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सपनों में क़ानू

picnic in jungle


दोस्तों!यह वाला क़िस्सा बहुत ही मज़ेदार है,हुआ यूँ की एक दिन  सवेरे  बच्चे स्कूल चले गए,और पतिदेव भी जल्दी काम पर निकल गए…हमने भी अपने घर का सारा काम जल्दी ही निपटा लिया  था। उस दिन घर में केवल दो ही लोग रह गए थे, वो थी मैं और मेरी  क़ानू-जानू। जब कभी ऐसा होता है, कि क़ानू घर में मेरे साथ अकेली रह जाए ..तो यकीन मानिए रोज़ से ज़्यादा मस्ती के मूड में आ जाती है। अपनी प्यारी सी गर्दन को घुमा-घुमा और पेपर-कटिंग जैसे कान मस्ती में हिलाकर खूब नटखट-पन करती रहती है, सारे घर में। क़ानू की आँखों में शैतानी भरी चमक आ जाती है, जब कभी मेरा नन्हा सा स्टफ टॉय मेरे साथ घर में अकेला रहता है। मैं क़ानू से पूछती हूँ,”काना अब आप क्या कलोगे” इस बात के जवाब में क़ानू अपनी प्यारी सी जीभ बाहर निकालकर और उसे  मुहँ के साइड में लटकाकर मुझसे कहा करती है”खूब मस्ती करेंगे,ईएपीपी!!”। अकेले घर में क़ानू ही तो महारानी होती है।
खैर!हुआ यूँ की हमारे पास कोई काम न होने के कारण हम थोड़ी सी देर के लिए बिस्तर पर लेट गए थे,,सोचा!चलो जब तक  नन्हे -मुन्हें स्कूल से आयें  तब तक थोड़ा सा आराम ही  फ़रमा लेते हैं। हमारा बिस्तर पर लेटना हुआ, कि हमारा प्यारा सा सफ़ेद  ऊन का गोला मेरी प्यारी सी छोटी सी क़ानू भी हमारे साथ साइड में चिपक कर लेट गयी। अपना मुलायम सा सफ़ेद सा सिर हमारी गर्दन  के अन्दर चिपका लिया था, हमसे यूँ चिपक गया था मेरा काना जैसे बन्दर का बच्चा अपनी माँ से  चिपक जाया करता है। मैं और क़ानू एक साथ चिपक कर बिस्तर में आँखे बंद कर लेट गए थे, क़ानू के साथ करीब होकर मुझे भी बहुत प्यार भरा  अहसास हो रहा था, अपने प्यारे से गुदगुदे से स्टफ टॉय काना-माना को और भी पास कर, हम दोंनो को कम्बल से ढक लिया था, मैने। प्यार भरी गर्मी हम दोनों के बीच कम्बल में आ गयी थी, इसी प्यार भरे स्पर्श और अहसास में, मैं और मेरी प्यारी सी और सबसे न्यारी सी  क़ानू  एकदम गहरी नींद में चले गये थे।
गहरी नींद आने के बाद ऐसा लग रहा था, मानो सिनेमा घर में कोई पिक्चर शुरू हो गयी है। मैंने देखा, मैं और क़ानू एक बहुत सुंदर सी ओपन कार में सारा सामान वगरैह लेकर कहीं घूमने जा रहे हैं। मेरी क़ानू ने बहुत ही सुंदर फूलों वाली फ्रॉक पहन रखी है, और सिर पर बो वाली हैट लगा रखी है। कंधे पर छोटा सा  बार्बी डॉल वाला पर्स लटका रखा है…पैरो में छोटे -छोटे  बुक्कल वाले सैंडल पहन कर जम रहीं हैं, मैडम। कार में हमारे साथ  अकड़ कर शान से बैठी हुईं हैं, काना रानी। और कार के पीछे वाली सीट पर मैंने और क़ानू ने खाने-पीने की टोकरी रखी हुई है, साथ में खेल -कूद का सामान भी भर रखा है…जैसे रेड  कलर वाली क़ानू की  बड़ी वाली रबर बॉल, क़ानू की पसंदीदा डॉल्स हैं, एक थैले में , क़ानू रानी की वाटर बोतल और  हाँ! क़ानू का प्लास्टिक वाला बैट बॉल का सेट भी है। बहुत सुंदर से प्रिन्ट वाली छोटी सी दरी भी रखी है हमारी कार के पीछे  वाली सीट पर। पूरे पिकनिक के समान से लहेस होकर हम दोनों तेज़ी से अपनी ओपन कार में  जा रहें हैं। इधर-उधर गर्दन कर  और अपनी प्यारी सी पिंक कलर की जीभ मुहँ के साइड में लटका कर काना-माना पूरे रास्ते का मज़ा ले रहा है। हम भी क़ानू की तरफ देखते हुए मज़े से कार ड्राइव कर रहें हैं, ऐसा लग रहा है,मानो क़ानू हमसे अपने प्यारे-प्यारे कान अपनी हैट में से हिलाकर और अपनी नटखट भरी  मुस्कान से कहती जा रही हो” हुर्रे!””हुर्रे!!”शोर मचाती चल रही हो कार में, आज खूब मज़े से खाएँगे पियेंगे और माँ के साथ खूब जमकर पिकनिक  मनाएंगे। और हमसे कहती जा रही थी”माँ!काश! की भईया, दीदी को भी साथ ले आये होते , तो और भी मज़ा आता”। अरे!हाँ!एक बात तो हम बताना भूल ही गये कि क़ानू ने अपने गले में एक छोटा सा खिलौने वाला  कैमरा भी लटका रखा था। हमारी और क़ानू  की कार फुल स्पीड में जा रही थी, ओपन कार होने के कारण तेज़ हवा हमारे कानों के आर-पार हो रही थी। खूब मजा आ रहा था, पिकनिक जो मनाने जा रहे थे, मैं और मेरा काना। अब तो और भी मज़ा आने लगा था, एक प्यारी सी पोयम चलती गाड़ी में गाने लगी थी, क़ानू।
अचानक हमने क्या देखा,एक मोड़  आ गया और हमनें अपनी गाड़ी मोड़ ली थी, अँधेरी सी गुफा में हमारी कार अन्दर घुस गई थी, मैं और मेरी क़ानू थोड़ा डर से गये थे, और हम दोंनो डर के मारे हुनुमान चालीसा का जाप करने लगे थे..पर हमारी कार चलती ही जा रही थी। तभी  अचानक हमने देखा कि ,अरे!हम तो  अँधेरे से उजाले में पहुँच गए, “वाओ!कितना प्यारा सा दृश्य आ गया है, अरे!एकदम ब्यूटीफुल सा फॉरेस्ट है ये तो!”हमारी कार  सुन्दर से जंगल में  एन्ट्री ले चुकी थी। जैसे ही हमारी कार जंगल में घुसी मेरा क़ानू एकदम हैप्पी हो गया था, गोल-गोल आँखे घूमने लगीं थीं, और उनमें एक अनोखी सी चमक आ गयी थी। सुन्दर से हरे-भरे मैदान में जाकर हमने अपनी कार रोक ली थी,आख़िर इतनी लंबी ड्राइविंग कर के थक गए थे मैं और मेरी क़ानू। क़ानू फटाक  से अपने तामझाम सहित कार के गेट के ऊपर से  कूदी थी, हम भी गेट खोल हरे-भरे मैदान में  गाड़ी के बाहर आ गए थे। मैदान में खड़े होकर मस्ती भरी अंगड़ाई ली थी हमनें। क़ानू भी इधर-उधर दौड-दौड कर मस्ती करने लग गयी थी। दूर हरे-भरे मैदान में दौड़ जाती और अपनी गर्दन घुमाकर हमें दूर से ही देखती ,फ़िर तेज़ी से दौड़कर हमारे पास आ जाती। आसपास बड़े-बड़े हरे-भरे  पड़े भी थे। यह मैदान जहाँ हमारी और क़ानू की कार आकर रुकी थी, घने से जंगल के बीच में ही तो था।
बस!फ़िर क्या था, हमने अपनी लक्ज़री कार के दोनों तरफ के गेट खोल दिये थे, और क़ानू भी फुल मस्ती में आ गया था। अपने छोटे से कैमरे को आँखों में लगाकर और अपना इलायची जैसा मुहँ ऊपर कर न जाने कौन से फ़ोटो शूट में  बिजी हो गयी थी मेरी क़ानू। सच!प्यारी बहुत लग रही थी, यूँ हैट पहने हुए, कैमरे से फ़ोटो शूट करते हुए , अपनी फ्रॉक को हिला-हिलाकर और अपने कलरफुल जूतों में फुदकती फिर रही थी मेरी क़ानू, फुल पिकनिक के मूड में आ गए थे हम दोनों। आख़िर जगह भी तो बहुत सुंदर थी। क़ानू को देखकर ऐसा लग रहा था, मानो कह रही ही”ये!!अब करेंगे जंगल में मंगल,माँ फ़ोटो भी खूब खींच कर ले जाएँगे, भइया, दीदी से अपना फेसबुक एकाउंट बनवा लूँगी, और सारी फ़ोटो पोस्ट करूँगी..ये!!!”। वाह!सच!में मज़ा तो बहुत आ रहा था।
अब हमने क़ानू से कहा था,”चलो काना,बेटा रखो अपना कैमरा एक तरफ और अपनी हैट भी उतारो,चलो पीछे वाली सीट पर से सारा सामान उतरवा कर नीचे रखो”। हमने और क़ानू ने सबसे पहले हरी-भरी घाँस पर अपनी सूंदर प्रिन्ट वाली चटाई बिछाई थी,फ़िर क़ानू धीरे-धीरे अपना सारा स्पोर्ट्स का सामान उतारकर ला रही थी। क़ानू ने धीरे-धीरे मुहँ से पकड़कर अपने सारे टॉयज और खेल -कूद का सामान एक तरफ रख दिया था। और हमने सारा खाने-पीने का सामान अपनी दरी पर ठीक ढंग से जचा लिया था। “ओह!थक गए”मेरे और क़ानू के मुहँ से निकल था..और मैं और मेरा क़ानू मज़े से मस्ती भरे अंदाज़ में चटाई पर लेट गए थे। हमारी आँखों के ऊपर बहुत मनभावन नीला आसमान था, और चारों तरफ हरियाली थी,बेहद सुकूनभरा और  मनभावन दृश्य था।
अरे!अचानक यह क्या हुआ, क़ानू उठकर और अपनी गुड़िया जैसे अंदाज़ में बैठकर ज़ोर-ज़ोर से भौंकने लगी थी, हम हैरान हो गए थे,हुआ तो हुआ क्या, सब तो ठीक है, फिर ऐसे कैसे क्यों? हमने सोचा काना को भूख लग रही होगी,तो कहा”चलो, खाना निकालते हैं,”।”काना सब्ज़ी पूरी खायेगा”। पर नहीं भौंकना तेज़ी से शुरू हो गया था, और क़ानू झाड़ियों की तरफ भागी जा रही थी, सो हम भी झट से क़ानू के पीछे हो लिए। झाड़ियों के पास जाकर रुक गयी थी क़ानू और हाँफने लगी थी। हम धीरे से झाड़ियों के पास गए थे, और एक लकड़ी की मदद  से थोड़ा सा झाड़ियों को  इधर-उधर करके देखा था, अरे!क्या देखते हैं..बन्दर!!
झाड़ियों के पीछे  अच्छा खासा मोटा बन्दर बैठा था,भई हम तो बुरी तरह से डर गए थे, क़ानू भी  थोड़ा डरी हुई सी लग रही थी। खैर!कुछ नहीं बन्दर हम से और क़ानू से कुछ न बोला था, शाँत होकर हम दोनों की तरफ़ देखता रहा था, मैं क़ानू को लेकर धीरे-धीरे पीछे हटती जा रही थी, डर लग रहा था, कि बन्दर कहीं झपट्टा मारकर काट न ले, मेरी क़ानू डॉल को.हमने सुना है, बन्दर बहुत तेज़ होता है, थप्पड़ भी मार देता है।  
बन्दर भी हमें देखकर धीरे से झाड़ियों से बाहर आ गया था, और हरी-भरी  घाँस वाले मैदान में आकर शाँत होकर बैठ गया था,बन्दर हमें घूर रहा था,और हम बन्दर को घूरे जा रहे थे।हम्म!अब समझ में आया बन्दर मामा क़ानू से दोस्ती करना चाहते थे, और क़ानू के साथ खेलना चाहते थे। भई!मेरी क़ानू फ्रॉक-श्रॉक  पहनकर और हैट-वेट लगाकर इम्प्रेसिव भी तो कितनी लग रही थी। बन्दर को देखकर ऐसा लग रहा था, मानो बन्दर मामा हमसे कह रहे हों,”welcome to my place” आप दोनों का हमारे घर में स्वागत है, और बन्दर मामा हमसे कहने लगे ,आने से पहले बता दिया होता तो हम सभी आप के स्वागत में खड़े मिलते, और क़ानू के हाथ में छोटा सा खिलौने वाला मोबाइल देखकर कहने लगे,”मेरी  प्यारी बहना क़ानू फ़ोन ही कर दिया होता,तो जंगल के बाहर ही खड़ा मिलता ..आने में भी कोई तकलीफ़ न होती”। क़ानू बन्दर की तरफ देखकर एक बार फ़िर ज़ोर से भोंकी थी, मानो पूछ रही हो,”पर बन्दर मामा, बाकी सब किधर?..हाथी काका,भालू भइया लोमड़ी दीदी और मेरे प्यारे दोस्त हिरण सब कहाँ है?”बन्दर ने क़ानू की बातों का हँसकर जवाब दिया और कहा था”अरे!सब लोग शादी में गये हैं, एक दो दिन में आ जाएंगे, मैने कहा तो है, तुमसे फ़ोन कर के आतीं तो सब से मुलाकात हो जाती। खैर!चिन्ता वाली कोई बात नहीं है, मैं तुम्हारे आने की ख़बर दे दूंगा, काना-माना और आंटी आये थे।”क़ानू एक बार बन्दर की तरफ देखकर फ़िर भोंकी थी, मानो कह रही हाँ!”,चलो कोई बात नहीं, अबकी बार फ़ोन कर के और अपने दीदी,भइया को भी साथ लाऊंगी और सबसे मिलूँगी”।
क़ानू और बन्दर एकदम शान्त हो गए थे, हमने भी दोस्ती का हाथ बढ़ाते हुए बन्दर की तरफ एक केला फेंक दिया था। और बन्दर ने फटाक से केला उठाया था, और जल्दी से छील कर गप्प से पेट के अन्दर डाल लिया था। अब तो क़ानू  बन्दर मामा के साथ खेल -कूद में मगन हो  गयी थी। अपने सारे टॉयज़ दरी पर क़ानू ने फेला दिए थे, और अपने बन्दर मामा के साथ हैट-वैट पहनकर और अपना कैमरा अपनी कोमल गर्दन में लटकाकर खेल में मगन ही गयी थी, हमने अपनी क़ानू की गर्दन में से होले से कैमरा निकाला था, और बन्दर मामा के साथ एक प्यारा सा फ़ोटो भी खींच डाला था। अचानक क़ानू को याद आया,और कहने लगी”चलो न माँ, बन्दर मामा के साथ एक क्रिकेट मैच हो जाए,”। हमनें भी कह दिया था, “ठीक है”।
मैच शुरू ही गया था, बन्दर मामा ने बैटिंग  सँभाल रखी थी, क़ानू बॉलिंग करने में लगा हुआ था,और हम फैल्डिंग सँभाल रहे थे, हमारे मैच के आगे कोई क्रिकेट मैच न टिक पा रहा था। सच!कहें तो मैच तो यह था भाई! क़ानू versus बन्दर मामा।
“चलो,भई”,हमने आवज़ लगाई थी, “आ जाओ, बन्दर बेटा, क़ानू को लेकर खाना खाएँगे भूख लग आई  है,” खाने का मज़ा लेते-लेते हमारे ऊपर पानी का गिलास गिर पड़ा, और हमारी झट्ट से आँख खुल गयी थी, न कोई बन्दर, न कोई जंगल, न कोई गाड़ी, न खेल खिलौने, न क़ानू के पास फ्रॉक हैट  और न कैमरा।
आँखे मीढ़ते हुए हम बिस्तर पर चोंक कर उठ बैठे थे। जैसे ही हम झटके से उठकर बैठे क़ानू भी हमारे साथ फटाक से उठकर कम्बल से बाहर आ गयी थी, और हमेशा की तरह भोंकने लगी थी। हमने क़ानू को तो कमरे से बाहर निकाल दिया था, थोड़ा सा होश में आने के बाद हमारे चेहरे पर एक प्यारी सी मुस्कुराहट आ गयी थी ,हम समझ गए थे, कि इतनी देर तक  ग़हरी नींद मैं क़ानू के साथ सपनें में पिकनिक मना रहे थे। शाम को चाय नाश्ते के वक्त हमने अपना और अपनी क़ानू का यह सपना, जिसको अब  हमनें नया नाम दे दिया था….जंगल में मंगल क़ानू के साथ। हमारा  हमारी क़ानू के साथ यह पूरा सपना सुनकर सब बहुत खुश हो गए थे। बच्चों के मुहँ से तो निकल ही गया था,”हमें भी उसी कार में और उसी जंगल में पिकनिक मनाने चलना है, जिसमें आप और क़ानू गए थे।” बच्चों की इस मासूमियत भरी रिक्वेस्ट पर हमारी हँसी न रुकी थी। सपनों की नगरी में ज़िन्दगी फ़िर से चल पड़ी थी क़ानू के साथ।








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