एक पवित्र पवन के झोंके की तरह सुधीर बंबई से चलकर मऊ मोहनपुर स्टेट पहुंच गया था।
विक्रांत का मन खिल उठा था। नेहा भी नए अंदाज में पुलकित हो उठी थी। सुधीर जैसे एक राजदूत था और बंबई का पक्ष लेकर उनके पास चला आया था। यादें थीं – बंबई की, वहां की गहमागहमी की और वो जुनून भी साथ आया था जो बंबई जाते ही सवार हो जाता था। और आदमी भागते भागते वहीं बूढ़ा हो जाता था, लेकिन मजाल कि सपनों का कोई अंत आ जाए!
“क्या हाल है बंबई का?” गहक कर विक्रांत ने पूछा था।
“एज यूजुअल!” तटस्थ भाव से सुधीर बोला था। “हां! तुम्हारे बंबई छोड़ कर भाग आने पर लोग कयास लगा रहे हैं कि जरूर इसमें रमेश दत्त का हाथ है।” सुधीर बताने लगा था। “लेकिन हमने अपने इरादे गुप्त रक्खे हैं। किसी को कानों कान खबर नहीं कि कालखंड का निर्माण हम एक नए ढंग से करने जा रहे हैं।” हंस रहा था सुधीर। “जबकि कोरा मंडी की चर्चाएं हर गली कूचे तक पहुंचाई जा रही हैं और ..” सुधीर ठहर गया था। उसने पलट कर नेहा और विक्रांत को एक साथ देखा था।
“तो क्या सफल हो जाएगी कोरा मंडी?” प्रश्न नेहा ने किया था। “मैं तो .. मैं तो ..”
“रमेश दत्त कम घाग नहीं है नेहा जी।” सुधीर ने कहा था। “ये कमाल का आदमी है जी!” सुधीर की आंखों में आश्चर्य था। “अब नई चाल फेंकी हैं।” वह बताने लगा था। “एक दम नया पासा फेंका है और वो भी ..” तनिक रुक कर सुधीर ने विक्रांत के चेहरे को पढ़ा था।
“ऐसा क्या नया कर दिया?” विक्रांत पूछ बैठा था।
“नया ये भाई जान कि तीन पाकिस्तानी कलाकारों को कोरा मंडी में काम दे दिया है।” सुधीर ने एक बम विस्फोट जैसा किया था। “सुमेर पठान, हल्ला-गुल्ला और छोटा फरीद साइन किए हैं!” सुधीर बताने लगा था। “हल्ला-गुल्ला तो वही है जो लोगों को हंसा हंसा कर पागल कर देती है और छोटा फरीद उसके साथ आया वो जोकर है जो ..”
“और सुमेर पठान का क्या रोल होगा?” विक्रांत ने बात काटी थी।
“यही तो कैच पॉइंट है कहानी का भाई जी!” सुधीर हंसा था। “उस साहबजादे सलीम की छुट्टी कर दी है।” सुधीर ने सूचना दी थी और नेहा की ओर देखा था। “जम कर झगड़ा हुआ दोनों में! सलीम तो किसी भी कीमत पर ..” ठहर गया था सुधीर। अब वह नेहा को देख रहा था। “अब एक म्यान में दो तलवारें कैसे रह सकती हैं?” सुधीर का प्रश्न था। “कहते हैं कि नेहा और सुमेर पठान की कैमिस्ट्री मिलती है।”
“झूठ बोलता है।” नेहा ने बिगड़ते हुए कहा था। “न मैं किसी सुमेर पठान को जानती हूँ और न ही वो मुझे जानता है! फिर कैमिस्ट्री कैसे मिल गई?” नेहा का प्रश्न था।
कई पलों तक सब चुप बने रहे थे। सब के विचार और भावनाएं हिल डुल गये थे। वास्तव में ही रमेश दत्त जादूगर था। दूर की कौड़ी लाता था और हर किसी को चकित छोड़ कर दूर भाग जाता था।
एक पल के लिए नेहा किसी कथित सुमेर पठान के बारे सोच बैठी थी। न जाने कैसा होगा वो और न जाने वो उसके बारे क्या क्या कयास लगा बैठा होगा? और न जाने उसके साथ एक्टिंग करते समय ..
उड़ गया था नेहा का मन और जा बैठा था आसमान की फुगनियों पर! एक नई ताजा गहमागहमी थी, नए प्रेम पगे संवाद थे, चितवन की चंचल चोट करती नेहा गजब ढाती जा रही थी, हंस रही थी, गा रही थी और झूम झूम कर सुमेर पठान की बांहों में समाती ही चली जा रही थी।
और हां! अचानक ही उसे लगा था कि व्यर्थ था उसका यों मऊ मोहनपुर स्टेट में कैद हो जाना, शादी करना, दो चार बच्चे पैदा करना और ..? क्या धरा था आजम गढ़ और मऊ मोहनपुर में ..?
“तुम तो कलाकार हो नेहा!” मन उसे बताने लग रहा था। “तुम तो एक अकेली रूह हो जिसे एक नहीं अनेकों के लिए जीना है!”
विक्रांत की उँगलियों पर अपना और सुमेर पठान का जोड़ नाच रहा था।
“रमेश दत्त तो अब बूढ़ा हुआ!” विक्रांत ने अपने मन में दोहराया था। “कहां मेल था उसका और नेहा का?” वह मान लेना चाहता था।
“लेकिन जनाब प्यार तो अंधा होता है!” कोई विक्रांत से कह रहा था। “और .. और आदमी कभी बूढ़ा नहीं होता! प्यार के नाम पर तो कब्र से उठ कर चला आता है आदमी! हाहाहा!” जोर का ठहाका लगाया था उसने।
“रमेश दत्त चाहता है कि वो हिन्दुस्तान और पाकिस्तान के संबंध सुधारना चाहता है। इस तरह दोनों देशों के कलाकार साथ साथ काम करेंगे तो भाई चारा बढ़ेगा!” सुधीर ने बताया था।
“ये षड्यंत्र है!” विक्रांत बोल पड़ा था। “फिर से हिन्दुओं को पागल बनाने की चाल है!” उसने ऐलान किया था।
“लेकिन अब रमेश दत्त की ये चाल सफल होगी नहीं भाई जी!” सुधीर ने विहंस कर बताया था। “बंबई में भी लोगों को भनक लग चुकी है इसकी जालसाजिओं की। के साहूकार को भी मिटा मानो!” सुधीर बता रहा था। “लोगों ने इसकी मूवी देखना बंद कर दिया है और मैं दावे के साथ कह सकता हूँ कि कोरा मंडी कामयाब नहीं होगी।” सुधीर की बात में दम दिखा था विक्रांत को।
नेहा को अपना मन उड़ा उड़ा सा लगा था। जो रंगरलियां अभी अभी उसके पास आ बैठी थीं वो उठी थीं और चली गई थीं। नेहा अकेली रह गई थी और कहीं किसी बीहड़ में अकेली छूट गई थी।
“मैंने सब को मना लिया है भाई जी!” सुधीर संभल कर बोला था। “अविनाश पटना आ रहा है। वहीं अपने घर रहेगा और काम करेगा!” सुधीर ने सूचना दी थी। “मदन भी बदायूं से काम करेगा और मधुर मथुरा आ जाएगा! मालती ने अलीगढ़ से काम करना है और केशव काशी में रहेगा!” हंस रहा था सुधीर। “कोई होटल मोटल का झंझट नहीं!” वह कह रहा था। “और मैंने टीम को बता दिया है कि ये देश भक्ति का काम है। हमने जान लड़ा देनी है और कालखंड को कामयाब करके दिखाना है।”
“आभारी हूँ सुधीर!” भावुक हो आया था विक्रांत। “इतिहास को सुनकर तो मेरे पैर ही टूट गए थे बंधु!” विक्रांत बताने लगा था। “कितना छल हुआ है हम हिन्दुओं के साथ, कमाल है यार!” आश्चर्य में आंखें भर आई थीं विक्रांत की। “और आज भी कोई कर्णधार नहीं है हम हिन्दुओं का!” उलाहना था विक्रांत का।
सुधीर गंभीर था। उसे भी विक्रांत की बात जायज लगी थी। उसे भी एहसास था कि हिन्दू अभी भी उठना नहीं चाहता था। वह तो अभी भी भाग्य और भगवान के भरोसे बैठा था।
“वक्त बदल रहा है भाई जी!” सुधीर ने फिर से विक्रांत का डूबता मन बचा लिया था। “मैंने आपकी अगली व्यथा का भी समाधान खोज लिया है।” सुधीर बताने लगा था। “लाला धनपत राय हैं – काशी वाले। काशी विश्व विद्यालय के ट्रस्टी भी रहे हैं। बड़े ही धनवान और गुणवान व्यक्ति हैं। संतान है नहीं इसलिए देश और समाज के लिए ही समर्पित हैं।”
“देंगे कोई सहारा?” विक्रांत ने हिम्मत बटोर कर पूछ लिया था।
“हां हां! पूरा पूरा सहारा मिलेगा भाई जी।” सुधीर चहका था। “केवल एक ही शर्त है उनकी।” सुधीर तनिक रुका था। उसने विक्रांत के मनोभाव पढ़े थे। “उन का एक ही मन है कि हम कालखंड को बलीराम भगत हेगडेवार के नाम समर्पित कर दें!” शर्त सामने रख दी थी सुधीर ने।
“यार! आर एस एस के संस्थापक हैं ये तो?” विक्रांत ने प्रश्न पूछा था। “इनसे बड़ा और कौन है आज भारत में!” विक्रांत का स्वर बुलंद था। “इनका तो पूरा युग ही आभारी रहेगा।” विक्रांत कह रहा था। “हमें क्या उज्र हो सकता है भाई जी।” विक्रांत ने बात मान ली थी।
सुधीर का चेहरा गुलाबों सा खिल गया था।
“जीने की राह अभी भी परवान चढ़ रही है!” सुधीर कहने लगा था। “वास्तव में ही इस फिल्म में तुमने कमाल कर दिया है।” सुधीर बताने लगा था। “और नेहा जी का तो जलवा ही श्रेष्ठ है!” उसने नेहा को जगा सा दिया था। “कालखंड को लेकर मैं भी अब आश्वस्त हूँ कि नाम के साथ साथ हमारा काम भी चलेगा!”
“लेकिन रमेश दत्त?” विक्रांत फिर से टीस आया था। “मुझे इस चालबाज से डर लगता है सुधीर!” स्पष्ट कहा था विक्रांत ने। “कब कौन सा पत्ता फेंक दे इसका कोई भरोसा नहीं!”
“अब तो ये उजड़ेगा!” सुधीर बोला था। “अब ये चलेगा नहीं।” उसका अपना अनुमान था। “भूत, विद्या, मल्लही – बारह बरस चल रही!” हंस पड़ा था सुधीर। “इसके बारह बरस पूरे हुए भाई जी!”
नेहा ने तटस्थ निगाहों से सुधीर को देखा था।
“नेकीराम शर्मा हैं – कोई साहब!” पूरनमल ने आ कर बताया था। “कहते हैं काशी से आते हैं!”
“भेजो उन्हें भीतर!” विक्रांत ने प्रसन्न हो कर बताया था। “पंडित जी के शिष्य हैं। पट कथा और संवाद लिखेंगे!” विक्रांत ने सूचना दी थी।
“अरे, ये साला सुल्तानपुर का तो है ही!” सुधीर चहका था। “मेरे गांव के पास का ही तो है!” वह बताते बताते उछल पड़ा था। “अब काम बनेगा भाई जी!” सुधीर ने नारा जैसा लगाया था।