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Antim Pranam

Antim Pranam - Dr. Anant Kabra

दिल ने जिसे चाहा

उसे दिमाग ने ठुकरा दिया

सुख जिसके साथ बंधे थे

उसके बिछोह ने उसे बिसरा दिया

शांति जो जीवन के साथ थी

उसे अंतर्मन की त्रासदी ने बिखरा दिया

इस तरह हमारा प्रेम

किसी दीवार पर भी रंगने लायक ना रहा

बस हमेशां

एक गढ़ी कील दिखती रही

जो औरों की आँखों में

गैरों को चुभती रही

साँसों ने जिसे बीना और चुना

वहां केवल

हमारे टूटे स्वप्न थे

बुझे चेहरे के मरे आसन थे

इस तरह रेंगा जीवन घसीटा गया

बार-बार कटा फटा और फाड़ा गया

बुहार के लिए हमे

एक नहीं कई बार झाडा गया |

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