“पोपट लाल – हाय हाय” के नारे पोपट लाल की कोठी के सामने लग रहे थे। “पोपट लाल – मुल्लों का दलाल!” लोग जोर जोर से गा रहे थे। “विक्रांत का हत्यारा पोपट लाल!” सरे आम लोग पोपट लाल को विक्रांत की मौत का जिम्मेदार बता रहे थे।
हजारों की भीड़ पोपट लाल के बंगले को घेरे खड़ी थी। लोगों के हाथों में बैनर लगे थे। कुछ लोग ईंट पत्थर लिए हमले के लिए तैयार थे। कुछ कह रहे थे कि अगर पोपट लाल बंगले से बाहर नहीं आता तो बंगले में आग लगा दो।
बंगले के गहरे कोने में छुपा पोपट लाल हर पांच मिनट के बाद पुलिस को फोन कर रहा था। लेकिन पुलिस थी कि आकर ही न दे रही थी। फिर पुलिस ने फोन उठाना ही बंद कर दिया था। पोपट लाल के पसीने छूट गए थे। अब रह रह कर उसे सुधीर का चेहरा याद आ रहा था।
“आप को सेठ जी ने अंदर बुलाया है, सुधीर बाबू!” पोपट लाल के आदमी ने विनम्र स्वर में सुधीर से निवेदन किया था।
“ताकि मुझे भी ठिकाने लगा दे!” सुधीर तड़का था। “बे जाकर बता दे साले को बाहर न निकला तो ..” सुधीर ने झिड़कते हुए उस आदमी को संदेश दिया था।
पूरी बंबई में अब दो कहानियां चल पड़ी थीं। एक कहानी में विक्रांत की हत्या 27 तारीख की रात को पोपट लाल के बंगले पर हुई पार्टी के दौरान हुई थी जिसमें रमेश दत्त को जुहारी के साथ देखा गया था। तो दूसरी कहानी पुलिस की थी जिस में 30 तारीख की रात को विक्रांत ने जहर खाकर आत्महत्या की थी।
पुलिस ने अपनी कहानी में सारे गवाह सबूत लगाए थे। लाश का पोस्टमार्टम जो प्रसिद्ध डॉ. मोहन राज ने किया था। सुंदरी अस्पताल में विक्रांत को ब्रॉट डेड लाया गया था और अस्पताल से पुलिस को सूचना मिली थी। पुलिस ने विक्रांत के सारे नौकर चाकरों की गवाही दर्ज की थी। उन सभी का कहना था कि विक्रांत पागल हो गया था और ड्रग्स लेता था। शराब पी पी कर नेहा को गालियां देता था और ..
पुलिस ने बॉम्बे मेटरनिटी होम लिमिटिड के उस पत्र की प्रतिलिपि भी लगाई थी जिसमें नेहा का एबॉरशन होना बताया गया था। उन दोनों के बीच में दरार पड़ने का सबब यही बताया गया था।
लेकिन जो आग सड़कों पर धधक रही थी उसका तो कोई तोड़ ही नहीं था। पुलिस और प्रशासन दोनों चुप थे।
“मैं .. मैं आप की गाय हूँ सुधीर बाबू!” कोठी से बाहर निकल कर पोपट लाल सुधीर के पैरों में आ लेटा था। “मैं .. मैं बेकसूर हूँ!” वह रोते रोते कह रहा था। “आए थे पार्टी में विक्रांत बाबू – मैं झूठ नहीं बोलूंगा!” वह बताने लग रहा था। “लेकिन पार्टी के बाद उस छोकरी श्रेया को लेकर चले गए थे। फिर मुझे पता नहीं ..”
“तू सब जानता है, मक्कार!” किसी ने भीड़ में से कहा था।
“ये साला जयचंद है! ये मुल्लों से मिला हुआ है। इसके तार भी दुबई से जुड़े हुए हैं।” दूसरा व्यक्ति बता रहा था। “इन्होंने मिल कर मारा है – विक्रांत को!” उसने साफ साफ कहा था।
सुधीर कई पलों तक पोपट लाल के प्रपंच को पढ़ता रहा था।
“तूने कहा था न – इन्हें मत लाना पार्टी में?” सुधीर ने पोपट लाल को सीधा प्रश्न पूछा था। “क्यों? मैंने तेरा क्या बिगाड़ा था जो तू मुझे पार्टी में आने से रोक रहा था?”
“अरे ये .. माने के .. वो! मेरा मतलब था कि सुधीर बाबू कि .. कि ..”
“अकेला कर के मारना था विक्रांत को?”
“अरे नहीं! मैं क्यों मारता उन्हें? मैं तो उनके साथ ..”
“और मुल्लों के साथ ..?” सुधीर की आवाज सख्त थी। “मैं तुझे छोड़ने वाला नहीं हूँ पोपट लाल!”
पुलिस मौके पर पहुंच गई थी तो पोपट लाल की जान में जान लौट आई थी। सुधीर ने पोपट लाल के बयान अपने सामने दर्ज कराए थे और लोगों को लौटने के लिए कहा था।
शाम का शो सभी सिनेमा हॉल में कैंसिल हो गया था।
लोगों ने धरना दे दिया था। उनकी मांग थी कि जब तक विक्रांत की फिल्म काल खंड से बैन नहीं उठेगा सारे सिनेमा घर बंद रहेंगे।
पुलिस ने एड़ी चोटी तक का दम लगा दिया था लेकिन जनता का जोर बढ़ता ही चला गया था।
दिल्ली में भी हलचल मची थी। विक्रांत की मौत ने सारे देश को दहला दिया था।
इसे हिन्दू मुसलमान का रंग नहीं देना चाहिए – प्रशासन कोशिश में लगा था।
“रंगीला और कोरा मंडी – दोनों फिल्में ईद पर रिलीज होनी हैं, नीरज बाबू!” रमेश दत्त बड़े ही खुश खुश मूड में थे। “पैसे की चिंता ही छोड़ो! अब मुझे काम चाहिए – काम!” वह बता रहे थे। “ओर समीर तुम अपने डायरेक्टर को ढीला मत छोड़ना! मैं तो अभी कोरा मंडी की शूटिंग पर निकलूंगा लेकिन तुमने रंगीला के कम से कम सात सीक्वेंस शूट कराने हैं!”
“आप फिकर न करें सर!” समीर खुश था। “मैं तो दी दी के साथ मिल कर ..”
“वो तो नहीं होगा समीर!” दत्त साहब ने बात काटी थी। “नेहा के बिना कोरा मंडी का काम न चलेगा! सारा दारोमदार अब नेहा पर ही तो है!”
मात्र नेहा के नाम ने ही एक हलचल भर दी थी – गुलिस्तां में!
लेकिन दिमाग के एक बेहद गहरे प्रकोष्ठ ने रमेश दत्त का नया ताना-बाना तैयार हो रहा था। मौलवी साहब से आशीर्वाद मिलने के बाद तो लगता था जैसे गजवा-ए-हिंद कुल दो गज की दूरी पर आ बैठा था। आजमगढ़ और लखनऊ में लोग काम से लग पड़े थे। बंबई में भी पोंटू ने कमांड संभाल ली थी। अचानक ही उन्हें आज जोहारी की याद हो आई थी।
“जोहारी के बिना तो गुलिस्तां सूना सूना लगता है, दत्त साहब!” मुनीर ने रमेश दत्त का मन टटोला था। “आप ने क्यों जाने दिया उसे?”
“भाई का हुक्म था भाई!” रमेश दत्त ने बड़े ही सहज भाव में कहा था।
रमेश दत्त जब नेहा के घर पहुंचा था तो पूर्वी और बाबा के चेहरे खिल उठे थे। उन्हें रमेश दत्त हमेशा ही अपना पालनहार लगता था। समीर भी आजकल बहुत खुश था और अपनी फिल्म रंगीला की शूटिंग में व्यस्त था।
“कब तक बीमार बनी रहोगी नेहा?” रमेश दत्त ने ताना मारा था। “लड़ भिड़ कर पठान से डेटें ली हैं!” उसने हंसते हुए कहा था। “वह भी तुम्हारा बहुत रिगार्ड करता है!” रमेश दत्त बताने लगा था। “कह रहा था – नेहा जैसा अभिनय और संवाद डिलीवरी – बस नेहा ही कर सकती है।”
नेहा चुप थी। नेहा का मन नहीं था कि वो रमेश दत्त से बातें करे!
“बाबू जी! आप ही समझाइये नेहा को!” रमेश दत्त ने बाबा से आग्रह किया था। “घोड़ा घास न खाएगा तो भूखा मर जाएगा!” रमेश दत्त ने यथार्थ को बाबा के सामने रक्खा था। “अरे भाई! हम लोग फिल्म न बनाएंगे तो और क्या बनाएंगे?”
“चली जाएगी!” बाबा ने तनिक हंसते हुए कहा था। “अभी घाव कच्चा है, दत्त साहब!” बाबा बता रहे थे। “कहां भूल पाएगी विक्रांत को!” बाबा उदास हो आए थे। “पन मैं समझा दूंगा!” उन्होंने जिम्मा ले लिया था।
“सुधीर भागा फिर रहा है! कहता है कि ..” पूर्वी ने आज पहली बार प्रश्न पूछा था।
रमेश दत्त ने बड़े गौर से पूर्वी के उत्तेजित चेहरे को पढ़ा था। बंबई में जो बाएबेला मचा रक्खा था सुधीर ने वह घर घर में पहुंच गया था। और पूर्वी का किया ये प्रश्न इस बात का सबूत था। हिन्दू जाग रहा था – मौलाना साहब की दी चेतावनी रमेश दत्त को याद हो आई थी।
“सुधीर इस घटना को हिन्दू मुसलमान का रंग देना चाहता है!” रमेश दत्त ने पूर्वी को बहकाने का प्रयत्न किया था। “लेकिन आप खुद सोचिए – क्या हम हिन्दू मुसलमान जुदा जुदा हैं?”
“लेकिन लोग तो कह रहे हैं कि हम हिन्दू तो अपने देश को भी अपना नहीं कह सकते! मुसलमानों ने दो देश ले लिए और अब इसे भी ले लेंगे!”
“ये अफवाहें हैं!” हंसा था रमेश दत्त। “आप इन बातों पर ध्यान न दें!” उसने पूर्वी से आग्रह किया था। “नेहा को काम पर भेजें। हमें कोरा मंडी बनानी है। करोड़ों में पैसा फंसा है।” रमेश दत्त का विनम्र निवेदन था।
“सुना है काल खंड का बैन हट गया है?” अचानक नेहा पूछ बैठी थी।
“बकवास है! गलत है!” रमेश दत्त तनिक नाराज हुआ था। “तुम भी नेहा ..” उसने प्रश्न किया था। “भूल जाओ काल खंड को और कोरा मंडी पूरी करते हैं। मैं गारंटी देता हूँ नेहा कि तुम ..”
विक्रांत की मौत को लेकर एक बहुत बड़ा तूफान उठ खड़ा हुआ था।
कोर्ट के सामने विक्रांत की मौत की दो कहानियां आई थीं तो कोर्ट ने इस केस को फिर से तहकीकात के लिए भेज दिया था।
“पैसा है तो खरीद लो भाई!” लोग सड़कों पर नारे जैसे लगा रहे थे। “भारत बिक रहा है।”
बंबई दिल्ली और दुबई मैं बैठे सारे भारत विरोधी तत्व सतर्क हो गए थे। विक्रांत की मौत अब एक राजनीतिक मुद्दा बनता जा रहा था।
सुधीर ने अप्रत्याशित कामयाबी हासिल की थी। रात दिन की दौड़ भाग का नतीजा बढ़िया निकला था। काल खंड से बैन हटेगा ये निश्चित हो गया था। विक्रांत की मौत को आत्महत्या नहीं मडर सिद्ध करने में भी बहुत बड़ी कामयाबी मिली थी। उसे उम्मीद थी कि पोपट लाल टूट जाएगा और सारे राज उगल देगा।
खुश खुश मूड में आज सुधीर पहली बार नेहा से मिलने जा रहा था। उसके पास दो खुशखबरियों के अलावा भी नेहा से लंदन से मिलने आई कैली भी किसी सुखद आश्चर्य से कम न थी।
“दीदी तो गई शूटिंग पर!” समीर ने सुधीर को घर के दरवाजे पर ही बता दिया था।
और सुधीर वहीं – घर के दरवाजे पर घुटने टिका कर बैठ गया था।
मेजर कृपाल वर्मा