
किंग ऑफ़ द किंग्स …!!
उपन्यास अंश :-
“क्यों भेजा है , ‘प्रकाश’ को ….? और क्यों नहीं भेजा ‘आकाश’ को ….? पागल हो …मजूमदार …! निकाल दूं नौकरी से ….?” राजन आग-बबूला था . उस की आँखों में खून उतर आया था . “तुम जानते नहीं कि …’प्रकाश’ रेस का घोडा नहीं है …..और ‘आकाश’ ……”
“गलती हुई , सर !” मजूमदार के स्वर कातर थे . वह डर की वजह से काँप रहा था . उसे एहसास था कि हुई गलती भयंकर थी ! “मैं समझा था कि …..
राजन रोष में था . उस का पारा चढ़ता ही जा रहा था . वह महसूस रहा था कि ‘प्रकाश’ को लेकर तो उसे रेस हार जाना था …..जब कि ‘आकाश’ के ऊपर उसे पूरा-पूरा भरोसा था . रेस जीतने का यह सही मौका था . अब न तो समय ही बचा था ….और न कोई सम्भावना ही थी !
“इश्क में पागल होने का नतीजा है !” उस का विवेक बोला था .
अचानक पारुल का चेहरा राजन के सामने था . उस की मोहक भंगिमा अभी तक राजन के दिमाग में धरी थी . पारुल की ‘खन-खन’ की हंसी ….उस के दिमाग में घूमने लगी थी .
“अगर सावित्री होती …तो ये हर्ज हरगिज न होने देती …..” एक और आवाज़ आई थी . “सेठ धन्ना मल की बेटी है ! उस का दिमाग तो कैलकुलेटर है ! क्या मजाल जो ……”
“रहे …! मुझे अब सावित्री से क्या लेना-देना ….?” राजन ने तल्खी के साथ कहा . “अब सावित्री ….” वह कुछ अनुमान लगाना चाहता था . अभी तक काम-कोटि से आने के बाद उस ने सावित्री से बात तक न की थी !
संभव का फोन था . राजन तनिक हैरान था . वह सोच रहा था कि …पारुल के पैसे की मांग …शायद संभव के द्वारा सामने आये ! ‘पाई भी न दूंगा ‘ – राजन ने निश्चय किया था .
“संभव,यार ! मैं पहले ही बर्बाद हो गया हूँ !” राजन शिकायत कर रहा था . “कहाँ वक्त है , मेरे पास …? मैं शाम की फ्लाईट से लंदन जा रहा हूँ .”
“चंद …मिनिट का काम है , भाई !” संभव का आग्रह था . “मैं और इंस्पेक्टर रमेश आ रहे हैं .” संभव ने फिर से आग्रह किया था .
“रमेश ….? पुलिस ….!! क्यों, भई …?” राजन चौका था . “नहीं, भई ….!” उस ने दो टूक ना कहा था . “इंग्लॅण्ड से लौटने के बाद ….” वह कह रहा था .
“फ्लाईट कैंसिल करा देता हूँ ….?” अचानक रमेश का स्वर गूंजा था . “यू …हैव ….टू …ज्वाइन …मी …फॉर ….” रमेश रुका था .
“ओके ….ओके ….!” राजन डर गया था . “चार बजे …..!!” उस ने समय दिया था .
राजन का दिमाग घूम गया था ! संभव पुलिस ले कर क्यों आ रहा था ….वह समझ न पा रहा था . मारे डर के राजन की पिडलियाँ कांपने लगीं थीं . पुलिस की पेचीदगियाँ वह पहचानता था ! अचानक उसे कर्नल जेम्स का ध्यान आया था . लेकिन …वो तो थे ही नहीं ….! फिर सोचा कि सावित्री को ही फोन करे ….
“कैसे हो , राजन ….?” सावित्री ने गहक कर पूछा था .”कब लौटे ….?” उस का प्रश्न था . “पारुल भी आई है ….>”
“नहीं …!” मरे मन से राजन ने उत्तर दिया था . वह जानता था कि सावित्री यह सुन कर प्रसन्न होगी ….उस का मखौल उड़ाएगी ….! “काम-कोटि में उत्सव है …दशहरे का उत्सव …! वो तो मुझे भी रोक लेना चाहती थी ….पर मुझे इंग्लेंड जाना है …!” रुका था , राजन . “ये पुलिस का क्या लफडा है …?” उस ने सीधा प्रश्न पूछा था .
“वही …..जो …तुमने नदी में …..छलांग लगा कर …..” हँसना चाहती थी , सावित्री पर संयत बनी रही थी .
“ओह , समझा ….!” राजन ने एक राहत की साँस ली थी . “अच्छा …अच्छा …! तो ये महाशय ….” राजन अब अनुमान लगा रहा था . उसे पता था कि सावित्री के लिए वह पहले वाला राजन न रहा था . अब तो उसे सावित्री ने बर्दाश्त करना था …स्तेमाल करना था ….और ….! “आने दो ….!” कह कर राजन ने फोन काट दिया था . “ऐसा …उल्लू बनाऊंगा , बेटा ….!” राजन दांत पीस रहा था .
आज लग रहा था कि राजन बहुत अकेला था ! सावित्री का साथ छूटने के बाद …शायद और भी बहुत कुछ था ….जो पीछे छूट गया था …! पारुल के पीछे अंधी दौड़ लगाने के परिणाम ….घातक लग रहे थे !लेकिन उस का मन था कि …अभी भी …पारुल में ही फंसा था ….!
रमेश और संभव साथ-साथ आए थे !
चाय-नाश्ते के दौरान ही रमेश ने पूछना आरम्भ कर दिया था !
“क्यों कूदे थे ….हुगली में …..?” रमेश का सपाट प्रश्न था .
राजन ने पलट कर रमेश की आँखों को पढ़ा था . वहां बहुत कुछ अलिखित था ….जो अभी सामने आना था ! राजन जानता था कि रमेश ने उसे प्रश्नोत्तर के जाल में फाँस कर कुछ ऐसा हासिल करना है …..जो सावित्री के पक्ष में चला जाए !
“मैं फिसल गया था ….!” राजन ने संक्षिप्त उत्तर दिया था .
“गए क्यों थे , वहां ….?” रमेश ने तुरंत दूसरा प्रश्न दागा .
राजन चुप था .
“डूबने से किस ने बचाया ….?” रमेश मौका न चूकना चाहता था .
“सच में , मुझे कुछ याद नहीं है , सर ….!” राजन शांत भाव से कह रहा था . “ये …यूं ..ही बात का बतंगड़ बन गया है ! है तो हुछ नहीं …..”
“कुछ तो होगा ….ही …..?”
“मुझे याद नहीं , सर !” राजन का दो टूक उत्तर था .
बाहर आने पर रमेश ने संभव को समझाया था -खेला , खिलाड़ी है ! यूं …हाथ नहीं आएगा ….!!
हुई बे-मिशाल गलती का समाधान खोजने के लिए राजन को अपने गुरु कर्नल जेम्स की याद आई ! उस ने बार-बार कर्नल जेम्स को फोन मिलाया …लेकिन लगातार फोन कटता ही रहा . और जब फोन मिला था तो उत्तर गलत था , ‘यहाँ कोई कर्नल जेम्स नहीं रहते ‘ ! क्या करता , राजन ….?
“कैरी ….?” उस ने फिर से फोन मिलाया . राजन जानता था कि कैरी उस की अवश्य मदद करेगा . “यार, मैं आ गया हूँ ….!” राजन ने उसे सूचना दी थी .
“ओह , ग्रेट ….!” कैरी उछल पड़ा था . वह बे-हद प्रसन्न हुआ लगा था . “सावित्री आई है ….?” कैरी ने सीधा प्रश्न पूछा था .
“नहीं ….!” राजन ने तनिक ठहर कर उत्तर दिया था . “वो …क्या है …कि …..””
फोन कट गया था . उस के बाद राजन सर मार कर रह गया था …पर कैरी का फोन ही न मिला था ! विचित्र बात थी . उसे अचानक ही सावित्री याद हो आई थी . किसी तरह …सावित्री के रहते वह हर मुशीबत से बच जाता था ! लेकिन ….अब ….आज …..?
“नीलकंठ …!” राजन ने अपने जौकी को पुकारा था . “देखो, नीलकंठ ….! इस मुकाबले में तुम्हें …..”
“मैं सब समझता …हूँ , सर ….! यू …वर्री ….नांट …!!” नीलकंठ ने अपनी शेखी बघारी थी . “नीलकंठ ….हार का तो मुंह भी नहीं देखता है ….! आप देखना ….कि …”
“लेकिन , नीलकंठ ! तुम …..”
“सी …यू….आन ..द …ट्रैक , सर …!!” कह कर नीलकंठ ने फोन काट दिया था .
‘पागल है !’ राजन बडबडा रहा था . ‘नहीं …जानता कि …स्थिति …क्या है …?’ उस ने स्वयं से कहा था . ‘प्रकाश’ और ‘आकाश’ दो भिन्न ध्रुवों का नाम था ….नीलकंठ को क्या पता …..? “हे, भगवान् ….!” राजन आज ग़मगीन था .
अचानक उस ने देखा कि होटल के अतिथि-कक्ष में उन की शादी के फोटो टंगे थे . सजी-वजी …सावित्री ….मुस्कराती सावित्री …..उस के आगोश में समाई -सावित्री …..सावित्री …और सावित्री ….!! सावित्री की महक जैसे समूचे होटल में समाई थी ….! सावित्री जीवंत हो उस के सामने खड़ी थी ….!!
“प्रेम की पुजारिन है …!” अचानक राजन का आया अपना ही बोल था . “पवित्र …प्रेम की ग्राहक है ….!” उस ने स्वीकारा था . “अगर …..आज …..” वह चुप था .
हुआ तो वही ….जो होना था …! ‘प्रकाश’ की पीठ पर बैठा नीलकंठ …उसे पीटता रहा ….घसीटता रहा ….पर कर कुछ न पाया …!
“सुना है , सावित्री से डीवोर्से …हुआ है ….?” कैरी पूछ रहा था . “तुमने हुगली में ….छलांग …क्यों लगाईं थी , ….मिस्टर ….?”
“नन …ऑफ़ ….योर ….बिजनिस …!” भड़क कर बोला था , राजन . “स्पैयर ….मी …., प्लीज …!!” उस का आग्रह था .
शर्मनांक हार के बाद राजन अब थेम्स में डूब मरना चाहता था .
“लास वेगस …..!!” उस के मन ने आज फिर लरज कर पुकारा था . “मरना भी है ….तो शान से ….!!” उस ने स्वयं से कहा था . “सब कुछ …स्वाहा …सब कुछ ….!” वह कह रहा था . “पी-पी कर….मारूंगा …..पी-पी कर जीऊंगा …!! सावित्री को …नहीं,नहीं …….पारुल को …..नहीं इस सावित्री को …..इतना -इतना ….बदनाम करूंगा …..कि ….” राजन पर क्रोध का भूत चढ़ बैठा था . आज वह जीना ही नहीं चाहता था !
नम्बर एक टेबल पर राजन संभल कर बैठा था . लास वेगस के समूचे विस्तार भी आज उसे समेट न पा रहे थे . वह किसी विश्व-विजई की भूमिका में अपनी सीट पर आसीन था ! उस ने टिका कर पी ली थी . उस ने पत्ते बांटे थे . ब्लाईंड …खेल …आरम्भ किया था . दाव पर दाव चढ़ाता ही चला गया था ! एक के बाद ….दूसरा दाव …और बढ़-चद्ग कर ….दाव के ऊपर …दाव …! अब खिलाडियों ने उसे नाप लिया था . आज वह सब कुछ गँवा देना चाहता था ….हार जाना चाहता था ….बर्बाद हो जाना चाहता था ….पक्के ज्वारियों की तरह ….!!
“लो, लगा दिया सब ….! पाई-पाई दाव पर है …., यारो …!!” राजन ने घोषणा की थी . “शो ….?” उस ने मांग की थी . “आज के बाद ….यहीं ….लास वेगस की सडकों पर ….राजन भीख मांगेगा ….नंगे पैर डोलेगा ….और बताएगा …कि सावित्री ……नहीं,नहीं ….पारुल ….नहीं,नहीं …..”
“व्हाट ….?” शो की घोषणा के बाद लीडर का मुंह फटा का फटा रह गया था . “चार ….इक्के …..!!” एक जयघोष -सा हुआ था . “ओह, नो ….नो …नो ….!!”
राजन विजई हुआ था . राजन के पत्तों ने उसे दगा नहीं दी थी . राजन आज के विश्व का विजेता था ! राजन आज फिर धन के ढेर पर आ बैठा था . राजन ने सारे रिकार्ड तोड़ डाले थे . और अब राजन ….राजन था ….सर्वश्रेष्ट खिलाड़ी था ….नम्बर एक का जुआरी था …!!
किंग ऑफ़ …द किंग्स …..मिस्टर राजन ….फ्रॉम इंडिया ….टेक्स ….द …रिकार्ड …विनिंग ….!!
घोषणाएं होती रही थीं …..पर राजन बेहोश था ….!!
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श्रेष्ठ साहित्य के लिए – मेजर कृपाल वर्मा साहित्य !!
