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सॉरी बाबू भाग बावन

सॉरी बाबू

होटल स्काई लिव में अपार भीड़ जमा है। जीने की राह – फिल्म की शूटिंग है। नेहा और विक्रांत दोनों आ चुके हैं। हर कोई चाह रहा है कि कम से कम एक फोटो, एक झलक या फिर कोई संवाद ही सुनने को मिल जाए!

विक्रांत – माने कि जीने की राह का श्री कांत सोफे पर लंबा चौड़ा हो कर बैठा है। नियमानुसार नेहा – माने कि जीने की राह की नायिका शिरोमणि ने मिलने आना है।

अचानक श्री कांत को शिरोमणि आती दिखाई देती है। शिरोमणि के पहने परिधान से ही मालूम हो जाता है कि वो अल्ट्रा मॉर्डन है! श्री कांत यों ही के मूड़ में बैठा रहता है ओर सामने आ खड़ी हुई शिरोमणि को घास नहीं डालता!

“है ..ल्लो!” बड़े ही सुरीले स्वर में शिरोमणि ने श्री कांत को पुकारा है। “आई एम शिरोमणि – साईंटिस्ट इन अनलिमिटिड स्पेस!” कहते कहते वह मुसकुराना नहीं भूली है।

“ओह ..! आप ..?” श्री कांत उछल सा पड़ा है। “मैं ही श्री कांत हूँ – जिसे आप खोजने आई हैं! बैठिए ..!” श्री कांत ने आग्रह किया है और सोफे पर बैठने की जगह बनाई है।

शिरोमणि ने श्री कांत के लुटे पिटे हुलिए को गौर से देखा है। टाई की नॉट उलटी बंधी है और जूतों पर पॉलिश तक नहीं है!

“अ.. आप?” हिम्मत बटोर कर शिरोमणि ने पूछा है।

“मैं नीमा चॉकलेट में जनरल मैनेजर हूँ!” श्री कांत ने बेरुखी से बताया है।

“हाऊ मच डू यू गेट?” शिरोमणि सीधे मुद्दे पर आ जाती है। वह चाहती है कि कम से कम उसे पता तो चले कि ये शादी का उम्मीदवार आखिर कुछ कमाता भी है कि नहीं!

“खाने उड़ाने के लिए खूब मिलता है!” बाहें चौड़ा कर श्री कांत कहता है। वह जोरों से हंसा है। “वॉट एल्स आई वांट?” उसने साथ में सफाई भी दी है।

शिरोमणि का चेहरा उतर जाता है। उसका उत्साह ही ठंडा पड़ जाता है। एक जनरल मैनेजर यूं गंवारों की तरह बात करे तो जंचता नहीं है! शिरोमणि फिर से प्रश्न पूछती है।

“जी एम हैं! कैसे काम चलाते होंगे आप – ऑल ओवर दी वर्ल्ड?”

“मेरी टीम काम करती है – शिरोमणि मैं नहीं!” श्री कांत सीधा सीधा उत्तर देता है। “मेरे रिजल्ट देख कर तो मेरे प्रमोटर्स भी हैरान रह जाते हैं!” वह फिर से हंस पड़ता है।

शिरोमणि सकते में आ गई है!

“शादी करोगे ..?” चिढ़ कर पूछा है शिरोमणि ने।

“शादी ही नहीं बच्चे भी ..” श्री कांत ने सीधा शिरोमणि की आंखों में देखा है।

“उसके लिए पैसे अधेली .. भी तो ..?”

“तुम भी तो कमाती हो? सुना है कि तुम तो ..” मुसकुरा रहा है श्री कांत।

“तो ये मजनूं बीबी की कमाई खाएंगे!” मन में कहा है शिरोमणि ने। “माई फुट!” उसने स्वयं को फटकारा है। “देखो श्री कांत!” वह प्रत्यक्ष में बोली है। ” आई एम ए मैटीकूलस गर्ल! आई मीन बिज़निस! मेरे लिए वक्त का महत्व है। मैं पाबंदियों में रहना पसंद करती हूँ। यू नो वॉट इज दी मीनिंग ऑफ ए स्पेस साईंटिस्ट?”

“मैं खूब जानता हूँ!” श्री कांत सीधा बोला है। “लेकिन मेरे लिए मेरे जीवन का ही पल मेरा है! मैं जीता हूँ – और हर लमहे के गले मिल कर हंसता हूँ! मैं हारता नहीं हूँ शिरोमणि!”

शिरोमणि चकित निगाहों से श्री कांत को देखती रहती है!

“हमारी जीने की राहें कहां मिलती हैं?” शिरोमणि ने अपना पैट प्रश्न पूछा है। वह हमेशा से यही चाहती रही है कि जिससे भी वह शादी करेगी उसकी राह उस जैसी होगी तभी!

“ये तुम्हें देखना है शिरोमणि, मुझे नहीं!” सपाट उत्तर दिया है श्री कांत ने।

“क्यों ….?”

“क्योंकि मैं हमेशा ही सीधा सीधा चलता हूँ! आई डोंट मेक डिफिकल्ट कॉम्प्लिकेशंस! ए स्पेड इज ए स्पेड फार मी!” हंस पड़ा है श्री कांत।

“ठीक है!” शिरोमणि का उत्तर है। “आई गॉट इट!” उसने सर हिलाया है।

“फिर मिलते हैं?” श्री कांत ने पूछा है।

“नहीं!” शिरोमणि ने सपाट स्वर में कहा है और चली गई है।

श्री कांत बैठा बैठा जाती शिरोमणि को देख रहा है – हंस रहा है – खूब हंस रहा है!

“है तो जोर का माल!” उसने स्वयं से कहा है।

“मुद्दतों के बाद एक लड़का मिला था। इस करम जली ने तो उसे भी रिजैक्ट कर दिया!” शिरोमणि की मॉं सर पीट रही है। “सुनो तो ..” उसने अपने पति रमेश कुमार को पुकारा है। “इसने तो इस लड़के को भी ..” परेशान है शोभा!

“क्या कहती है?” रमेश कुमार ने पूछा है।

“कहती है – इस लड़के को तो टाई की नॉट तक बांधना नहीं आता! जूते भी बिना पॉलिश के पहने था। और कहता था – खाने उड़ाने के लिए खूब मिलता है!

“भूखा तो नहीं मरता न?” रमेश कुमार भी नाराज हैं। “कहां से लाएं लड़के?” वह गुर्राते हैं। “आज कल पहले तो कोई सलीके का परिवार ही नहीं मिलता। अब सलीके का परिवार मिला तो इसने लड़का रिजैक्ट कर दिया!” सर पर हाथ रख लिया है उन्होंने। “न जाने किस जनम का वैर निकाल रही है! पढ़ाया लिखाया तो इसलिए था कि पैरों पर खड़ी हो जाए। लेकिन इसका तो दिमाग ही बिगड़ गया!”

“अब आप तो शांत रहिये!” शोभा ने आग्रह किया है। “ये एक ही बहुत है – दुख देने के लिए!” शोभा भी अप्रसन्न है। “हमारे पास कमी क्या है पैसे धेले की जो ये जोड़ जोड़ कर मरी जाती है?”

“मैं बात करता हूँ!” रमेश कुमार कह रहे हैं। “मिलाओ फोन! कह देता हूँ कि हमारे वश में आगे कुछ नहीं है! इतना सुशील, सुघड़ और पढ़ा लिखा लड़का फिर नहीं मिलेगा! बेचारे गोपाल दास और मीना जी कितने भले लोग हैं! मैंने तो पहली बार इतना अच्छा कपल देखा है जो ..”

“अब क्या मुंह दिखाएंगे लोगों को?”

“कोई नहीं! पहली बार तो हुआ नहीं है!” रमेश कुमार जी चुप हो गये है।

श्री कांत के फोन की घंटी बजी है। वह हंसा है। वह जानता है कि बाबूजी बोल रहे होंगे! उसे कारण भी पता है। तनिक हंस कर वह फोन उठाता है।

“हॉं – बाबू जी! प्रणाम!”

“अरे ये क्या कर दिया तूने श्री कांत?” बाबू जी बौखलाए हुए हैं। “शिरोमणि को नाराज कर दिया?” उनकी शिकायत है। “भले आदमी! मुश्किल से एक अच्छा खाता पीता परिवार मिला है! करोड़पति पार्टी है मूर्ख!” तनिक रुके हैं गोपाल दास। “और लड़की भी तो ..?”

“आप चिंता न करे बाबूजी!” श्री कांत कह रहा है।

“कहते हैं – टाई की गांठ तक उलटी बांधी थी?” गोपाल दास जी चटके हैं। “दून का पढ़ा लिखा लड़का और टाई की गांठ उलटी? उसके जूतों पर पॉलिश तक नहीं?” बाबू जी घुड़क रहे हैं श्री कांत को। “क्या भांग पी कर गया था उससे मिलने?”

“मैं नहीं बाबू जी बे होश तो वो थी!” श्री कांत हंस रहा है। “शी हैज ए फोबिया!” श्री कांत बताने लगा है। “स्पेस साईंटिस्ट है – इसलिए घड़ी की सूइयों की तरह एड़ियां उचका उचका कर सड़क पर चलती है! एक एक सैकिंड समय का हिसाब रखती है। एक एक पैसे को गिन कर बैंक में जमा कर देती है। उसे अपना कैरियर किसी भी आदमी से ज्यादा कीमती लगता है! और बाबू जी उसे आदमी तो आदमी लगता ही नहीं! थोड़ी सी पागल है!” हंस गया है श्री कांत।

“अब क्या होगा श्री कांत?”

“पटा लूंगा बाबू जी!” श्री कांत खुल कर हंसा है। “मुझे मर्ज समझ आ गया है!” श्री कांत कह रहा है। “मॉं को कहना चिंता न करें। उन्हें इस बार एक अच्छी बहू मिल जाएगी!” श्री कांत ने फोन काट दिया है।

“जीने की इस नई राह – शिरोमणि की खोज तो करनी ही होगी श्री कांत!” उसने स्वयं से कहा है। “पटाते हैं ..!” वह हंस रहा है।

मेजर कृपाल वर्मा

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