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Nai Hava

नई हवा

राजधानी के भीतर प्रवेश पाते ही रत्ती और राम लाल को लगा था कि  वो किसी दूसरी दुनियां मैं आ पहुंचे है ! वो बंगलौर नहीं शायद किसी विचित्र लोक में जा रहे थे……जहाँ उन का इकलौता बेटा फत्तू अपने बसाए साम्राज्य -कैनाइन इंटरनेशनल में उन का स्वागत करेगा और कहेगा …., ‘में न कहता था , पापा कि में पार जाऊँगा ! जब कि आप कहते थे कि में …हार जाऊँगा !!’

“फत्तू की शादी करेंगे …, अब ! बच्चे होंगे …तो मेरा मन लगेगा !” रत्ती अनायास ही बोली थी. “एक नहीं ….तीन बच्चे …, दो बेटे – एक बेटी ! मैंने भोग लिया है ….मान लिया है ! तुम ….” उस ने निगाहों से ही राम लाल को वर्ज दिया था.

राम लाल चुप था. उसे रह-रह कर जेब में धरा फत्तू का लिखा पत्र जगा देता था.

“मैंने आधुनिक आविष्कार किया है , पापा !” उस ने लिखा था. “आप दोनों देखेंगे तो ….”

“भर पाए , फत्तू !” राम लाल चुपके से बतियाने लगे थे. “जो गया उस का गम नहीं …! तुम्हारा ही सब तो था – सो तुम्हारे ही निमित लगा दिया !! पाई-पाई तुम्हें ही दे दिया ….! हमारे लिए तो तुम्हारा विदेश जाना …कैनाइन यूनिवर्सिटी मैं पढ़ना ….ही गर्व का विषय रहा ! और अब तुम्हारी कैनाइन इंडस्ट्री …..?” सोच में ही डूबा रहा था – राम लाल .
“न जाने कैसा दृश्य होगा ….तुम्हारे …?”

“सुनो !” रत्ती ने राम लाल को टहोका था. “बताना मत फत्तू को कि ….हमने गाँव,घर का भीतर-बाहर सब बेच दिया है !” रत्ती के स्वर मैं कड़ी हिदायत थी. “हमारी तो कट गई ….अब तो ….”

फत्तू चमचमाती कार में उन्हें लेकर कैनाइन इंटरनेशनल जा रहा था. उन के लिए ये एक अलग अनुभव था …अलग सा एक जीवन था !

“देश में   …और विदेश में …आज हालत बड़ी ही तेजी से बदल रहे हैं ,पापा !” कार चलाते-चलाते फत्तू कह रहा था. “नई हवा चल पड़ी है ! गए आप के जमाने जब ….लेबर से लड़ाई ….इनकम  टैक्स …दलाली और ऊपर का उजाड़-बिगाड़ ….आप की जान को आ जाते थे. अब तो सीधा पैसा इन्टरनेट से आता है- बैंक में ! नोट गिनने तक की ज़हमत कोई नहीं उठाता, जी !” फत्तू प्रसन्न था. “और हमारा तो कैश का काम है …मोटा काम है …!” उस ने पलट कर राम लाल और रत्ती को देखा था. “भारत को ही लें …तो करीब छतीस हज़ार करोड़ का मार्किट है ! विदेशों की तो बात ही अलग है  !! यह एक विश्व-व्यापी व्यापार है. बढेगा …तो न जाने कितनी बुलंदियां छू देगा …?” उस ने रुक कर रत्ती और राम लाल के चहरे पढ़े थे. वो प्रसन्न थे. “आज कहीं भी ….कोई भी पेट्स को हेय द्रष्टि से नहीं देखता है !” फत्तू बताने लगा था. “पेट्स को आज लोग …अपने बच्चों से भी ज्यादा प्यार देते हैं. एक फिल्म प्रोडूसर – सर रेड क्लिफ है  , पापा …! घर लौटते ही पहले अपने पेट्स के साथ खेलते हैं ….उन्हें घुमाते हैं …खिलाते हैं ….और तब जा कर अपनी पत्नी से ….हेल्लो बोलते हैं !” फत्तू रुका था. उस ने रत्ती के चहरे का रंग बदलते हुए देख लिया था. “और , मॉम …..” उस ने अब रत्ती को संबोधित किया था. “मेरी  एक क्लाइंट है – उर्वशी ! शादी नहीं की है – उस ने ! अलका लैंड्स की अकेली ही मालकिन है ! क्या तरीका है -पेट्स रखने का …? देखेंगी तो हैरान रह जायगी ! सब पेट्स के लिए बैड ,बिस्तर …कपडे …खाना-दाना …और …नहांना -धोना …! सब कुछ मुक्कम्मल …!! दबाईयाँ  तक रखती हैं. तीज-त्योहारों पर पेट्स को खूब सजाती हैं ….” फत्तू ने अब की बार राम लाल को घूरा था. “अठारह लाख का बिजनिस है , अकेली उर्वशी का , पापा !” फत्तू ने जैसे बम फाड़ दिया था.

रत्ती की आँखें फटी की फटी रह गई थीं .

तभी कार का दरबाजा खुला था. कैनाइन इंटरनेशनल के प्रांगन में वो दोनों अजूबों की तरह आ खड़े हुए थे. जो वो देखने के लिए तरस रहे थे ….वो तो कहीं दिखाई ही नहीं दे रहा था. चंद कैनंस थे …बगीचा था …ऑफिस थे …और दूर एक दो कमरों का मकान था ! और हवा थी ….मौसम था …हरियाली थी ….!

“ये देखो, मम्मा !” फत्तू इतरा कर बोला था. “अभी आप ने जो दो करोड़ भेजे थे ….मैंने उन का ये जोड़ा ख़रीदा है ! यूरेशियन हैं! आज का ऑफर मेरे पास तीन करोड़ का है ….पर में बेचूंगा नहीं !”

रत्ती और राम लाल ने उन दोनों कुत्तों के पिल्लों को …संदिग्ध निगाहों से देखा था. वो दोनों पिल्लै भी उन दोनों को अपनी बटन जैसी गोल-गोल आँखों से घूर रहे थे- खतरों की तरह !

“और ये सब …कैनंस  हैं ….सब में पेट्स हैं …..अलग-अलग नस्ल के …अलग-अलग देशों के ….और वो …है …इन के लिए प्ले-ग्राउंड ! वो देखी नर्सरी…..वो डाक्टर का कमरा …और वो रही फैक्ट्री …..जहाँ हर ज़रुरत का सामान बनता है …” फत्तू ने उन दोनों को एक साथ देखा था. “अरे, हाँ ! वो है …आप दोनों के लिए ….’राम-कुटीर’ !” फत्तू हंसा था. “रत्ती …और राम लाल के लिए …..!” उस ने सहज होने का प्रयत्न किया था.

“तुम ने दो करोड़ के कुत्ते …मेरा मतलब ….ये दो पिल्लै …खरीदे हैं ….?” रत्ती की आवाज़ में अफसोस सा कुछ था. “हम कुत्तों के साथ रहेंगे , यहाँ ….?”

“कुत्ते ….! पिल्लै …..!! ये क्या कह रही हो, मॉम..? दे ….आर …”

“तेरा, सर ….!!” रत्ती बिगड़ गई थी. “फत्तू तू इतना बेवकूफ निकलेगा ….? कुत्ते खरीदे हैं ….दो करोड़ के ….? कुत्ते बेचता है …., कुत्ते ….! फत्तू ….उइ …!” रोने लगी थी – रत्ती . “चलो , उठो …वापस ….! अभी …इसी वक्त… !”

पागल हो गई थी – रत्ती ! राम लाल भी उस दिन के उजाले में कुछ न देख पा रहा था ..! काला दिन था ….अँधा सूरज था …और धरती का मुंह भी फट गया था….जिस में उस की पूरी उम्र की कमाई समां गई थी.

कोई नई हवा चल पड़ी थी – शायद ….!!

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