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खानदान 157

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शादी-ब्याह के सपने, घी-दूध के निकलने के वहम औरत की बाएं आँख का फड़कना बहुत बड़ा अपशकुन होता है.. सुनीता के दिल को दहला कर रख दिया था.. माँ को लेकर एक तो बेचारी वैसी ही परेशान थी.. दूसरा एक नया सपना सुनीता को डरा कर रख देता था।

इसी डर के रहते सुनीता हर बार मायके फ़ोन लगा दिया करती थी..

अनिताजी को दूसरे अस्पताल भर्ती करवा दिया गया था.. शरीर में जान भी नहीं थी.. सर्दी और कमज़ोरी दोनों के ही कारण अनिताजी निमोनिया का शिकार हो गईं थीं.. पिताजी ने माँ का अस्पताल बदली करवा दिया है.. राहत की साँस आई थी..

” मैंने तेरी माँ का अब अस्पताल बदली करवा दिया है.. यहाँ पहले वाले अस्पताल के मुकाबले डॉक्टर भी अच्छे हैं.. और सुविधाएं भी ज़्यादा हैं! अब मैं इसे बिल्कुल ठीक करके ही निकालूँगा! अभी तो होश में नहीं है.. oxygen mask लगा हुआ है..  मैं इतवार को अस्पताल में ही रहूँगा! बेटा! तू मुझसे आराम से बात कर लेना!”।

मुकेशजी से बात कर सुनीता की जान में जान आई थी.. पर इतवार तक का इंतज़ार माँ को लेकर थोड़ा मुश्किल सा लगा.. और सुनीता ने पिताजी को एक दिन पहले ही फ़ोन लगा डाला था।

आज एक पति का स्वर अपनी पत्नी के बिटिया को हालचाल बताते हुए.. भारी था..

” बाकी सब तो ठीक है! पर…..!! आज रात को देख लेते हैं! “।

” ठीक है! पिताजी .. मैं माँ से मिलने आ जाती हूँ!”।

” नहीं! कल इतवार है! मैं कल शाम को बता दूँगा! कि कब आना है! पर अब आकर एकबार तो अपनी माँ के दर्शन कर ही लेना! बाकी तो दुनिया आनी-जानी है.. जो आया है.. वो जाएगा भी!’।

आज पिताजी की बात सुन.. सुनीता का मन बिल्कुल भी नहीं लगा था.. और फ़िर से सपने में अपनी माँ को अपनी ससुराल में खड़ा पाया था.. वहम शांत करने के लिए, तुरंत ही अगले दिन सारा काम-काज निपटा.. पिताजी को अस्पताल में फ़ोन लगा डाला था..

पर आज कई बार फोन मिलाने पर भी पिता ने जब फ़ोन नहीं उठाया.. तो सुनीता ने झट्ट से सुनीलजी को फ़ोन लगाया था..

” हाँ! सुनीता..! माँ की कल रात को ही तबियत ख़राब हो गई थी.. हमारे पास अस्पताल से फ़ोन आया था.. माँ को वेंटिलेटर पर ले लिया गया है! उनके दस परसेंट चांस हैं! अगर ऊपर वाला कोई चमत्कार कर दे तो! मैं तुम्हें थोड़ी देर से फ़ोन लगाता हूँ!”।

और सुनीलजी फ़ोन रख देते हैं.. सुनीलजी से बात करने के बाद सुनीता के रोंगटे खड़े हो जाते हैं! माँ सी चीज़ दुनिया में और कोई नहीं होती! घबराकर और इस बार रोते बिलखते हुए.. सुनीता प्रहलाद के पास जा खड़ी होती है..

” बेटा! जल्दी टिकट करवा..!! नानी की हालत बहुत ख़राब हो चुकी है.. घर का और इसका ध्यान रखना! मुझे जाना होगा! ठीक से ड्यूटी देना!”।

” आप चिंता मत करो! माँ! कुछ नहीं होगा.. नानी को! आप चली जाओ! मैं ध्यान से रहूँगा!”।

और प्रहलाद सुनीता की टिकट करवा देता है!

पर ये ड्यूटी वाली बात प्रहलाद के भी मुहँ से सुनने में आ जाती है..  

बबलू के फ़ोन की घंटी दोपहर के एक बजे सुनीता के लिये बजती है..!!

” माँ चलीं गईं…!!”।

शोकाकुल खानदान!!

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