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अँधेरे के विरुद्ध

andhere ke viruddh

‘अँधेरे के विरुद्ध’ में संगृहीत कवितायेँ समय-समय पर मेरे अंतर्मन में उठे भावों की अभिव्यक्ति है. यह सच है की मै कवि नहीं हूँ, साहित्य का अध्येता हूँ और बरसों से कविता को पाठ की तरह पढता और पढाता रहा हूँ. इस क्रम में जब जैसे भाव उठे मेने उन्हें शब्द दे दिया. प्रस्तुत काव्य संकलन में मेरी कवितायेँ नहीं मेरे वही भाव संकलित हैं. मेरे भाव-कंठ से फूटे ये शब्द यदि किसी रूप में कविता या कविता जैसे हैं तो इन्हें मै आप सुधि पाठकों को सौंपता हूँ. इन कविताओं के सम्बन्ध में मुझे कुछ नहीं कहना है. पर इतना अवश्य कहना चाहूँगा की इन कविताओं में कही हाशिये पर पड़े आदमी की दर्द भरी आवाज है. कही पर्यावरण चेतना की झलक है तो कहीं मात्र तुकबंदी की गई है. प्राय हर कविता में किसी न किसी रूप में अँधेरे के विरुद्ध प्रतिरोध है.

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