संकल्प के दिमाग में एक चक्र घुमने लगा था| उस घूमते चक्र में वह चंद चमकते बिन्दुओं को पहचानने लगा था| ‘दौलत! हर .. हर बुराई के मूल में दौलत!’ उसे लगा घूमते चक्र का केंद्र बिंदु भी दौलत ही था| प्रनभ को बर्बाद करने का सबब – दौलत| सुजाता के समूचे परिवार को गारत करने में हाथ था – दौलत का| जिस हाल में वो था – उसका सबब भी था – दौलत|
दौलत! दौलत!! दौलत!!! लगा हवेली दहाड़ें मार-मार कर रोने लगी हो| संकल्प के दिमाग में इस दौलत को मिटने हेतु उगे ज्वालामुखी अब आग उगलने लगे थे|
‘तुम यहीं रहना, सूजी!’ संकल्प कहीं जाने की तैयारी करने लगा था|
‘नहीं, संकल्प| मुझसे .. अब नहीं सहा जाता ..! में ..में जान दे दूंगी| अगर तुम गए तो ..’
‘डरो मत! विश्वास करो मुझ पर! वादा रहा .. मेरी एक आँख तुम पर हर पल पहरा देगी| तुम्हारी हर सांस के साथ मेरा सम्बन्ध होगा| हमे मिल कर एक अंत को लाना होगा, सूजी| हमे लड़ना पड़ेगा ..!’ संकल्प ने सुजाता को समझाया|
भोर के एक सजीले सपने को स्वीकार दोनों रात के उस अँधेरे में ही जुदा हो गए थे|