ध्योमा चाय के दो प्याले लेकर ड्राइंग रूम में चली आई | छवि खड़ा हो गया | ध्योमा ने एक बार उसकी ओर देखा | हाथ कांप रहे थे | दिल भर आया था | उसे अपनी आँखों पर विश्वास ही न हो पा रहा था कि .. उस का सुहाग .. उसका अपना पति .. उसके सामने खड़ा था | उँगलियाँ प्यालों का बोझ न संभाल सकीं | प्याले फर्श पर गिर कर टूट गए ! लगा – किसी सुहागन कि चूड़ियाँ टूट गयीं थीं |
जब छवि के हातों ने ध्योमा को खुलकर आवाज दी तो .. किसी ने उसे ललकारा ! “ठहरो !! मै आ गया हूँ |” राज पिस्तौल ताने सामने खड़ा था | ‘कौन नहीं जानता कि तुम गन्दगी चाटने वाले कुत्ते हो ..? पर आज .. तुम्हारा ये आखिरी दिन है ?’ दांत भींच गए उसके और ऑंखें तन गई | छवि सिहर उठा था | वह कुछ कहना चाहता था – पर रुक गया | आवाज निकल ही न पाई | वह कसूरवार था .. और अब सजा भी सामने थी |
छवि को लगा – कि अगर गोली चल ही जाय तो अच्छा रहेगा ! कितने ही प्रश्नों का उत्तर उसे न देना पड़ेगा | उस के कितने अच्छे नसीब होंगे .. कि जो अपने ही बेटे के हाथों उस कि मौत हो ..?
‘रुक जाओ, राज!’ ध्योमा ने डांट कर कहा था |
‘मत रोको, उसे !!’ छवि बोला था | ‘अगर इस घिनोनी ज़िन्दगी का आज अन्त हो ही जाय तो अच्छा ही होगा ! मै बुरा हूँ .. बहुत बुरा हूँ !! मुझे मर ही जाना चाहिए ..! राज ! चला दो गोली !’ छवि जैसे भीख सी मांग रहा था |