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भारत में जन आन्दोलन एवं संवैधानिक मर्यादाएं

भारत में जन आन्दोलन एवं संवैधानिक मर्यादाएं

जन आन्दोलन विभिन्न सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक समूहों के लिए अपनी बात एवं समस्याएँ रखने का बेहतर माध्यम बनकर तो उभरे लेकिन दूसरी ओर इन जन आंदोलनों में संसदीय भावना भी प्रदर्शित हुई. किसी लोकतंत्र के प्रति असंतोष की लोकतांत्रिक राष्ट्र में जन आन्दोलन नागरिक अधिकार और नागरिक स्वतंत्रता की भावना तो प्रदर्शित करते हैं, लेकिन लोकतान्त्रिक संस्थाओं के प्रति अविश्वास चुनौतीपूर्ण प्रतीत होता है. हम सबका लक्ष्य मजबूत लोकतान्त्रिक और सशक्त राष्ट्र है. इस पुस्तक में विभिन्न प्राध्यापकों चिंतकों एवं शोधार्थियों ने जन आंदोलनों से सम्बंधित विभिन्न आयामों पर अपने विचार व्यक्त किये हैं, शोध के निष्कर्ष रखे हैं. पुस्तक में प्रकाशित शोध आलेखों से भारत में जन आंदोलनों को सकारात्मक दिशा मिले, लोकतान्त्रिक प्रक्रिया निरंतर मजबूत हो, राजनितिक डाल जनसेवा के प्रति निरंतर जवाबदेह बने रहे. अतः इस गहरे चिंतन मनन से सफल लोकतान्त्रिक भारत को हम मजबूत बनायें, देश की एकता एवं अकन्द्ता अक्षुण रहे, यही हम सबका लक्ष्य है.

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