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मैं तुम्हें प्यासी कभी न रहने दूँगा ,पारुल !

गतांक से आगे :-

भाग – ६४

महाराजा के अंदर अब महारानी और चन्दन दोनों अकेले थे …!!

दोनों एक दुसरे पर प्रसन्न थे. बम्बई की सुस्त शाम का डंक निकालने के लिहाज़ से चन्दन ने पहले ही कोसे पानी के साथ सेलुलर का आर्डर भेज दिया था. व्हिस्की ने अपना कमाल कर दिखाया था. न जाने कैसे उन दोनों के मन प्राण एक दूसरे की चौखट पर आ बैठे थे. दोनों स्फूर्त थे .. स्वस्थ थे .. प्रसन्न थे .. राग-विराग से परिपूर्ण एक दूसरे पर निछावर थे. प्यार था .. आभार था .. प्रशंशा थी और था एक उन्मुक्त आकर्षण ! एक दुसरे को प्राप्त करने के पूर्ण प्रयत्न थे – दोनों की ओर से !

“काम बहुत होगा !” चन्दन ने चुप्पी को तोडा था. पारुल को न जाने क्यों भला न लगा था. वह तो उस मौन के साथ ही अपना संसार बसा बैठी थी. “ऑफिस बनेगा !” चन्दन बता रहा था. “घर भी बनेगा !” उसने पारुल को प्रश्नवाचक निगाहों से देखा था. “और .. और .. व्यापार का तिकड़म भी .. सर पर आन पड़ेगा !” उसने तनिक भाषा को बदला था.

“तुम जानो .. और तुम्हारा काम !” पारुल हाथ झाड कर खड़ी हो गई थी. “भाईम, हम तो बम्बई के गेस्ट हैं !” वह हंस रही थी.

“ओनली .. फॉर दिस डे, माय डियर !” चन्दन ने पास आते हुए कहा था. “बम्बई में बैठता कोई नहीं ! चौबीसों घंटे का कोल्हू है !! देखना ..!!!”

“लेकिन .. मै .. माने.. कि मै क्या कर पाऊँगी ..?”

“तुम .. ! घर बनवाना ..!” चन्दन ने बताया था. “गप्पा को बुला लो ! वह ऑफिस बनवाएगी !” उसका दूसरा सुझाव था.

“और आप .. श्रीमान ..?” पारुल ने तुरंत पूछ लिया था.

“व्यापार का तिकड़म !!” चन्दन ने पारुल की कमर में हाथ डाला था. “तुम्हे अभी आभास ही नहीं डार्लिंग कि हम जा कहाँ रहे है ..?” चन्दन ने बडे ही स्नेह पूर्वक पारुल का माथा चूमा था. “तुम्हारा तो सौभाग्य अब जागा है…. और मेरा अब आ कर नसीब उठा है ! मुझे .. नई दुनिया को दुनिया के हर कौने में ले जाकर खड़ा करना होगा, पारुल ! उसके लिए स्टाफ .. नया स्टाफ .. नए लोग .. नए चलन के लोग और डायनामिक लोग मुझे तैयार करने होंगे – जो आताल-पातळ को खोज लें – खबर बनायें .. और उसे बेच दें …..!!”

हैरान हुई निगाहों से पारुल चन्दन को देख रही थी !

“कल भोग आ जायेगा !” चन्दन फिर बताने लगा था. “गोलू ने कागज तैयार करा दिए हैं. कल ही उसका फाइनल कर देंगे !” उसने बात का तोड़ किया था. “तुम यहाँ का काम संभालना .. मै बाहर निकलूंगा .. और ..”

“चिड़िया पकड़ेंगे ..?” पारुल हंसी थी. “नई-नई चिड़ियाँ ..!!”

“हाँ ….! चहकने वाली चिड़ियाँ चाहिए – मुझे पारुल ! आज का जमाना ही ऐसा है कि जब तक बोलोगे नहीं .. तब तक ..” उसने रुक कर पारुल के खाली गिलास को घूरा था.

“बस ..! अब नहीं ..!!” पारुल ने साफ़ कहा था. उसे चन्दन की बातें बोर करने लगी थीं. वो तो चाहती थी कि .. कुछ नमकीन-सा .. या चटपटा-सा चलता – दोनों के बीच…! लेकिन चन्दन था कि व्यापार का ही रोना लेकर बैठ गया था. “चन्दन ..!” पारुल ने तनिक आँखें तरेरकर पुकारा था उसे. “ये सागर .. मतलब कि .. ये समुद्र अगर चल पड़ा .. चलता चला आया ..”

“चलता है ..! आता है ..!!” चन्दन लपक कर बोला था. “लेकिन .. आपके चरण छू कर लौट जाता है !” हंसा था चन्दन. “आपके बंगले के नीचे तक आएगा .. आपको प्रणाम कर लौट जायेगा ….!”

“पालतू लगता है .. ?”

“मेरी तरह ..!!” चन्दन हंसा था. “आपकी गुलामी तो .. कोई भी कर लेगा .. योर हाइनेस …!”

अब आकर पारुल ने चन्दन को निहारा था. अब आकर उसका मन खुला था. चन्दन के कहे प्रेमाकुल शब्दों ने उसका रुझान जगा दिया था.

“इस बंगले को .. नाम देंगे .. प्रेम सदन !” चन्दन ने पारुल के पास बैठकर कहा था. ” क्यों, आया पसंद ..?” उसने पूछा था.

“हा ! हा… हा….!” पारुल जोरों से हंसी थी. “बैल गाड़ी जैसा नाम है .. पुराना .. घिसा -पिटा और चालू !” उसने चन्दन का मखोल उड़ाया था. “और कोई नाम बोलो !”

“दी हार्ट थ्रोब…..!!” चन्दन फ़ौरन अंग्रेजी में कूद गया था.

“नो-ऑ ….!!” पारुल ने साफ़ मना किया था. “नाम मै रखूंगी !” बोली थी वह. “मेरा नाम दिया फाइनल होगा !” उसने चन्दन को घूरा था. “बोलो – हाँ !” उसका आग्रह था.

“पारुल सदन, रख लेते हैं !” चन्दन ने फिर से जिद की थी.

“नहीं ! नाम होगा .. जो मै – रखूंगी !” पारुल अकड गई थी.

“जूता चला रही हो ..?” चन्दन ने उसे बाँहों में भर लिया था. “बोलो, बोलो ! कह दो मन की बात !” उसने लाड किया था, पारुल को…….

“चन्दन महल …!!” पारुल ने घोषणा की थी. “एंड .. इट्स फाइनल !!” वह उछल रही थी.

हैरान था, चन्दन ! आश्चर्य चकित आँखों से वो अवाक पारुल को घूरे ही जा रहा था !

आज .. हाँ हाँ आज ही उसके जीवन का ये पहला मौका था जब उसे कोई कुछ चाव से दिए जा रहा था .. स्वयं कुछ लुटाता जा रहा था .. उसके नाम पर .. उसके काम पर ! अब से पहले तो उसे जो भी मिले – चोर ही मिले ! सब ने उसका खाया – और नमक -हरामी की. कविता और के डी सिंह का नाम भी उसे याद हो आया था. उसने गधों की तरह कमाया था.. लेकिन कविता ने या कि के डी ने कभी उसे दुअन्नी का मुह नहीं देखने दिया ! और एक थी .. ये पारुल .. महारानी ऑफ़ काम-कोटि .. जो उसके नाम पर .. अपना महल खड़ा कर रही थी !

“पसंद आया मेरा नाम ‘चन्दन महल’ ..?” पारुल पूछ रही थी. “ये मेरे सपनों का महल होगा, चन्दन ! मै .. मै इस महल में ..” पारुल ने माहोल को रोमांटिक बना दिया था. चन्दन अपने आप को रोक न पाया था और उसने पारुल को आगोश में भर कर खूब चूमा था .. खूब-खूब प्यार किया था .. अनुराग में डूब डूब कर उसने पारुल को प्राप्त किया था ! “अच्छे तो मुझे तुम लगते हो, मेरे चन्दन !” वह बता रही थी. “इसलिए .. मेने ..”

“निराश नहीं करूँगा तुम्हे ! वायदा करता हूँ, पारुल कि .. मै ..”

“नहीं, चन्दन !” पारुल ने चन्दन के होठों पर ऊँगली धरी थी. “वक्त सुन रहा है, डार्लिंग !” उसने वर्जा था चन्दन को. “मै .. इसे भुगत बैठी हूँ, चन्दन !” उसने आहिस्ता से कहा था. “लेट्स .. लेट्स ..” वह चुप थी. चन्दन की आँखों में देख रही थी.

“लेट्स प्लान !” चन्दन चहक कर बोला था. “लेट्स प्लान समथिंग, डार्लिंग !” वह पारुल को आगोश में लेकर बैठा था. “वो .. जो .. मेरा मन हमेशा चाहता रहा है ..” उसने छुआ था पारुल को. “मै .. हमेशा-हमेशा से एक बहुत बड़ा सपना लेकर चलना चाहता रहा हूँ, पारुल !” वह बताने लगा था.

“क्या ..?” पारुल अब प्रसन्न थी. “सुने तो .. अपने चन्दन का .. स्वप्न !” उसने प्रेमपूर्वक कहा था. “कहो …! कह दो .. अपना सपना .. मेरे यार .. चन्दन……!!”

चन्दन हैरान था. फिर से एक नई पारुल को पाकर वह परेशांन था !

“मै .. विश्व-शांति का .. पुजारी बनना चाहता हूँ, पारुल !” चन्दन बताने लगा था.

“लेकिन तुम तो मेरे पुजारी बनने की बात कर रहे थे ..?” पारुल ने चुहल की थी.

“हाँ हाँ ! वो तो मै रहूँगा ही !” हामी भरी थी चन्दन ने. “लेकिन, पारो…..!” उसने कई पलों तक पारुल की आँखों में देखा था. “मै .. मेरा मतलब कि जब भी मै महसूसता हूँ कि … ये दुनिया एक बारूद के ढेर पर बैठी है ! कभी भी कोई भी पागल .. जो तुम भी देख सुन रही हो, अगर न्यूक्लिअर बटन को दबा बैठा तो .. सोचो ..?”

“फिनिश ..!!” पारुल बोली थी.

“हाँ ! फिनिश ..!!” चन्दन चहका था. “और पारो .. हम दुनिया को बताएँगे कि – मित्रो ! ज्वालामुखी है .. आगे .. मत बढ़ो उधर ! शांति की ओर आओ ! दुःख है, वहां….. मौत है, उधर .. और .. और .. शांति से रहने के लिए भारत आओ ! आओ .. और देखो कि हम किस कदर सारे गम झेल लेते हैं .. और सुख तलाश लेते हैं ! विषमता एक राक्षस है .. ये नफरत का समुन्दर है .. और .. और हमे तो दो वक्त की रोटी भी नहीं मिलती ! लेकिन .. लेकिन ..”

“सुनेगा कोई ..?”

“क्यों नहीं …? हम कहेंगे कि .. तुम इन कुत्तों, बिल्लियों और चूहों के बजाय अगर मनुष्य से प्यार करो तो ..? अगर .. बाँट कर खाने का संकल्प हम सभी ले लें तो ..?”

“पैसा .. धन .. कहाँ से आएगा .. चन्दन ….?” पारुल ने डर कर पूछा था. “अगर हम सब कुछ बाँट बैठे .. लुटा बैठे तो ..?”

“तुम देखना .. पारो ! तुम .. मेरी कमाई का ठिकाना देखना !” चन्दन प्रसन्न होकर बता रहा था. “तुम अनुमान नहीं लगा सकतीं कि हमारे पास कितना धन आएगा .. कहाँ-कहाँ से आएगा .. लेकिन आएगा ! तुम अपना वैभव देखना पारो ! अपनी नई दुनिया का विस्तार देखना, डार्लिंग !” चन्दन ने पारुल को सीने से लगा लिया था. “मै तो बादल हूँ .. जो फैलता है…. बिखरता है .. और फिर जुड़ता है ..! और जुड़ कर बरसता है .. मूसलाधार ..!!” चन्दन ने पारुल को देखा था. “बरसने देना मुझे .. पारो …!” प्रार्थना कर रहा था, चन्दन !

“मै न रोकूंगी ..!” पारुल ने प्यार से कहा था. “पर मेरे हिस्से की बूंद ..?” उसका प्रश्न था.

“हाँ ! तुम्हारी .. तुम्हारे हिस्से की वो बूंद…. स्वाति की पवित्र बूंद .. तुम्हारी ही होगी, पारो !” चन्दन ने पारुल को समीप खींचा था. “मै तुम्हे प्यासा कभी न रहने दूंगा !” उसने वायदा किया था.

और वो दौना उस शाम एकाकार हो – सो रहे थे …..!!

क्रमशः-

मेजर कृपाल वर्मा साहित्य !

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