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मेरी मॉं

“मैने मॉं, एवरेस्ट पर चढना है!” समीर ने आते ही कहना आरम्भ कर दिया था। “छुट्टियों में हम पुन्नू चल रहे हैं!” उसने सूचना दी थी। “वो तो मुझे अकेले को ही आने को कह रहे थे पर मैने जिद कर ली कि बिना मॉं को साथ लिये मैं न जाऊंगा!”

“क्यों की जिद?” मॉं ने विहँस कर पूछा था।

“क्योंकि – आपकी भी गर्मी की छुट्टियॉं हैं। आप अकेली .. बिना मेरे ..?” हँसा था समीर। “रोज़ भूखी सोओगी .. रोज़ रोज़ ..” उसने मॉं के खिल आये चेहरे को देखा था। “अब हम दोनों साथ साथ पहाड़ों पर हँसेंगे .. कूदेंगे .. नाचेंगे ..” समीर उछल कूद करने लगा था। “सच मॉं! आई एम माईटी हैप्पी!” उसने मॉं के गले में बाहें डाल एक आभार जताया था। “आप महान हैं – मॉं!” वह हँसे जा रहा था।

“मस्का तो मार रहा है .. पर पैसे ..?” मॉं पूछ बैठी थीी। “देख समीर! तू तो जानता है कि ..”

“आप ने मेरी शादी करनी है .. बहू के लिये कुछ तो बनवाना ही होगा .. और फिर आपका पोता आया तो – भी धन चाहिये?” समीर चुहल कर रहा था। आम तौर पर मॉं के कहे को ही दोहरा रहा था।

“पर पैसे ..? पगले, खर्च नहीं होगा वहॉं?”

“होगा! क्यों नहीं होगा! मेरी जेब में हैं, पैसे ..”

“कहॉं से आये?”

“आसमान से!” समीर हँसा था। “आप आम खाइये मॉं!” उसने मॉं को दुलार भरी निगाहों से देखा था। “पेड़ मैं गिनूंगा अब! आप ने बहुत कमा दिया .. आप ने ..”

“कब हुआ इतना बड़ा, रे ..?”

“कल मॉं! जब आप .. थक गईं थीं .. और आते आते बेदम हो गईं थीं – तब मैने निश्चय कर लिया कि .. अब आपकी छुट्टी! सब कुछ मैं करूंगा ..” समीर कहता ही जा रहा था। “कब तक भाागोगी मॉं?” उसने गंभीर होकर पृश्न पूछा था।

“लेकिन बेटा ..?”

“हम पॉंच को चल रहे हैं!” समीर कह रहा था। “रिजर्वेशन हो गया। वहॉं भी सब फिट हो गया। कुल पंद्रह दिन का प्रोग्राम है .. सो ..” उसने चिंता में डूबी मॉं को देखा था। “अब क्या ..?”

“होना कया है? मैंने वहॉं चल कर कौनसा पहाड़ तोड़ना है, मैं भी तो सुनूं?”

“बड़े बड़े लोग आ रहे है – मॉं!” प्रसन्न होकर समीर ने बताया था। “देश अब युवा शक्ति को प्रोत्साहित करने पर उतर आया है! बसंत वीर सिंह का बेटा हमारी टीम में है! शैव्या की बेटी सोनम आ रही है। और – मल्टीमिलिओनर कपीस का बेटा कमल ..”

“ये तू क्या कह रहा है!” वो तनिक चकित हुईं थीं। “इन लोगों के बच्चों को क्या पड़ी है – जो पहाड़ों पर चढेंगे .. पगले!” उन का पृश्न था। “एशो आराम की जिन्दगी मिले जिसे – वह भला क्यों माथा पच्ची करेगा पहाड़ से?”

“एवरेस्ट पर चढने के बाद मॉं नाम मिलेगा .. ख्याति मिलेगी और मिलेगा ढेर सारा आत्म विश्वास! आदमी एक साथ लाइम लाइट में आ जाता है! अब बछेंद्री पाल का नाम तो आप सुन चुकी हैं! कहॉं से कहॉं ..”

समीर की बड़ी बड़ी बातें सुन कर मॉं दंग रह गई थीं। उसने यह सब कैसे कर डाला था – वह समझ न पा रही थीं। कब इतना बड़ा हो गया उसका समीर एक आश्चर्य जैसा लग रहा था – उन्हें।

मॉं के लिये तो बेटा कभी बड़ा होता ही नहींं!

“हमारी ग्यारह लोगों की टीम है मॉं!” समीर बता रहा था। “हम सब ने मिल कर साथ साथ ट्रेनिंग की है। अब पंद्रह दिन के लिये पुन्नू में हमारा कैंप चलेगा। इस कैंप में हमें पूर्ण शिक्षित किया जायेगा और एवरेस्ट की पूरी जानकारी दी जायेगी।” उसने मॉं के गंभीर चेहरे को पढ़ा था। “बछेंन्द्री पाल आ रही हैं! आप मिलना उनसे ..”

“पर मैं क्या करूगी वहॉं समीर?”

“सबके पेरेंट्स आ रहे है! सोनम की मॉं तो यू एस से दो माह की छुट्टी ले कर आ रही हैं। और बसंत वीर सिंह ने तो पहले ही रिसोर्ट बुक करा लिया है। दोनों वहीं रहेगे। और कपीस साहब का तो कहना ही क्या। बड़ी रौनक रहेगी मॉं ..”

“लेकिन समीर पंद्रह दिन का वक्त बेटे ..?”

“आप ने अभी पुन्नू का रेंज नहीं देखा है न, माॅंं। दर्शन करके आप दंग रह जायेंगी!” समीर बताने लगा था। “चलिये मैं आपको नेट पर दिखाता हूँ”। उसने प्रस्ताव रख्खा था। “आइये ..”

“अभी मुझे बहुत सारे काम करने हैं! फिर दिखा देना। पर तूने यह सब कैसे अरेंज़ कर लिया समीर?” वह फिर से पूछ बैठी थी।

“टीम का लीडर है तुम्हारा बेटा!” समीर ने गर्व के साथ कहा था। “अरे मॉं! पहाड़ पर चढता हूँ तो लोग मुझे ‘माऊंटेन गोट’ कहते हैं। सोनम तो मेरी दीवानी है! मिलना उससे ..” समीर ने सुझाव दिया था। “लेकिन हॉं! उसे बहू बनाने की मत सोच बैठना? फिर तुम्हारा कहीं पोता आये और तुम ..”

“और अगर मुझे वो पसंद आ ही गई तो ..?” मॉं ने प्रसन्न होकर पूछा था।

“फोर गॉड सेक मॉं।” समीर हाथ जोड़े मॉं के सामने खड़ा था। “मैने शादी नहीं करनी!” वह कह रहा था। “मैने कैरियर चुनना है। हो सका तो हम ..”

मॉं न जाने किस सोच में जा डूबी थी।

समीर को आशंका थी कि अब मॉं जरूर-जरूर पापा के बारे सोचने बैठ गई होंगी। लेकिन उसे कुछ न बताएंगी। उसे तो आज तक पापा का नाम तक नहीं बताया। वह क्या करे? जब चुपके चुपके रो लेती हैं तो समीर भी कठिनाई से ऑंसू रोक पाता है!

पुन्नू जाने से पहले भी समीर के दिमाग में वही विचार आया था – जो आम आता है! क्या कहीं .. कभी उस क्राउड में उसे अपने पापा मिल जायेंगे? वह जब कमल के पापा कपीस से मिला था – तो पहला पृश्न यही उसके दिमाग में आया था – क्या मेरे पापा भी कपीस अंकल जैसे होंगे? और सोनम के बाबूजी तो देव तुल्य लगे थे उसे! आज भी .. पुन्नू की उस भीड़ में .. वहॉं के उस अज्ञात एकांत में .. समीर अपने पापा को अवश्य खोजेगा!

“आइये मॉं!” समीर ने पुकारा था। “ये देखिये पुन्नू का पूरा रेंज!” समीर ने नैट पर पूरी पर्वत श्रेणियॉं घुमा घुमा कर दिखई थीं। “ऊँचाई चौबीस हज़ार फुट तक है। यहॉं से ग्लेेशियर आरम्भ होता है। और ये देखिये मॉं बॉंण गंगा जो इस ग्लेशियर से निकलती है। ये देखो ट्री लाइन .. नौ हज़ार फीट तक आती है और फिर पहाड़ नंगे रह जाते है। लेकिन बर्फ जमने के बाद ..”

“बस कर समीर!” मॉं उकताने लगी थी। “क्या खोजने जा रहा है वहॉं?”

“पापा!” समीर कहना चाहता था पर रुक गया था। वह डरता था मॉं के ऑंसुओं से। लेकिन जहॉं मॉं की ऑंखों में पापा की बेजान छवि तैरती रहती थी .. वहीं समीर के जहन में वह बैठे ही रहते थे!

मॉं उठ कर चली गई थी। समीर जानता था कि अब वह उसके लिये मोतीचूर के लड्डू बनाऐगी .. मठरी सेकेंगी और रास्ते के लिये आलू पूड़ी ले जाने का प्रयोजन करेंगी। बाहर का खाना उसे खाने ही न देंगी।

“कल डॉक्यूमेंट साइन करने आना है समीर!” साेेनम का फोन था। मॉं चल रही हैं न?” उसने पूछ लिया था।

“मुश्किल से मनाया है, यार!” समीर ने हँसते हुए कहा था।

“मैं भी मॉं को फ्लाइट पर लेने जा रही हूँ!” सोनम चहक रही थी।

टीम के ऐवरेस्ट पर जाने की खबर फिज़ा पर फैल गई थी। प्रेस ने उन सब के फोटो उठा लिये थे।

देश के किशोरों का मन मयूरा नाच उठा था।

क्रमश:

मेजर कृपाल वर्मा

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