लाख मना करने के बाद भी सौहन लाल छुट्टी मांगने अड़ा खड़ा था!
वक्त था कि अनेकों संभावनाओं से गुजर रहा था। लड़ाई लगने वाली थी। पलटन को लड़ाई में जाने के आदेश आ चुके थे। कैम्प उखड़ रहा था। सामान गाड़ियों में लद रहा था। प्लेट फार्म पर मिलिट्री स्पेशल लगी थी। उसे भी आज रात रवाना होना था। कितना काम था .. उफ ..!
“कह दिया न साहब! छुट्टी बंद है!” मैंने झुंझला कर सुबेदार गुरुदेव सिंह से कहा था। “आप बताए न इसे कि ..”
“आप से बात करना चाहता है!” सुबेदार साहब ने निवेदन किया था।
“बुलाइए!” मैंने आदेश दिया था।
सौहन लाल का मुंह उतरा हुआ था। हवाईयां उड़ी हुई थीं उसकी पेशानी पर। आंखों में आंसू डबडबा रहे थे। कोई गहरी व्यथा थी – जो उसे सता रही थी। मैं द्रवित हो गया था। सौहन लाल .. हॉं हॉं .. मैं इस सौहन लाल को बखूबी जानता था – क्योंकि यह हर इतवार को मुझे घर आकर हेयर कट देता था और खूब सारी पलटन की गप्पें सुनाता था! सौहन लाल .. सबका प्रिय था – सौहन लाल!
“साब! मैं .. बरबाद हो जाऊंगा – अगर छुट्टी न मिली तो ..” सौहन लाल सुबकने लगा था।
“माजरा क्या है भाई?” मैंने विनम्रता पूर्वक पूछा था।
“शादी ..!” वह हकलाते हुए बोला था। “कठिनाई से तय हुई है! मैंने पांच हजार दिये हैं! अगर मैं न पहुंचा तो .. फिर जिंदगी भर ..” वह फिर से फफक फफक कर रोने लगा था।
“इसने कौन सी तोप चलानी है साहब!” सुबेदार गुरुदेव सिंह बोले थे। “नाई है! ये कौन सा जनरल बनेगा – जो ..?”
“छुट्टी आर्मी हैडक्वाटर ने बंद की है साहब! आप जानते तो हैं कि ..” मैंने कठिनाई का खुलासा किया था। “मैंने कभी किसी की छुट्टी नहीं रोकी! मैंने कभी किसी का प्रमोशन नहीं रोका! मैंने कभी ..” मैं उद्विग्न हो उठा था क्योंकि मुझे अपनी असमर्थता पर आज शर्म आ रही थी!
मैंने बाहर आंख उठा कर देखा था। उजड़ रहा था कैम्प! लद रहे थे हमारे तम्बू! जा रहे थे हम – युद्ध के मैदान में। हर किसी का दिल धड़क रहा था। हर किसी को पता था .. कि ..
रोता बिसूरता सौहन लाल लौट गया था!
अचानक मुझे याद आया था कि मैंने अपनी गृहस्ति का सामान अभी तक पैक नहीं किया था। कारण – आदेश थे कि अफसरों के परिवार चले जाएंगे लेकिन उनके घर ज्यों के त्यों सजे बजे रहेंगे .. ताकि दुश्मन को संदेह रहे कि हम घरों में सो रहे थे! तनिक सी हंसी ने मेरे होंठों को छू लिया था।
बेटे को साथ लेकर कुसुम चली गई थी। घर खाली था। मैं अकेला था। रात घिर आई थी। और फिर अचानक ही सौहन लाल का अश्रु पूरित चेहरा मेरे सामने था! “अगर मैं न पहुंचा तो फिर जिंदगी भर” उसकी की विनय बार बार मेरे कान फोड़े दे रही थी। मैं क्षत विक्षत होने लगा था। ये अपराध मुझसे पहली बार हो रहा था .. और वो भी इसलिए कि .. छुट्टी ..
एक नहीं – सवाल अनेकों का था .. देश का था .. मैं तो ये जानता था .. समझता भी था लेकिन .. सौहन लाल ..?
“नहीं, कृपाल छुट्टी तो नहीं मिलेगी!” अचानक मैं मेजर पाठक की आवाजें सुनने लगा था। “तुम्हारे बिना कौन है – जो ..?”
“सर, मेरी शादी है!” मैं गिड़गिड़ाया था। “ये देखिये! निमंत्रण पत्र छप गये हैं! और ये देखिये सर ..”
“यार! ये सब तो होता रहता है ..”
“नहीं सर मैं न पहुंचा तो – कितनी बेइज्जती होगी घर वालों की .. बेटी वालों की .. और फिर ..?” मैं बिफर पड़ा था।
“पंद्रह दिन ले लो! पार्ट ऑफ यॉर एनुअल लीव?”
“चलेगा!” मैं तुरंत मान गया था।
लेकिन सौहन लाल को तो मैंने आज खाली हाथ लौटा दिया था?
“सर! एक दिन के लिए बम्बई जाना है! फीजी से फादर इन लॉ आ रहे हैं। सिर्फ मिलना है .. और ..”
“छुट्टी तो नहीं मिलेगी कृपाल!” दो टूक उत्तर था मेजर साहनी का। “किसी कीमत पर भी मैं तुम्हें छुट्टी नहीं दूंगा!” उनकी घोषणा थी।
मैं खड़ा खड़ा मेजर साहनी का मुंह देखता रहा था। कह भी क्या सकता था? सेना का अनुशासन – अपने ढंग की एक अजब गजब प्रणाली है। एक ऐसी प्रणाली जिसका न कोई जोड़ है और न कोई तोड़! कमांडिंग ऑफिसर की मर्जी है – छुट्टी दे या कि मना कर दे! कारण – उसकी कमांड की व्यथा कथा वही तो जानता है! छुट्टी है तो आपकी प्रिवलेज पर अधिकार उसपर देने वाले का है!
अचानक मेरी हंसी छूट गई थी। मैं अकेला था। मैं अकेला था – घर में और खूब ही हंसा था। घटना थी – कैप्टन विक्टर की मैरिज पार्टी! शादी करके लौटा था वह। नई नवेली दुल्हन साथ आई थी। बड़ी अच्छी लड़की थी। मेरठ की थी। चूंकि वो हम सब में छोटी थी अत: हम सब उसे लाड दुलार देने में व्यस्त थे!
“तो आप हैं कर्नल दुआ?” मंजू ने पास आ बैठे कर्नल दुआ को पहचान लिया था। “बड़े काइयां हैं आप?” मंजू ने उन्हें पूछा था।
कर्नल दुआ का चेहरा उजड़ सा गया था। अभी अभी उनके चेहरे पर खेलती खुशी छूमंतर हो गई थी। पूछा प्रश्न उन्हें दहला गया था। मंजू तो नई थी .. मंजू तो ..
“छुट्टी देने में इतने कंजूस .. इतने काइयां ..” मंजू फिर से कहने लगी थी।
बहती खुशियों और उन कूदते फांदते खिलंदड़ों ने अचानक एक खतरे को सूंघ लिया था। अब सबकी निगाहें मंजू और पास बैठे कर्नल दुआ पर आ टिकी थीं!
मैंने माजरा भांप लिया था। पलट कर जब मैंने कैप्टन विक्टर को देखा था तो उसने मुंह फेर लिया था। वही था – चोर .. वही था गुनहगार और वही था – भांडा फोड़!
“देखो भाई! हम सबकी छुट्टी कर्नल साहब ने प्लान करनी है!” मैं अपने अफसरों को बता रहा था। “अपनी अपनी चॉइस लिखकर मुझे दे दो!” मैंने आग्रह किया था। “लेकिन ध्यान रखना – जो चॉइस तुम दोगे मिलेगी उसके विपरीत! कर्नल दुआ की ये आदत है कि वो जो मांगोगे देंगे उसके बर खिलाफ!” मैं हंसा था।
“सर, मेरी तो शादी है मई जून में!” कैप्टन विक्टर कहने लगा था।
“तो – चॉइस – नवंबर दिसंबर दे दो दोस्त!” मैंने सुझाव दिया था। “अगर मई जून दे दी तो होली तुम्हारी शादी?” हम सब हंस पड़े थे।
और अब कैप्टन विक्टर शादी कर के लौटा था – मई जून का महीना समाप्त होने वाला था। और अब मैं जानता था कि इस पाजी विक्टर ने मंजू को कर्नल दुआ के छुट्टी देने के प्रयोग को कह सुनाया था!
और अब हो तो क्या हो ..?
“सर, सूप ले लीजिए!” मैं उन दोनों के बीच आ कूदा था – एक गुनहगार की तरह। “मंजू ने बनाया है – आपकी चॉइस का!” मैं बता रहा था।
कर्नल दुआ ने मेरी आंखों में झांका था। उनमें डोलती शरारत को उन्होंने पकड़ लिया था। वह तनिक से हंसे थे और फिर उठ कर मेरे साथ हो लिए थे।
“कृपाल!” उन्होंने बड़ी ही आजिजी से मुझे संबोधित किया था। “जब तुम कमांड संभालोगे .. सी ओ बनोगे .. तब तुम्हें पता चलेगा कि ..”
“सर! मैं मानता हूँ .. सर! वो क्या था कि ..”
फिर हम दोनों ही हंस पड़े थे! पाजी विक्टर न जाने कहां जा छुपा था? मंजू के साथ अब मिसिज दुआ आ बैठी थीं और समझा रही थीं उस अबोध बच्ची को कि सर्विस के तौर तरीके और नियम कानून क्या क्या होते हैं!
“सी ओ साहब ने बुलाया है!” सामने खड़ा सी ओ का ऑर्डली मुझे सूचना दे रहा था।
बम के फटने के धमाके से कम डरावनी घटना न थी सी ओ का ये आदेश आना! मैं बुरी तरह डर गया था। घबरा गया था। क्या हुआ होगा – जो ..? फिर हिम्मत बटोर कर मैंने जैसे तैसे सी ओ के ऑफिस तक की यात्रा पूरी की थी। हलचल मची थी चारों ओर। मैं समझ ही न पाया था कि माजरा क्या था!
“सौहन लाल को छुट्टी भेज दिया?” सी ओ साहब का प्रश्न था।
“नहीं, सर!” मैंने तुरंत उत्तर दिया था। “आया तो था छुट्टी मांगने। रो पीट रहा था। कह रहा था कि शादी है, पांच हजार रुपये देकर आया था ओर कह रहा था कि बर्बाद हो जायेगा ..” मैं रुक रुक कर पूरी घटना बता रहा था। “लेकिन मैंने छुट्टी नहीं दी!” मेरा साफ साफ इजहार था।
“ऑफिस के बाहर 11 लोग छुट्टी मांगने खड़े हैं!” सी ओ साहब बता रहे थे। “कहते हैं – सौहन लाल छुट्टी चला गया है .. और ..”
“न .. न नहीं सर! म .. मैंने ..”
“मैं क्या कहूँ!” सी ओ साहब मुझे पूछ रहे थे। “क्या बताऊं इन्हें ..?” उनकी आवाज गुरु गंभीर थी। “समस्याएं तो इनकी भी हैं! समस्याएं तो सब की हैं! सभी छुट्टी चले जाएंगे तो .. देश ..?”
जटिल प्रश्न था। देश को आज हम सैनिकों की जरूरत थी। दुश्मन दरवाजे पर दस्तक दे रहा था। लड़ाई कभी भी आरम्भ हो सकती थी। और अगर हम सब छुट्टी चले गये तो ..?
“इट्स नॉट ऑन कृपाल!” गहरी उच्छवास छोड़ते हुए सी ओ साहब बोले थे। “कहां है – सोहन लाल ..?” उनका प्रश्न आया था।
क्या बताता? मैं तो डरा हुआ था। क्या पता था मुझे कि उस सौहन लाल के शादी के भूत ने न जाने उसे कहां ले जाकर मारा होगा?
“आइ विल फाइंड आउट सर!” मैंने उत्तर दिया था।
मैं चला तो आया था लेकिन मुझे पता था कि इस सौहन लाल ने मेरी नइया डुबो दी थी!
खेमकरन में घमासान युद्ध हो रहा था। एक मीडियम ओ पी ऑफिसर को लड़ाई के लिए फौरन रवाना होना था। खबर सनसनीखेज थी। कौन जाएगा – इसका निर्णय सी ओ साहब को ही करना था। उन्हें ही देखना था कि उस होते घमासान में वो किसे भेजें? कौन था जो ..
“आपका नाम है, साहब!” सुबेदार गुरुदेव सिंह ने मुझे सूचित किया था। “अभी जाना पड़ेगा!” वो बता रहे थे।
ये सूचना मेरे लिए नई न थी। मैं तो जानता था कि .. अब मेरा ही नाम बुलेगा और अब मैं ही था .. जो ..
“साहब, लड्डू!” सौहन लाल लड्डू ले कर ऑफिस में घुस आया था। वह शादी करके लौट आया था। उसका चेहरा सितारों सा चमक रहा था। आंखों में खुशियां नाच रही थीं!
“मैं चलता हूँ साहब!” मैंने सुबेदार गुरुदेव सिंह से कहा था और ..
“लड्डू तो खाते जाइए साहब!” सुबेदार गुरुदेव सिंह ने हंस कर कहा था। “शुभ सामने आया है!” उनका कहना था। “सारी आपकी आय-बलाय उतार देगा!” उनका कहना था।
मैंने सौहन लाल की शादी के लड्डू खाए थे! और फिर मैं खेमकरन के लिए रवाना हुआ था और सौहन लाल 28 दिन की सजा काटने के लिए क्वाटर गार्ड में पहुँच गया था!
मेजर कृपाल वर्मा

