अरे रे! देखो, दद्दा! ये क्या कर रहा है – यशोदा का? मारी पिचकारी रंग दी राधा प्यारी! रोको इसे कोई। पकड़ो इसे! दौड़ो री! आज इसे सबक सिखाते हैं!
झूठ मूठ रोती है तू तो राधे! तेरा तो ये प्यार है, तेरा तो भरतार है!
चल, झूठी कहीं की! ये काला कलूटा और मैं सुंदर गोरी! इसे तो मैं आटे के मोल भी न लूंगी!
देखो, देखो! फोड़ दी इसने मेरी मटकी, दद्दा! हाय दइया! फैल गया मेरा सारा माखन! अरे रोको कोई इस गंवार ग्वाला को! हुड़दंग मचा रक्खा है इसने पूरे ब्रज में!
लो आ गया छलिया! मैं न कहती थी गौरी कि ये बड़ा ही रंगीला रसिया है! इसे जमाने भर की खोज खबर रहती है!
अरे रे! वो देखो, ले गया हमारे चीर और चढ़ गया कदम पर! ओर ये कैसी तान छेड़ी है बांसुरी की? अब हमें ये पागल बनाएगा, कहे देती हूँ! देख लेना सलौनी ये राजी बाजी हमें चीर न लौटाएगा!
मर जाऊंगी मैं तो लाज की मारी ..!
मैं न मांगूंगी चीर! मैं तो जल में ही समाधि ले लूंगी!
है तो री ये मोहन .. मन मोहन! बांसुरी बजाता कित्ता प्यारा लगता है! कैसा सजीला सलौना है री! मन मोह लेता है – ये कलूटा! और न जाने कैसे कैसे जादू मारता है ..
राधे जानती है! पर बताती किसी को नहीं है! ये तो उसी की है! और हमसे तो वो छल करता है! ठिठोली खेलता है, चोर कहीं का!
चलो चलो, यशोदा से लगाते हैं गुहार, कराते हैं आज इसकी गुढ़लीला!
नहीं, मइया नहीं! ये सारी गोपियां झूठ बोल रही हैं! मैंने तो कोई अपराध नहीं किया मइया और ये दाऊ भी झूठ बोल रहे हैं। ये नहीं चाहते कि .. मैं ..
छोरियां छेड़ूं? दाऊ बीच में बोल पड़े हैं! छिछोरे! मॉं, इसे आज ..
हॉं हॉं! मारो मुझे! मैं पराया हूँ ना? मैं .. मैं तो लगता भी क्या हूँ तुम्हारा ..?
मत रो बेटा! कान्हा तू मेरा ही है रे! मैंने तुझे मोल नहीं खरीदा है! तुझे तो मैंने ही जाया है पागल!
खा जा – गोधन की सौगंध ..
गोधन की सूं सांवरे! तू मेरा ही बेटा है रे!
देख, देख! वो भागा मेरा चीर चुराकर तेरा लाड़ला मौसी! ये नहीं सुधरेगा मैं कहे देती हूँ!
“क्या वर्मा जी! आज ख्वाबों में ही होली मना रहे हो?”
“कोरोना काल चल रहा है भाई! रंग रोगन से दूर रहना ही ठीक है हा हा हा ये भी तो होली है!”
होली है ..
मेजर कृपाल वर्मा