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Lal Saav !

देवता और दानव !!

“नाव वहां डूबी जहाँ पानी ही नहीं था , लेखक साव !” लाल साव बता रहे थे. उन की आँखें नम थीं।  चेहरा लटक आया था. हमेशा चुस्त-दुरुस्त दिखते लाल सहाव आज अवसन्न थे। …दुखी थे  ….ग़मगीन थे ! उठते ठहाके और उन की अट्टहास की हंसी न जाने कहाँ नदारद थी। आश्चर्य ही था   …कि खुशियों की हथेलिओं पर तैरता पानी का जहाज़ आज डूबता ही जा रहा था.

लाल सहाव की कोठी पर भीड़ जमा थी. पुलिस पहुंची हुई थी. एक हुज्जूम था   …चक-चक थी  …रोना=पीटना तक था ! मैंने लाल सहाव की आँखों में झाँका था.

“दुलारी ने आत्महत्या कर ली   ….!” रोने लगे थे, लाल सहाव।

मैं लाल साव के बारे बहुत कुछ जानता था   …और कुछ भी नहीं जानता था ! मैं जानता था कि दुलारी – उन की पत्नी   ….पति-भक्त थी  …पढ़ी-लिखी थी  …धर्मपरायण थी  …दयालू और बेहद व्यवहार कुशल थी  ….जब कि लाल साव अनपढ़ ही थे. उन की पत्नी दुलारी ने जब लाल साव से शादी की थी तो  …लाल साब निरे सड़क छाप थे. दुलारी के आने के बाद   …

“पर क्यों, लाल साव   ….?” मैंने पूछ ही लिया था. “आप दोनों तो  …और बच्चे भी सब सेट हैं  …! आप का तो फोरिन में  ….?” मेरी कुछ समझ में न आ रहा था.

कारण कि लाल साव के वैभव को मैंने कई बार झांक कर देखा था  – उन्ही के साथ , उन्ही की गाडी में बैठ कर ! हमारी दोस्ती  …अजीव दोस्ती थी ! हुआ यों कि मैं जब दिल्ली में आया था तो  …मुझे किसी ने घर तक किराए पर नहीं दिया था. क्यों कि मैं  ….’करेला और नीम चढ़ा ‘ था  ….’फौजी और लेखक ! तब किसी चलते आदमी ने कहा था – लाल के पास चले जाओ ! पहले तो मुझे मज़ाक लगा था  ..पर जब किसी ने मुझे लाल का पता बताया तो मैं पहुँच गया !

“किराए   …पर  …घर  ….!” मैंने बात की थी तो लाल साव ने मुझे घूर कर देखा था.

“क्या दोगे   ……….?”

“किराया   …..!”

“नहीं मिलेगा   ….!!” दो टूक जबाब था, उन का।  “एक पेटी रम   …दोगे  …?” उन का सबाल था.

हम दोनों के बीच बहुत देर तक एक चुप्पी डोलती रही थी.

“बहुत भोले होते हैं , फौजी साव !” लाल साव मुस्कराए थे. “जान देदेते हैं  ….पर   …ज़ुबान नहीं देते  ….!” उन का मत था. “यहाँ आप टिक नहीं पाओगे  …! लेखक तो वैसे ही भूखा मरता है  …पर आप तो फौजी हैं  ….! क्यों छोड़ी    …नौकरी   …?”

क्या करता , मैं  …? मन मसोस कर मैंने उन्हें रम की पेटी देना स्वीकार लिया था   …और लो , जी ! मुझे आलीशान घर उन्होंने किराए पर मोहिया करा दिया था. और उस के बाद से आज तक मैं देखता आया था कि  …लाल साव  …एक के बाद दूसरा सोपान चढ़ते ही चले गए थे ! कोई काम हो    ….होगा !! फीस देनी होगी – आप को ! फिर चाहे आप को आसमान के सितारे ही क्यों न चाहिए , मिलेंगे !! और सौदा इतना साफ़ कि जितना तो गंगाजल भी नहीं होता   …? लैन -दैन – बराबर ! लाल साव की पैठ बहुत गहरी थी.

“ये सब क्या जादू करते हैं, लाल साव  …?” मैंने एक दिन चाय पीते-पीते पूछा था।  मेरी चाय उन के साथ तय थी. मेरा आना-जाना भी उन्हें कबूल था. मुझे हर मन की बात वो बता देते थे. अपने जीवन की घटना मुझे खुले मन से सुनाते थे. हम दोनों खूब हंसा करते थे. लेकिन  ….आज    …आज तो लाल साव रोये ही जा रहे थे   …!

“ये कोई लाल साव नहीं है   ….! घटिया है  ….दलाल है   …! पैसे ऐंठता  है   …! मेरी जिंदगी तबाह करने में इस आदमी ने   ….” एक बेहद सुन्दर   …और माँडर्न महिला रोष में बोल रही थी. “मुझे तीन-तीन बीमारियां दी हैं  …., इस ने !”

और भी उसी तरह का शोर था ! दुलारी की आत्महत्या का कारण शनैः -शनैः उजागर होने लगा था. लाल साव का कच्चा चिट्ठा खुलने के बाद उस भली औरत ने आत्महत्या कर ली थी! लाल साव की मूं लगाईं   …औरतें   …या कि वो औरतें जो  …..

“लोगों का मांस नौच-नौच कर    …मैं इन्हें खिलाता रहा , लेखक साव !” लाल साव बता रहे थे।

लाल साव मछली के मुँह में मांस रखना जानते थे    ….और जैसे ही मछली मांस को खाती थी – लाल साव उसे निगल जाते थे !! लेकिन आज  ….पानी से बाहर आ पड़ी मीन  …लाल साव के गले की फांसी बन गई थी.

“चलो  …!” इंस्पेक्टर ने इशारा किया था. “चलना पड़ेगा  …कुछ नहीं हो सकता  …” उस का कहना था.

दुनियां -ज़हान की मुशीबतों का लमहों में हल निकालने वाला – लाल साव , आज सब चौकड़ी भूल गया था ! कभी जिनके लिए वो दवा थे  ….आज वो ही उन के लिए ज़हर थे !! और  ….

दुलारी के लिए    दलाली करना कोई जुर्म न था  ….लेकिन – जो लाल साव और कुछ कर गुज़ारे थे  ….वो उसे गबारा न था ! देवता और दानव एक चोले में साथ-साथ कैसे रह सकते थे   …?

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श्रेष्ट साहित्य के लिए – मेजर कृपाल वर्मा साहित्य !!

 

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