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सॉरी बाबू भाग छियालीस

सॉरी बाबू

“डी एस ने ऑफिस में बुलाया है!” रतन ने नेहा को सूचना दी है।

नेहा का तन मन चौकन्ना हो गया है। नेहा सोच रही है कि क्या उसने कोई गलती की है? या कि ऐसा कुछ है जिसका उत्तर उसे डी एस को देना होगा? क्या कारण हो सकता है कि डी एस ने उसे ..

भारी भारी कदम गिन गिन कर रखती हुई नेहा डी एस के ऑफिस में पहुंची थी। वहां खामोशी थी। हलचल भी थी। उसे आया देख हवा हिल गई थी। उसने डी एस के ऑफिस में झांका था। सेंट की खुशबू ने उसका स्वागत किया था। अब नेहा उछल पड़ना चाहती थी .. नेहा चिल्लाकर कहना चाहती थी – खुड़ैल! हॉं हॉं! ये सेंट तो खुड़ैल ही लगाता है। वही .. वही होगा! हो भी सकता था। लेकिन यहां .. डी एस के ऑफिस में?

“तुमने मिलाई करने से मना कर दिया था न!” नेहा ने स्वयं ही उत्तर याद कर लिया है। “तभी इसने ये रास्ता निकाला है!” उसकी बात समझ में आ गई थी। “ये तुम्हारा पीछा छोड़ेगा नहीं!” नेहा का दिमाग उसे चेता रहा था।

“हैल्लो नेहा!” खुड़ैल की आवाज थी। “कैसी हो?” वह पूछ रहा था।

डी एस के ऑफिस में वो दोनों एक चालाक निगरानी के नीचे बातें करने के लिए आजाद थे। सजा बजा रमेश दत्त नेहा के सामने था। उसके चेहरे पर नेहा ने आज चार चिंता रेखाएं खड़ी देखी थीं। लगा था – कुछ गंभीर है। कुछ है – जो खुड़ैल को दहलाए दे रहा है। नेहा को प्रसन्नता हुई थी!

“सब ठीक चल रहा है!” रमेश दत्त बताने लगा था। “सब हमारे काबू में है। पुलिस और प्रशासन हमारे हक में है!” हंसा था रमेश दत्त। “जो लोग पेट पीट रहे हैं और जो पत्रकार जोर लगा रहे हैं ..” रमेश दत्त ने नेहा की आंखों को पढ़ा था। “शिकस्त के सिवा कुछ मिलेगा नहीं इन लोगों को! तुम देख लेना नेहा!

अचानक ही नेहा के मुंह का जायका बिगड़ने लगा था। उसे क्रोध चढ़ने लगा था। उसकी त्योरियां तन आई थीं। पश्चाताप लौटा था – विक्रांत की जान ले लेने का पश्चाताप! उसे अब खुड़ैल अपना जानी दुश्मन दिखाई दिया था। उसका मन हुआ था कि अभी – इसी वक्त खुड़ैल को कच्चा चबा जाए .. बर्बाद कर दे .. इसका नामोनिशान मिटा दे और .. और! नेहा के प्रतिशोध की पराकाष्ठा पार करता उसका तन मन कांप कांप उठा था!

“चाहे जो हो नेहा तुम बयान मत बदलना!” रमेश दत्त अब मूल मुद्दे पर आया था। “तुम डिगा मत खा जाना नेहा वरना तो सारा खेल बिगड़ जाएगा!” उसने नेहा को चेतावनी दी थी। “विपक्ष का वकील राम कुमार बड़ा ही काइयां है! तुम्हें होशियार रहना होगा ..”

“एक एक का नाम गिन गिन कर लूंगी – कासिम बेग!” नेहा स्वयं से बतियाने लगी थी। “मैं तुम्हारी लंका फूंक कर ही दम लूंगी – यू चीट!”

“मैं तुम्हारा दुख समझ सकता हूँ नेहा!” चुप बैठी नेहा को देख रमेश दत्त ने बात बदली थी। “लेकिन तुम्हें बता दूं कि समीर की ‘रंगीला’ फिल्म रिलीज होने वाली है!” वह हंसा था। “तुम मान कर चलो कि ये फिल्म सुपर हिट होगी!” उसने अब नेहा के पास आने की कोशिश की थी। “और तुम्हारा घर – स्वास्तिक .. तुम्हारे इंतजार में ..” उसने नेहा को फिर से परखा था।

तनिक सी सहज हो आई थी नेहा। समीर – उसके भाई की फिल्म रिलीज होगी और सुपर हिट होगी – इस सूचना ने उसके दिमाग का सारा जहर पी लिया था। उसका मन हुआ था कि रमेश दत्त को धन्यवाद कहे। लेकिन वह जानती तो थी कि ..

“पता है नेहा! मैंने आजमगढ़ में पांच एकड़ जमीन पर नेहा पैलेस बनवाना आरम्भ कर दिया है! तुम्हारे आने से पहले ही तैयार हो जाएगा!” रमेश दत्त ने नेहा का हाथ छूने की कोशिश की थी। “मुमताज और नूर जहां बहुत याद करती हैं तुम्हें ..”

नेहा ने पैनी निगाहों से झूठ बोलते रमेश दत्त को विश्लेषित करना चाहा था। वह अभी तक चुप ही बनी रही थी। उसने एक शब्द तक न बोलने की जैसे कसम खा ली थी। रमेश दत्त को भी नेहा की चुप्पी चुभने लगी थी। जब उसे अपने प्रयास अकारथ जाते लगे थे तो वह संभल कर बोला था।

“मैं सच कहता हूँ नेहा! लोग तुम्हें नहीं भूले हैं!” वह गंभीर था। “लोगों के लिए तो तुम आज भी ड्रीम गर्ल हो! तुम्हारी अदाकारी का तो जमाना दीवाना है नेहा! और तुम्हारे बोले वो संवाद .. ऐ लोगों ..”

“मैंने अब काम ही नहीं करना!” नेहा ने कड़क स्वर में कहा था।

रमेश दत्त खिल उठा था। नेहा का अनबोला टूटा था तो उसका मन बाग बाग हो उठा था।

“क्यों ..? काम क्यों नहीं करोगी?” चहका था, रमेश दत्त। “अरे भाई मैंने तो तुम्हें आते ही ‘राज रानी’ में कास्ट करना है। गीत गोविंद के हैं, कहानी सुजात की है और संवाद हैं काजल के। देखना नेहा कि ..”

“क्यों झूठ बोलते हो कासिम बेग!” नेहा ने तेवर बदले थे। उसे आपा बेकाबू हुआ लगा था।

“मैं झूठ नहीं बोल रहा हूँ नेहा! लेकिन हॉं – मुझे भी एहसास है कि बाहर लोगों के मचाए बाए बेला और अखबारों की झूठी और मनगढ़ंत कहानियों का असर तुम पर हुआ है! ये सब झूठ है नेहा कि .. कि .. मुसलमानों ने फिल्म इंडस्ट्री पर कब्जा कर लिया है। ये गलत है कि हिन्दू लड़कियों को फंसा कर और नाम बदलकर बदनाम किया जाता है। मैं भी जानता हूँ कि मुसलमानों ने हिन्दू नाम रख रख कर समाज के साथ गद्दारी की है – एसी अफवाहें उड़ाई जा रही हैं! लेकिन नेहा तुम्हीं सोचो? कला का तो कोई भी नाम रख लो – वह तो कला है – बोलेगी और अगर कला नहीं है तो उसे हजार नाम दे दो खाक है!” रमेश दत्त दम लगा कर सफाई देता रहा था।

नेहा ने सिर्फ एक चुटैली मुस्कान ही रमेश दत्त को इनाम में दी थी और उसे विदा कर दिया था।

अब एक उबलते खदकते तूफान को अंतर में समेटे नेहा लौट रही थी!

नेहा की निगाह पुष्पित और पल्लवित होते कल्प वृक्ष पर पड़ी थी। सत रंगी फूलों की चादर हरी घास को ढापे थी। नेहा का मन तनिक हल्का हुआ था। उसने झुक कर बड़े ही विनम्र भाव से फूल चुने थे। अंजुरी में भर उन फूलों को कल्प वृक्ष पर चढ़ाया था और पूरी श्रद्धा के साथ उसे प्रणाम किया था। आंखें बंद कर कल्प वृक्ष की प्रदक्षिणा की थी और फिर उसके चबूतरे पर नि:संग भाव से बैठी रही थी।

“तुमने तो मुझे सदा सुहागिन होने का वरदान दिया है कल्प वृक्ष?” नेहा ने मन ही मन प्रश्न किया था। “तुम भी कहीं खुड़ैल की तरह झूठ तो नहीं बोलते?” उसने अब सायास प्रश्न पूछा था। “मुझे तो .. सभी ने ठगा है कल्प वृक्ष!” नेहा की आंखें अचानक सजल हा आईं थीं। “जबकि मैंने ..” उसका कंठ रुंध गया था।

“नियति – नेहा, नियति! जो होना है वह तो अवश्यंभावी है। डरो मत नेहा। डरा हुआ आदमी तो मरे हुए आदमी से भी बदतर होता है!” कल्प वृक्ष बता रहा था।

अचानक ही नेहा के सामने सोनू धोबन आ खड़ी हुई थी। वह हंस रही थी। उसे पता था कि नेहा डी एस ऑफिस में मिलने गई थी – किसी बहुत अपने से!

“मिल आई यार से ..?” सोनू ने कनसुरी आवाज में पूछा था। “अरी करमजली! तूने तो अपना प्रेमी ही मार डाला और अब इस नएला खसम के साथ सैन मट्टके मार रही है?” सोनू धोबन प्रश्न पूछ रही थी। “कहते हैं – वो तो हीरा था हीरा! जलते सब उससे ये सब मुल्ले! जिंदा रहता तो सब को धो देता!” सोनू अपनी जानकारी देती रही थी।

“तू अपना काम कर!” तनिक नाराज होकर कहा था नेहा ने। वह जानती तो थी कि सोनू धोबन बला की बदतमीज थी। मुंहफट भी थी। डी एस को भी सीधा बोलती थी ..

“मुझे देख, पागल!” सोनू धोबन ने सीधा तन कर कहा था। “अपने मरद की खातिर मैंने लीला सरपंच में भरी सभा में चप्पलें मारी थीं! मेरा मरद बेकसूर था और लीला सरपंच .. था बेईमान!” सोनू धोबन का चेहरा तना हुआ था। “वो औरत ही क्या जो ..” लानत भेज रही थी सोनू – औरत जात पर!

“सॉरी बाबू!” नेहा की आंखें बरसने लगी थीं। “वैरी वैरी सॉरी!” वह कहती रही थी। “मुझसे गलती हुई! मैंने अपने मरद के साथ दगा खेली! मैं .. औरत नहीं .. कोई ..”

“लेकिन अब बाबू मैं इस सोनू धोबन की तरह ही खुड़ैल में भरे बाजार में सरे शाम चप्पलें मारूंगी! मैं चीख चीख कर सबका नाम लूंगी .. सबसे अपना प्रतिकार चुकाऊंगी! मैं न मानूंगी अब बाबू! मौत आए तो आए मैं अब नहीं डरूंगी बाबू!”

सॉरी बाबू! बाबू माफ कर दो बाबू अपनी नेहा को!

बिलखती रही थी नेहा!

मेजर कृपाल वर्मा

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