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मुझे मरने से डर नहीं लगता, संभव !!

गतांक से आगे :-

पारुल अशांत थी !!

रह-रह कर घबराती गरिमा का चेहरा बार-बार उस के दिमाग में कौवे की तरह खोंट मार रहा था ….घाव दे रहा था …और लहू-लुहान कर रहा था -उसे !

“दो बेटियां हैं . मैं अकेली हूँ !” गरिमा के स्वर थे …जो चले ही आ रहे थे . “मेला राम – मेरे पति की हत्या करा दी !” वह रो रही थी . “मेरा देवर -खिलौना राम …जिसे मैंने बेटे की तरह पाला था …आज मेरी जांन लेने पर तुला है ! क्या करू…? कहाँ जाऊं …??” गरिमा गाय की तरह डकरा रही थी .

दो बेटियां थीं , गरिमा की . दो बेटियां थीं – पारुल की !!

भिन्न तरह के उजाले उगे थे -पारुल के दिमाग में . लब्बो -शब्बो दोनों ककड़ियों की तरह लम्बी हो चलीं थीं . दोनों यौवन की ओर चल पड़ीं थीं . दोनों ….हाँ,हाँ …दोनों ही बे-जोड़ सुंदरियाँ थीं !! अभी तक एक गुप्त खजाने की तरह संजोये थी -उन्हें , पारुल ! अभी तक …….

“तीन बेटे हैं, खिलौना राम के !” पारुल का एकांत बोलने लगा था . “नल,नील से नहीं …खतरा उसे कर्मठ से है ! वही है – जिस ने मेला राम का खून कराया है ! वही है …जो नेता बन गया है ….और …”

“बंबई से टीम पहुँच गई है, मैंम !” गप्पा बता रही थी . “कहें तो …शूटिंग ……>”

“हाँ,हाँ ! काम चालू रक्खो …!!” पारुल ने संयत स्वर में कहा था .

लगा था – पारुल ने आज जंग छेड़ दी थी ! अन्याय के खिलाफ उस ने पहली बार … आवाज़ उठाई थी . होते अपराधों की ओर उसने उंगली उठा कर चेतावनी देना चाहा था ! उस का तन-मन दोनों ही आंदोलित थे . राजन के जाने के बाद भी उसे लगा था कि वह अकेली नहीं थी . पारुल-पैलेस में जैसे एक नई दुनियां ही आ बसी थी ! उस ने स्वागत किया था – अपने विचारों का …मनो-भावों का …और बार-बार अपने लड़ने के इरादों को पक्का किया था !!

“तीन बेटे हैं, खिलौना राम के ….” गरिमा का चहरा फिर से उगा था ….!!

तीन बेटे ! उन में से कर्मठ -नेता …खूंख्वार अपराधी !! गरिमा – एक औरत ….अवला …अकेली !! पारुल थर-थर कांपने लगी थी . कर्मठ के अपराधी चरित्र से वह लड़ नहीं पा रही थी . तभी घंटी बजी थी . कोई था ! रात के इस अवसान में कौन हो सकता था ? अगर कर्मठ हुआ तो ….?अगर उस ने गरिमा ….? पसीने छूट गए थे – पारुल के . घंटी फिर बजी थी . पारुल बुरी तरह से भयभीत थी . लेकिन …….

“कौन ….?” पारुल ने खबरदार होते हुए दरवाजे पर दस्तक देते उस खतरे से पूछा था. उस की आवाज़ डरी हुई थी .

“मैं …हूँ , रे ! सावित्री !!” एक बेहद ममतालू स्वर पारुल के कानों में सीधा उतर गया था . ” पारो ! मैं …मैं क्या करती …..? चली आई . रहा न गया …मुझ से…तो मैं …भाग ली !” सावित्री खड़ी-खड़ी कहती ही जा रही थी .

पारुल ने दरवाज़ा खोला था …..और सावित्री को मांगी मुराद की तरह अपनी बांहों में सहेज लिया था !

“ओ-ह , दी-दी …!!” सुबकने लगी थी, पारुल .

“रोने की बात नहीं है,रे … ” सावित्री कह रही थी . “मोद मनाने की घड़ी है ! मैंने सोचा – क्यों न मैं तेरे पास पहुँच जाऊं …?”

“अच्छा किया ,आपने !” पारुल संभल गई थी . “मैं ….अकेली …..?”

“क्यों ….? राजन कहाँ है ….?”

“काम-कोटि गए हैं !” सहज स्वभाव में सूचना दी थी , पारुल ने . “अपना …वो जुआ- घर बना रहे हैं . लॉस वेगस से टीम आ गई है !!”

“उल्टा ही मरेगा ….?” अचानक सावित्री के स्वर फूट पड़े थे . फिर वह तनिक संभली थी . उसे एहसास हुआ था कि अब राजन उस का नहीं ,पारुल का था ! “मेरा मतलब था , पारो कि ….मुझे ये सब रास नहीं आता ….! न जाने क्यों …मैं तो …अब अपने सांवरे में ही सब कुछ पा जाती हूँ . और अब तो …मुझे उन के साक्षात् दर्शन होंगे तो …”सावित्री ने पलट कर पारुल की आँखों में देखा था . “माँ बनने का …कितना मन था , मेरा …?” वह बता रही थी . “ये,लो !” सावित्री ने कांख में दबी एक छोटी पोटली निकाल कर पारुल को सौंपी थी . “वह सब है – जो माँ ने मुझे दिया था ! कहा था – माँ बनेगी तो काम आएगा …! संतान आने पर …संत बनना होता है , पारो ! माँ कहती थीं …बच्चे में संस्कार ही तभी आते हैं …जब माँ …..”

“लाओ, दी – दी !” पारुल ने सावित्री को सम्मान देते हुए कहा था . फिर उस पोटली को मांथे से छुआ कर श्रद्धा -विनत स्वरों में बोली थी . “आप मेरी ….माँ ही तो हैं ….!!”

“नहीं , रे ….!!” सावित्री भी प्रेमाकुल थी . “मैं तो …उस सांवरे के लिए ….समर्पित…हो गई हूँ . मैं तो …सच में …पारुल ..पा-ग-ल ही …हूँ !!”

पारुल अपलक सावित्री को देखती ही रही थी . वास्तव में ही सावित्री अपने कन्हेयाँ के रंग में रंगी …सब कुछ भुला बैठी थी . उसे कहाँ याद था …राजन ….शादी …सुहाग ….और अपना बेजोड़ सौंदर्य ….!!

पारुल की कोख से ..कन्हेयाँ उधार माँगने आई यशोदा शर्म खोल कर …उस के सामने खड़ी याचना कर रही थी !!

“में तो आप को महान मानती हूँ , दी दी !” पारुल की आवाज़ में सच्चा आभार था …श्रद्धा थी .

“ये तुम्हारा बडप्पन है , पारो !” हंस रही थी , सावित्री . कितनी पवित्र थी उस की ये हंसी ? पारुल परख कर अभिभूत हो गई थी . आज के ज़माने में इतना निश्छल आदमी मिलता कहाँ है -पारुल की राय थी . “भूख लगी है !” सावित्री की मांग थी . “कुछ खा कर ही नहीं आई . ” उस ने बेबाक खुलासा किया था . “भूल ही गई थी …कि …” और फिर सावित्री ने निगाहों से ही सब कुछ कह दिया था . “अच्छा ! अब में तुझे बना कर खिलाती हूँ …>” सुझाव था , उस का . “लेकिन होगा …कुछ ऐसा ..जो एक गर्भवती माँ के लिए … माफिक लगे ….!” सावित्री बेहद प्रसन्न थी .

पारुल -पैलेस में दो स्वतंत्र हुई महिलाएं अपनी -अपनी इच्छाओं के अनुसार खा-बना रहीं थीं . बातों का चलता अनवरत सिलसिला ..पारुल के लिए शिक्षाप्रद जैसा ही कुछ था ! जैसे ये अभी तक नहीं घटा था ….पर इसे घटना तो चाहिए था ? हर स्त्री के जीवन में इस का घटना जैसे अनिवार्य ही था !

“माँ का संतान के प्रति बहुत बड़ा दायित्व होता है , पारो !” सावित्री आज अपने उदगार बहाती ही चली जा रही थी . “और माँ की ममता का तो कोई मोल ही नहीं !” सावित्री ने सीधा पारुल की आँखों में देखा था . “ईश्वर का दिया वरदान है , ये -औरतों के लिए !” सावित्री ने अपना दर्शन बताया था . “और पारो ! पलट कर देख लो . जब-जब औरत ने ममता का अपमान किया है ….दुःख भोग है !साम्राज्य तक बह गए हैं ,पारो ….!!” सावित्री की दलील में दम था .

आश्चर्य की बात थी कि …न तो उन दोनों की बातें रुकीं ….और न ही वक्त ! और जब घर की घंटी जोरों से बज उठी थी ….तो लगा था -सवेरा अब उन्हें उठाने स्वयं चला आया था !

“आ-पपप…!!” एक लम्बे-चौड़े आदमी का सामना होते ही पारुल हडबडा गई थी .

“मैं …खिलौना राम !” वह व्यक्ति परिचय दे रहा था . “नमस्कार !!” उस ने हाथ जोड़ कर अभिवादन किया था . “अरे ! सावित्री दी, आप भी …? प्रणाम …!!” खिलौना राम ने विहंस कर कहा था और सावित्री के चरण स्पर्श किए थे . “कितना बड़ा सौभाग्य है मेरा जो ….आप जैसी सती-नारी के दर्शन हो गए …!”खिलौना राम के मधुर स्वर पारुल-पैलेस में बिखरते ही चले गए थे . “विशेष काम से आया हूँ !” वह बोला था . “अब तो मुझे …आस है …कि …”

“आईए …!” पारुल ने उसे घर के अंदर बुला लिया था .

सावित्री की समझ में कुछ नहीं आया था . उस का तो मन था कि …अपने घर की राह गहे ! पर न जाने क्यों पारुल को अकेला छोड़ना उसे उचित न लगा था . न जाने कौन था ये विचित्र आदमी – वह सोचे जा रही थी .

“गारिम भाबी …कहाँ हैं …. ? उस ने पूछा था . “बुलाईने …न उन्हें ….!” खिलौना राम का आग्रह था .

पारुल ने सारी स्थिति भांप ली थी . उसे एक निगाह में खिलौना राम का घटिया चरित्र दिखाई दे गया था !

“भाई साहब की म्रत्यु के बाद…पारवारिक कलह स्वाभाविक है – मैं मानता हूँ .” खिलौना राम कह रहा था . “लेकिन मैं ये भी मानता हूँ …कि …. आपसी सुलह-सफाई हो जाय …और रूंठे …सुजन मन जांय ….तो …” उस ने सावित्री की आँखों में देखा था . “बुलाईये , उन्हें …..!”आग्रह था -खिलौना राम का .

चाय आ गई थी . सावित्री को अच्छा लगा था . वह इस खिलौना राम की बातों में दिलचस्पी न ले रही थी .

“ये बातें ….घर बैठ कर … नहीं होतीं …..!” पारुल ने शांत स्वर में कहा था . “आप वक्त ले कर …ऑफिस में आईये !”

“ये औरत मक्कार है !” खिलौना राम कह रहा था . “आप इस की चाल में मत आईये , मैडम !” उस ने चेतावनी दी थी . “ये चालू है ….और इस की बेटियां भी …….”

“बको मत ….!!” पारुल ने जोरों से कहा था . सावित्री चौंक पड़ी थी . “चलिए ….आप …जाईये …..!!” पारुल ने आदेश दिए थे . “जहाँ देखो ….वहीँ …औरत पर तौमत ….?” बडबडा रही थी, पारुल . “जहाँ देखो …वहीँ …अबला पर-हमाल …!!” उस ने खिलौना राम को आग्नेय नेत्रों से देखा था . “हरगिज़ ….हरगिज़ …नहीं …छोडूंगी …..इस ….” वह बाहर जाते खिलौना राम को देखती रही थी .

सावित्री अपनी आँखों में एक आश्चर्य समेट लौट आई थी . आज की पारुल का तो उसे आज ही पता मिला था !

“तुम इस खिलौना राम के चक्कर में मत पड़ो ,पारो !” संभव का फोन था . “तुम नहीं जानतीं -इसे ! कर्मठ – इस का बेटा …बहुत …ही ….”

“मुझे मरने से डर नहीं लगता ,संभव !” पारुल के स्वर कठोर थे .

“लेकिन पारो ! ये खिलौना राम …मेरा क्लाईंट है !”

“सो ….व्हाट …..?” कह कर पारुल ने फोन काट दिया था .

क्रमशः ….

मेजर कृपाल वर्मा साहित्य !!

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