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सॉरी बाबू भाग बासठ

सॉरी बाबू

“सरकारी वकील ने बुलाया है!” सरोज ने नेहा को सूचना दी है। “चली जा! इंतजार कर रही है तेरा!” वह बताती रही है।

“क्या हो सकता है?” नेहा ने स्वयं से प्रश्न पूछा है। वह कयास लगाने लगी है। “कोई दाल में काला हो सकता है क्या?” वह अनुमान लगाती है। “चल! देख लेती हूँ – वॉट इज दी हैसल ..?” वह तुरंत ही सरकारी वकील से मिलने चल पड़ती है।

“मुंह तो धो लेती कम से कम यार!” सरोज ने टोका है उसे। “बाल तो देख किस कदर दिल्ली बम्बई जा रहे हैं।” सरोज हंस पड़ी है।

नेहा ने कोई ध्यान नहीं दिया है।

“क्यों दुश्मनी निकालती है अपनों से?” सरोज ने फिर से टोका है।

“मर गया है मेरा बाबू सरोज बाई।” टीस कर कहा है नेहा ने। “अब किसके लिए करूं टीम टाम और कौन है जो ..?” गंभीर है नेहा। उसकी आंखों में निराशा घिर आई है। “क्या कर बैठी मैं पागल?” वह स्वयं से पूछ रही है।

और न जाने कैसे छबीला सजीला विक्रांत नेहा के सामने आ खड़ा होता है।

अचानक ही नेहा की जुबां से संवाद टूटता है – यू लुक लाइक ए डैमी गॉड! वह हंस रही है। सच बाबू! तुम्हारे सामने तो मैं कंजरी लगती हूँ – नेहा ने कहा है और विक्रांत को बांह पर छू लिया है। मैं .. मैं .. मैं तो ..

“मेरे हुस्न की मलिका हो।” विक्रांत कह रहा है। “लाजवाब हो तुम मेरी नेहा! तुम सा कोई है कहां? आई लव यू माई डार्लिंग!”

और तब नेहा सजती थी, बाबू के लिए श्रृंगार करती थी और एक एक हुस्न के कतरे पर धार धर कर रिझाना चाहती थी अपने प्रेमी को, अपने इच्छित पुरुष को और चाहती थी कि उसे सम्मोहित करे, प्रसन्न करे, पूजे और .. और उसे उम्र भर के लिए कहीं संजो कर रख ले – चुपचाप!

“यू आर सुपर्व नेहा।” विक्रांत ने उसे बांहों में भर कर कहा था।

“बेल क्यों नहीं ले लेती हो?” नेहा का मोह भंग कर दिया था एडवोकेट तारकुंडे ने। “बेल तो हुई पड़ी है।” वह कह रही थी। “मैंने केस स्टडी की है नेहा।” मिसिज तारकुंडे कह रही थी। “केस में तो कुछ भी नहीं है। बेकार क्यों जेल में पड़ी पड़ी सड़ रही हो तुम?” उनका प्रश्न था।

“मैंने अपने बाबू का खून किया है।” नेहा ने संयत स्वर में कहा था।

“तुम्हीं तो कहती हो – लेकिन फाइल तो नहीं कहती?” दलील दी थी तारकुंडे ने। “सारा जगत चिल्ला रहा है नेहा कि तुम निर्दोष हो। विक्रांत को तो शायद किसी साजिश के तहत मारा गया था। इट्स अ ग्रेट कंफ्यूजन!” उसने नेहा के खामोश चेहरे को पढ़ा था। “तुम्हारे तो चाहने वाले इतने हैं नेहा कि वो कुछ भी करने को तैयार है।” तारकुंडे कह रही थी। “अरे भाई! बाहर जाओ जेल से। ताजी हवा मिलेगी, लोग मिलेंगे और काम भी मिलेगा।” तारकुंडे हंसी थी। “तुम्हारे इंतजार में तो ..?”

“कोरा मंडी ..?” नेहा ने मन में कोरा मंडी का एक मंत्र की तरह स्मरण किया था। “अधूरी पड़ी है – कोरा मंडी!” नेहा को पता था। “खुड़ैल की खाट खड़ी हो जाएगी – अगर कोरा मंडी डूबी तो?” मुसकुराई थी नेहा। “कित्ता पैसा फूंका है – खुड़ैल के कहने पर – उसके सभी गुर्गों ने?” नेहा तो अनुमान भी नहीं लगा पाती। “कितनी कितनी पब्लिसिटी की है? कहा है कि – कोरा मंडी बहिश्त का दूसरा नाम होगी! कोरा मंडी ..”

याद आता है नेहा को कि रमेश दत्त ने बाहर से कलाकार बुला बुला कर कोरा मंडी के लगे सेटों पर पुष्पगंधा द्वीप पर अजनबी नाटक किये हैं! जहां गंधर्व सभाओं के सिलसिले हैं वहीं अंतरंग सभाओं तक के दृश्य बेजोड़ बना दिये हैं। मात्र पुष्प द्वीप की शोभा संरचना में न जाने कितना पैसा डुबो दिया है? कोरा मंडी का शरीर संपूर्ण बन गया है – लेकिन आज तक उसमें आत्मा का प्रवेश नहीं हो पाया है।

“निकाह के बाद कोरा मंडी को पूरा करेंगे नेहा।” खुड़ैल की आवाजें आती हैं। “मेरा बहुत मन है तुम्हारे साथ पुष्प द्वीप पर पहुंच कर पहले हनीमून मनाऊं।” उसकी आंखों में चिर परिचित लालसाएं उग आईं थीं। “कब से भूखा प्यासा हूं – तुम जानती तो हो।” वह हंसा था। “मैं अब तुम्हारे बिना एक पल भी जीना नहीं चाहता नेहा।”

और .. और विक्रांत का वायदा ..? बाबू की भी तो यही शर्त थी कि काल खंड पूरा होते ही हम शादी करेंगे? वो दो साल की लगातार मेहनत – और काल खंड का निर्माण अपने आप में ही एक इतिहास है।

“लो नेहा! वकालत नामा साइन कर दो।” तारकुंडे ने आग्रह किया है। “एंड डोंट वरी!” वह कह रही है। “बेल भी होगी और बरी भी होगी!” उन्होंने आश्वासन दिया है। “मुझे तुम से कुछ लेना देना नहीं है। इट्स प्योर ऑन ..”

“मुझे बेल नहीं लेनी!” नेहा उठ खड़ी हुई है। “मुझे जेल में ही रहना है।”

“लेकिन क्यों?”

“मुझे अपनी जान प्यारी है। मैं अभी मरना नहीं चाहती।” नेहा ने दो टूक कहा है।

“मुझे अपनी जान प्यारी नहीं है!” अचानक नेहा ने विक्रांत की आवाज सुनी है। “मुझे अपनी जान से ज्यादा ये दृश्य प्यारा है दोस्तों!” विक्रांत कह रहा था। ” मैं यही तो चाहता हूँ कि हमारा युवा समाज ये समझ ले कि जान की कीमत तो कौड़ियों में होती है जबकि मान की कीमत मनों में होती है।” विक्रांत भावुक था। “उन्होंने बलिदान दिया था – उसका अर्थ था एक मकसद था। भगत सिंह ने फांसी की मांग की थी – जीवन दान नहीं मांगा था।”

और उस दृश्य ने वास्तव में ही काल खंड को अमर बना दिया है।

एक एक दृश्य और एक एक घटना काल खंड में मोतियों सी जड़ी है। नेहा को याद है जब वह घंटों पुनीत जी के साथ इतिहास में घटनाएं खोज कर लाती थी। हजारी बाग जेल से जे पी का जेल तोड़ कर भागना, सत्रह फीट ऊंची दीवार को लांघना और क्विट इंडिया मूवमेंट में शामिल होना – एक ऐसी घटना थी जिसे देख कर दर्शक हैरान रह जाने थे।

नेहा की समझ में भी अब आया था कि हमें आजादी बिना खड़ग और बिना ढाल के नहीं मिली थी। हमने कुर्बानियां दी थीं, हमने जेलें भरी थीं, हमने लड़ाइयां लड़ी थीं और हमने ..!

“काल खंड को रिलीज करूंगी .. अवश्य रिलीज करूंगी!” नेहा जैसे विक्रांत से बतिया रही थी। “मैं यह जानती हूँ बाबू कि काल खंड तुम्हें अमर कर देगी और कोरा मंडी ..?”

नेहा का चेहरा फूल सा खिल गया था। उसे लगा था जैसे खुड़ैल उसकी मुठ्ठी में आकर बंद हो गया था। अब नेहा को उसे बंद मुठ्ठी में मसलना था .. और ये लो – मर गया खुड़ैल! आ गया अंत – रमेश दत्त दी ग्रेट का! हा हा हा! मरेगा .. अवश्य ही मरेगा ये मेरे हाथों – नेहा को पूर्ण विश्वास था।

कारण – कोरा मंडी अभी तक अधूरी थी। रमेश दत्त को विश्वास था कि वो एक न एक दिन नेहा को कोरा मंडी में जरूर नचाएगा और फिल्म में आत्मा का प्रवेश कर उसे जीवन दान दे देगा। नेहा के नाम की फिल्म शूट ही न हुई थी। साहबजादा सलीम न जाने कब से प्रेम संवादों को घोटा लगा रहा था। और न जाने कितने सपने उसने नेहा को लेकर देख लिए थे लेकिन ..

“तुम्हारी खैर नहीं कासिम!” भाई का हर बार फोन आता था तो वह रमेश दत्त को धमकाता था। “जानते नहीं – कित्ता पैसा बर्बाद हुआ है?” पूछता था भाई – हर बार। “उस साले टापू पर नोट बिछा दिये तुमने और एक एक बीच को तुमने ..”

पुष्प गंधा पर रचित चार बीचों का खूब जिक्र हुआ था। एक बीच प्रेमियों के लिए बनी थी तो दूसरी नसेड़ियों के लिए थी। एक बीच संभ्रांत लोगों के लिए थी तो दूसरी उन संसारियों के लिए थी जो जिंदगी के सारांश के साथ जीते थे और खूब पीते थे।

लौटते वक्त नेहा की नजर कल्प तरु पर पड़ी थी।

“अपना वायदा मत भूल जाना कल्प तरु!” नेहा ने आंख उठा कर कहा था। “मैं अपना वायदा निबाहूंगी अवश्य!” वह कह रही थी। “कोरा मंडी – डब्बा बंद!” हंस पड़ी थी नेहा। “डूबेगा खुड़ैल, मरेगा रमेश दत्त और वो सब भी डूबेंगे जिन्होंने इसमें अपने हराम की कमाई लगाई है।” नेहा आज बहुत प्रसन्न थी।

“काल खंड – खंड खंड हो कर बम्बई की सड़कों पर बिखर जाएगी, नेहा!” खुड़ैल उसे आजमगढ़ में आम के बगीचे में बैठ कर समझा रहा था। “कौन देखता है – आज कल इस मर मार को। देश प्रेम का गधा तो कब का लग गया, माई डियर। अब तो विश्व प्रेम की बात चल पड़ी है। कोरा मंडी को विश्व शांति का पुरस्कार मिलेगा और मेरी नेहा को ..” उसने नेहा को आगोश में ले लिया था। “तुम नेहा – मैं कहे देता हूँ कि तुम मेरे सपनों की रानी .. मेरी मुमताज महल दुनिया के दिलों पर राज करोगी ..!”

“पागल बना रहा था – मुझे, ये पागल!” नेहा ने कल्प वृक्ष को बताया है। “अब ये मेरा नाम गांव तक बदल देना चाहता था, मुझे इस्लाम बेच रहा था, मेरा नाम बदल रहा था और बदल रहा था वक्त की तकदीर, ये बेईमान!” नेहा जोरों से हंसी थी।

और .. और मैं बाबू तुम्हारे खयालों में खोई खोई सोच रही थी कि किस तरह से खुड़ैल की उस कैद से निकल भागूं। और अब मैं कामयाब हो गई हूँ। अब मैं इस खुड़ैल को नाकों चने चबाने को कहूंगी। लात मारूंगी इसे और अपने ही हाथों मारूंगी इस मुरदार को। तुम देखना बाबू किस तरह मैं बदला चुकाती हूँ, किस तरह रण चंडी की तरह मैं ..

तुम मरे नहीं हो बाबू – मैं जानती हूँ। तुम्हारा रचा काल खंड तुम्हें कभी मरने नहीं देगा। लेकिन बाबू तुम से मिलने के लिए मुझे तो अब मरना ही होगा!

मर जाऊंगी मैं, बाबू! ओह .. बाबू ..!

आई एम सॉरी बाबू!

मेजर कृपाल वर्मा
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