को प्रेम प्रीत के साथ रहने को कहता था? फिर क्यों मारा उस महाप्राण को, उस देव पुरुष को जिसने उम्र लगा दी आजादी के लिए .. और ..

“क्यों मारा हमने बापू को शिखर?” शिखा जारो-कतार हो कर रो रही थी। उसकी हिलकियां बंद न हो रही थीं। “बापू को देखते ही मुझे अपने दादाजी याद आ गये थे!” शिखा बताने लगी थी। “मैं तो .. मैं तो रोकने वाली थी भाई साहब को! मैंने कहा भी था – मत मारो इन्हें! लेकिन .. लेकिन धांय धांय धांय .. भाई साहब ने तीन गोलियां दाग दी थीं। हे राम कहते हुए बापू ..” फिर से रो पड़ी थी शिखा। “ये अच्छा नहीं किया हमने शिखर!” वह सुबकती जा रही थी। “हे राम का उनका करुण स्वर उनके कण कण के हिन्दू होने का सबूत नहीं है क्या?” शिखा पूछ रही थी। “फिर .. फिर हम हिन्दू ने ही अपने हिन्दू की ही हत्या की?”

“ये तो तय था!” शिखर बोला था। “तुम्हारे सामने ही तय हुआ था सब!” शिखर ने शिखा की आंखों में झांका था। “और गलत कुछ नहीं हुआ है शिखा!” शिखर ने संयत स्वर में कहा था। “तुमने पहली बार इस तरह की मौत देखी है! लेकिन शिखा जो पाकिस्तान में हिन्दुओं के साथ घटा है तुम अगर उसे आंखों से देख लेती तो .. तो ..”

“गांधी जी का क्या कसूर था?” शिखा ने पूछ लिया था।

“क्यों किया देश का बंटवारा?” शिखर ने पूछा था। “जब उनका वायदा था कि बंटवारा उनकी लाश के ऊपर से होगा – तो फिर देश बंटा क्यों? और फिर पाकिस्तान लेने के बाद भी मुसलमानों को यहां रोकना, उनकी रक्षा करना, उन्हें समान अधिकार देना और उन्हें गले से लगाना क्या ये अपराध नहीं है?”

“तो क्या हिन्दू मुसलमान भाई भाई की तरह एक साथ नहीं रह सकते?” शिखा ने पूछा था।

“दो ध्रुव कभी साथ साथ नहीं मिल सकते!” शिखर ने बताया था। “हम इनके भाई नहीं हैं – काफिर हैं! इनके धर्म ग्रंथ में लिखा है कि काफिर को कत्ल कर दो ओर इनके परिवार को ..” शिखर ने कहीं बहुत दूर देखा था। “जिस दिन भी इनका हाथ लगा शिखा ये हिन्दुओं को कत्ल करेंगे और हिन्दुस्तान को हथिया लेंगे! गांधी जी की अहिंसा कोई अस्त्र नहीं है। सर्व धर्म की सभा गांधी जी के लिए महत्व रखती है इनके लिए नहीं। ये अपने अल्लाह के लिए जिहाद करने को हमेशा तत्पर रहते हैं जबकि हम हिन्दू ..”

शिखा ने तनिक पलट कर आग्रह करते शिखर को देखा था।

“जब बंटवारा धर्म के नाम पर ही हुआ तो फिर इन्हें यहां क्यों रोका जा रहा है?” शिखर का प्रश्न था। “और तुम क्या सोचती हो कि ये यहां रह कर भाईचारा निभाएंगे? लीग का तो उद्देश्य ही एक है, शिखा – दारुल इस्लाम!”

“लेकिन शिखर ..”

“मैं भी जानता हूँ शिखा कि पूरा देश हमसे नाराज है। हम आज के हत्यारे हैं। हम देश वासियों के अपराधी हैं! लेकिन देख लेना आने वाला कल हमें देश भक्त कहेगा! कांग्रेस जो कर रही है वो तो असंभव है! सर्व धर्म, हिन्दू मुस्लिम एकता और ये धर्म निरपेक्ष राज्य सब खयाली पुलाव हैं! यथार्थ में तो हम सब घोर स्वार्थी और हिंसक हैं! हम सब लड़ेंगे – देख लेना! जब मुसलमानों को पाकिस्तान मिला तो हम हिन्दुओं को हिन्दू राष्ट्र भी मिलना चाहिये था?”

“गोडसे भाई साहब का क्या होगा शिखर?”

“फांसी चढ़ेगा! उसे कोई बचाने वाला नहीं है!”

“वो .. वो .. कोई गोरा था जिसने भाई साहब को पकड़ा था – गोली चलाने के बाद ओर फिर कुछ सैनिक आ पहुंचे थे जो कोई ..?”

“सब तय है शिखा!” शिखर ने तनिक मुसकुराते हुए कहा था। “भारत पर अमेरिका से लेकर ब्रिटेन और रूस सब की आंखें लगी हैं! हमें आपस में लड़ा कर ये फिर से देश को तोड़ने की तलाश में हैं! ये जानते हैं कि हिन्दुस्तान खड़ा नहीं हो पाएगा!”

“क्यों?”

“हम बंटे हुए हैं न! जात पात, प्रांत प्रदेश, भाषा भेद, धर्म भेद और हमारी गरीबी अमीरी सब ऐसी समस्याएं हैं जो हमें एक नहीं होने देती शिखा!”

“फिर कैसे संभव होगा शिखर?”

“राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से उम्मीद है कि मात्र भूमि की रक्षा के लिए स्वयं सेवक तैयार करेंगे जो निस्वार्थ समाज सेवा के लिए देश में राष्ट्रीय भाईचारे की प्रथा डालेंगे और हिन्दू राष्ट्र की स्थापना करेंगे!” शिखर बता रहा था।

मुसलमानों के किए अत्याचारों, अपराधों, नरसंहारों और देश को बांटने के अपराध को भूल अब पूरा देश विदेश और हर प्राणी मात्र राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ, राम राज्य पार्टी और हिन्दू महासभा के प्रमुख नेताओं, कार्य-करताओं, प्रबंधकों और प्रचारकों को कोसने काटने लगे थे। महाप्राण गांधी जी की हत्या करने का अपराध अक्षम्य था। गोडसे को फांसी पर लटकाने का आदेश हवा पर झूल रहा था। बाकी हिन्दू और हिन्दुस्तानियों के मुंह भी काले किए जा रहे थे। उन्हें संकुचित विचार धारा से ग्रसित बता कर एक टुच्चेपन का आरोप उन पर मढ़ दिया गया था। उनकी हर संस्था पर प्रतिबंध लगाया जा रहा था और उनके हर नेता, प्रनेता और प्रचारक को हिरासत में लिया जा रहा था।

मुस्लिम लीग घी के चिराग रोशन कर अपने अगले मनसूबों के प्रति आश्वस्त हो गये थे।

गांधी जी के मरने के बाद नेहरू जी मुसलमानों के प्रति और भी उदार मना दिखे थे! मुसलमानों को हर तरह से प्रसन्न करने के प्रयास अचानक ही कार्यान्वित होने लगे थे। हिन्दुओं की जबान बंद थी। सांप्रदायिकता को देश और समाज के लिए अभिशाप बताया जा रहा था।

“पागलपन है ये हिन्दू राष्ट्र!” सरदार पटेल ने भी अंत में कह दिया था। “हम धर्म निरपेक्ष राज्य हैं! हमारा विधान हम सब के लिए बना है। अकेला हिन्दू कहां ले जाएगा देश को?” उन्होंने खुले शब्दों में बयान दिया था।

“मुसलमान हमारे शत्रु नहीं हैं!” भगीरथ जी ने घोषणा की थी। “वह सदियों से हमारे साथ रह सह रहे हैं! हम सब साथ साथ रहते आए हैं! हिन्दू मुसलमानों ने तो मिलकर शासन भी किया था।” उनका खयाल था जो पूरे मुल्क में सुनाया गया था।

विदेशों में भी गांधी जी के निधन पर शोक सभाएं जुड़ी थीं और भारत में घटी इस सांप्रदायिक घटना को चिंता का विषय माना गया था।

गांधी दर्शन के लिए पूरा देश उमड़ आया था। दिल्ली में पैर रखने के लिए जगह तक न बची थी। गांधी धाम की स्थापना हुई थी और यमुना के किनारे गांधी जी के स्मारक बनाने की घोषणा कर दी गई थी। पूरे सम्मान के साथ देश ने गांधी जी को श्रद्धांजलि दी थी और उनके स्वर्गारोहण पर उनके गीत रघुपति राघव राजा राम का गुण गान हुआ था।

एक बार फिर से पूरा भारतवर्ष गांधीमय हो उठा था।

“नारायण आप्टे, शंकर और मदन भैया जेल चले गए!” शिखर को सूचना मिली थी। “पुलिस अब तुम दोनों की तलाश में है। शिखा का नाम आ रहा है।”

शिखा और शिखर ने एक दूसरे को घूरा था। जहां एक अफसोस उनके चेहरों पर लौटा था वहीं एक खुशी भी थी। दोनों देश भक्तों को संतोष था कि अब भारत सुरक्षित था। गांधी जी जैसे महान संत को बहका लेना लीग के घुटे गुरु घंटालों के लिए बहुत आसान काम था। लेकिन अब उन्हें राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने सीधे मुकाबले के लिए ललकार लिया था। जंग तो अभी जुड़नी थी – वह दोनों हंस रहे थे।

“कहीं भी भाग जाओ!” उन दोनों को आदेश मिला था।

दोनों ने फिर से एक दूसरे को निरखा परखा था।

“जुदा तो होंगे नहीं!” शिखा ने अपना निर्णय कह सुनाया था।

“और देश छोड़कर भी नहीं जाएंगे!” शिखर की अपनी राय थी।

अब दोनों चुप थे। कहां जाते कुछ निर्णय न हो पा रहा था। पुलिस तो थी ही पुलिस! कहीं भी पहुंच जाना उनके हाथ में था। और आज तो पूरा देश संघ का दुश्मन था। गांधी जी की हत्या का इल्जाम उनपर था। और ..

“मौसी के यहां चल पड़ते हैं!” शिखा ने तजवीज बताई थी। “गोहाटी में हैं! वहां से आगे भी छुपने-छुपाने में आसानी रहेगी शिखर!” शिखा तनिक प्रसन्न थी।

“लेकिन मैं ..? मेरा मतलब कि मौसी तो पूछेंगी जरूर कि मैं हूँ कौन? और जब उन्हें पता चलेगा तो ..?”

“मैंने मौसी को सब बता रक्खा है।” शिखा ने शर्माते हुए कहा था।

“क्या ..?” शिखर ने शरारती स्वर में पूछा था।

“यही कि .. यही कि .. तुम मेरे ..”

“क्या हो?” शिखर पूछ रहा था। “कहो न भाई!” वह हंस रहा था। “सच सच बताना शिखा – एक दम सच कि मैं तुम्हारा ..?”

“मनमीत हो!” शिखा ने आंखें बंद करते हुए कहा था।

दोनों खिलखिला कर हंस पड़े थे।

मेजर कृपाल वर्मा
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