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नन्ही सहेली प्यारे दोस्त

gilhari


भोपाल बहुत ही सुन्दर जगह है,और यहाँ हरियाली बहुत है। वर्षा से प्रभावित होने के कारण हरा-भरा मध्यप्रदेश कहलाता है। वो आपने रेडिओ पर तो सुना ही होगा…बहुत पहले एक कार्यक्रम आया करता था, जिसका नाम मुझे आज ठीक से याद नहीं आ रहा है। उस कार्यक्रम को शुरू होने से पहले कहा जाता था..हमारा संदेश हरा-भरा मध्यप्रदेश। तो उसी हरे-भरे मध्यप्रदेश का हिस्सा है… भोपाल। यहाँ आपको ज़्यादातर हर मकान के चारों तरफ खूब सारी हरियाली दिखाई देगी। यह हरियाली किसी भी रूप में हो सकती है, फूलों के पौधों के रूप में, या फिर बड़े-बड़े पेडों के रूप में। अगर बड़ी कोठी है तो वह बड़े-बड़े पेड़ों से ज़रूर घिरी हुई होगी, और अगर छोटा मकान है तो भी फूल के पौधों से भरा हुआ होगा। भोपाल में तो सड़क के किनारे भी आपको ज़बरदस्त हरियाली देखने को मिलेगी। कहीं-कहीं तो सुन्दर छोटे-छोटे जंगल भी हैं, जिन्हें लोग पिकनिक स्पॉट्स की तरह प्रयोग करते हैं। खैर!बहुत ही सुन्दर जगह है, भोपाल..हरी-भरी एकदम मस्त झीलों की नगरी।
मेरा मकान भी भोपाल की एक अच्छी कॉलोनी में है,मकान बड़ा होने के कारण आसपास बड़े-बड़े पेडों से घिरा हुआ है। आम, शरीफे, जामुन, नीम इन सब के पेड़ों ने मकान को चारों तरफ से घेर रखा है। यह सारे पेड़ हमारे घर के बुजुगों ने लगाए थे एक ज़माने में यह कहकर कि गर्मी,बारिश और उड़ने वाली धूल से बचाएंगे ये पेड़…साथ ही मकान की सिक्योरिटी भी है। बाहर सडक़ पर चलने वालों को आसानी से घर के अन्दर का दिखाई न देगा…एकदम सड़क के किनारे कोने का मकान है न।
मकान बड़े-बड़े फलदार वृक्षों से घिरा होने के कारण पक्षियों का रौनक मेला लगा ही रहता है।तोते, कई तरह की छोटी बड़ी चिड़िया और कबूतर आराम से अपना जीवन यापन करते हैं, साथ में मस्त होकर फलों के रूप में भोजन का आनन्द भी लेते हैं। घर में हरियाली और भरपूर फल-फूल होने के कारण छोटे-मोटे जानवर भी पलते रहते हैं। इन छोटे-मोटे जानवरों में सबसे पहला नाम आता है,वो गिलहरी। घर मे बड़े-बड़े पेड़ होने के कारण घर मे इतनी गिलहरियाँ हैं कि मैं आपको बता नहीं सकती। कभी-कभी तो ऐसा लगता है, जैसे गिलहरियों ने पेडों पर कब्ज़ा कर लिया हो, और कह रहीं हों,”भागो यहाँ से अब ये इलाका हमारा”। सारे दिन दीवारों पर इधर-से उधर फुदकती रहतीं है, और जहाँ जो कुछ खाने का मिल जाता है,अपने नन्हें हाथों में पकड़कर मस्त होकर खाती हैं।इधर-उधर पेडों पर तेज़ी से उतर-चढ़ अपने खेल-कूद करतीं रहतीं हैं। सच!कहें तो गिलहरी और पक्षियों से घर में रौनक़ मेला सा लगा रहता है, अकेलापन महसूस ही नहीं होता, ऐसा लगता है, छोटे-मोटे पड़ोसी आ गए हैं,बाजू में रहने।
मेरे इस रौनक महल में मेरा खुद का कमरा ऊपर का है। कमरे के बाहर निकलते ही अच्छी ख़ासी बड़ी सी छत है। छत पर धूप वगरैह भी बराबर आती है, और फूलों के पौधे होने के कारण तितलियों और छोटी -मोटी चिड़ियाओं की रौनक लगी रहती है। गिलहरियों का भी दीवार पर से चढ़कर सारे दिन उतरना-चढ़ना दौड़ना भागना लगा रहता है। खाने-पीने का जो थोड़ा बहुत सामान बच जाता है, उसे मैं बाहर दीवार पर ले जाकर रख देती हूँ, क्योंकि मैं जानती हूँ कि नन्ही गिलहरियाँ आएँगी और दोनों हाथों से पकड़कर चुम-चुम कर के खा लेंगीं। बहुत प्यारी लगती है, गिलहरी जब वह अपने दोनों नन्हें हाथों से भोजन पकड़कर चुम-चुम कर धीरे-धीरे खाती है। ऐसा लगता है, कि जैसे ही गिलहरी खाना खाना शुरू करे तो पास में जाकर एक वीडियो शूट किया जाए।
ऐसा ही एक छोटा सा क़िस्सा है, मेरी नन्ही सी और बेहद प्यारी सी सहेली गिन्नी का। जैसा कि मैने अभी-अभी ज़िक्र किया है, की मैं कुछ बचा हुआ भोजन दीवार पर गिल्हेरियो के लिए रख देती हूँ, और गिलहरियाँ ऊपर-नीचे भागकर वो दीवार पर रखा खाना खा लेती हैं। गिलहरियों को यूँ आते-जाते और प्यार से भोजन खाते हम बहुत ही करीब से देखा करते थे। अचानक एक दिन हमने देखा कि गिल्हेरियो की भीड़ में से एक गिलहरी हमारे कमरे में, घुस आई है, हमने शी-शी करके निकालने की भी कोशिश की पर बाहर निकलने का नाम ही नहीं ले रही थी, इधर-उधर फुदक कर घूमने लगी थी। डंडा भी बजाकर देख लिया, पर महारानी जी कभी सोफे के नीचे घुस जाती तो कभी बेड के नीचे। हारकर हमारे ही मुहँ से निकल गया। हार मान ली गिन्नी जी पर कोई नुकसान मत करना। बस!इसी तरह हमारा इंट्रोडक्शन हो गया था..हमारी प्यारी सहेली गिन्नी से। बाकी सब गिलहरियाँ तो बाहर दीवार पर से ही रोटी के टुकड़े खाकर भाग जातीं, पर गिन्नी सुबह होते ही अपने आशियाने में से हमारे कमरे के बाहर फुदकने लग जाती थी। हमने बाहर ही गिन्नी के लिये मिट्टी का बर्तन पानी से भरकर रख दिया था। हालाँकि बाकी सारी गिन्नी की सहेलियां उसी में से पानी पीकर भाग जाया करतीं थीं। अब तो गिन्नी मेरी प्यारी सहेली बन गई थी।हुआ यूँ की एक एक दिन हम सुबह ही कहीं काम से बाहर निकल गए और गलती से टेबल पर पराँठा उघड़ा हुआ छोड़ गए थे, आकर क्या देखते है, हमारी प्यारी सहेली पता नहीं कहाँ से कमरे में घुस गई और आराम से टेबल पर चढ़कर दोनों नन्हें हाथों से पराँठे का मज़ा लेने लगी। बहुत ही प्यारी लग रही थी, गिन्नी यूँ अपने हाथों से पराँठे के टुकड़े का मज़ा लेते हुए। पहले गिन्नी पेडों पर खेलना-कूदना करती थी, फ़िर हमारे पास ऊपर कमरे में घुस आया करती थी।देखने में सभी गिलहरी एक जैसी दिखती हैं, पर गिन्नी की थोड़ी पहचान अलग हो गयी थी। हमारे साथ ही कमरे में फुदक-फुदक कर खेला करती थी, कभी-कभी तो हमारे बरतनों में भी घुस कर बैठ जाया करती थी, छोटी होने के कारण गिलास में घुसकर बैठ जाती थी,गिलास उल्टा कर गिन्नी को निकालते थे। लम्बी लछेदार पूँछ और बिल्कुल छोटा सा मुहँ प्यारी लगती थी गिन्नी। इसी तरह कभी पेडों पर भाग जाना और कभी कमरे में घुस आना ..पक्की दोस्ती हो गयी थी गिन्नी के साथ। ऐसे ही चल रहा था, कि एक दिन हम इंतज़ार करते ही रह गए ,और गिन्नी का कहीं पता न चल रहा था..पहचानते भी कैसे गिलहरी की कोई ख़ास पहचान तो होती नहीं है ,सोचा इधर-उधर झाड़ियों या पेड़ों पर कहीं खेल -कूद रही होगी, दिन पर दिन बीत गए पर गिन्नी लौट कर नहीं आई। ज़्यादा सोच विचार न करते हुए, हम यही सोचकर संतुष्ट हो गए थे, की हमारी प्यारी सहेली गिन्नी का साथ और हमारे साथ उसके संस्कार यहीं तक थे….थी तो कुछ दिनों की दोस्ती पर आज भी हम अपनी प्यारी सहेली गिन्नी को याद करते हुए,उसकी सलामती की दुआ करते हैं, क्या पता गिलहरियों की कितनी उम्र होती है।
गिन्नी को अभी हम पूरी तरह से भूल न पाए थे, की एक दिन बाहर घूमते हुए अचानक नाली के अन्दर से हमें चूँ-चूँ की आवाज़ सुनाई पड़ी, आसपास बच्चे खेल -कूद कर रहे थे, हमनें बच्चों को आवाज़ लगाई और कहा था,”देखना बेटा इस नाली के नीचे क्या है”। बच्चों ने देख कर बताया था,”आंटी छोटे-छोटे कुत्ते के बच्चे हैं”। बच्चों ने गोद में उठाकर बाहर निकाल लिए और उनका प्यार से नाम बाक़ाबून और तांशयी रख दिया। जानवरों के प्रति हमारा लगाव होने के कारण हमें आज हमारे नए दोस्त मिल गए थे..बाक़ाबून और तांशयी। शाम को जब भी बाहर सैर के लिए निकलते बाक़ाबून ,तांशयी हमें खेलते मिलते, अपने हाथ में उनके लिए रोटी भी लाने लगे थे। आज ये प्यारे दोस्त बड़े हो गए है, और हमारे ही घर के गेट के बाहर बैठते हैं। गिन्नी तो पता नहीं कहाँ खो गई पर बाक़ाबून और तांशयी ने हमारा साथ न छोड़ा है। दिखा दिया है, की कुत्ता मालिक की वफादारी टुकड़े के लिए नहीं करता बल्कि अपने मालिक और अपने चाहने वालों को अपने आप से भी ज़्यादा प्यार करता है। तो यह था, छोटा सा किस्सा मेरी सहेली गिन्नी और मेरे प्यारे दोस्त बाक़ाबून और तांशयी का।

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