हरियाणे से गाड़ी खरीदने के बाद रमेश हमेशा की तरह दिल्ली पहुँच गया था। मुकेशजी सफ़ारी गाड़ी को देखते ही हैरान और चिन्तित हो गये थे.. आख़िर financier थे.. गाड़ियों का बिज़नेस था.. मुकेशजी का। मुकेशजी गाड़ी को देखते ही समझ गये थे.. गाड़ी फाइनेंस की है.. चोरी की। उन्होंने दामाद होने की वजह से रमेश को सलाह भी दी थी,” रमेश बेटा!.. इस गाड़ी को इस तरह से चलाने में रिस्क फैक्टर है.. आप सुनील के साथ चंडीगढ़ जाकर इस गाड़ी के नम्बर बदलवा लाओ!”।
पर रमेश तो अपने आप को माँ जाया फन्ने-खां समझता था.. उसने अपने काबिल ससुर की एक भी अक्ल की बात नहीं मानी.. और इस गाड़ी को by रोड लाने की जिद्द कर बैठा था। ऐसे नम्बरों की गाड़ी को लेकर रमेश दिल्ली को पार करना चाह रहा था.. जिसमें पूरा का पूरा पकड़े जाने का ख़तरा था। रमेश ने अपने संग सुनील या फ़िर बबलू को ले चलने की ज़िद्द की थी.. जिसका मुकेशजी ने साफ़ इनकार कर दिया था। खैर! अब इस फाइनेंस की गाड़ी का इंदौर जाना तय हो गया था.. जो पता नहीं रमेश को किन लोफरों ने टिका दी थी। और लोफर हो भी कौन सकते थे.. होंगे रमेश की करोड़पति माँ के रिश्ते में.. रमेश की पहचान ही उसकी माँ से थी.. केवल मम्मीजी और उनका परिवार।
“ देखना!.. सफ़ारी जब इंदौर पहुँचेगी तब बम पटाख़े फूटेंगे”। रमेश ने अपनी ससुराल में बैठकर शब्दों के तीर छोड़े थे.. और अगले दिन ही गाड़ी लेकर इंदौर के लिये रवाना हो गया था।
मुकेशजी सुनीता से सारे दिन रमेश के रास्ते में होने की ख़बर पूछते रहे थे.. जानते थे.. गाड़ी के पकड़े जाने का ख़तरा है। पर रमेश सही सलामत गाड़ी को लेकर इंदौर पहुँच गया था। प्रहलाद और नेहा भी नई सफ़ारी गाड़ी आने का इंतेज़ार कर रहे थे। शाम को जैसे ही गाड़ी घर के दरवाज़े पर पहुँची थी.. बच्चे ख़ुशी से झूम उठे थे.. और शोर मचाया था,” आ गई सफ़ारी!!”।
नई गाड़ी के आने की ख़ुशी में दोनों बच्चे नीचे दौड़े चले आए थे.. और दर्शनाजी घर से बाहर निकल आयीं थीं.. पूरे डॉयलोग डिलीवरी की तैयारी के साथ। हालाँकि मैडम सारे राज़ से वाकिफ़ थीं.. गाड़ी कहाँ की है.. वगरैह-वगरैह। घर में एक सफारी विनीत की पहले से ही खड़ी थी.. और ये रमेश भी एक सफ़ारी और मार लाया था। खैर! जो भी हो!.. घर में सफ़ारी आने से खेल-तमाशा खूब बन गया था। उधर रमा और विनीत गाड़ी के अन्दर का राज़ नहीं जानते थे.. रमेश को सफ़ारी गाड़ी में बैठा देखकर दोनों के मुहँ बन गये थे। “ अरे! इसके पास यह गाड़ी कैसे आ गई!”।
रमा और विनीत दोनों के मन में एक ही बात घूम रही थी। “ निकाल दी होगी कोई ज़मीन!”। यही एक जवाब भी था… विनीत और रमा का।
दर्शनाजी रामलालजी को भी घर से बहार गाड़ी दिखाने के लिये लेकर आ गईं थीं।” देख! मेरे जिन्दे-जी मेरे दोनु बेटे.. सुपारी ले आये!”।
दर्शनाजी ने पतिदेव के आगे शेख़ी बघारते हुए कहा था.. कि उनकी आँखों के आगे ही उनके दोनों बेटों ने सफ़ारी जैसी गाड़ी लाकर दिखा दी।
रमेश ने भी जमकर गाड़ी के गीत गाए थे.. अपने परिवार ने तो क्या.. सारे मोहल्ले ने गाड़ी के गीत ऐसे सुने थे.. मानो गाड़ी न हो गई हो.. दुनिया का आठवाँ अजूबा हो।” फुली लोडेड है.. या गड्डी.. साढ़े-तेरह लाख की से!.. देखी थी.. किसी ने!. झाँक-झाँक देखें हैं!”।
बहुत ही सुन्दर वणर्न करे चल रहा था.. रमेश गाड़ी का.. साथ ही लोगों को ताना-कशी के छींटे लगाकर गाड़ी की खूबसूरती में चार चाँद लगा रहा था। रमेश ने ज़ोर-ज़ोर से बता दिया था.. गाड़ी फुली लोडेड है.. शायद ही ऐसी गाड़ी देखने को मिले न मिले।
घर में नई गाड़ी आने से आने वाले समय को नाटक की एक नई कड़ी मिली थी। बच्चे गाड़ी में सेर-सपाटा कर सफ़ारी गाड़ी का खूब आनन्द ले रहे थे।
‘ उसका भाई.. बॉक्सर है!.. बैठेगी मेरे साथ गाड़ी में!!”।
अरे! भई!.. अब ये किसके भाई का नया परिचय हुआ था…
अब कौन से मज़ेदार नाटक पर से पर्दा उठने वाला था.. रामलालजी के परिवार में। जानने के लिये पढ़ते रहिये.. खानदान।

