तुलसीदास का अध्यात्मिक चिंतन भारतीय चिंतन परंपरा का विकास है. गोस्वामी तुलसीदास युग प्रवर्तक कवि, महानिशी एवम सांस्कृतिक मूल्यों के प्रतिष्ठाता हैं. जीव और ब्रह्म के पारस्परिक संबंधों की चर्चा तुलसी साहित्य में पर्याप्त मिलता है. तुलसीदास जी जिव को इश्वर का अंश अविनाशी मानते हैं. इश्वर अंश-जीव अविनाशी चेतन अमल सहज सुखरासी. तुलसी का दर्शन समन्वय का रहा है, वे जितने भी जड़-चेतन हैं सभी को राम-मय मानते हैं. तुलसी व्यक्ति मात्र के गुण-अवगुण को नहीं, अपितु उनका दर्शन आदर्श के धरातल पर राम के आदर्श को जन-जन में पहुँचाने का था. यथा दृष्टव्य है ‘सिया राम-मय सब जग जानी करहु प्रणाम जोरी जुग पानी.’