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सॉरी बाबू भाग छप्पन

सॉरी बाबू

“भाई ये क्या शगूफा है सनातन का?” फैल्टर पूछ रहा था। उसने विक्रांत को नई निगाहों से घूरा था। वह आज का बहुचर्चित स्टार था। उसकी फिल्म लाइट एंड ब्राइट हंगामा मचा रही थी। लेकिन सनातन का मात्र ऐलान ही फैल्टर को पच न रहा था। “ये जादूगरों का खेल यहॉं नहीं चलेगा!” फैल्टर ने अपनी राय पेश की थी।

“ये कोई शगूफा नहीं – एक शुद्ध, सांस्कृतिक विचार है, जनाब!” विक्रांत ने बताया था। “सनातन मीन्स ..” रुका था विक्रांत। उसने फैल्टर की आंखों में उग आई ईर्षा को पढ़ा था।

नेहा को लगा था कि अचानक ही दो विरोधी विचार धाराएं आमने सामने आ खड़ी हुई थीं। एक थी – झरने की तरह मुक्त, स्फूर्त, गड़गड़ाती, चहूं ओर भागती और गाती जगाती नई नवेली जीने की राह जो बंधन तोड़ कर भाग जाना चाहती थी तो दूसरी थी – नदी की तरह शांत, नियत, संगठित और संस्कारी नैतिकताओं को संबोधित करती सनातन की धारा – जीने की वह राह जो हमें सही मुकाम पर पहुंचाती थी और बहकाती नहीं थी।

फैल्टर और विक्रांत जैसे इन्हीं दोनों विचारधाराओं के प्रतीक थे।

“मैंने चौथी शादी की है!” फैल्टर कहने लगा था।

“और तीसरी ने बलात्कार का केस दर्ज करा दिया है?” विक्रांत ने उसे पूछ लिया था।

“झूठ है!” फैल्टर चीख सा पड़ा था।

“सच है!” विक्रांत हंस गया था।

और नेहा को लगा था कि वो चारों नारियां जिनके साथ फैल्टर ने संबंध बनाए थे – उसी की तरह बेवकूफ थीं और विक्रांत ..?

“सच्चा अच्छा पुरुष ही प्यारा लगता है!” आज नेहा का मन बोला था। “फैल्टर तो किसी भ्रम का नाम जैसा ही था।

“शादी के बाद बलात्कार का दोषारोपण महज एक पागलपन है!” फैल्टर ने दलील दी थी।

“शादी एक सौदा नहीं – बल्कि जीवन पर्यंत का एक ऐसा संबंध है जहां प्रकृति पहली बार आंखें खोलती है।” विक्रांत ने फैल्टर की आंखों में झांका था। “मादा घोंसला बनाती है। पुरुष उस घोंसले को रक्षा सुरक्षा प्रदान करता है। तब मादा अंडे देती है। ममता का जन्म होता है। मादा अपने अंडों की रक्षा में जान तक दे देती है – जानते हो क्यों?” विक्रांत ने एक सवाल फैल्टर से पूछ लिया था। जब फैल्टर चुप रहा था तो विक्रांत ही बोला था। “ममता का मान करती है मादा।” गंभीर था विक्रांत। “ये रिश्ता प्रकृति और पुरुष के रिश्ते से भी बड़ा माना जाता है।”

“लेकिन क्यों?” अचानक फैल्टर भी प्रश्न कर बैठा था।

“क्योंकि .. मेरी मॉं पूर्वी आज भी मेरे लिए मरी जीती है।” नेहा ने विक्रांत की बात को समझ कर उत्तर दिया था। “और मेरे बाबा को पता चले कि मैं बीमार हूँ तो वो रात रात भर नहीं सोते। और .. मेरी मॉं ..”

“मेरी तो मॉं ही नहीं है।” फैल्टर ने दोनों हाथ हवा में फेंक कर कहा था।

“मेरी मॉं है!” हंस कर कहा था विक्रांत ने। “भारत में गंगा किनारे एक बे मामूल मकान में रहती है।” वह प्रसन्न हो कर बता रहा था। “कम उम्र में ही विधवा हो गई थी।” विक्रांत की आवाज भारी थी। “मैं ही बचा था – उनका कर्म और किनारा। मुझे आधार मान कर ही जीती रही हैं ..”

“वैरी स्ट्रेंज!” फैल्टर को आश्चर्य हुआ था। “तब तो जाना पड़ेगा मुझे भारत।” वह प्रसन्न था। ” मैं .. मैं ..”

“मिलना जाकर मॉं से फैल्टर!” विक्रांत ने आग्रह किया था। “हो सके तो रह कर भी देखना वहॉं! गंगा स्नान करना .. वहां की गंगा की मिट्टी – गंगौटी का तिलक लगाना .. मॉं के हाथ का बना खाना खाना और ..” विक्रांत जैसे अपनी सुध बुध ही भूल गया था और मॉं के पास जा पहुंचा था। “जीने की सच्ची राह दिख जाएगी तुम्हें और ..”

फैल्टर को लगा था कि आज उसने पहली बार जिंदगी को छूकर देखा था। पहली ही मुलाकात की थी – इस नए जीवन दर्शन से जिसे लोग सनातन कह कह कर पुकार रहे थे और बुला रहे थे ..

“अब तो जाना ही होगा भारत!” फैल्टर मान गया था। “वी आर फ्रेंड्स!” उसने विक्रांत और नेहा से हाथ मिलाया था।

“फॉर एवर!” विक्रांत ने स्वीकार किया था और फैल्टर को गले मिल कर सनातन की रस्म पूरी कर दी थी।

नेहा को आज बहुत अच्छा लगा था।

“हम शादी कब करेंगे विक्रांत?” नेहा ने भी पूछ लिया था। उसे आया शादी का प्रसंग आज बहुत अच्छा लगा था। उसे लगा था कि उसे भी जल्द से जल्द विक्रांत का हो जाना चाहिये था। उसे विक्रांत को एक धरोहर की तरह सहेज लेना चाहिये था और ..

“क्यों! क्या हुआ?” विक्रांत पूछ रहा था।

“मेरा भी मन है विक्रांत कि मैं मॉं के साथ रहूँगी उस बे मामूल से घर में और रोज गंगा स्नान करूंगी और गंगौटी का तिलक लगाऊंगी ताकि .. ताकि ‘मेरे सारे पाप धुल जाएं’ नेहा कहते कहते रुक गई थी।

न जाने कैसे आज अचानक ही पाप और पुण्य दोनों नेहा के सामने आकर उजागर हो गये थे।

“तुम्हें विक्रांत को सब कुछ बता देना चाहिये था नेहा।” पाप बोल पड़ा था। “तुम जानती नहीं हो मुझे!” वह मुसकुराया था। “चोरी करने पर मैं चौगुना हो जाता हूँ। छिपाने पर मैं मोटा हो जाता हूँ। लेकिन कह देने पर मैं मर जाता हूँ!” वह अपनी औकात बताने लगा था।

“न न!” डर गई थी नेहा। “अभी नहीं!” उसने स्वयं को समझाया था। “अभी तो पता चलते ही विक्रांत ..” नर्वस थी नेहा। “अभी तो सारा गुड़ गोबर हो जाएगा!” वह कांप रही थी। “तुम प्लीज़ शादी का इंतजार करो!” उसने पाप के हाथ जोड़े थे। “मैं .. मैं घर बुलाऊंगी तुम्हें! गंगा जल से नहलाऊंगी और गंगा में ही प्रवाहित कर दूंगी! शादी के बाद तो ..”

“लेकिन पुण्य की जड़ हरी होती है नेहा!” नेहा ने दूसरी आवाज भी सुनी थी। “मैं तो तुरंत ही फल देता हूँ!” वह हंसा था। “तुम आज आ जाओ मेरे पास और तुम्हें आज ही फल मिल जाएगा।”

“मैं नहीं मानती!” नेहा नाट गई थी। “मेरा मूंह खुलते ही ज्वालामुखी फटेगा!” वह कांप गई थी। “जब विक्रांत को पता चलेगा कि मैं .. मैं” नेहा की आंखें भर आई थीं। “हे भगवान! ये क्या हो गया था? खुड़ैल ने ..”

विगत ने आ कर नेहा को समेट लिया था। वह उन्हीं सम्मोहन के पलों में आ खड़ी हुई थी जब काम देव बना खुड़ैल उसे बाँहों में थामे झूम रहा था .. गा रहा था और उसे गुलगुला रहा था!

“कुछ नहीं होता नेहा!” वह कहता रहा था। “अरे, दो पल का गेम है! पहली बार थोड़ा डर तो लगता है लेकिन देखोगी कि ..”

उसके बाद तो उसे होश ही नहीं रहा था। खुड़ैल ने उसे खूब खूब खाया था .. खूब ही सराहा था और न जाने कैसे ..

“कैसे बताती तुम्हें बाबू?” नेहा बिलख रही थी। “अपने इस पाप को कह सुनाने की सामर्थ्य ही तो नहीं जुटा पाई! डरी हुई थी मैं बाबू! मुझे विश्वास था कि खुड़ैल भी कहॉं सिद्ध कर पाएगा कि ..”

“यहॉं गुप्त कुछ नहीं रहता नेहा!” विक्रांत कह रहा था। “मेरी मौत का राज भी राज रहेगा नहीं!” वह बता रहा था। “ये खुड़ैल भी एक दिन नंगा होकर सड़क पर आ जाएगा – देख लेना!”

“लेकिन हमारा तो सर्वनाश हो गया बाबू?”

“कुछ नहीं हुआ है नेहा!” विक्रांत की आवाज गंभीर थी। “मैं और तुम तो अमर हैं!” वह हंस रहा था। “मैं भी तुम्हारी तरह कभी भूलता नहीं हूँ अपनी नेहा को!”

“ओ बाबू ..! ओ मेरे अच्छे बाबू! तड़प आई थी नेहा। “कित्ती अभागिन निकली मैं बाबू?” वह पूछ रही थी।

सॉरी बाबू!

मेजर कृपाल वर्मा
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