‘ब्रिटिश राज’ और तथाकथित ‘अमरीकी साम्राज्य’ का विवेच्य व्यंग्परक आलेख संग्रह किसी देशी या विदेशी पर्यटक का विवरण मात्र नहीं है, बल्कि यह खालिस भारतीय मन और विवेक शील संस्कृति कर्मी का ह्रदय द्रावक और तटस्थ पर्यवेक्षक का लोमहर्षक यात्रा स्थापत्य है.
आम भारतीय मन ब्रिटिश राज, ब्रिटिश शैली और ब्रिटिश संस्कृति का विगत चार शताब्दियों से कायल रहा है पर तथाकथित अमेरिकन साम्राज्य विगत शताब्दी से ग्लोबल स्तर पर आर्थिक विनियोग और राजनैतिक वर्चस्व से अधिक हावी रहा है. ब्रिटिश राज का तिलिस्म और प्रभाव विवेच्य पुस्तक के प्रथम भाग में … ‘लार्ड क्लाइव’ की तलाश में, ‘ न्यूटन का सेब’, ‘अँधेरे का सूरज’ और ‘कव्वे हर जगह काले ही हैं’ के अंतर्गत फंटेसी शैली और कथात्मक प्रसंग में उजागर हुआ है. ‘वहां कोलंबस भी नहीं गया’ नामक दुसरे भाग में विचारधारा के स्तर पर अमेरिका के ‘इतिहास कम’ और ‘भूगोल अधिक’ पर तीखा व्यंग वर्णित है. ए बी सी डी नामक लेख जहाँ अमेरिकन बोर्न कन्फ्यूज्ड देशी की पोल खोलता है, वहां ‘देशी अमेरिकन’ से तात्पर्य प्रवासी भारतियों को विसंगति बोध है. अमेरिकन देशी जनमत अमेरिकी भारतीय की मानसिकता का शशक्त लेख है. ‘मौसमी परिंदे’ नमक आलेख भारतीय मन की विसंगतियों का खुलासा रचता है, तो वह तथाकथित अमेरिकन साम्राज्य की राजधानी न्युयोर्क पर विलक्षण व्यंग गाथा का पर्याय भी है.
देशी मन और विदेशी अनुराग की कल्पना और यथार्थ का मिलाजुला यह फैंटेसीनुमा व्यंग अपनी प्रस्तुति में लोमहर्षक ही नहीं है, बल्कि अपनी रचना प्रक्रिया में बिलक्षण स्थापत्य का मानक है.
विवेच्य संग्रह बिना किसी लागलपेट के भारतीय मष्तिष्क और अभिरुचि तथा अमेरिकन संस्कृति की टकराहट का पेंटिंगनुमा शब्द्कोलाज है.