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Manidhari Sanp

मणिधारी सांप 

घुड-दौड़ के इतिहास में आज जैसा अचम्भा कभी नहीं घटा था,

रेस के सारे रिकॉर्ड टूट गए थे. दाव लगानेवालों की जेबें खाली हो गईं  थीं. लोग – ठगे से …लुटे से …अचंभित और भ्रमित …राजन और रानी को रह-रह कर याद कर रहे थे. लोगों को अब जीत-हार का गम न था. ख़ुशी ये थी ….कि किसी नए आदमी ने ….नए घोड़े पर सवार हो कर …पुराने सारे किले ढा  दिए थे ! किताबों में लिखे सारे आंकड़े झूठे सावित हुए थे.

पत्र कार और चित्र कार अब …अपनी रोज़ी-रोटी कमाने में जुटे थे. बहुत मसाला था – जौमदार कहानियां थीं …नए नायक और नाइका सामने थे…और था पूरा प्रमाद कि नया – पुराना होता है ….और …पुराना पूर्ण हो कर विलीन हो जाता है !

“आप की उम्र क्या है, राजन …..?” पत्रकार पूछ रहा था.

“गोली मार – ब्बे, उम्र को ….!” किसी ने बीच में टोका था. “भाई का रूप-स्वरुप तो देख ….! अरे, क्या गबरू- जवान है ….मेरा …यार …!!”

“रानी को आप ….मतलब कि …रानी आप के गाँव की ….आप द्वारा …….?”

“छोडो, भाई …! रानी तो रानी है …हवा है ….पानी है ….रेस की महारानी है ….! सारे दिवालिए  हो गए ….सेठ ! क्या गेम निकाला , यार !” लोग बोले जा रहे थे.

“ये सावित्री ….?” प्रश्न सामने आया था.

“धन्नामल की इकलौती है …..!” उत्तर स्वयं टपक पड़ा था. “सेठ की तो चाँदी हो गई , मित्रो !”

एक उल्लास था …..हास-परिहास था …..और था – आमोद-प्रमोद …! घुड-दौड़ के चर्चों के साथ-साथ ….राजन और सावित्री का प्रसंग क्या जुडा  – दिन में चाँद निकल आया ….! क्या अखबार और क्या पत्रिकाएँ ….राजन और सावित्री के चित्र …छापते-छापते अघा न रहे थे.

अपनी बलिष्ट बांहों में सावित्री को उठाए राजन का ….वो चित्र – जो किसी पत्रकार ने मौके पर खींच लिया था – आग की लपटों की तरह …मीडिया के मुंह लगा था …और …अब पूरे आसमान पर छा गया था.

“क्या जोड़ी है ,…ब्बे …!” लोग राय व्यक्त कर रहे थे. “बाई गौड़ …., क्या किस्मत है , इस साले – राजन की ….? देख तो …., फोटो देख …!”

राजन भी तो उन पलों में पागल-सा  हो गया था.

एक दम आसमान छू लेना …..एक दम  – ज़मीन से उठ कर हवा में तैरना …एक दम ..प्यादे से साहब हो जाना …और एक दम …..भिखारी से सेठ होना …..कुछ माइने तो रखता था…! उसे भी एहसास था …कि ….जो सफलता उसे मिली थी – वह बेजोड़ थी ! सेठ धन्नामल के तो व्वारे-के-न्यारे हो गए थे. उस का नाम …एक सितारे की तरह …घुड-दौड़ के इतिहास में …जड़ गया था. उस की कीमत आज के बाज़ार में …अकूत थी…..!!

“मांगो, …राजान …! क्या मांगते हो ….?” वास्तव में राजन की बोली लगने लगी थी. ग्लोवल  वाले लोग उसे खरीद लेना चाहते थे….अभी – इसी वक्त ! “इंग्लॅण्ड ….डर्बी …में …अपना कमाल दिखाने का मौका मिल रहा है …., आप को !” उन का कहना था. “आप की इमेज ….अंतरास्ट्रीय …होगी, भाई जी …!” उन का कहना था. “हमारा खुला ऑफर है ….आप के लिए ….! बोलो …..?”

राजन सामने खड़े उन ग्लोवल वाले एजेंटों को …अंखिया कर देखता रहा था. वह अकेला था ….वह आसमान पर उड़ रहा था ….! लेकिन …जब उसे माँगने को कहा गया था – तब उसे ज़मीन नज़र आई थी. उसे अपनी कीमत …एक बेहद सुंदर …खूबसूरत …और …आत्मीय चहरे पर लिखी दिखाई दे गई थी. उस ने पढ़ ली थी ….और कहा था – ‘सावित्री चाहिए , सेठ !’ वह हंसा था.’बोलो , ….देते हो ….?’ उस का प्रश्न था. ‘सावित्री……एक …!’ राजन अब चुहल के मूड में आ गया था. ‘सावित्री , ….दो …!!’ वह गिनती गिन रहा था. ‘सावित्री , ….तीन …!!!’ उस ने ऊँची आवाज़ में कहा था. “गया ….तुम्हारा ….ऑफर …! अब हवा खाओ ….!!” वह हँसता ही रहा था.

सच में ही राजन ने अपनी कीमत का एलान कर दिया था . हर खरीद दार को अब जाँच गया था कि …राजन बिकाऊ न था . धन्नामल सेठ का माल पिलपिला न था ! उस के पैर ज़मीन पर टिके थे ….सावित्री जैसी ….ठोस ज़मीन पर …जो अन्यत्र दुर्लभ ही नहीं ……थी ही नहीं ..!

प्रेस में इंटरव्यू होते वक्त सावित्री उस के साथ थी.

“अभी तुम सामने मत आना …!” राजन का आदेश था.

“क्यों….?” सावित्री ने तुनक कर पूछा था.

“नज़र लग जाएगी ….!!” राजन ने चुहल की थी. “दुश्मनों की आँख …ज़हर में भुनी होती है ! और तुम हो ….नाज़ुक …कोमल ….!” वह हँसता रहा था.

न जाने क्यों …ज़िद कर के घर से आई सावित्री ने ….राजन की बात मान ली थी. लेकिन उसे संतोष न हुआ था ! शक जैसा कुछ – कोई उस के कान भरने लगा था. राजन ने सावित्री का चेहरा पढ़ लिया था.

“साबो ….!” राजन ने इंटरव्यू के बाद कहा था. “मैं ….और तुम ….अब एक पूर्ण संज्ञा है ! हम दो नहीं ….अब एक हैं . हमारा विस्तार अब …साथ-साथ चलने में है ! मुझे जीने का अर्थ समझ में आ गया है . अब से मेरे जीने की आशा ….उमंग ….तरंग ….मकसद ….सब तुम हो , सावित्री ! में  तुम्हें ……!” राजन की आग्रह पूर्ण आँखों ने सावित्री को पूर्णतः राज़ी कर लिया था. “यू …आर ……माँ-इ-न …, जस्ट – माँ-इ-न …!”

ख़ुशी के इन उमड़ते-घुमड़ते समुन्दरों के बीच अकेली गीता ही थी जो ग़मों के बियाबान में अकेली घिरी खड़ी थी !!

अपने बलिष्ट आगोश में सावित्री को उठाए राजन …गीता को सता रहा था …धमका रहा था ….डरा रहा था . अपनी इकलौती संतान को गीता ने एक सहारे की तरह सींचा था. उनका तो बेटा-बेटी , सब सावित्री ही तो थी ! उन की वारिश थी – सावित्री !! एक भरे-पूरे संसार की मालकिन होना था – उसे . यों …एक …मामूली से जौकी के आगोश में …समाई सावित्री ….गीता को भली न लगी थी ! उसे सावित्री पर नहीं – अपने आप पर रोष आ रहा था. क्या कोई दिये सनाकारों में खोट रह गया था …जो …?

गीता के सामने अहम् प्रश्न खड़ा था . अब उसे उत्तर देना था !

“यह उम्र …लड़कियों को पगलाने वाली उम्र है !” गीता को उत्तर मिला था. उस का स्वयं का विगत उस के सामने आ कर हंसने लगा था. “मदन – तुम्हारा मूं लगा – मदन !” एक खुसुर-पुसुर की आवाज़ आ रही थी. “बहुत दिन हुए . मदन …अब कहाँ याद होगा …?”

“याद है, मदन !” गीता ने स्वीकार में सर हिलाया था. “प्यार के नाम पर …बाबला बनाता …मदन , उसे भूला कहाँ है ? और न वो अनुभूतियाँ – वह भूली है. सेठ धन्नामल के साथ विवाह हुआ था – पर वो तो …..जैसे एक …रिवाज़ थी. लेकिन …जो मदन के साथ हुआ था …..वो तो ….”

गीता के गात में …आज भी झुरझुरी भरने लगी थी ! मदन …..साक्षात उस के सामने खड़ा था !

“कहाँ भूलता है , आदमी ….इस तरह के प्रसंगों को ……?” गीता सोचती है. “अगर माँ ने मदद न की होती तो ….शायद …उस दिन वह मदन के साथ भाग जाती ! ठीक यही उम्र …सावित्री की है …! उन्माद है ….पागलपन है ….प्यार का जादू है ….जवानी का जोश है ….! बेहोश है – सावित्री !! उस पर राजन का भूत सवार है.” गीता महसूसती है. “कैसे बचाए – सावित्री को …..?” वह एक गहरे सोच में डूबी है.

गीता महसूसती है …..कि  राजन ….एक मणिधारी सांप की तरह …सेठ धन्नामल के खजानों पर आ बैठा है !

“आदमी ….कोई भी आदमी – अपने आप में कुछ नहीं होता , सावित्री !” गीता बता रही थी. “आदमी तो एक …उड़ता बीज है ….हवा में उड़ता बीज …! जहाँ …जिस ज़मीन पर गिरेगा ….जड़ें जमा लेगा …!! बीज बनेगा …और फिर उड़ेगा …”

“राजन नहीं उड़ेगा , मामा !” सावित्री का उत्तर था. “राजन खतरों के बीचों-बीच उगेगा ….बढेगा …पनपेगा …और बुलंदियां छूएगा ..!” सावित्री की आवाज़ में गज़ब का विश्वास था. “मैं …मैं …ढालूंगी …राजन को ….उस पुरूषार्थ के परिवेश में ….जहाँ आदमी कुंदन की तरह चमक आता है . राजन किस्मत का धनी है ….राजन एक पूर्ण पुरुष है ….राजन – एक लकी-स्टार है !! और क्या चाहिए , किसी औरत को ….?”

“और तुम …..?” गीता का प्रश्न था. “तुम क्या हो, सावित्री ….?” गीता ने जोर दे कर पूछा था.

“मैं ….ज़मीन हूँ , माँ !” एक दार्शनिक की तरह सावित्री ने उत्तर दिया था. “मैं ….राजन के लिए ज़मीन हूँ ….जिस पर उस का राज-पाठ होगा …!”

गीता निरुत्तर थी. सावित्री मौन थी. दोनों माँ-बेटियां एक दूसरे को निहारती रही थीं – लम्बे पलों तक !

“पूरनमल ….अपने बेटे सूरज के साथ …कलकत्ता आ रहा है ….!” धन्नामल के स्वर गीता के ज़हन में घनघनाने लगे थे. “बड़ा हो गया होगा , सूरज !” धन्नामल ने प्रसन्नचित हो कर कहा था. “हमारी सावित्री से ….कुल दो साल ही तो बड़ा है ….?” उन्होंने पूछा था.

“हाँ …!” गीता ने हाँमी भरी थी. वह एक गहरे सोच में डूबी थी. “जब हुआ था ….तो …हमारे पौ-बारह हुए थे . उस साल जितना मुनाफा ….और ….”

“अब आ कर हुआ है ….!” धन्नामल ने स्वीकार था. “अब तो परमात्मा ने सब लौटा दिया ….!!” उन्होंने कहा था. “तीन घंटे पूजा ही करता रहा , मैं ….., गीता ! जानती हो क्यों ….?”

“क्यों …?”

“इसलिए कि  ….मैं ….अगर पूजा पर न बैठता  ….तो शायद ….अँधा …पागल ….या कुछ भी हो जाता …! इतना पैसा ….बाढ़ की तरह बहता चला आए ….! बाप-रे-बाप ….!!” उन्होंने आश्चर्य से गीता को देखा था. “पूरनमल का पूरा कर्जा उतार दूंगा , इसी बार में ….!” उन का वायदा था.

“लेकिन …….” गीता चुप थी.

“वह भी मुझे याद है , गीता !” धन्नामल विंहसे थे. “मैं जानता हूँ , सावित्री बड़ी हो गई है ….! मैं ….भी सूरजमल को लेकर ….”

“लेकिन ….!”

“हाँ …! लेकिन ……इन दोनों की रजामंदी तो लेनी ही होगी ….! अच्छा है …अब दोनों मिल लेंगे …देख-भार लेंगे ….और ….” वह रुके थे. “सुनो ! बच्चों को …मिलाने-भेंटने से न रोकना ….!” उन की हिदायत थी.

गीता ने भी चुप रहना ही ठीक समझा था. वह न चाहती थी कि …जो …उस ने देखा था – उसे सेठ धन्नामल के कान तक पहुंचाती ! सावित्री की नादानी का कोई निदान अवश्य निकल आएगा – उस का अपना मत था !

“राजन , मिलने नहीं आया ….? क्या …कोई …बात है ….?” सेठ जी का प्रश्न था.

“मरे, फोटो खींचने वाले ही उस का पीछा नहीं छोड़ रहे ….!” गीता ने प्रेस और पत्रकारों को कोसा था.

“और …सावित्री कहाँ है ….?” उन का अगला प्रश्न था.

गीता गंभीर थी . मौन थी – वह ! स्त्री के पेट में रहष्य नहीं रहते ….! उस की जुबान बहुत हलकी होती है ….!!

लेकिन ….गीता के लिए ….उस की बेटी का भविष्य कहीं बहुत ज्यादा ….महत्वपूर्ण था….! कैसे बोलती वह ….?

……..

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