भोर का तारा !
युग पुरुषों के पूर्वापर की चर्चा !!
उपन्यास अंश :-
अखबार की सुर्ख़ियों में लिखा है :-
“मोदी प्रेम की भाषा बोलते हैं …मोदी प्रैस की भाषा बोलते हैं … मोदी पब्लिक की भाषा बोलते हैं …! उन के शब्द-चयन का कमाल ये है …कि गोलिओं की तरह ये शब्द घाव दे जाते हैं …तो कभी दवा की तरह टीस पी जाते हैं …!!”
“उन का परिणाम …अंतिम परिणाम …बेजोड़ रहा। सच रहा – उन का कहा ….’कांग्रेस इस बार सौ का आंकड़ा भी पार नहीं करेगी !’ इन की बे-बाक बातों के अर्थ अब समझ आ रहे हैं. मोदी एक ..सत्यनिष्ट नेता सिद्ध हुए हैं !”
“सोलवीं लोकसभा के चुनाव में कांग्रेस को शर्मनांक हार का सामना करना पड़ रहा है – ये इतिहास है ! जिसे आप अब खुली आँखों से पढ़ रहे हैं !”
“अब अच्छे दिन आएँगे …..!!” मोदी जी ने जो नारा दिया है – जनता उसे भूली नहीं है।
“ये मात्र कहीं …एक चुनावी ‘ढोंग ‘ बन कर तो नहीं रह जाएगा ..?”
प्रश्नचिन्ह भी हैं। मैं इन प्रश्नचिन्हों को पढ़ रहा हूँ …समझ रहा हूँ ….! अगली रण-नीति तो अब आरंभ होगी।
चुनावी शोर शांत हुआ है …तो जान-में-जान आई है ! मैं अपना पसीना पोंछता हूँ। ‘उफ़ ! कितना …कठिन मुकाबला रहा !’ मैं हो गए संग्राम पर एक दृष्टिपात करता हूँ। ‘क्या मुकाबला था …?” मैं अब भी हैरान हूँ।
हाँ,जी हाँ …! मुकाबला – माने कि मेरा मुकाबला किसी एक से न हो कर …अनेक से था ! मेरे प्रतिद्वंदी …अनाड़ी नहीं, खिलाड़ी थे ! वो इस खेल के माहिर थे …उन के पक्ष में सब था ! उन की जीत अवश्यम्भावी थी. वो जीत के हकदार थे. वो किसी के वारिश थे … उन का विगत था …उन के पास धन के ढेर लगे थे ! उन के पक्ष में उन का जर-खरीद मीडिया था …पूरा-का-पूरा सरकारी तंत्र उन का था ….
“इन के पूर्वजों ने आम बोये थे ….तो उन के बच्चे आम खाएंगे …!” मुझे ये कई बार बताया गया था। “इन्हें तो कुछ आता-जाता ही नहीं है ?’ जब मैंने पूछा था तो …उत्तर था, ‘मछली को तैरना कौन सिखाता है, जी ..? ‘इन के तो खून में सियासत शामिल है ! राजा पैदा हुए हैं, वो ! जनता जानती है कि इन्हें क्यों और किसलिए वोट देने हैं ….!”
हताश ….हैरान …परेशान …..मैं …ठगा-सा-रहजाता ….! सोचता ही रहजाता कि मैं इन पुष्ट-प्रमाणों का मुकाबला किन हथियारों से करू …? मैं अब जनता को क्या बताऊँ …कैसे बताऊँ …कि अगर …इस बार भी उन का फैसला फिसलगया – तो देश गया …!!
“कुछ नया-सा करो, नरेंद्र !” मेरा अंतर बोल उठता। “हारना तुम्हारी आदत नहीं है ! जीतने के लिए ….’संघर्ष ‘ से बड़ा कोई और शस्त्र नहीं है ! आज़मा चुके हो, तुम …? फिर ….लड़ो ….!!”
“हारगया …तो …?” एक मूंक प्रश्न उग ही आता ! एक डर – जिसे मैंने अपने अंतर में गहरे में दबा दिया था …गाहे-ब-गाहे ऊपर आ ही जाता ! ‘कहीं का नहीं रहेगा , देश ! बिक कर रहेगा …और ….?” मैं क्षत-विक्षत हो जाता।
“राहुल की सभा सूनी रही. कोई उन्हें सुनने तक नहीं आया !” अखबार में मैंने पढ़ा तो …मेरी बांछें खिल गईं। “जो आए थे …वो भी चले गए …!! शीला दीक्षित उन्हें पुकारती रहीं …पर वो न लौटे …!! ”
“पर क्यों …? क्या राहुल के पास ….उन से कुछ कहने को न था …?” मैंने स्वयं से पूछा था.
क्या उत्तर आता ..? चुनावी दौर था …! युद्ध में सब नाज़ायज़ -जायज़ होता है …!
“ममता बैनर्जी की आँख अब दिल्ली पर है ! उन के लिए पी एम् का सपना – नया नहीं है ! उन के पास ….हुनर है …उन के पास जनता का विस्वास है …उन के पास – बंगाल है !! अब वो दिल्ली आ रही हैं .. अन्ना उन के समर्थन में पहुँच रहे हैं।” पूरे एक अखबार का पन्ना भरा था।
लो, जी ! मेरी तो साँस ही रुक गई थी. ममता बैनर्जी के तेहे को कौन नहीं जानता …? सोनियां तक को वो घास नहीं डालतीं ! उन की पार्टी के लोग – उन के भक्त हैं ! उन का कहा – पत्थर की लकीर है …! अगर ममता बैनर्जी ….?
मैंने सोच को अधूरा छोड़ दिया था. मैं कन्नी काट कर अपने संग्राम -सूत्र पकड़ने लगा था। मैं कल के इंतज़ार में आँखें बिछाए बैठा ही रहा था ! मैं लोगों को बताता रहा था कि ….ममता ..एक रीता-थोता …बयार का भभूका है ! और ….., ये लो ! आ ही गई रिपोर्ट !!
“रामलीला मैदान में …ममता आईं …पर अन्ना नहीं पधारे …! न वहां दूल्हा पहुंचा …न ही बरात !!” अखबारों के पन्ने फिर से भरे थे. “इत्ता बड़ा मज़ाक …? अन्ना कहते हैं …उन का स्वास्थ सही नहीं है . ! ममता कहती हैं …’मैं तो …अन्ना जी के कहने पर ही आई थी ! टाँय-टांय – फिस्स …!!”
कुछ दम लौट आया था. हौसला फिर से बना था। लगा था – ममता जी वाला तूफ़ान तो …टल जाएगा। लेकिन ….
“राहुल जी …का यंग- ब्रिगेड …देश के कौन-कौन में नई क्रांति का शंख-नांद करेगा ! बूढ़े और बुजुर्गों को अब …जोर आज़माने की ज़रुरत नहीं। उन के आराम करने के दिन आ गए हैं. अब सब कुछ नया -नया होगा ….नया सोच …नया जोश …नई नीतियां …और नया – सवेरा …!! कांग्रेस पार्टी का नेतृत्व राहुल जी करेंगे। ..! उन्हें पार्टी का वाईस प्रेजिडेंट बना दिया गया है ! इस चुनाव का पूर्ण संचालन वही करेंगे !”
धक्-से मुझे कहीं गहरे में एक घूँसा-सा लगा था !! एक अनाम-सा प्रहार हुआ था ! ‘डर गए , बुढऊ ‘ ….?’ एक अजीव प्रश्न उठा और …हवा पर लहराने लगा था. ‘अपनी उम्र तो देखी होती ….? ” एक बूढ़े हो जाने का एहसास साथ ही चला आया था.
क्या करू …? उम्र को लौटाया तो नहीं जा सकता ..? ‘वक्त को कौन मोड़ सकता है, नरेंद्र …?’ मैंने अपने आप को समझाया था.
“तुम बूढ़े हो कहाँ …., मिस्टर नरेंद्र ….?” किसी ने मुझे फटकारा था. “तुम्हारा तो अब …यौवन आया है …और तुम पर तो अभी फूल खिलने हैं …फल आने हैं …और …इतिहास …? आगे चल कर बहुत कुछ घटेगा , मित्र !!”
“फिर तो मैं लडूंगा ….!” मैंने उच्च स्वर में कहा था. “मैं …तो लडूंगा …!!” मैंने दुहराया था.
क्रमशः –
श्रेष्ट साहित्य के लिए – मेजर कृपाल वर्मा साहित्य !!