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सॉरी बाबू भाग चौवन

सॉरी बाबू

“स्वर्ग से आई अप्सरा लग रही हो!” सामने आ खड़ी हुई शिरोमणि को देख श्री कांत बोला है।

युगांत का कोई परिदृश्य भाग कर जैसे श्री कांत के सामने आ खड़ा हुआ हो – ऐसा प्रतीत हुआ है उसे। साधारण सी शिफोन की साड़ी पहने और उन सोलापुरी चप्पलों में शिरोमणि का रूप लावण्य फूट सा पड़ा है। केश विन्यास की अनूठी अदा उसका अलग से मन मोह रही है। जो आग्रह आज शिरोमणि की आंखों में तैर रहे हैं – वो तो सराहनीय हैं! श्री कांत की नजरें लौटने का नाम नहीं लेती तो ..

“बैठने के लिए भी नहीं कहोगे आज?” शिरोमणि ने श्री कांत को जगा सा दिया है।

“अरे नहीं नहीं! क्यों नहीं! आइये, बैठिये!” श्री कांत कहता रहा है।

अब शिरोमणि की चौंकने की बारी है। आज श्री कांत ने कुर्ता पाजामा पहना है! पैरों में पंजाबी जूतियां जम रही हैं! बाल यूं ही उलझे सुलझे से हवा में सैर करते लग रहे हैं! लेकिन उसकी पुष्ट देह और दमकता ललाट शिरोमणि की निगाहों को कैद कर लेता है!

“किसी गांव के चौधरी लग रहे हो!” शिरोमणि ने हंसते हुए अपनी राय दी है।

“वो तो हम हैं ही!” श्री कांत खूब जोरों से हंसा है। “वो पदवी तो आज भी बरकरार है!” उसने बताया है। “यों मानो शिरोमणि कि मेरे दादा जी ..”

“और उनकी लम्बी लम्बी मूँछें .. सर पर सफेद पगड़ी ..”

“अरे! तुम्हें कैसे मालूम हुआ शिरोमणि?” चौंका है – श्री कांत। “क्या तुम्हारे दादा जी ..?”

“पीछे छूट गये सब!” शिरोमणि ने बात काटी है। “वहां स्पेस में जाकर देखना होगा कि ..”

“कब जा रही हो? शादी से पहले या शादी के बाद?” हंसा है श्री कांत। “भाई मुझे तो डर लगता है। मैं तो ..”

“तुम्हें चाय पिलाने के बाद, मैं चली!” शिरोमणि ने आज खुले मन से मजाक किया है। न जाने आज उसे श्री कांत इतना प्यारा क्यों लग रहा है?

दोनों मुक्त होकर हंसे हैं। साथ साथ हंसे हैं। साथ साथ बैठे हैं और साथ साथ चाय पी रहे हैं! शिरोमणि की निगाहें श्री कांत से नहीं हट रही हैं तो श्री कांत भी बार बार शिरोमणि के अल्लम खल्लम स्वरूप को देखे ही जा रहा है!

“तुम्हें कैसे पता चला शिरोमणि कि मुझे पनीर पकौड़े बेहद पसंद हैं?”

“अरे तुम्हीं ने तो बताया था!” शिरोमणि हंस गई है।

बहुत बहुत अच्छा लगा है श्री कांत को!

“मेरी मॉं ..” श्री कांत कुछ सोच कर बोला है।

“मेरी दादी ..” शिरोमणि ने बात काट दी है।

अब दोनों एक दूसरे को देख रहे हैं। दोनों ही प्रसन्न हैं!

“चलो! अब काम की बात करते हैं!” श्री कांत कुछ समझ सोच कर कहता है। “सच कहता हूँ शिरोमणि कि मेरा मन उठते ही बेईमान हो गया! बोला – चाय ही क्यों मौका है आज तो लंच भी साथ साथ हो सकता है!”

“हो सकता है!” शिरोमणि ने बिना किसी हीलो हुज्जत के मान लिया है।

पलट कर अब दोनों ने एक दूसरे को पढ़ा है, समझा है और कुछ सोचा है! लगा है दोनों तरंगित हैं, दोनों कहीं हिल मिल कर एक साथ हो लिये हैं और कुछ औपचारिकताएं ही शेष रह गई हैं शायद!

“क्या खिलाओगी ..?”

“क्या खाओगे?”

अब फिर से दोनों अखाड़े में आमने सामने खड़े हैं!

“इस रेस्टोरेंट का चिकन रोस्ट मशहूर है!” शिरोमणि ने जानकारी दी है।

“पर मैं तो मीट नहीं खाता!” श्री कांत ने तुरंत तुरप लगा दी है।

जंग जुड़ने को है। शिरोमणि को रोष चढ़ने लगा है। जहां सारा संसार नॉन वेज का दीवाना हुआ खड़ा है वहीं ये एक अकेला देहाती मानुष सीना ताने वेज बना खड़ा है।

“क्या वैराइटी मिलेगी वेज में?” शिरोमणि पूछ रही है। “आलू और आलू – और फिर आलू! कुछ भी मंगा लेना – आएगा आलू ही!” हंस रही है शिरोमणि।

“नॉन वेज में तो फिर – तुम्हें ही खाने का मन है डार्लिंग!” श्री कांत का मन हुआ है कि कह दे। “तुम चिकन रोस्ट ले लो – मैं आलू से लड़ लूंगा!” श्री कांत ने हंस कर कहा है। “अगर .. अगर .. आलू पूड़ी हो जाए तो – कहने ही क्या?”

“आलू पूड़ी ..? पूड़ी पराँठे ..? भारत याद आ रहा है?” शिरोमणि ने पूछा है।

“कब भूलता हूँ भारत को!” श्री कांत का उत्तर है। “सच मानो शिरोमणि मॉं के हाथ के आलू पूड़ी अगर तुमने खाए तो गुलाम हो जाओगी – उनकी!”

“पर मेरा इरादा तो आजाद रहने का है!” शिरोमणि ने कहा है।

“तो फिर मेरी बात मानो! शादी मत करना!” श्री कांत ने अपनी राय दी है।

दोनों की आंखें फिर से मिली हैं। दोनों के प्रश्न उत्तर हुए हैं। दोनों की शंकाएं सामने खड़ी हैं। अब मिलने के बाद दोनों बिछड़ जाना चाहते हैं!

“शादी का मतलब गुलामी तो नहीं होता?” शिरोमणि पूछ रही है।

“होता है! शादी का मतलब गुलामी ही है, शिरोमणि!” श्री कांत ने सीधा उसकी आंख में झांका है। “मैं तो मानता हूँ कि अगर मैंने तुमसे शादी की तो मैं तुम्हारा गुलाम बन कर रहूँगा! तुम्हारी हर बात मेरी बात होगी, हर चाह मेरी चाह होगी, सुख दूख मेरे होंगे और यहां तक कि शिरोमणि तुम्हारी इज्जत बेइज्जती भी मेरी होगी! अगर तुम पर कोई आंच आई तो मैं .. तो मैं अपनी जान तक दे दूंगा – तुम्हारी खातिर!” भावुक था श्री कांत।

“परिवार का मतलब ..?” शिरोमणि अपना तर्क देना चाह रही थी।

“परिवार का मतलब है – मैं, मेरी मॉं और मेरे बाबू जी! हम तीनों एक जान और एक प्राण हैं!” श्री कांत बता रहा था। “मैं .. मैं .. यहां की तीन शादी ओर तेरह बच्चों की परंपरा में विश्वास नहीं रखता, शिरोमणि!” चुप हो गया था श्री कांत।

शिरोमणि भी चुप थी। वह फिर से श्री कांत को समझने का प्रयत्न कर रही थी। बहुत पजेसिव था – श्री कांत, वह समझ गई थी। बहुत .. बहुत ही कम होते हैं ऐसे लोग और आज कल तो ..

“एडवांस सोसाइटी में तो श्री कांत ..” हिम्मत बटोर कर बोली थी शिरोमणि।

“कौन सी एडवांस सोसाइटी की बात करती हो!” भड़क उठा था श्री कांत। “क्या है इनमें ऐसा अनमोल? सनातन में कभी झांक कर देखना। उन मूल्यों का तो तुम्हारी इस एडवांस सोसाइटी को पता तक नहीं जो – सच्चे मानव मूल्य हैं!”

“क्या हैं वो ..?” शिरोमणि ने पूछ ही लिया था।

“विवाह पुरुष और प्रकृति का मिलन है! धरती और आसमान का सम्मिलित दायित्व है! यह सृजन सूत्र का एक आरम्भ है! एक शुभ संदेश है – समाज के लिए!”

शिरोमणि एक विभ्रम के दलदल में जा धंसी थी। जो कुछ श्री कांत कह रहा था वह तो उसकी धारणाओं के बिलकुल ही विपरीत था! वह तो आज के और अब के रीति रिवाज को ले कर ही शादी का एक प्रयोग कर के देख लेना चाहती थी! वह तो परख लेना चाहती थी कि आखिर ..! लेकिन .. ये श्री कांत ..?

“वॉट सॉर्ट ऑफ ए मेन आर यू?” शिरोमणि ने तीखा प्रश्न पूछ लिया था।

“देसी!” हंस कर उत्तर दिया था श्री कांत ने। “ठेठ देसी हूँ मैं, शिरोमणि!” वह कह रहा था। “सच्चा सनातनी हूँ। लेना हो तो ले लो!”

“लिया!” शिरोमणि ने हाथ आगे बढ़ाया था। “आज से .. अभी से .. इसी पल से तू मेरा!”

“आई लव यू डार्लिंग!” श्री कांत कह रहा था।

“आई लव यू श्री कांत!” शिरोमणि ने कहा था।

दोनों एक दूसरे के आगोश में समा गये थे!

मेजर कृपाल वर्मा

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