अजय प्रजापति कभी भी किसी पत्रिका में प्रकट होकर अपनी मासूम सी किसी रचना से पाठक को प्रभावित कर लेते हैं. इन्होने अपने आसपास और खुद की दुनियादारी के अनुभवों से जो विषय तलाशे हैं और उन्हें सृजन में ढला है, वे मामूली से लगते हुए भी निम्न मध्यमवर्गीय समाज के कई बेरहम चेहरों व् चरित्रों को बेनकाब करते हैं. इन्होने यह अहसास दिलाया है कि कहानी इनके अन्दर किसी नदी की तरह बहती रहती है और वे खुद एक तैराक की तरह तैरते एवम गोता लगाते हुए मोटी निकालने में प्रयत्नशील रहते हैं.
कहानी ‘ लीक से हटकर’ में इन्होने लिंगभेद की एक सनातन त्रासदी को फोकस करते हुए लीक से हटकर एक समाधान देने की कोशिश की है.