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मैरिज !

डौली !!

कहानी :-

“आज ! हाँ,हाँ ! आज ही हम अपनी मैरिज का ऐलान करेंगे ! विनीत के आने की देर है , बस !!” विश्व वीर जमा मित्रों को आश्वासन दे रहा था . “दोस्तो ! मैंने हमेशा-हमेशा वायदा निबाहा है …वचन पूरा किया है …और ये सामाजिक क्रान्ति लाने का साहस किया है- जहाँ हम …पुरुष और पुरुष …युवतियां और युवतियां ….और युवक और युवतियां …अपनी इच्छानुसार मैरिज कर सकते हैं …अपनी मर्जी से समाज में इज्जत के साथ जी सकते हैं !”

तालियाँ बजी थीं . हर्षध्वनि के साथ नारे लगे थे ! जमा लोगों के चहरे खुले-खिले लग रहे थे . एक अतिरिक्त उत्साह उन के मनों में डोल रहा था . कुछ अप्रत्याशित घट गया था …!!

प्रेस और मीडिया उपस्थित थे !

“अब हम भी शादी करेंगे !” रीता और सीता कह रहीं थीं . “द हेल ….विद …द पीपुल …! पैरेंटस ….एंड पडौसी कैन ….हॉप …! हमें कौन रोकेगा , अब ….?” वो दोनों जोरों से हंस पड़ीं थीं .

माहौल में एक उबाल जैसा आ गया था ! जैसे एक दौड़ आरम्भ होने वाली थी – सभी जमा लोग अपनी-अपनी शादियाँ बनाने की सोच रहे थे ! धरम और करम ने भी अपनी शादी का एलान कर दिया था . 

पर विनीत अभी तक नहीं पहुंचा है . उस का बड़ी ही बेसब्री से इंतज़ार हो रहा है . पत्रकार भी उस के आने के इंतज़ार में सूख गए हैं ! हर बार एक ही उत्तर आता है – साहब कांफ्रेंस में हैं ! अब विश्व वीर क्या करे …? जमा भीड़ उस के कान खाए जा रही है !

वैसे विनीत भी किसी के लिए नया नहीं है . विनीत ने इस आन्दोलन में बेसुम्मार धन खर्चा है . विश्व वीर भी विनीत के ही दम जिन्दा है ! कहते हैं – दोनों अमर प्रेमी हैं …हू …हैड मेट इन हैवन …! और अब इन दोनों की शादी ….एक कीर्तिमान कायम करेगी …और ….

“क्यों,क्यों ….आप ने इस विश्व वीर को मूं लगाया ….?” आलोक जोर दे-दे कर विनीत को पूछ रहा था . “मैं नहीं मानता कि ….” आलोक ने विनीत की आँखों में घूरा था . “ताऊ जी की मौत का ….”

“विश्व वीर ही तो जिम्बेदार है !” विनीत के दिमाग में उत्तर तो उग आया था पर वह चुप ही बना रहा था .

निराश होती जमा भीड़ को विश्व वीर फिर से बताने लगा था – विनीत को आप में से कौन नहीं जानता …? ही इज ….सच ए …डार्लिंग ….हूँ कैन चार्म द …होल वर्ल्ड ….!! उस ने अब अपने आस-पास को पढ़ा था . लोग प्रसन्न हुए लगे थे . 

“लाला जी तो गए …और अब ये …कंपनी …व्यापार …वैभव और इज्जत सब डूब जाएगा ! सोच लो , विनीत ?” रुका था , आलोक . फिर उस ने वही प्रश्न दुहराया था . “आखिर ऐसा क्या है , विश्व वीर में …जो आपने इस घटिया आदमी को मूं लगाया …?”

“डर …!” आज आ कर विनीत ने दुखती रग पर उंगली धरी थी . “बिल्लू का डर मुझे इस विश्व वीर के पास ले गया था !” उस ने आलोक से आँख चुरा कर अपने विगत को बुलाया था .

‘कालेज का पहला ही दिन था , वो ! मैं क्लास में जा कर बैठा ही था कि बिल्लू आ भिड़ा था . वह एक बार फ़ैल हो चुका था और बड़ा ही लडाक लड़का था ! ‘चल, ब्बे ! पीछे बैठ !’ उस ने मुझे धमकाते हुए कहा था . “तेरे हुश्न को भी बाद में देखेंगे , लल्लू !’ उस ने मेरी सुन्दरता को सराहा था . “देख ! मैं पीट भी देता हूँ, बच्चे !!” मैं डर गया था . मैंने तो पहली बार ही ऐसा माहौल देखा था !

“विश्व वीर को बता दे !” मेरे साथ आए शुभनीत  ने मुझे सुझाया था . ” इस की तो मिनट में मुंडी मरोड़ देगा !!”

तब , हाँ तब मैं इस विश्व वीर की तलाश में निकला था . यह मुझे स्पोर्टस ग्राउंड में जा कर मिला था  . मैं तो इस की बौडी को देखते ही प्रभावित हो गया था ! क्या बनावट थी …कैसी मस्त गजराज सी चाल थी …और कैसा नूर था चहरे पर ….?

“मैं …मैं …भाई  साहब , मैं ……” मैंने मुलाकात की थी तो मेरा तो बोल ही न निकला था . 

“हाँ,हाँ ! कहो ….!” विश्व वीर हंसा था . “नाम बताओ …?” उस ने पूछा था . 

“विनीत !” मैं कठिनाई से ही कह पाया था . 

“कौनसा गम खाए जा रहा है तुम्हें, हैंडसम …?” उस ने पूछा था . 

“बिल्लू ने मेरी फ़ाइल फ़ेंक दी है और …..” मैं रोने लगा था  .

“अरे, बिल्लू का उल्लू अभी बनाते हैं ! आओ ….” वह मेरे साथ हो लिया था . बस, उस के बाद तो मैं विश्व वीर के निकट आता ही चला गया ! 

लेकिन विनीत के अंतःकरण के एकांत मैं इस भ्रामक प्रेम-कथा का अंकुर आज फिर से उग आया था ! वह जीवन की पहली ही घटना था ….हाँ,हाँ ! वह पहला ही मौका तो था …जब विश्व वीर ने उसे चूमा था ! उस के मुंह में अपनी चुलबुली जीभ डाल दी थी . उसे आगोश में ले कर खूब भींचा था . और फिर उसे भी उत्साहित किया था कि वह भी उसे चूमे …चाटे ….और ….

“हम अमर प्रेमी हैं !” विश्व वीर कहता था . “हमारा प्रेम श्रेष्ठ है !” वह बताता था . “हम दोनों अभिन्न हैं !!” उस ने कह दिया था . विश्व वीर को विनीत के चहरे पर बिखरा लावण्य …उस का कच्चा ककड़ी-सा शरीर …और उस की कमनीयता भा गई थी ! वह उस पर मोहित हो चुका था – यह तो विनीत भी जान गया था ! वह उसे घंटो -घंटों गरम-गरम बिस्तर मैं लिए पड़ा रहता था और ….अंत में विश्व वीर ने विनीत को पटा ही लिया था !!

विश्व वीर जब तीसरी बार भी फ़ैल हुआ था तो विनीत ने ही लाला जी से कह कर उसे फैक्ट्री में नौकरी दिला दी थी . विश्व वीर ने भी कमाल कर के दिखाया था ! डूबता पैसा पटा लिया था और नौकरों की नकेल कस दी थी ! लाला जी प्रसन्न हुए थे !!

और जब विश्व वीर की शादी रीता के साथ तय हुई तो विनीत की जान में जान आई ! 

“क्या तुम विनीत के साथ सोते हो ….?” तमतमाई रीता विश्व वीर से पूछ रही थी . 

“क्या विनीत मुझे तुम्हारे साथ सोने से रोक लेगा ….?” विश्व वीर ने उल्टा प्रश्न ही पूछा था . 

लेकिन रीता रुकी नहीं थी . वह चली गई थी . उस ने विश्व वीर से शादी नहीं की थी ! बहुत बड़ी निराशा हुई थी , मुझे ! विश्व वीर ने फिर से मुझ से प्यार बढ़ाया था …और मैं डर की वजह से ही ….उस का साथ देता रहा था ! फिर मेरी शादी तय हुई थी -आगरा के मनाजी जूता कंपनी के मालिक मानिक शाह की बेटी -डौली से . वह बिन्नी – मेरी बहिन की सहेली थी और बिन्नी की शादी हो चुकी थी . मैं प्रसन्न था . 

लेकिन विश्व वीर अब चिंतित था. और वही हुआ जिस का मुझे डर था ! किसी ने सीधा जा कर मानिक शाह को बता दिया था कि मैं तो विश्व वीर के साथ सोता था ! 

फिर क्या था ? तूफ़ान आया ….और लाला जी की जान ले कर ही गया ! क्यों कि मानिक शाह ने खुद आ कर लाला जी को बताया था कि ….मैं विश्व वीर के साथ सोता था ….! कहाँ बर्दास्त कर पाते वो ….इस दुष्कर्म को ….? माँ ने भी मुझ से नेह तोडा और उन्ही के साथ चली गई ! अब में नितांत अकेला रह गया था ! 

“चिंता मत करना ! तुम्हारा मित्र ….तुम्हारा इश्क ….तुम्हारा हमसफ़र ….और हमराज -विश्व वीर जिन्दा है !” वह कह रहा था . “चलो ! फ़्रांस चलते हैं .” उस का सुझाव था . “वहां चल कर देखना विनीत कि …लोग किस तरह से ऐश करते हैं …सेक्स को किस तरह से सेलेब्रेट करते हैं …..और किस तरह का मुक्त और स्वस्थ आदान-प्रदान ….वहां चलता है !” वह हंसा था . “तुम हैरान रह जाओगे  मित्र …जब देखोगे कि …..किस तरह जो चाहो …वही हाज़िर ! यहाँ तो लोग साले गधे हैं ….! तमीज ही नहीं ……”

मैं चुप था . पर मैं समझ रहा था कि भारत में भी ये बीमारी वहीँ से आ रही थी ! ये गंद विदेशी थी और अब हमें बेची जा रही थी ! 

आज लाला जी की मौत का गम न जाने किस गहराई से उखड आया था और अब मुझे मारे दे रहा था ! मुझे आज पहली बार ही विश्व वीर बुरा लगा था ! मुझे लगा था कि जिस राह पर वो मुझे लेजा रहा था …वह राह तो …..नरक में जा रही थी ….?

“हमारी राह ….हमारी राह है !” मैं अब अपने मित्रों की आवाजें सुन रहा था . “हमारी मर्जी ….हम जिसे चाहें प्यार करें …! क़ानून तो क्राइम को पकड़ेगा …हम तो ….प्रेम करने का मासून सा  पाप करते हैं !” लोग हँसे थे …तालियाँ बजीं थीं ! 

“किस्मत एक मौका और दे रही है , आप को ….विनीत साहब !” आलोक की आवाज़ ने मुझे जगा सा दिया है . “मानिक शाह की बेटी -डौली अभी तक आप के इंतज़ार मैं कुंआरी बैठी है !” आलोक ने सूचना दी थी . “और बिन्नी भी …..अपने इकलौते भाई की राह जोह रही है …..”

न जाने कैसे मेरा अंतर आज उदभासित हो उठा है ! मैं अचानक ही जैसे जिन्दा हो गया हूँ . लाला जी भी आशीर्वाद देने आ गए हैं और माँ भी मुझे दूल्हा बनाने मैं लगी हैं . बिन्नी ख़ुशी के गीत गा रही है और ….अचानक ही धारा ३७७ के उन्मूलन की हुई घोषणा जिसे देश पर्व की तरह मना रहा है – मुझे बकवास लगने लगी है !

“हेल्लो ! विनीत ….?” फोन विश्व वीर का ही था . “इंतज़ार है ….तुम्हारा , डार्लिंग !” उस ने कहा था . 

“शट  – अप्प !!” मेरा स्वर एक दम निर्भीक और निडर था . “मैं नहीं आऊँगा !” मैं कह रहा था . “कोई मैरिज नहीं होगी ….!!” मैंने स्पष्ट कहा था .

“यार , मैं ….?” 

“यू …कैन …गो …टू …हेल ….!!” मैंने फोन पटक दिया था . 

…………………

श्रेष्ठ साहित्य के लिए – मेजर कृपाल वर्मा साहित्य !! 

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