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पुरुषों का सत्तारूढ़ समाज हारा है !!

गतांक से आगे :-

भाग -४७

कलकत्ता की आज बड़े दिनों के बाद नींद खुली है !!

अखबारों में उजाले भरे हैं . एक जंग छिड़ी है . छोटे-मोटे अक्षरों में प्रथम प्रष्टों पर ही छपा है – भावी का खिलौना -भैया का हत्यारा !! साथ में खिलौना राम और उस के राजनीतिज्ञ बेटे -कर्मठ के चित्र छपे है …और छपी हैं … गरिमा की करून -कथा …उस की दो बेटियों का भविष्य …और उस के हक़-हकूक पर पड़ा -डाका !! लिखा है कि भावी गरिमा ने खिलौना राम को बेटे की तरह पाला …पढाया -लिखाया …शादी की …जायदाद में से हिस्सा दिया …और अब वही खिलौना राम …उस का सुहाग उजाड़ने के बाद … उस की भी जांन लेने पर तुला था !! उस का बेटा …कर्मठ …तो ….

पूरा का पूरा माहौल गर्वाधान हुआ खड़ा है . खिलौना राम और कर्मठ का जन्म अब दो नर-पिशाचों के रूप में होने को है ! कलकत्ता ही क्यों पूरा बंगाल इन बिहारियों को नहीं बक्सेंगे ! ये गुंडागर्दी यहाँ नहीं चलेगी !! लोगों में चर्चा है …कि ..खिलौना राम ….

“मैं इस औरत को अब नहीं छोडूंगा , भाई जी !” खिलौना राम भवक आया है . “अब आप देखेंगे ….सुनेगे …कि …”

“पा-ग-ल …हो गए हो , खिलौना ….?” संभव ने तनिक विंहस कर पूछा है . “मिटटी के बने हो , तुम !” उस ने मज़ाक मारा है . “हवा कितनी गरम है – तुम समझ नहीं पा रहे हो ! धंधा तक चौपट हो जाएगा – तुम्हारा !”चेतावनी दी है ,संभव ने . “पारुल को कम मत तोलो ,मेरे यार !!”

पारुल के ऑफिस में अचानक महिलाओं की भीड़ भर आई है !!

पारुल को बधाईयाँ ….पारुल को मुबारकबाद ….पारुल की जय-जयकार …और पारुल का सम्मान …एकबारगी पूरे शहर में लबालव भरा है ! नारी-चेतना का प्रतीक बनी पारुल …अब एक दैवीय प्रेरणा -प्राप्त नारी का दर्जा पा गई है ! पहली बार ऐसा हुआ है …जब इतनी सशक्त आवाज़ ,स्त्री-समाज की सुरक्षा के लिए किसी ने उठाई है !

गप्पा और पवन तो बेहद प्रसन्न हैं ! उन की डूबती नैय्या …अचानक तैरने लगी है . अचानक ही उन्हें हुगली में बाढ़ आ गई लगी है !! लगातार फोन आ रहे हैं ….लगातार काम आ रहा है …और लगातार ही उन्हें …पारुल का परिचय देना पड़ रहा है ! ‘हाँ,हाँ ,भाई ! महारानी हैं -काम-कोटि की ! रॉयल हैं …सेकिया डायोनेस्टी ..से बिलोंग करती हैं ! समाज-सेवा पेशा नहीं , शौक है , इन का !’ गप्प्पा लोगों को बताती जा रही है .

“डरो मत , गरिमा !” पारुल ने कांपती गरिमा को संभाला है . “सारा गुड गोबर हो जाएगा …!!” उस ने समझाया है . “खिलौना राम ज्यादा टिक न पाएगा .” कयास है , पारुल का . “मैं तुम्हें …तुम्हारा हक़ दिला कर दम लूंगी ! मैंने निश्चय कर लिया है ….”

“मुझे …मारेंगे …का …”

“मरोगी तो ज़रूर ….! आज नहीं तो कल . गम से नहीं तो ख़ुशी से . खंजर से नहीं तो खौप से !” हंसी है , पारुल . “बहादुर बनो, मेरी बहिन !” उस ने गरिमा की पीठ ठोकी है . “बी ब्रैव ….!!” एक नारा जैसा दिया है ,पारुल ने -नारी जाती के लिए !

गरिमा तनिक स्वस्थ हुई है . उसे होश और हौसला लौटा है . पारुल का भी सोच लौटा है . अचानक उसे सेकिया याद हो आया है . उसे याद हो आया है कि …कितने बड़े मानसिक तनाव से वह गुजर चुकी है …! अपने ही पति द्वारा दिया खौप …राज माता द्वारा दिया मानसिक तनाव …और फिर एक बेटा न दे पाने का ..आरोप !! ओह ,गौड ! अगर संभव न आया होता …तो ..शायद वह दफन हो चुकी होती …? सेकिया की तरह …वह भी …..

लब्बो-शब्बो अचानक आज उस की आँखों के सामने दो प्रश्न चिन्ह बन कर खड़ी होती हैं . ‘क्या करे …?’ पारुल सोच रही है . ‘अब वह उन्हें कलकत्ता न लाएगी !’ उस ने निर्णय लिया है . ‘लेकिन काम-कोटि में उन्हें अकेले छोड़ने का अर्थ होगा …? और फिर अब तो वहां राजन का ही राज होगा …? नहीं,नहीं ! लब्बो-शब्बो को उसे हर आँख से उस वक्त तक ओझल रखना है …

“तेरी तरह ही …बहुत ही सुंदर हैं , तेरी बेटियाँ !!” किसी ने पारुल के कान में चुपके से कहा है .

पारुल चुप है . वह नहीं चाहती कि अपनी बेटियों के लिए कुछ भी कहे …या कुछ भी सुने ! बिन बाप की बेटियां हैं ! पारुल को समझ आती जा रही है . गरिमा की बेटियों की तरह …उस की बेटियां भी …अभी तक अनब्याही हैं ! उन का ब्याह होना भी तो एक आवश्यक घटना है ? उस के सारे संचित वैभव में उन दोनों का ही हिस्सा होगा …? उन दोनों को अलग-अलग बसाना होगा ….और ….उन दोनों को ……

अचानक ही पारुल की आँखों के सामने अपने बाबू जी का गिडगिडाता चेहरा आ खड़ा होता है . सेकिया और राज माता के सामने छटपटाती उन की रूह …उन का क्या बिगाड़ पाई थी ? बे-भाव बिकी थी – उन की बेटी ! किसी ने एक शब्द तक न कहा था – उस होते अनर्थ के बारे ? ‘आप की बेटी रानी बनेगी !’ सब ने समवेत स्वर में सराहा था . लेकिन बेटी का क्या हाल था…या कि बेटी की क्या राय थी …बेटी किसे चाहती थी …या कि सेकिया ने ..उन की बेटी के साथ ..क्या-क्या नहीं किया था …किसे पता था ….?

लेकिन पारुल को तो पता था….! पारुल को तो आज भी एक-एक लमहा याद था ! आज भी उस का एक-एक आंसू आँखों में मोती बना बैठा था !

बेटी का बाप जब तक समर्थ नहीं बनेगा …तब तक समाज नहीं सुधरेगा – ये पारुल का विचार था …!!

“ओह, योर ग्रेस ..|” पारुल को बाँहों में भरे खड़ा था राजन| पारुल के गेसुओं से आती भीनी-भीनी सुगंध उसे मुग्ध किये थी| पारुल के निखरे रूप स्वरुप को राजन ललचाई निगाहों से निहार रहा था| “मै तो डर ही गया था|” वह कह रहा था| “अखबार .. और टी वी पर देख सुन कर मेरे तो होश उड़ गए थे|” उसने पारुल की आँखों में घूरा था| “खतरनाक है – ये खिलौना राम|” उसने चेतावनी दी थी|

“सावित्री दी को भी फ़ोन था|” पारुल बता रही थी| “महीलाल भी पहुँच गया है|” वह हंसी थी| “इतना डर .. कि ..|”

“डर तो लगता है|” राजन ने स्वीकारा है| “आप यहाँ अकेली .. और ये खिलौना राम .. इसका बेटा कर्मठ|मैने तो सुना है .. योर ग्रेस कि ये आदमी ..”

“संभव का क्लाइंट है|” पारुल ने सूचना दी है|

“क्या ..?” बमक पड़ा है. राजन| “तब तो ….!” उसने कुछ सोच कर कुछ कहना चाहा है|

“वह कहता है कि मै .. इस औरत का साथ छोड़ दूँ|” पारुल ने शिकायत की है “सावित्री दी भी कह रही हैं कि .. मै .. इन झगड़ों से दूर रहूँ| किसी के फटे में पैर धंसाना कहाँ की बुद्धिमानी है ?”

“साबो नहीं लडती है, मै जानता हूँ|” हंसा है राजन . “लेकिन आप ..?”

“मै लडाक हूँ ? तो .. हूँ .. !!” पारुल ने अपना पक्ष संभाला है| “महीलाल कह रहा था कि काम-कोटि के लोग प्रसन्न हैं| उन्हें मेरा महिलाओं के लिए मोर्चा लेना अच्छा लगा है|”

“मुर्ख है महीलाल|” राजन ने दो टूक कहा है| “आप .. महारानी हैं .. ! महारानी हैं .. रॉयल हैं .. !! आप एक अलग हस्ती की मालकिन हैं| मै नहीं चाहूँगा की आप .. गुंडों के मुहं लगें !” राजन ने ऊँची आवाज में कहा है| “मै चाहूँगा कि आप काम-कोटि चलें और ..|” आग्रह किया है, राजन ने|

राजन का आग्रह पारुल को बुरा नहीं लगा है|

कलकत्ता शहर की पुलिस और प्रशाशन हरकत में आ गया है| खिलौना राम का बेटा कर्मठ शहर छोड़ कर भाग गया है| खिलौना राम अब अपने लिए रास्ता तलाश रहा है| उसने सीधा संभव को फ़ोन मिलाया है| शिकायत की है कि .. वह जान मान कर उसका काम नहीं करा रहा है| वह चाहता है कि किसी तरह से उसकी जान छुटे….गृह-कलह शांत हो .. और ..

“सरेंडर ..!!” संभव ने सुझाव रक्खा है|”प्रेस और पब्लिक के बीच सुलहनामा होगा|” उसका कहना है|

“मुझे मंजूर है, माई-बाप|” सर पीट कर कहा है, खिलोना राम ने !” जो तुम कहोगे .. मै करूँगा .” उसने वायदा किया है|

पारुल को बहती बयार ने विजयी घोषित कर दिया है|

अपनी जीत को उँगलियों में थामे पारुल सोच रही है कि आज की लड़ाइयाँ तीर-तलवार से नहीं .. माईंडऔर मिडिया से लड़ी जाती हैं| काम-कोटि को चाहे तो दुनिया का पावर सेंटर बना दे .. ! अगर वो चाहे तो ..

“मै चाहूँगा कि .. योर ग्रेस ! आप दिवाली पर होने वाली घोषणा का प्रचार-प्रसार आरम्भ कर दें|काम की चीज़ निकली ये .. न्यूज़ एजेंसी .” वह मुस्कुराया है|

“गप्पा को भेज दूंगी|” पारुल ने हाँ भरी है| “हर बात समझ लेगी तो सबका-सब कर डालेगी|” पारुल बता रही है| “तुम उसे अपने सारे आंकड़े दे देना|” पारुल ने सुझाया है| “बम्बई में सीधा सम्बन्ध है हमारा| जरुरत पड़ी तो पूरी टीम पहुंचेगी|”

“गुड !” राजन प्रसन्न है . “मै तो चलूँगा .” उसने पारुल को बताया है| “प्रेस और मीडिया तो आएगा . साबो को भी बुला लेना . संभव के होते मुझे डर नहीं है !” वह हंसा है| “एंड .. बी ग्रेसफुल ..!!” उसने एक प्रिय अनुरोध किया है, पारुल से|

राजन का आना जितना अच्छा लगा था – जाना उतना ही बुरा लगा है| लेकिन ये आना जाना तो लगा ही रहता है| विचित्र बात ये है कि .. हम अपने ही बारे में कुछ नहीं जानते !!

“हमारी भाभी नहीं हमारी माँ हैं, आप !” खिलौना राम खुले आम बोल रहा है . “कौन नहीं जानता है कि हमे आपने पाला है .. पढाया है .. और समर्थ बनाया है . आपका हक़ हम नहीं खायेंगे .. भाई साहब की पीठ में छुरा नहीं भोंकेंगे ..| हम बेटियों का कन्यादान करेंगे .. हम ..”

“बहुत बड़ा बेईमान है, ये !!” किसी ने भीड़ में से कहा है|

पारुल ने आँख उठा कर सावित्री की ओर देखा है . सावित्री ने पारुल का इशारा समझ कर संभव को सब-कुछ समझा दिया है| गरिमा के लिए एक सुगम रास्ता तलाश संभव ने घोषणा की है|

“सब कुछ कोर्ट में लिखित में तय होगा, खिलौना राम जी . रोज़-रोज़ का झंझट नहीं ! सब अपने-अपने किनारे से लगो|”

“हमे मंजूर है, भाई जी|” खिलौना राम ने हाथ जोड़ कर कहा है| “हम भाभी जी की हर बात मानेंगे|” उसने वायदा किया है| मुड कर उसने पारुल को देखा है| पारुल का किया अपमान अचानक ही उसकी आँखों से उजागर हुआ है| लेकिन मन मारकर उसने अपनी भावनाएं छुपा ली हैं| “आप से अहसान मोल खरीद रहे हैं|” खिलौना राम ने कहा है| “वक्त आने पर कीमत देंगे|” उसका एलान है|

“कभी कोई भरोसा मत कर लेना इस खिलौना राम पर|” पारुल ने गरिमा को समझाया है| “आदमी नहीं .. ये निरा जानवर है|” वह बता रही है|

जाते-जाते खिलौना राम ने सावित्री के पैरों को हाथ लगाया है| लेकिन न जाने क्यों सावित्री ने उसे कोई आशीर्वाद नहीं दिया है| लगा है दुनिया जहाँ की महिलाओं का एका देख पुरुषों का सत्तारूढ़ समाज दहला गया है|

पारुल ने भी सत्ता के इस प्रथम आस्वाद का आचमन कर, सावित्री के पैर छू कर आशीर्वाद माँगा है|

“विजयी बनो !” सावित्री ने कहा है और चली गई है|

पुरुषों का सत्तारूढ़ समाज हारा है !!

क्रमशः ..

मेजर कृपाल वर्मा साहित्य

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