दिल ने जिसे चाहा
उसे दिमाग ने ठुकरा दिया
सुख जिसके साथ बंधे थे
उसके बिछोह ने उसे बिसरा दिया
शांति जो जीवन के साथ थी
उसे अंतर्मन की त्रासदी ने बिखरा दिया
इस तरह हमारा प्रेम
किसी दीवार पर भी रंगने लायक ना रहा
बस हमेशां
एक गढ़ी कील दिखती रही
जो औरों की आँखों में
गैरों को चुभती रही
साँसों ने जिसे बीना और चुना
वहां केवल
हमारे टूटे स्वप्न थे
बुझे चेहरे के मरे आसन थे
इस तरह रेंगा जीवन घसीटा गया
बार-बार कटा फटा और फाड़ा गया
बुहार के लिए हमे
एक नहीं कई बार झाडा गया |
- डॉ. अनंत काबरा