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सॉरी बाबू भाग एक सौ ग्यारह

सॉरी बाबू

एक भूरे रंग की कार को ऑफिस की ओर आते विक्रांत बड़े गौर से देख रहा था।

मात्र इस खयाल से कि शायद नेहा आ रही थी विक्रांत का मन बल्लियों उछला था। वह भूल ही गया था कि उसके और नेहा के बीच कोई मनमुटाव भी था। उसके मन प्राण ने तो प्रेम के अथाह सिंधु में छलांग लगा दी थी ओर नेहा को अंजुरी में भर कर ऊपर उठा लिया था। हंसी खुशी के मुक्त फव्वारे बह निकले थे। मुसकुराती नेहा ..

“कहां थीं ..?” विक्रांत पूछ रहा था। “मैं तो .. मैं तो इतना अधीर हो गया था नेहा कि ..” आज फिर से विक्रांत ने मौत की जगह जिंदगी को चुना था। “मैं तो जीना ही नहीं चाहता था।”

कार ऑफिस के सामने आ कर रुकी थी। विक्रांत का मन हुआ था कि दौड़ और नेहा की कार का दरवाजा खोल कर उसका स्वागत करे। लेकिन कार का दरवाजा खुला था और पोपट लाल बाहर आया था। उसके हाथ में काले रंग का ब्रीफकेस था। ड्राइवर ने कार को आगे बढ़ा दिया था और पार्किंग में लगा रहा था।

“ओह ब्लाडी शिट!” विक्रांत ने प्रत्यक्ष में कहा था। उसके मुंह का जायका ही बदल गया था। “साला चोर चला आ रहा है।” उसने जैसे स्वयं को खबरदार किया था।

विक्रांत अपनी कुर्सी से न हिला था न डुला था। पोपट लाल ही था जो उसके सामने आ कर खड़ा ही रहा था। पोपट लाल का गोल-मटोल चेहरा चमक रहा था। आंखों पर लगे काले चश्मे उसके मनोभाव छुपा रहे थे। हां! उसके होंठों पर जरूर एक वैजयंती मुसकान खेल रही थी जो विक्रांत को उसकी तमाम विफलताओं पर लानत भेज रही थी।

“क्या सेठ!” पोपट लाल अपने मजे स्टाइल में बोला था। “इत्ती जल्दी हार गए?” उसने अपने छोटे छोटे हाथ नचाए थे। “इत्ते महान कलाकार हो!” पोपट लाल ने विक्रांत की जैसे आरती उतारी थी। “इत्ते महान कि ..”

“बैठो बैठो!” विक्रांत को चेत लौटा था तो उसने पोपट लाल से बैठने का आग्रह किया था।

पोपट लाल ने अपने विशालकाय शरीर को बड़ी सावधानी के साथ कुर्सी में जमाया था। फिर उसने आंखों से काले चश्मे हटाए थे। रुमाल से मुंह को रगड़ कर साफ किया था। आंखों को भी ताजा किया था और फिर विक्रांत को भरपूर निगाहों से देखा था।

“मुझे सब पता है साईं कि इस कमीने कासिम बेग ने क्या क्या गुल खिलाए हैं।” पोपट लाल सीधे बात के मुद्दे पर आ गया था। “मैं जानता हूँ कि ये कसाई भोली भाली गायों के गले काटता है। उन्हें प्रेम जाल में फसा कर कहीं का नहीं छोड़ता है।” पोपट लाल की आंखों में अफसोस था। “दाना फेंकता है ओर जिसने भी खाया कि ..” पलट कर पोपट लाल ने फिर से विक्रांत को पढ़ा था।

विक्रांत तटस्थ था। उसे पोपट लाल का किया प्रलाप समझ में आ रहा था। लेकिन इतना तो उसे निश्चित रूप से पता था कि बिना किसी निजी स्वार्थ के पोपट लाल का यों उस तक चलकर आना संभव नहीं था।

सुधीर आ गया था। सुधीर को आया देख पोपट लाल संभल गया था।

“क्या चोर उचक्कों की टीम इकट्ठी की है?” पोपट लाल ने मुंह ऐंठ कर उलाहना दिया था विक्रांत को। “फिल्म प्रोड्यूसरों की यूनिट देखेंगे तो एक से बड़ा एक कलाकार, संगीतकार और कहानी कार नजर आएगा।” वह कहता ही जा रहा था।

“फिल्में नहीं जैसे रामलीला हो ..”

“काल खंड राम लीला लगती है क्या?” विक्रांत ने कठोर स्वर में पूछा था।

पोपट लाल संभल गया था। उसे एहसास हुआ था कि जिस विक्रांत की खोज में वह निकला था वह अभी तक नहीं लौटा था। विक्रांत अभी भी पूरी तरह से टूटा नहीं था।

“मेरा मतलब कुछ और था साईं पोपट लाल ने हाथ जोड़ दिए थे। “सुधीर बाबू! तनिक सा गंगा जल तो पिला दो।” पोपट लाल ने अपनी बात को हल्का करना चाहा था। “और भले आदमी कुछ चाय-चबेना ..” पोपट लाल बेशर्मी से हंसा था।

“कित्ता दे दूं काल खंड का?” पोपट लाल ने ब्रीफकेस खोला था और चैक बुक निकाली थी।

“बैन है!” विक्रांत ने तनिक मुसकुराकर कहा था।

“मुझे पता है!” पोपट लाल का उत्तर था। “आप के लिए शायद अब ये कूड़ा है लेकिन मेरे लिए काल खंड गोल्ड माइन है।” पोपट लाल कह रहा था। “ये साला कासिम बेग सोच रहा है कि काल खंड को बैन करा कर ये जंग जीत गया है।” पोपट लाल गरजने लगा था। “मैं इसका खेल जानता हूँ विक्रांत बाबू!” पोपट लाल मेज के ऊपर झुक आया था। “इस साले को मैं भंगी बना कर बंबई से भेजूंगा – आप देख लेना!”

विक्रांत का मन उजाड़ बियाबानों से लौट आया था।

“कासिम बेग ने ही तुम्हें बर्बाद किया है। और अब वह मानता है कि विक्रांत बंबई छोड़ कर भागेगा!” विक्रांत का अंतःकरण आज बोल उठा था। “और अगर कासिम बेग ..”

“नेहा जी को तो मैं मना लूंगा!” पोपट लाल हंसा था। “हमारा तो ये रोज का काम है साईं!” अब उसने सुधीर की ओर देखा था। “खूब पब्लिसिटी हो गई है आप दोनों की!” पोपट लाल एक आनंद में डूबा था। “कलाकारों की उम्र बढ़ती है।” वह बता रहा था। “और जब लोग जानेंगे कि ..”

अचानक ही विक्रांत को अपनी नींद खुल गई लगी थी।

“काल खंड जैसी कल्ट फिल्म बनाने में कुछ नहीं धरा है साईं।” पोपट लाल ने हंस कर कहा था। “कोई ऑड फिल्म कमा जाए तो बहुत समझो।” उसकी अपनी राय थी। “फिल्म का मतलब जो मैं समझता हूं वो है – ड्रीम्स अनलिमिटेड।” पोपट लाल ने अपने हाथ हवा में फेंके थे। “माने कि अनेकानेक बेमोल वो सपने बखेरे जाएं जिनमें दर्शक कई जन्मो तक जीता रहे।” पोपट लाल ने अब जाग्रत विक्रांत को पकड़ लिया था। “और ये सपने कौन जगा सकता है, कैसे जगा सकता है ओर ..?” प्रश्न थे पोपट लाल के।

विक्रांत के दिमाग में पूरे काल खंड बनाने की प्रक्रिया उठ बैठी थी।

“बेकार है वो सब दौड़ भाग और यूं यथार्थ को पर्दे पर लाना और फिर सत्य असत्य का स्वांग रचना!” पोपट लाल बताए जा रहा था। “पर्दे पर जब एक नया नवेला हसीन और रोमहर्षक जोड़ा उदय होता है तो संसार में सूरज उदय होते नजर आता है!” हंसा था पोपट लाल। “और फिर जब ये जोड़ा चोंच में चोंच डालकर प्रेम संवाद बोलता है तो दर्शक अपनी सुधबुध भूल जाता है। तब न कुछ सत्य होता है ओर न कुछ असत्य होता है। सक कुछ आनंद दायक होता है। हमारी आत्मा बाहर आ कर उस नए नवेले जोड़े से जुड़ जाते हैं .. और ..”

“मतलब क्या हुआ?” विक्रांत ने कुछ सोचते हुए पूछा था।

“मतलब ये हुआ साईं कि आप मेरा मतलब कि आप – मेरा मतलब कि विक्रांत एक रोमांटिक हीरो एक रोमांटिक हीरोइन के साथ पर्दे पर आए और ऐसा धमाल मचाए कि लोग आपा भूल जाएं!” ठहर कर पोपट लाल ने विक्रांत की प्रतिक्रिया पढ़ी थी। “हीरो का एक ही काम और हीरोइन का भी वही काम! ओर कोई काम नहीं है उनका! बाकी सब टीम का काम होता है। आपका काम यहीं खत्म और छुट्टी पर चले जाएं। कहीं भी घूमें फिरें, ऐशो-आराम में डूब डूब कर नहाएं और फिर के लिए तरोताजा हो कर लौट आएं। हर बार दर्शकों को नया संवाद, नया रोमांस और नया स्टाइल, नए कपड़े ओर वो सब दें जिसकी कि लोग नकल करते हैं!”

चुप हो गया था पोपट लाल। लेकिन विक्रांत का दिमाग अब चल पड़ा था।

“याद करें – देव आनंद!” हंस पड़ा था पोपट लाल। “अरे यार! हमने तो देखा है वो जमाना जब देव आनंद का जलवा ..”

“कहना क्या चाहते हो?”

“यही कि विक्रांत बाबू आज का जलवा आप हैं।” पोपट लाल ने मेज पर मुक्का मारा था। “और मैं इस जलवे को कैश करूंगा!” तनिक ठहर गया था पोपट लाल। “बिलीव मी साईं मेरा वायदा रहा कि ..”

“और ..?” विक्रांत ने तनिक खबरदार होते हुए पूछा था।

“और अब लंच!” पोपट लाल ने घोषणा की थी। फिर उसने अपने ड्राइवर को पुकारा था। सुधीर को भी आदेश दिए थे। “बहुत दिन हुए!” पोपट लाल हंस रहा था। “मुझे तो पता था कि आप ..” पोपट लाल ने विक्रांत को भीतर तक गुलगुला दिया था। “पवित्र भोज से पैक करा कर लाया हूँ! मैं अभी भी आपकी पसंद भूला नहीं हूँ।” पोपट लाल बताने लगा था। “आप और नेहा जी जब भी मिलते थे तो पवित्र भोज में ..”

बड़े दिनों के बाद लगा था कि विक्रांत हरा हो गया था। उसे लगा था कि नेहा अचानक ही चली आई है और अब साथ साथ लंच खाएगी!

“ये देखो!” लंच के बाद पोपट लाल ने अपने ब्रीफकेस से एक नई-निकोर मैगजीन निकाली थी, जिसके मुखपृष्ठ पर एक बेहद सुंदर और आकर्षक युवती का चित्र छपा था। “ये श्रेया है! हाल ही में ब्यूटी पेजेंट जीत कर आई है। मिलोगे तो ..” ठहर गया था पोपट लाल।

विक्रांत न जाने क्यों निगाहें भर भर कर उस सुंदर चित्र को देखता ही रहा था।

“रोमांटिक फिल्मों की उम्र बहुत लंबी होती है।” पोपट लाल फिर से बताने लगा था। “अगर तुम दोनों की क्लिक और कैमिस्ट्री मिल जाए तो फिल्म जगत में एक नया आविष्कार होगा!”

“लेकिन .. लेकिन पोपट लाल जी ..”

“27 तारीख को मैंने अपने घर पर गोष्ठी रक्खी है।” पोपट लाल बताने लगा था। “गिने चुने लोग आएंगे। श्रेया आएगी। आप आएंगे। और ..”

“म .. मैं तो ..”

“आप को तो आना ही पड़ेगा साईं! लोगों को आप से बहुत उम्मीदें हैं। यू विल बी ए रोमांटिक हीरो एंड ..” हंसता रहा था पोपट लाल।

पोपट लाल अपना पूरा काम करके लौट रहा था।

न जाने क्यों विक्रांत का मन खिल उठा था। वह उठा था और पोपट लाल को विदा करने उसकी कार तक चला आया था। सुधीर भी उसके पीछे पीछे चल रहा था। फिर न जाने क्यों विक्रांत ने पोपट लाल की कार का दरवाजा खोला था और उससे बैठने का आग्रह किया था।

“आप आएंगे – लेकिन इन्हें साथ लेकर नहीं।” पोपट लाल ने सुधीर की ओर इशारा किया था।

पोपट लाल चला गया था। लेकिन सुधीर का मुंह सूजा हुआ था।

मेजर कृपाल वर्मा

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