” देख लो .. जो पसंद हो! कर लो आर्डर!”।
” हम्म…!”।
” अरे! क्या हुआ..! इतना टाइम नहीं लगाते.. फ़टाफ़ट करो आर्डर!’।
” लाओ! इधर दो! Menu कार्ड.. पहले सबके रेट देख रही होगी.. फ़िर सबसे सस्ता देख.. आर्डर करेगी! ऐसे नहीं किया जाता.. जो भी पसंद हो.. फ़टाफ़ट आर्डर कर देते हैं.. रेट पढ़ने में टाइम waste नहीं करते!”।
जब कभी हम पहले परिवार संग बाहर खाना खाया करते थे.. तो मेनू कार्ड हमारे हाथ में थमा दिया जाता था.. घंटों खाने की चीज़ों का रेट पढ़ने में लगा दिया करते थे.. फ़िर सबसे सस्ते के हिसाब से आर्डर किया करते.. इस आदत पर हर बार हमें अपने से बड़ों की डांट खानी पड़ती थी।
डांट खा-खा कर आदत तो सुधर गयी.. अब जब भी कभी परिवार संग भोजन करना होता.. तो झट्ट से बिना रेट देखे ही.. पसंद का आर्डर प्लेस करने लगे थे।
बात तो खैर यहाँ ठीक थी.. पर जेब पिताजी की हुआ करती थी.. इसलिए बिना सोचे-समझे पिता के राज़ में मज़े थे।
कुछ मज़े और आराम आगे चलकर बच्चों को नुकसान पहुँचाते हैं.. साथ में अपाहिज बना डालते हैं।
अपने बच्चों को अपने दम पर ही बेधड़क आर्डर प्लेस करना सिखाया जाए.. केवल अपने ही लिए नहीं! बल्कि औरों के लिए भी.. इसी में माँ-बाप का मान और बच्चों को अपने पैरों पर खड़े कर जीवन को सार्थक बनाना है।