
और ये सब संभव हुआ था – पारुल के नाम पर !
जो भी दाव उस ने खेला – पारुल का ही नाम लिया…..जो भी पत्ता खींचा – पहले ‘भगवान्’ के वजाय पारुल का ही नाम लिया …और कमाल ये था कि चाहे वो दुग्गी थी ….इक्का था ….बादशाह था …..बेगम थी – थी पारुल ! हर पत्ते पर जैसे पारुल का चेहरा ही छापा था ….उस के हुश्न का जादू जड़ा था …उस की आँखों के समुंदर मैं ही सब तैर रहा था – घूम रहा था !
न जाने क्या था …कि …शाम को जब उस ने पत्ते खेलने का निर्णय लिया था ….तो उसे याद भी पारुल ही आई ! न जाने कैसे ….पारुल परवर्तित हो – शराब की बोतल बन गई. लगा वह प्यासा था . उस ने न जाने कितने युगों से शराब की बात सुनी ही नहीं थी. पारुल के पीछे पड़ा वह …..अपनी सहेली – शराब को भूल कैसे गया था …? और …..पत्ते …? उस के प्रिय पत्ते – जो उस के इशारों पर नांचते थे – उन्हें राजन छू तक नहीं रहा था …?
“आओ ! …..आओ …!” जैसे ही वह क्लब पहुंचा था – मित्र-मंडली उसे आश्चर्य से देखती रही थी.
“कैसे भूले – रास्ता ….?” प्रश्न उठे थे. “छोड़ दिया …क्या …उस ने ….?”
“उसे साथ लेकर आया हूँ …!” विहंस कर राजन ने उत्तर दिया था. “ये देखो …!!” उस ने कांख में दबी शराब की बोतल दिखाई थी. “साथ खेलेगी ….!!” वह जोरों से हंसा था. “है कोई माई का लाल – जो मुकाबले में आए …?” उस ने चुनौती दी थी.
“बैठे हैं …., नरूला !” सोनी ने हंस कर कहा था. “कल …पुरोहित को नंगा कर के क्लब से निकाला है !”
“सुबह नंगा हो कर निकलेगा ….!!” राजन ने घोषणा की थी.
और मुकाबला – बड़े ही संगीन पलों से गुजरने लगा था.
राजन मूड मैं था …सरूर में था ….एक बहश मैं था ….और एक बहम में था ! उसे लग रहा था ..कि पारुल उसे अपना हुनर दिखाने के लिए …प्रोत्साहित कर रही थी …..कह रही थी – लड़ो , राजन ! जीतो ….इस की चाल को ….करो परास्त इस के बादशाह को …! तोड़ दो – इस के गुरूर को …!!
“ये …लो …., चार इक्के ….!!” राजन ने पत्ते फेंके थे.
एक आह निकल कर क्लब की दीवारों से टकरा गई थी.
“ओह, माई गोड ….!!” नरूला पस्त होकर बोला था. “ओह, नो ….!! नो …नो …!!” वह अपने सर को हिला-डुला कर राजन के फेंके चार इक्कों को ही निहारता रहा था. “आई …थॉट …इट …ए …ब्लाइंड !” वह बडबडा रहा था. “चार दुग्गियाँ ….इक्का कैसे बनीं …?” वह अब भी समझने का प्रयत्न कर रहा था.
और राजन …..! वह बोतल से ही घूँट-घूँट कर पी रहा था. उसे लग रहा था – जैसे वह आज पारुल के हुश्न को …ही …पी-खा रहा था ! बोतल से मुंह लगा कर आज पहली बार उसे लगा था कि ….प्रेम को पीने का इस से उम्दा और कोई तरीका न था ! जहाँ पारुल जैसी नारी हो …..वहां उसे पाने के लिए – बोतल से पीना ही श्रेष्ट था. हर घूँट के बाद वह पारुल का स्मरण करता …और हँसता …!
“सावित्री ….में इस प्रकार का नशा था ही नहीं …..!” ठहर कर राजन ने सोचा था. “उसे लगा कि – सावित्री ……नशा नहीं है ….! उसे लगा कि …सावित्री दूर बैठी …उसे वर्ज रही है ….! सावित्री …..उस से अलग – एक गंगा जल की धरा की तरह बह रही है ….! सावित्री ….नशा नहीं है ….सावित्री ….पत्तों का खेल नहीं है ….! सावित्री – एक अछा-सच्चा ..प्रेम है !! सावित्री भ्रम नहीं …भारतीय नारी है ! शराब तो दूर ….सावित्री तो उस की गंध भी नहीं है !!”
“गंद है ….निरी गंद …..ये सो कॉल्ड – औरत !!” राजन आज फिर से कर्नल जेम्स की आवाजें सुन रहा था. “आदमी को गुलाम बनाना इन्हें आता है !” कर्नल जेम्स का कथन था. “सावित्री क्यों चाहेगी …कि ….तुम्हारा एक अलग से वजूद हो …! आदमी हो तो – हो !!” उन की दलील थी. “औरतों की तरह …..ज़नानी जिन्दगी जीना …शोभा देगा , तुम्हें ….?” उन का आम प्रश्न होता. “लिव …ए लाइफ…..’किंग साइज़’ …!” वह हँसते .
“आप ….!” राजन को याद है कि उस ने एक दिन डरते-डरते कर्नल जेम्स की जिन्दगी में झांकने की जुर्रत की थी. “आप …कभी ….किसी औरत ….से …?”
“नफ़रत करता हूँ ….मैं ….हर औरत से , राजन !” बेबाक उत्तर था – उन का . “प्यार मैंने भी किया था ….मित्र !” वह बताने लगे थे. “इतना प्यार ….इस कदर प्यार …..उन बुलंदियों तक प्यार ….जहाँ चाँद और सूरज भी नहीं छूते ….! ग्लोरिया को तुम देखते तो ….मान लेते ….कि ….”
“बहुत सुंदर …?”
“सुंदर ……” फड़क से गए थे , कर्नल जेम्स. “मैंने आज तक इतनी सुंदर औरत ही नहीं देखी ….राजन ! ग्लोरिया का हुस्न क्या था – , मित्र ! ग्लोरिया की एक-एक मुस्कान …एक-एक अदा ….और हर एक संवाद श्रेष्ठ था. ग्लोरिया ….!” खो गए थे – कर्नल जेम्स अपने विगत के उठे उस तूफ़ान में.
“फिर हुआ क्या था …..जो …?” राजन का प्रश्न था.
“लड़ाई …!” दांती भींच कर कहा था , कर्नल जेम्स ने .
“लडे थे …आप – ग्लोरिया से ….?”
‘नहीं …बे …., बेबकूफ …!” प्यार का हाथ कर्नल जेम्स ने राजन की पीठ पर धरा था. “विश्व युद्ध …..हम दोनों के बीच आ खड़ा हुआ था !” उन्होंने इस्पष्ट किया था. “ये ..वक्त ही सबसे बड़ा बेईमान है , राजन ! आदमी को फरेब में लेकर नष्ट करता है ! पहले उसे देता है ….और फिर उस से छीन लेता है !! ग्लोरिया …मिली …और ग्लोरिया …चली भी गई !!” वह हँसे थे. “मैं हूँ अकेला ….सो जिये जा रहा हूँ …! जानता ही नहीं – क्यों जी रहा हूँ …..किस लिए जी रहा हूँ ….., पर मैं जी रहा हूँ – तुम्हारे सामने जी रहा हूँ , मैं !”
ठठा कर हँसे थे , कर्नल जेम्स.
“जैसे मौत अपने हाथ में नहीं होती ….वैसे ही जीना भी अपने हाथ में नहीं होता , राजन !” कर्नल जेम्स फिर बताने लगे थे. “आश्चर्य होता है – आज भी कि मैं जीवित कैसे बचा …? जब कि …कैप्टिन आर्थर …मेरी निगाहों के सामने ..हाथ में नंगी तलवार लिए …मौत के सामने दनदनाता हुआ …घोड़े पर सवार …, मरा ! उस को कटे पेड़ की तरह मैंने घोड़े से गिरते देखा . पर उस की तलवार तनी -की-तनी दिखाई देती रही !” मुड कर कर्नल जेम्स ने राजन को घूरा था. “लड़ाई ….सुनी होगी ….देखी नहीं …?” उन का प्रश्न था.
“नहीं !” राजन का उत्तर था. “विश्व युद्ध की बातें तो बहुत सुनीं ….पर ….!”
“इंटरेस्टिंग …!” कर्नल जेम्स मुस्कराए थे. “आई विल …टेल यू …ए यूनिक स्टोरी …!” वह तनिक भावुक थे. “आँखों देखी – कहानी ….भोगी-भुगती – कहानी ….और एक ऐसी कहानी …जो सैनिक -इतिहास में एक भयंकर-भूल के नाम से दर्ज है !” कर्नल जेम्स ने निगाहें उठा कर राजन को देखा था. “टेंकों पर ….घुड सवारों का हमला ….!!” उन्होंने कहा था.
“क्या …?” राजन भी चौंका था. “निरा पागलपन ….?” उस ने एक राय पेश की थी.
“कोरा पागलपन ……, यश !” स्वीकार था – कर्नल जेम्स ने . “पर मेरे प्रिय , राजन ! हमारे पास …हमला करने के सिवा कोई और विकल्प बचा ही न था!” वह हँसे थे. “जस्ट …चार्ज …!!” उन का स्वर उभर आया था. “चार्ज विद ….वन …हंड्रेड …सोल्जेर्स …..!”
“मजबूरी …?” राजन पूछ बैठा था.
“थी तो मजबूरी, राजन! तुम शायद इस तरह समझो कि …हमारा बर्मा में आगमन एक सोची-समझी रण -नीति के तहत हुआ था. हमें डर था कि जापान बर्मा के रास्ते चल कर भारत को हड़प लेगा. यह संभव भी था. जापान के सितारे बुलंद थे. उन का खौप इतना था कि …कि सेनायें उन के डर से कांपने लगाती थीं ….और मुझे और कैप्टिन आर्थर को एक सौ घुड-सवार लेकर बर्मा में यह तलाशना था कि ….जापानी सेनाएं – कहाँ हैं ? कितनी है …? और उन का इरादा क्या था …? हम लोग रंगून से कोई दो सौ पचास किलोमीटर दूर ‘तोंगू’ में टोह लेने के इरादे से आगे बढ़ रहे थे …कि …अचानक दुश्मन हमारे सामने आ गया ! जापानी सैनिकों की टुकड़ी थी ! अब क्या हो ….? उन्होंने भी हमें देख लिया था.”
“चार्ज ……!!” कैप्टिन आर्थर ने हुकुम दागा था. इस का अर्थ था की हम जापानी सैनिकों की उस टुकड़ी पर घोड़ों पर सवार – धाबा करें ….! हम सब ने अपनी तलवारें सूंत ली थीं ….भाले संभाले थे ….पिस्तौलों में गोलियां भरीं थीं ….!”
“गर्र्र्र….गर्र…गर्र…!!” टैंकों में बैठे जापानियों ने मशीन-गन खोल दीं थीं .
“फिर ….?” राजन अविभूत हुआ , पूछने लगा था.
“फिर …..लाशें ….पके आमों की तरह ….टपकने लगीं थीं …!” कर्नल जेम्स फिर से बताने लगे थे. “मशीन-गन – जैसे बला का नाम तो सुना था ….पर मुकाबला तो आज आ कर हुआ था ! सच राजन ! वर्षात की बूंदों की तरह वर्षती गोलिओं के बीच से हम ….घोड़ों पर सवार ….जापानी टैंकों की और दौड़ लगा रहे थे….मौत के दांत गिनने की जुर्रत कर रहे थे. और तब ….मैंने आर्थर को मरते देखा था !”
“और …आप …?”
“मरा नहीं ….! मैंने अपने भाले से बार किया था. लेकिन तभी मशीन-गन की गोलिओं ने मेरे घोड़े के बदन को छलनी कर दिया ! घोडा गश खा कर गिरा तो में ….बहुत दूर जा कर झाड़ियों में लुढ़क गया ! में ….भागा ….! पर कहाँ …?”
“कहाँ ….?”
“बंदी बना लिया था – मुझे !” कर्नल जेम्स तनिक लजा गए थे. “युद्ध-बंदी बना में ….जापानियों की जेलों में —इधर से उधर ….पड़ा-पड़ा सड़ता रहा था …..! मैंने ग्लोरिया को पत्र लिखना ही बंद कर दिया था.”
“क्यों ….?”
“इस लिए कि में …..लजा गया था ….! ग्लोरिया मेरी प्रियतमा थी ….में उस का बेजोड़ वीर था – …अजेय था !!”
“मिले कब ….?”
“युद्ध के बाद ….! इंग्लैंड गया तो ग्लोरिया के घर जश्न मन रहा था. उस की शादी थी. मैं न माना . मैंने स्वयं सच को जाकर देखा. सच में ग्लोरिया सफ़ेद परिधान में …परी लगी , मुझे ! और ….और …..में अंधा हो गया था – राजन !! वहीँ …चर्च की सीढियों पर बैठा-बैठा – में अपने दुर्भाग्य को कोसता रहा था …..और फिर भारत लौट आया था…! उस के बाद से मैं ….मेरी रेजिमेंट …., बस …!!”
“नास्ता तो चला गया है ….!” मंगलीक ने राजन को सूचना दी थी. “बहुत सवेरे ही …..” वह बताने लगा था.
“क्यों ….?” राजन भड़का था. “मैंने कहा नहीं था ….?” राजन नाराज था. “तुम लोग नमक हराम हो …..!” उस ने मंगलीक को फटकारा था. “मजाल है – कोई भी काम ठीक हो जाए ….?” उस का उल्हाना था.
राजन कमरे में प्रवेश करने के पूर्व ही रुक गया था. पारुल की खनखनाती हंसी उस ने सुन ली थी.
वही हंसी थी ….जिसे वो समूची रात …..टूक-टूक कर …स्नेक्स की तरह शराब के साथ खाता-चबाता रहा था. पारुल के स्पर्श उसे याद हो आये थे. नरम -गरम स्पर्श…..चंचल नयनाभिराम ….और ….गेसुओं की मंहक उसे ….मारे दे रही थी. वह पारुल से मिलने के लिए ….बेताब था! वह …जीते धन के ढ़ेर …पारुल के सुंदर पैरों पर बिछा कर ….कहना चाहता था – मेरे प्रेम की देवी …! स्वीकारो —इसे !! तुम रात मेरे साथ न होतीं तो …. मेरा यों जीतना असंभव ही था …! पत्ते …तो पत्ते ही होते हैं ! हरजाई होते हैं ….!! इन्हें दगा देते लाज नहीं आती …! पर तुम …थीं ….हर पत्ते पर तुम थीं ….! हर पल पर – तुम्हारा अधिपत्य था…! तभी …..”
“क्या ….? जा रही है , पारुल …….?” चौका था , राजन. “पर क्यों ….?” उस ने पूछा था.
वह हिम्मत बटोर कर जाती पारुल के सामने आ खड़ा हुआ था ! पर पारुल ने उस से आँखें नहीं मिलाई थीं .
“में …कब आऊँ …, काम-कोटि …..?” राजन ने हिम्मत कर जाती पारुल से पूछा था.
पर पारुल का न कोई उत्तर था ….और न कोई प्रश्न ….!
एक सदमे की तरह सहा था – राजन ने इस दृश्य को ! उसे याद आया था कि ….उस के सामने भी अचानक दुर्भाग्य का दुश्मन उदय हो गया था ….! वह भी कर्नल जेम्स की तरह वहीँ बैठ गया था. राजन …अंधा ….बहरा …गूंगा ….और पागल – सब एक साथ हो गया था …!!
मंगलीक क्या करता ….?
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