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Parchhaiyan

दूसरी बोतल भी खाली हो जाती है !!

राजन को पल-पल केवल पारुल ही याद आ रही है .

वह मिलने को अधीर है , पारुल से ! पंख लगा कर राजन उड़ना चाहता है ….वह आसमान को नहीं, पारुल को छूना चाहता है . वह चाह रहा है कि …पलक झपके और पारुल को पा जाए ! पारुल ही तो विस्वमोहिनी का दूसरा नाम है ! राजन महसूसता है – पारुल श्रेष्ठ सुंदरी है ..पारुल फूल की पंखुरियों -सी कोमल है …..पारुल -प्रेम की सुगंध जैसी है ….पारुल वो प्राण वायु है …जिसे पाते ही मुर्दे भी जिन्दा हो जाते है ….पारुल की निगाह में वो जादू है ….जो हर किसी को बेहोश बना देता है …..और पारुल …पारुल ….हाँ, हाँ , सिर्फ पारुल ही है ….इस समूचे संसार का सच !!

बैरी हो गया है – वक्त ! हिलता ही नहीं …..खिसकता ही नहीं …..! उस के और पारुल के बीचों-बीच आकर खड़ा हो गया है .

आज एक और भी दुविधा राजन को सता रही है .

“क्या सौगात लेकर जाऊं …..,पारुल के लिए ?” वह सोचे जा रहा है . “कुछ भी तो लेकर नहीं गई …!” उसे याद आता है . “अब न जाने क्या-क्या मांगेगी, पारुल ?” वह डर रहा था . सोचता रहा था कि पारुल …शायद बहुत कुछ मोटा मांगेगी …उसे ब्लैक मेल भी करेगी ….! और आश्चर्य भी क्यों ? फिर वो आई ही क्यों थी ? राजन अपने पुराने प्रश्न का उत्तर फिर से खोजने लगता है ! “उस का मुझ पर कर्जा है ….उस ने तो दिया है …और जो उस ने दिया है …वो तो बेजोड़ है !!”

सहसा राजन की आँखों के सामने पारुल के सुंदर पैर आ कर ठहर जाते हैं !

“ओह , गॉड !!” राजन आह भरता है . “फुर्सत में बनाया होगा …इन पैरों को ….परमात्मा ने ….?” वह फिर से सोचने लगता है . “लम्बे ….मांसल …कोमल ….और गौरवर्णी पारुल के पैर ! सुदर लंबी-लंबी उंगलियां ….सुर्ख लाल रंगे नाखून …और उन से उभरती एक अनूठी ऊर्जा …! चपल …चंचल …मन को रिन्झाते …गुदगुदाते – पारुल के पैर ….”

राजन ने इतने सुंदर पैर आज तक नहीं देखे …!!

उस का मन आज फिर कह रहा है ….कि उन सुंदर,कोमल और सुघड़ पैरों को अपननी आँखों से चूमे ! उन पैरों को …हाँ,हाँ …पारुल के उन पैरों को छू-छू कर महसूसे …सहला कर आनंद ले ….और ……और फिर ….उन पैरों को …..

क्या-क्या करे , राजन – पारुल के उन सुंदर पैरों का ….वह निर्णय नहीं कर पाता …!!

“सौगात भी तो सोचो ….?” उस का विवेक उसे सचेत करता है . “कुछ ऐसी सौगात …जो पारुल को पसंद आए ….और …और …उस के वो सुंदर पैर थिरकने लगें ….नाचने लगें …! रुन -झुन …..रुन -झुन    की आवाजें करती पायजेब ….या पायल …या कि सोने के सैंडिल …या फिर कुछ ऐसा जिसे पारुल पहने …और उस का मन मचल उठे …!!”

“ये सब तो घिसा-पिटा विचार है ….पुरानी पड़ गई …सौगातें हैं ….,राजन !” उस का ही मन बोला है . “यार ! कुछ इतना प्यारा-सा तोहफा हो ….जो ….?”

“हाँ,हाँ , ठीक तो है ! कुछ ऐसा जो …पारुल पा कर धन्य हो जाए !” राजन प्रसन्न हो कर फिर से सोचता है . “तो …तो ….क्या दूं ….?” वह स्वयं से प्रश्न करता है . “सावित्री को क्या दिया था …?” वह अपने आप को टटोलता है . “चीनी चप्पलें लाया था – चाइना बाज़ार से …!” सीधा उत्तर आता है . “चल वही ….खोज कुछ ….! अनूठा सा …कुछ खोजना …”

“जापान की राज कुमारी के लिए ….बना है ….! देखिए   , पसंद आए तो ….”

“क्या दाम होगा ….?”

“धत ….! तोहफा के दाम पूछने से उस की काया गल जाती है ….! किसी काम का नहीं रहता !!” चुमिन कारीगर बताता है. “पहले तोहफा पसंद करो ….फिर उसे बन जाने दो ….और तब उस का दाम हम तय कर लेंगे !” उस की राय है . “ये देखो ! इस तरह के डिजाइन पर …सफ़ेद हीरा और पन्ना का काम होगा ….और इस का ….मोल ….”

“ठीक है ….ठीक है ….! तैयार कर दो ….! पर मैं जल्दी में हूँ ….”

“तो जाइए …! फुर्सत हो तब लौट आना ….!!” हँसता है चुमिन.

“अरे,भाई ! मेरा मतलब था …”

“मैं ….वक्त लूँगा ….”

“ले लो ….! बस …..?” राजन मान लेता है .

एक ही दुविधा है अब ,राजन को ! सावित्री ….!!

वह जानता है कि सावित्री को मंगलीक ने सब बता दिया होगा …! सावित्री को ज़रूर ही सब पता होगा …और मंगलीक यह भी बता देगा कि ….वह …..

“बता दे ……!” राजन प्रतक्ष में कहता है . “डरता कौन है ….?” वह पूछता है . “मैं अब हरगिज मानूंगा नहीं ….! पारुल के पास ज़रूर-ज़रूर जाऊँगा …और …..”

राजन का आगे का सोच ठहर जाता है . पारुल के सामीप्य को पाने के बाद ही वह …ठहर जाता है ….वह नहीं जानता है कि पारुल के जीवन में आने के बाद आगे क्या होगा – और वह आगे कौनसा कदम उठाएगा ….?

उस की मंजिल एक है …..सिर्फ एक ….और वो है – पारुल !!

“ये भी कोई पीना हुआ ….? पीते ही जाओ …पीते ही जाओ …और पागल हो जाओ …!” अचानक ही आज राजन सावित्री की आवाजें सुनने लगता है . वह सामने धरी आधी हुई बोतल को निहारता है . बोतल हंसती है . “कर्नल जेमस …..अपने गुरु को देखो ! दो पेग से आगे ….”

“मेरा कोई गुरु नहीं है .” राजन भवक कर बोला था . “मैं किसी की नक़ल नहीं करता . ” उस ने सावित्री को घूरा था . “मैं …अपनी मर्जी पर चलता हूँ, सावो !” वह तनिक विनम्र हो आया था . “अगर …..तुम ….मुझे बर्दास्त नहीं कर सकतीं ….तो ….”

सावित्री को उस ने सन्देश दिया था . वह ‘औरत की गुलामी ‘ जैसी घुट्टी से परहेज़ करता था . वह स्वयं को श्रेष्ठ मान कर चलने वाला व्यक्ति था . वह …..नहीं चाहता था कि ….उस की पत्नी – सावित्री ….उसे रोके-टोके …या कि उस के खोट गिनाए !

“पत्ते खेलने वाली बात भी तुम्हें अच्छी नहीं लगाती , मैं ये भी जानता हूँ .” राजन खुलने लगा था . “मेरे लिए ….पत्ते खेलना ….जेम्स की तरह का मनोरंजन नहीं है . मैं ….पत्तों की जीत-हार को लेकर ….अपने आप को नापता हूँ ….पहचानता हूँ ! जैसे कि लास वेगस में मैंने पाया था कि मैं ….दुनियां के श्रेष्ठ खिलाड़ियों में से एक हूँ ! इस से ….”

“इस तरह बखान कर रहे हो ….जैसे ..तुम ..प्र थ्विराज चौहान हो !” सावित्री ने उस का मखौल उड़ाया था . “कमोन , राजन ! ये सब व्यसन हैं , माई डीयर …!! भले लोग …इन से परहेज़ करते हैं ….”

“यूं मीन ….मैं बुरा हूँ ….बदनाम हूँ …बेकार हूँ ….?” राजन बिगड़ा था . “मैं जानता हूँ , सावो कि ….तुम लोगों ने मुझे ….आज तक ….एक नौकर से आगे का दर्जा नहीं दिया है ! सेठ धन्ना मल के लिए मैं …उन का दमाद कभी था ही नहीं …! और न तुम्हारी माँ जी ने …मुझे कुछ माना ! तुम्हारी तो मज़बूरी कहो …कि …”

सावित्री और राजन की आँखें पलांश के लिए टकरा गईं थीं .

“मेरे बच्चे नहीं हुए ….!” सावित्री टीस आई थी . “मैं जानती हूँ ….राजन कि अब तुम हज़ारों-हज़ार गुनाह गिना सकते हो ! मैं ….जानती हूँ ….कि एक मज़बूर औरत को ….क्या-क्या सुनना पड सकता है ! मैं जानती हूँ कि ….तुम क्यों जुआ खेलते हो – क्यों शराब पीते हो …? लेकिन …दैट इज नो शोलुशन …..”

“सोलुशन ….स्वयं सामने आ जाया करते हैं , सावो !” कह कर राजन चला गया था .

आज राजन के समक्ष सोलुशन था .

“आज इस नीड़ को छोड़ कर उड़ जाऊँगा …..!” वह तनिक हंसा था . “नया नीड़ पारुल के साथ मिल कर बनाऊंगा ….!!” उस ने प्रतक्ष मैं एलान जैसा किया था .

राजन को लगा था – जैसे शदियों की गुलामी के बाद ….आज आ कर वह आज़ाद हुआ था ! अब उस के दिमाग पर न सेठ धन्ना मल के दमाद होने का बोझ था …और न ही उसे अब सावित्री से कोई खतरा था ! वह आज से …राजन था ….अकेला था ….स्वतंत्र था ….और था ….जुआरी …शराबी …..और …..

“पारुल को पहले ही बता दूंगा …..!” राजन ने एक वायदा किया था . “मैं न ….बदलूँगा ….तुम चाहो तो ……” उस ने एक पल सोचा था . “क्यों बदलू …? बदले …ज़माना …..बदलें लोग  …राजन तो …..’राजन’ ही रहेगा !” उसे तालियाँ बजाते लोग दिखाई देने लगते है . उसे अपने प्रशंसकों के जलते-बुझते चहरे नज़र आते हैं . “लोग …राजन को …प्यार करते हैं ….सराहते हैं ….चाहते हैं ! सेठ धन्ना मल …कौड़ी मल होता …अगर राजन न होता ! और उस के किए-दिए पर पानी फेर कर …..” राजन को रोष चढ़ने लगा था . ‘चीट ‘ उस ने धन्ना मल को गाली दी थी .

“अब ….अकेला उड़ान भरूँगा !” वह एक निर्णय लेता है . ‘नहीं,नहीं !’ वह फिर से सोचता है . ‘पारुल के पंख हैं !’ वह जानता है . ….कि पारुल किसी भी दिशा मैं उड़ान भर सकती है . वह सावित्री की तरह ….अचल …और जड़ नहीं हैं ! पारुल तो बहती व्यार का नाम है ! वक्त के साथ बहने वाली हवा है ….पारुल ! वह राजन को अवश्य ही ले उड़ेगी !

राजन प्रसन्न है . बोतल खल गई है . दूसरी सामने है . वह शौक़ीन है – एक के बाद दूसरी बोतल खाली करने का ! उस की उंगलियां सुरसुराने लगाती हैं . काश वह पत्ते बाँट रहा होता ….! काश वह ….लास वेगास मैं होता ….और हाई स्टैक …से खेल रहा होता …!!

राजन अचानक ही उड़ने लगता है ….पारुल के साथ ….अपने पहाड़ जितने ऊँचे इरादों के साथ ….अपनी पूर्ण सामर्थ के साथ ….वह पारुल को बगल मैं दबाए-दबाए …किसी चोर ठिकाने की और निकल जाना चाहता है …..जहाँ वह अकेला ही हो ….पारुल हो ….और वह सब ….!!

चिर काल की आकांक्षा उस के पास आ कर बैठ गई थी …….और …

दूसरी बोतल भी खाली हो जाती है !!

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श्रेष्ठ साहित्य के लिए – मेजर कृपाल वर्मा साहित्य !!

 

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